अब आप ही बताइए दंगों से हैरान परेशान आदमी अपना कष्ट लिए प्रशासन के पास जाए और अगर उसे दुत्कार और प्रताड़ना के आलावा कुछ ना मिले तो वो क्या करेगा ? नाउम्मीद हो कर अपना दर्द मन में छुपाए मौन ही तो रह जाएगा ना। गुलज़ार ने इन भावनाओं को ग़ज़ल के मतले में शब्द देते हुए लिखा और क्या लाजवाब लिखा....
उम्मीद अब कहीं कोई दर खोलती नहीं
जलने के बाद शमा और बोलती नहीं
चारों ओर हिंसा और आगजनी से पसरे सन्नाटे को गुलज़ार ने अगले दो अशआरों में समेटने की कोशिश की है
जो साँस ले रही है हर तरफ़ वो मौत है
जो चल रही है सीने में वो जिंदगी नहीं
हर एक चीज जल रही है शहर में मगर
अँधेरा बढ़ रहा है कहीं रौशनी नहीं
जलने के बाद शमा और बोलती नहीं
उम्मीद अब कहीं कोई दर खोलती नहीं...
ये एक ऐसी ग़ज़ल है जो फिल्म की ही भांति हमें ये सोचने पर मजबूर करती है कि इंसान जब हैवानियत की चादर ओढ़ लेता है तो एक जीवंत शहर को लाशों और राख का ढेर बनते देर नहीं लगती।
इस ग़ज़ल का संगीत दिया है एक नवोदित संगीतकार जोड़ी पीयूष कनौजिया और रजत ढोलकिया ने । ये वही रज़त ढोलकिया हैं जिन्होंने पंचम के इंतकाल के बाद १९४२ ए लव स्टोरी का संगीत पूर्ण किया था। वे धारावी, होली और मिर्च मसाला जैसी लीक से हटकर बनाई गई फिल्म का संगीत भी दे चुके हैं। हाल फिलहाल में दिल्ली ६ में रहमान के साथ उनका नाम भी सह संगीत निर्देशक की हैसियत से था। चाहे मुखड़े के पहले की बात करे या अशआरों के बीच का फिलर हर जगह ग़ज़ल का संगीत मन में गहरी उदासी का रंग भरता नज़र आता है। रेखा भारद्वाज एक बार फिर अपनी उत्कृष्ट गायिकी द्वारा ग़ज़ल के मिज़ाज को हूबहू पकड़ने में सफल रही हैं।
तो अगर आपके पास कुछ फुर्सत के लमहे हों तो कोशिश कीजिए इस ग़ज़ल की भावनाओं में डूबने की...
12 टिप्पणियाँ:
उफ्फ्फ ....क्या कहूँ....लाजवाब...बेहतरीन....
रेखा भारद्वाज की आवाज़ अच्छी लगती है .रेगिस्तानों में जलती-बुझती सी ..ज़रा ज़रा
जब फिराक फिल्म देखी तब से यह और जिस गज़ल पर नसरुद्दीन शाह नें पढ़ा..दिमाग से उतरती ही नहीं..बहुत उम्दा!
बहुत देर से डॉउनलोड करने की कोशिश कर रही हूँ मगर सफलता नही मिली... आवाज़ बहुत धीमी आ रही है..मगर गज़ल हर तरह से बहुत ही संवेदनशील है।
रंजना ,समीर जी, पारुल ग़ज़ल पसंद आई जानकर खुशी हुई.
कंचन यहाँ तो प्ले करने पर आवाज़ बुलंद है। वैसे गीत बड़ी हल्की धुन से शुरु होता हे और २५ ३० सेकेंद के बाद आवाज़ बढ़ती है।
I liked this song...
manish sir bhut acha geet, yahan se jakar apni face book par chipka dala
"jal gaya jangal, dhuan uthta raha
mahkma-e-wazeer usku bayar samjhta raha"
nishkreeyta hamari vyavastha me kis tarah ghar kar gayi hai iska anubhav hum sabhi ko hai aur is babat jagruti lane hetu hindi cinema ne bhi kuch kam yogdan nahi diya.
khair, geet-sangeet ki baat ke beech ye betuka aalap hi lagega.
incisive music,intensive lyrics,sober voice
ABHAR
विकास, रुचि और प्रियंक गीत की संवेदनशीलता आपके मन को छू सकी जान कर सुखद संतोष हुआ।
श्रीनगर की एक शाम याद आयी जब मैं और डा० अनुराग संग बैठे थे और आपकी चर्चा उठ आयी थी...इस ग़ज़ल की भी।
haan, this is one song from the list of 2009 which stands out to be the best, every line in there touches your heart.
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