एक पाकिस्तानी शायर का गीत और वो भी होली के माहौल के अनुरूप । कुछ अटपटा सा नहीं लगता । बिल्कुल लगता अगर वो शायर इब्ने इंशा की जगह कोई और होते।
इब्ने इंशा को उनके गद्य और पद्य दोनों के लिए याद किया जाता है। जालंधर में जन्मे इब्ने इंशा ने स्नातक की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी से की। और शायद इसी अंतराल में उन्हें हिंदी भाषा से लगाव पैदा हुआ जो आगे जाकर उनकी कविताओं और गीतों में झलका। कुछ काव्य समीक्षकों का मानना है कि उनकी काव्य शैली पर अमीर खुसरो की भाषा और कबीर की सोच का जबरदस्त प्रभाव था।
उर्दू शायरी के समीक्षक अब्दुल बिसमिल्लाह इब्ने इंशा की कविता के बारे अपनी दिलचस्प टिप्पणी में कहते हैं
इब्ने इंशा को रूप-सरूप, जोग-बिजोग, परदेसी, बिरहन और माया आदि का काव्यबोध कैसे हुआ, कहना कठिन है। किंतु यह बात असंदिग्ध है कि उर्दू शायरी की केंद्रीय अभिरुचि से यह काव्यबोध विलग है। यह उनका निजी तख़य्युल (अंदाज़) है और इसीलिए उनकी शायरी जुते हुए खेत की मानिंद दीख पड़ती है।
इब्ने इंशा की शायरी पर विस्तृत चर्चा तो फिर कभी। अभी तो माहौल होली का है तो बात उनकी इस रसभरे गीत की की जाए।
इब्ने इंशा का ये गीत मैंने तीन चार महिने पहले अपनी एक रेल यात्रा के दौरान पढ़ा था। गीत की भावनाओं के साथ इस तरह की मस्ती थी कि मन कर रहा था कि इसे जोर जोर से गा कर पढ़ूँ। अब ट्रेन के डिब्बे में वो तो संभव नहीं था पर तभी ये इरादा किया था कि होली के अवसर पर अपनी ये इच्छा अपने ब्लॉग पर पूरी करूँगा। ट्रेन में पढ़ते वक्त अपने आप ही इस कविता की लय बनती चली गई थी। आज उसी रूप में ये आपके सामने पेश है। अगर मेरा ये अंदाज़ आपको नागवार गुजरे तो सारा दोष इब्ने इंशा जी का ही है :)
जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी
अभी ना बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना ।
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है
पीत बुरा रोग भी है लगे तो लगाओ ना ।।
गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना ।
आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल पूछो
एक दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना ।।
रात को उदास देखे, चाँद का निरास देखे
तुम्हें ना जो पास देखें, आओ पास आओ ना
रूप रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें
कहो तुम्हें जान दे दें, माँग लो लजाओ ना
और भी हजार होंगे, जो कि दावेदार होंगे
आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना
शेर में नज़ीर ठहरे, जोग में कबीर ठहरे
कोई ये फक़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना
जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी
अभी ना बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना ।
पीत में बिजोग भी हे , कामना का सोग भी है
पीत बुरा रोग भी है लगे तो लगाओ ना ।।
तो चलिए हुज़ूर अगर आपने मुझे झेल लिया तो इसके लिए कुछ तोहफ़ा तो मिलना ही चाहिए आपको। तो आइए सुनते हैं इसी गीत को कोकिल कंठी नैयरा नूर की आवाज़ में। पिछले हफ्ते ही मुझे पता चला कि नैयरा नूर ने भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है जिसकी धुन बहुत कुछ पुराने फिल्मी गीतों की याद दिलाती है। पर गीत में कुछ शब्दों का हेर फेर है जो किताब वाले वर्सन से मेल नहीं खाता
19 टिप्पणियाँ:
KAVI PARICHAY, PRASTUTI, GEET ,AAPKA GAYAN AUR FIR NOOR JI KA GAYAN...SAB KA SAB LAJAWAAB ...LAJAWAAB....LAJAWAAB !!!
जिस प्रकार इस गीत के बोल इतने शानदार और जानदार है लगता है सुनने में भी आनंद आऐगा। पर हम सुननेगे बाद में। वैसे मनीष जी एक प्रार्थना की थी।
गीत दोनों रुप में पसंद आया…।:)
ye sabse pahle DHUUP KINARE drama me suna thaa...ek tukda ..zara sa..
आज के आनंद की जय!
क्या कहने है वल्लाह.....
सच कहें तो हमें तो आपका वर्जन ज्यादा पसंद है..सहज और जुड़ा हुआ...आनन्द आ गया.
ये मेरे भी संकलन में है...इब्ने इंशा मेरे फ़ेवरिट हैं। ये सुन नहीं पा रहा सर जी...तनिक भेज देंगे मेल पर प्लीज। दोनों ही आडियो....
आप की आवाज मै सच मै बहुत ही सुंदर लगा यह गीत.
धन्यवाद
"ब्लॉगर कैसे जानते हो,पढ़ते हो ढूंढ़ते हो
मन को लुभाते हो,खुद भी मिल जाओना
जोशी गुलज़ार अख्तर,इब्ने इंशा भी हैं
थोडा बहुत छोड़ भी दो,और इंसा भी हैं "
यकीन मानिये महोदय आपकी मेहनत,समर्पण,लगन बेजोड़ है, आज के फनकार से परिचय कराने और होली के ह्रदयामिलन पर्व पर इतना सुन्दर गीत मौजी और मधुर आवाज़ों में सुनाने के लिए सहृदय आभार
इब्ने ईंशा का यह अँदाज़ मेरे लिये बिल्कुल नया है ।
इससे रुबरू करवाने का शुक्रिया, वरना मैं उर्दू की आखिरि किताब पर ही उलझा रहता ।
सच में बिलकुल नया अंदाज इब्ने इंशा का !
आपकी रुचि-सुरुचि मादक बनाती है सोच को !
क्या खूब गाया है आपने ! उसकी संवेदना से जुड़ कर पढ़ा है आपने गीत को ! खूब नज़ाकत से, आनन्द लेकर!
shaandar-shaaandar-shaaaaandar.
शु्क्रिया आप सब का मेरे इस प्रयास को सराहने के लिए !
nice sharing...
but i could hear song only in female voice...
the 1st audio was in female voice and the one second was not running...
may be i'm lucky!!!
:-)
regards.
same here, both the links played Nayyara Noor for me...
Vidya & Suparna you are right. Somehow sound file got duplicated. I was away from net so could not rectify the link earlier. Hope u will have no problem in listening it now.
सोच में पड़ी थी की कहीं तो पहले पढ़ा था इसे, फिर याद आया..अर्रे, आपही के ब्लॉग पर तो पढ़ा था इसे ..पर ये चीज ऐसी है की लाखों बार पढ़ सुनकर भी मन भरने वाला नहीं..
मन रससिक्त हो गया...
आपके कविता पाठ के अंदाज़, के क्या कहने...वाह...
bahoot khoob
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