मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 9 - बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में...

गीतमाला की नवीं सीढी पर स्वागत करें इस प्यारे से गीत का जिसमें मेलोडी है, सुकून देने वाला संगीत है, दिल छूने वाला मुखड़ा है और साथ ही है एक नए गायक का स्वर। मुझे यकीं है कि इस गीत को आप में से ज्यादातर ने नहीं सुना होगा। जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में इशारा किया था कि डरावनी फिल्मों के संगीत पर हमारा ध्यान सामान्यतः कम ही जाता है।

इस साल एक ऍसी ही फिल्म आई थी 13B। फिल्म का संगीत दिया था शंकर एहसान लॉय ने और उनके इस गीत ने पहली बार सुनने में ही मेरा दिल जीत लिया था।

गीतकार नीलेश मिश्रा जो हिंदुस्तान टाइम्स में पत्रकार, एक घुमक्कड़ और एक अनियमित ब्लॉगर भी हैं ने इस गीत के लिए जो मुखड़ा रचा है उसकी काव्यत्मकता और धनात्मक उर्जा मूड बना देती है या यूँ कहें कि इसे सुनकर आप खुद ब खुद अच्छा महसूस करने लगते हैं।

आँखों से बचाकर, लो रखो छुपाकर,
प्यार को कभी किसी की नज़र ना लगे
चाँद को चुराकर, माथे पे सजाकर
हौले चलना रात को खबर ना लगे
सितारे ढूँढ लाए हैं अँधेरों पे सजाए हैं
जैसे दीवाली की हो रात जिंदगी....


पर इस गीत के नवीं पॉयदान पर होने की एक वज़ह मेरे लिए निजी है। दरअसल नीचे के अंतरा मुझे उन लमहों से जोड़ता है जो मैंने बिहार के छोटे छोटे शहरों गया, सासाराम और आरा में रहने के बाद पटना आकर आफिसर्स हॉस्टल में बिताए। दो कमरों के उस छोटे से घर में बिताए जिंदगी के वो 16 साल जिसमें मुझे जिंदगी की खुशियाँ भी मिलीं और कुछ ग़म भी जो शायद जीवन पर्यन्त मेरे साथ रहें।

उस छोटे से घर में रहते हुए मेरे पहले याद रहने वाले दोस्त बनें, पहली बार दिल फिसला, जहाँ की बॉलकोनी से मैंने कितनी रातों को घंटों चाँद सितारों से मौन वार्तालाप किया। वो प्यारी दीपावली, स्कूल से रुसवा होना, भूकंप की भगदड़ और यहाँ तक की इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल होने की घोषणा करता वो अखबार उसी घर में तो आया था। इस लिए जब भी घर में ये गीत बजता है मैं इन पंक्तियों को बड़े मन से गाता हूँ

बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में
इतनी ही खुशियाँ वो उनको रखने का हक़
प्यार मुस्कुराहट सपनों की आहट
जो भी माँगा मिल गया


आगे का अंतरा फिल्म की परिस्थितियों से जुड़ा है
आज कल इक नन्हे
मेहमाँ से बाते करो ख्वाबों में
दोनों कहानियाँ बनाते झूठी सच्ची है बताते
मैंने कल, उससे कहा
यार अब आ भी जाओ घर कभी
भीगने से ना तुम डरना
खुशियों की है बरसातें


सितारे ढूँढ लाए हैं अँधेरों पे सजाए हैं
जैसे दीवाली की हो रात जिंदगी....
बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में
इतनी ही खुशियाँ वो उनको रखने का हक़
प्यार मुस्कुराहट सपनों की आहट
जो भी माँगा मिल गया



गीत तो आपने सुन लिया और मेरे उद्गार भी पढ़ लिए अब ये बताइए कि ये गीत गाया किसने हैं। चलिए मैं ही बता देता हूँ इस गीत के गायक हैं कार्तिक चित्र में बाँयी तरफ़ है गीतकार नीलेश और दाँयी ओर कार्तिक।



श्रीनिवास, विजय प्रकाश, राशिद अली, चिन्मया, नरेश अय्यर की तरह कार्तिक भी रहमान भक्त हैं और इन गायकों की तरह ही हिंदी फिल्म संगीत में प्रवेश करने का मौका कार्तिक को रहमान ने ही दिया। स्कूल में ही कर्नाटक संगीत सीखने वाले कार्तिक ने कॉलेज में अपने बैंड के लिए गाते रहे। रहमान के संपर्क में गायक श्रीनिवास की मदद से आए। साथिया, युवा, गज़नी और युवराज के कुछ गीत वे गा चुके हैं। पिछले साल उनका फिल्म गज़नी के लिए गाया गीत बहका मैं बहका.... काफी लोकप्रिय हुआ था।



वार्षिक संगीतमाला 2009 अब लेगी एक हफ्ते का विश्राम। होली के माहौल में अगली सीढ़ी पर बजने वाले ग़मगीन गीत से मैं आपको अभी मिलवाना नहीं चाहता। होली की मस्ती में आपको सराबोर करने के लिए अगली पोस्ट में सुनिएगा मेरी आवाज़ में एक मशहूर पाकिस्तानी शायर का रस भरा गीत। तो गुरुवार तक के लिए दीजिए इज़ाजत..
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9 टिप्पणियाँ:

Pushpendra Singh "Pushp" on फ़रवरी 23, 2010 ने कहा…

वाह सुन्दर पोस्ट
आभार...........

सुशील छौक्कर on फ़रवरी 23, 2010 ने कहा…

सुन्दर शब्दों से लिखा गीत सुनकर अच्छा लगा। आज मन गानें सुनने का कर रहा है लगता है आज आपका ब्लोग काम आऐगा मेरे।

Udan Tashtari on फ़रवरी 23, 2010 ने कहा…

चयन जानदार है हमेशा की तरह!

Himanshu Pandey on फ़रवरी 23, 2010 ने कहा…

सदा की तरह उपयुक्त चयन ! आभार ।

Priyank Jain on फ़रवरी 24, 2010 ने कहा…

"padh tumhara udgaar maine
aaj thana na rukoonga
tuch hain yeh payedane
mai sahasroon mala sunooga"
(shilp ki truti ke liye kshama kijiyega)
Par doshi aap swayam hi hain,itna upyukt chayan,us par itni paripurn pravishti,mere jaise aparipakv kavi ka behkna to swabhavik hi hai
(maf kijiyega par dag safed par hi to lagta hai)
AABHAR

Manish Kumar on फ़रवरी 24, 2010 ने कहा…

पढ़ तुम्हारा उद्गार मैंने
आज ठाना ना रुकूँगा
तुच्छ हैं ये पाएदानें
मैं सहस्रों माला सुनूँगा


कविवर प्रियंक जी आपका ये छंद पढ़कर वो क्या कहते हैं कि मेरा दिल garden garden हो गया।:)
बहुत बहुत शु्क्रिया जनाब कि आपने इस पोस्ट को ये इज़्जत बख्शी।

Abhishek Ojha on फ़रवरी 24, 2010 ने कहा…

ये फिल्म तो देखी हुई है लेकिन इस गाने को इतने गौर से कभी नहीं सुना.

रंजना on फ़रवरी 25, 2010 ने कहा…

आपके द्वारा बताई गयी बातें, तो मेरे लिए बिलकुल नयी होतीं ही हैं ,कई सारे गीत भी अनसुने हुआ करते हैं....
जब एक अनसुने कर्णप्रिय गीत को आपके वजह से सुनने का सुअवसर मिलता है तो बस आपके लिए दुआएं ही दुआएं निकल पड़तीं है मन से...
बहुत बहुत आभार...

गौतम राजऋषि on फ़रवरी 25, 2010 ने कहा…

हा हा...याद आ गयी मुझे वो रोचक प्रेम-कहानी उस आफिसर्स हास्टल की बालकोनी वाली और वो अनूठा प्रेम-पत्र....

ये फिल्म तो देखी है मैंने कि हारर फिल्में देखना मेरा शौक है लेकिन आपने सच कहा कि इस गाने पर ध्यान नहीं गया था।

 

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