फिल्म जगत में बहुत से तो नहीं, पर कुछ पटकथा लेखक जरूर हुए हैं जिन्होंने बतौर गीतकार भी नाम कमाया है। गुलज़ार से तो हम सब वाकिफ़ हैं ही। जावेद साहब ने भी सलीम के साथ कई यादगार पटकथाएँ लिखी पर अपने गीतकार वाले रोल में तभी आए जब पटकथा लेखन का काम उन्होंने छोड़ दिया।
आज के संगीत परिदृश्य में एक ऐसा ही एक युवा गीतकार है जिसने बतौर पटकथा लेखक भी उतना ही नाम कमाया है। चक दे इंडिया जैसी पटकथा से चर्चित हुए जयदीप साहनी ने तुझमें रब दिखता है... जैसे गीत की रचना भी की है। आज इस साल वार्षिक संगीतमाला की १५ वीं पॉयदान पर पहली बार पदार्पित हुए हैं वो संगीतकार सलीम सुलेमान की जोड़ी के साथ।
जयदीप द्वारा लिखे इस गीत के बोलों में एक दार्शनिकता है जो सलीम सुलेमान के शांत बहते संगीत में उभर कर सामने आती है।
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल बोले सोया था अब जगने दो
दिल दिल में है दिल की तमन्ना सो
..चलो जरा सी तपने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
धूप खिली जिस्म गरम सा है
सूरज यहीं ये भरम सा है
बिखरी हुई राहें हजारों सुनो
थामो कोई फिर भटकने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल की पतंग चलो दिखाती है
ढील तो दो देखो कहाँ पे जाती है
उलझे नहीं तो कैसे सुलझोगे
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे
उड़ने दो ....उड़ने दो
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
आज के संगीत परिदृश्य में एक ऐसा ही एक युवा गीतकार है जिसने बतौर पटकथा लेखक भी उतना ही नाम कमाया है। चक दे इंडिया जैसी पटकथा से चर्चित हुए जयदीप साहनी ने तुझमें रब दिखता है... जैसे गीत की रचना भी की है। आज इस साल वार्षिक संगीतमाला की १५ वीं पॉयदान पर पहली बार पदार्पित हुए हैं वो संगीतकार सलीम सुलेमान की जोड़ी के साथ।
जयदीप द्वारा लिखे इस गीत के बोलों में एक दार्शनिकता है जो सलीम सुलेमान के शांत बहते संगीत में उभर कर सामने आती है।
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल बोले सोया था अब जगने दो
दिल दिल में है दिल की तमन्ना सो
..चलो जरा सी तपने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
वैसे भी हम सभी उड़ना ही तो चाहते हैं या उड़ नहीं भी पाते तो उसका स्वप्न जरूर देखते हैं। चाहे वो कामयाबी की उड़ान हो या सुखों के लोक में हमेशा विचरने की चाह। पर जयदीप लक्ष्य की सोच कर उड़ान भरने का संदेश इस गीत से नहीं देते। वो रुक कर, सँभल कर उड़ान भरने को तो कहते हैं पर साथ ही ये कहना भी नहीं भूलते कि एक बार सही उड़ान भर कर भटकना भी जरूरी है। सुलझाव भरी जिंदगी की उम्मीद करने के पहले बिखराव का सामना करने की क्षमता लाना जरूरी है।
धूप खिली जिस्म गरम सा है
सूरज यहीं ये भरम सा है
बिखरी हुई राहें हजारों सुनो
थामो कोई फिर भटकने दो
उड़ने दो ...उड़ने दो ...
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
दिल की पतंग चलो दिखाती है
ढील तो दो देखो कहाँ पे जाती है
उलझे नहीं तो कैसे सुलझोगे
बिखरे नहीं तो कैसे निखरोगे
उड़ने दो ....उड़ने दो
हवा ज़रा सी लगने दो.... दो
सोया था अब जगने दो
पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो
सलीम सुलेमान ने गिटार की मधुर धुन के साथ गीत का आगाज़ किया है। सलीम मर्चेंट अपनी गायिकी से चक दे इंडिया ,फैशन, कुर्बान आदि फिल्मों में पहले ही प्रभावित कर चुके हैं। उनके स्वर की मुलायमियत गीत के मूड के साथ खूब फबती है।
तो आइए सुनें सलीम का गाया फिल्म रॉकेट सिंह का ये गीत
8 टिप्पणियाँ:
बहुत उम्दा गीत...सही चयन..जारी रहें.
फिल्म "रॉकेट सिंह" मुझे इतनी अच्छी लगी थी की कह नहीं सकती.....
इस फिल्म को देखने से पूर्व रणबीर कपूर मुझे बुतरू सा लगता था..लगता था,बड़े घरों के ये जमीन से कटे बच्चे बस सूँ सां वाला एक्टिंग कर सकते हैं,गंभीर अभिनय इनके वश की नहीं....पर इस फिल्म ने मेरी यह धारणा पूरी तरह ध्वस्त कर दी...
यदि कहानी अच्छी हो तो बिना किसी ताम झाम के भी वह दर्शक को अभिभूत कर सकती है,ऐसी फिल्मे यही सिद्ध करती हैं..
और यह गीत न ही कहानी को गति देती है बल्कि कानो और ह्रदय को सहजता से स्पर्श करती है...
बहुत बहुत आभार इस पोस्ट के लिए...
रंजना जी..मेरे जान पहचान वालों में जिसने भी ये फिल्म देखी इसकी तारीफ की है पर मैं अब तक देख नहीं पाया हूँ।
Manishji,Robert Frost ki ek kavita hai 'The Road Not Taken',ek vakya me kahoon to ispasht karti hai ki hum sabhi us raste ko chunne se darte hain jis par kam chala gaya hai ya nahi hi chala gaya hai to phir bhatkna raha hi nahi.
Robin Sharma ki kitaab 'Leadership Wisdom' me ek vratant hai ki naye prayaasoon se darna bilkul waisa hai jaisa kisi kaidi ko riha kiya jaye aur wo duniya ke dar se wapas jail me jana chahe.
Jaydeep sahab ke lahrate shaboon aur janaab Saleem ki behkati-si gayki ne to halat kati patang-si kardi hai,geet sunte-sunte hawaoon sang bahne lagte hain,dheel hi dheel aue manmohak bhatkaw....
AABHAR
प्रियंक बहुत अच्छा लगा कि आपने इस गीत की भावनाओं के मद्देनज़र राबर्ट फ्रास्ट की कविता और राबिन शर्मा की किताब का उल्लेख किया। फ्रास्ट की उस कविता को शायद अर्सा पहले पढ़ा था पर अब भूल गया हूँ। अब आपने याद दिलाया है तो फिर पढ़ने की उत्सुकता जाग उठी है। नेट पे खोजता हूँ।
गीत सुन्दर जितना है उतनी ही सुन्दर उस गीत को खोलती आपकी प्रस्तुति । गायकी तो सुन्दर है ही ।
रॉकेट सिंह हमने भी नहीं देखी ! देखनी होगी ।
प्रविष्टि का आभार ।
सचमुच आप ल्रिक्स को कितनी गहराई से पकड़ते हो ना?
आज दिन भर की बातचीत और दो कप कौफी पर्याप्त नहीं थी आपके सब किस्से समेटने को। फिर से बैठना पड़ेगा एक बार।
हिमांशु मेरे इस प्रयास को पसंद करने के लिए धन्यवाद !
गौतम किस्से तो आपसे भी कितने सुनने रह गए। आपकी पसंदीदा ग़ज़लों के बारे में भी जानना था और कुछ को तो आपसे सुनना भी था। वैसे मोना की पिक्चर कैसी लगी ?
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