होली का मौसम आते ही उन हास्य कविताओं की याद आ जाती है जिनका हम कवि सम्मेलनों या पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से सुनने या देखने का बेसब्री से इंतज़ार किया करते थे। उस वक्त यानि अस्सी के दशक में आज की तरह टीवी चैनलों की भरमार नहीं थी। ले देकर एक दूरदर्शन था जो इस अवसर पर हास्य कवि सम्मेलनों का आयोज़न किया करता था। पर उससे भी ज्यादा हम इंतज़ार करते थे धर्मयुग के होली विशेषांक का। धर्मयुग चूँकि उस वक़्त की लोकप्रिय पत्रिका थी इसलिए प्रतिष्ठित हास्य कवियों काका हाथरसी, हुल्लड़ मुरादाबादी, शैल चतुर्वेदी, ओम प्रकाश आदित्य व प्रदीप चौबे की ताज़ा कविताओं को पढ़ने का मौका हमें मिल जाया करता था।
अस्सी के पूर्वार्ध की बात है। मैं उस सातवीं क्लास में पढ़ता था। स्कूल में कहा गया था कि वार्षिकोत्सव के दौरान छात्रों को कुछ सुनाना है। वो गीत भी हो सकता है कविता भी और मुझे धर्मयुग में छपी इस कविता का ध्यान हो आया था, जो मैंने होली के समय पढ़ी थी। वो हास्य कविता प्रदीप चौबे की थी और उसे पढ़कर और उसके बारे में सोचकर हफ़्तों मेरा मूड खुशनुमा रहा था। पर कविता इतनी लंबी थी कि मैं कक्षा में उसे समय रहने तक याद ना रख सका। फिर धर्मयुग की वो प्रति भी खो गई और समय के साथ उस कविता की आरंभिक पंक्तियों
......भारतीय रेल की जनरल बोगी पता नहीं
आपने भोगी कि नहीं भोगी
एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा
प्लेटफार्म पर देखकर सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे...........के आलावा मुझे कुछ याद भी नहीं रहा।
पिछले हफ़्ते दिल हुआ कि क्यूँ ना होली के माहौल में इस कविता को ढूँढकर आप सबके साथ बाँटा जाए। खुशी की बात ये हुई कि ना केवल मुझे ये कविता मिली साथ ही कवि प्रदीप चौबे की एक रिकार्डिंग भी मिली जिसमें उन्होंने इस कविता का पाठ किया है।
रेल की जनरल बोगी पर अस्सी के दशक में लिखी ये कविता आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। वैसे रेलवे ने अस्सी के दशक से आज तक में ट्रेनों की संख्या और यात्री सुविधाओं में निरंतर इज़ाफा किया है पर रेल यात्रियों की संख्या भी उससे कहीं तेजी से बढ़ी है। खासकर आज भी जब आप किसी आम पैसेंजर ट्रेन की बोगी या मेल एक्सप्रेस की जनरल बोगी को देखते हैं तो नीचे जैसे दृश्य आपको सहज ही दिखाई दे जाएँगे।
तो आइए मेरे साथ पढ़िए जबलपुर के इस प्रसिद्ध हास्य कवि प्रदीप चौबे की ये कविता जिसमें उन्होंने हँसी ही हँसी में जनरल बोगी में सफ़र करने वाले आम यात्रियों की व्यथा का बखूबी चित्रण किया है।
भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं आपने भोगी कि नहीं भोगी
एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा
प्लेटफार्म पर देखकर सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे
हम झोला उठाकर घर की ओर फूटने लगे
तभी एक कुली आया
मुस्कुरा कर बोला - 'अन्दर जाओगे ?'
हमने कहा - 'तुम पहुँचाओगे !'
वो बोला - बड़े-बड़े पार्सल पहुँचाए हैं आपको भी पहुँचा दूंगा
मगर रुपये पूरे पचास लूँगा.
हमने कहा - पचास रुपैया ?
वो बोला - हाँ भैया
दो रुपये आपके बाकी सामान के
हमने कहा - सामान नहीं है, अकेले हम हैं
वो बोला - बाबूजी, आप किस सामान से कम हैं !
भीड़ देख रहे हैं, कंधे पर उठाना पड़ेगा,
धक्का देकर अन्दर पहुँचाना पड़ेगा
वैसे तो हमारे लिए बाएँ हाथ का खेल है
मगर आपके लिए दाँया हाथ भी लगाना पड़ेगा
मंजूर हो तो बताओ
हमने कहा - देखा जायेगा, तुम उठाओ
कुली ने बजरंगबली का नारा लगाया
और पूरी ताकत लगाकर हमें जैसे ही उठाया
कि खुद बैठ गया
दूसरी बार कोशिश की तो लेट गया
बोला - बाबूजी पचास रुपये तो कम हैं
हमें क्या मालूम था कि आप आदमी नहीं, बम हैं
भगवान ही आपको उठा सकता है
हम क्या खाकर उठाएंगे
आपको उठाते-उठाते खुद दुनिया से उठ जायेंगे !
हमने कहा - बहाने मत बनाओ
जब ठेका लिया है तो उठाओ.
कुली ने अपने चार साथियों को बुलाया
और पता नहीं आँखों ही आँखों मैं क्या समझाया
कि चारों ने लपक कर हमें उठाया
और हवा मैं झुला कर ऐसे निशाने से
अन्दर फेंका कि हम जैसे ही
खिड़की से अन्दर पहुँचे
दो यात्री हम से टकराकर
दूसरी खिड़की से बाहर !
जाते-जाते पहला बोला - बधाई !
दूसरा बोला - सर्कस मैं काम करते हो क्या भाई ?
अब जरा डिब्बे के अन्दर झाँकिए श्रीमान
भगवान जाने डिब्बा था या हल्दी घाटी का मैदान
लोग लेटे थे, बैठे थे, खड़े थे
कुछ ऐसे थे जो न बैठे थे न खड़े थे, सिर्फ थे
कुछ हनुमान जी के वंशज
एक दूसरे के कंधे पर चढ़े थे
एक कन्धा खाली पड़ा था
शायद हमारे लिए रखा था
हम उस पर चढ़ने लगे
तो कंधे के स्वामी बिगाड़ने लगे बोले - किधर?
हमने कहा - आपके कंधे पर !
वे बोले - दया आती है तुम जैसे अंधे पर
देखते नहीं मैं खुद दूसरे के कंधे पर बैठा हूँ
उन्होंने अपने कन्धा हिला दिया
हम पुनः धरती पर लौट आए
सामने बैठे एक गंजे यात्री से गिड़गिडाये - भाई साहब
थोडी सी जगह हमारे लिए भी बनाइये
वो बोला - आइये हमारी खोपड़ी पर बैठ जाइये
आप ही के लिए साफ़ की है
केवल दो रुपए देना
मगर फिसल जाओ तो हमसे मत कहना !
तभी एक बोरा खिड़की के रास्ते चढा
आगे बढा और गंजे के सिर पर गिर पड़ा
गंजा चिल्लाया - किसका बोरा है ?
बोरा फौरन खडा हो गया
और उसमें से एक लड़का निकल कर बोला
बोरा नहीं है बोरे के भीतर बारह साल का छोरा है
अन्दर आने का यही एक तरीका है
हमने आपने माँ-बाप से सीखा है
आप तो एक बोरे मैं ही घबरा रहे हैं
जरा ठहर तो जाओ अभी गददे मैं लिपट कर
हमारे बाप जी अन्दर आ रहे हैं
उनको आप कैसे समझायेंगे
हम तो खड़े भी हैं वो तो आपकी गोद मैं ही लेट जाएँगे
एक अखंड सोऊ चादर ओढ़ कर सो रहा था
एकदम कुम्भकरण का बाप हो रहा था
हमने जैसे ही उसे हिलाया
उसकी बगल वाला चिल्लाया -
ख़बरदार हाथ मत लगाना वरना पछताओगे
हत्या के जुर्म मैं अन्दर हो जाओगे
हमने पुछा- भाई साहब क्या लफड़ा है ?
वो बोला - बेचारा आठ घंटे से एक टाँग पर खड़ा
और खड़े खड़े इस हालत मैं पहुँच गया कि अब पड़ा है
आपके हाथ लगते ही ऊपर पहुँच जायेगा
इस भीड़ में ज़मानत करने क्या तुम्हारा बाप आयेगा ?
एक नौजवान खिड़की से अन्दर आने लगा
तो पूरे डिब्बा मिल कर उसे बाहर धकियाने लगा
नौजवान बोला - भाइयों, भाइयों
सिर्फ खड़े रहने की जगह चाहिए
एक अन्दर वाला बोला - क्या ?
खड़े रहने की जगह चाहिए तो प्लेटफोर्म पर खड़े हो जाइये
जिंदगी भर खड़े रहिये कोई हटाये तो कहिये
जिसे देखो घुसा चला आ रहा है
रेल का डिब्बा साला जेल हुआ जा रहा है !
इतना सुनते ही एक अपराधी चिल्लाया -
रेल को जेल मत कहो मेरी आत्मा रोती है
यार जेल के अन्दर कम से कम
चलने-फिरने की जगह तो होती है !
एक सज्जन फर्श पर बैठे हुए थे आँखें मूँदे
उनके सर पर अचानक गिरीं पानी की गरम-गरम बूँदें
तो वे सर उठा कर चिल्लाये - कौन है, कौन है
साला पानी गिरा कर मौन है
दीखता नहीं नीचे तुम्हारा बाप बैठा है !
क्षमा करना बड़े भाई पानी नहीं है
हमारा छः महीने का बच्चा लेटा है कृपया माफ़ कर दीजिये
और अपना मुँह भी नीचे कर लीजिये
वरना बच्चे का क्या भरोसा !
क्या मालूम अगली बार उसने आपको क्या परोसा !!
एक साहब बहादुर बैठे थे सपरिवार
हमने पुछा कहाँ जा रहे हैं सरकार ?
वे झल्लाकर बोले जहन्नुम में !
हमने पूछ लिया - विथ फॅमिली ?
वे बोले आपको भी मजाक करने के लिए यही जगह मिली ?
अचानक डिब्बे में बड़ी जोर का हल्ला हुआ
एक सज्जन दहाड़ मार कर चिल्लाये -
पकड़ो-पकड़ो जाने न पाए
हमने पुछा क्या हुआ, क्या हुआ ?
वे बोले - हाय-हाय, मेरा बटुआ किसी ने भीड़ में मार दिया
पूरे तीन सौ रुपये से उतार दिया टिकट भी उसी में था !
कोई बोला - रहने दो यार भूमिका मत बनाओ
टिकेट न लिया हो तो हाथ मिलाओ
हमने भी नहीं लिया है गर आप इस तरह चिल्लायेंगे
तो आपके साथ क्या हम नहीं पकड़ लिए जायेंगे ....
वे सज्जन रोकर बोले - नहीं भाई साहब
मैं झूठ नहीं बोलता मैं एक टीचर हूँ ....
कोई बोला - तभी तो झूठ है टीचर के पास और बटुआ ?
इससे अच्छा मजाक इतिहास मैं आज तक नहीं हुआ !
टीचर बोला - कैसा इतिहास मेरा विषय तो भूगोल है
तभी एक विद्यार्थी चिल्लाया - बेटा इसलिए तुम्हारा बटुआ गोल है !
बाहर से आवाज आई - 'गरम समोसे वाला'
अन्दर से फ़ौरन बोले एक लाला - दो हमको भी देना भाई
सुनते ही ललाइन ने डाँट लगायी - बड़े चटोरे हो !
क्या पाँच साल के छोरे हो ?
इतनी गर्मी मैं खाओगे ?
फिर पानी को तो नहीं चिल्लाओगे ?
अभी मुँह मैं आ रहा है समोसे खाते ही आँखों में आ जायेगा
इस भीड़ में पानी क्या रेल मंत्री दे जायेगा ?
तभी डिब्बे में हुआ हल्का उजाला
किसी ने जुमला उछाला ये किसने बीड़ी जलाई है ?
कोई बोला - बीड़ी नहीं है स्वागत करो
डिब्बे में पहली बार बिजली आई है
दूसरा बोला - पंखे कहाँ हैं ?
उत्तर मिला - जहाँ नहीं होने चाहिए वहाँ हैं
पंखों पर आपको क्या आपत्ति है ?
जानते नहीं रेल हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है
कोई राष्ट्रीय चोर हमें घिस्सा दे गया है
संपत्ति में से अपना हिस्सा ले गया है
आपको लेना हो आप भी ले जाओ
मगर जेब में जो बल्ब रख लिए हैं
उनमें से एकाध तो हमको दे जाओ !
अचानक डिब्बे में एक विस्फोट हुआ
हलाकि यह बम नहीं था
मगर किसी बम से कम भी नहीं था
यह हमारा पेट था उसका हमारे लिए संकेत था
कि जाओ बहुत भारी हो रहे हो हलके हो जाओ
हमने सोचा डिब्बे की भीड़ को देखते हुए
बाथरूम कम से कम दो किलोमीटर दूर है
ऐसे में कुछ हो जाये तो किसी का क्या कसूर है
इसिलए रिस्क नहीं लेना चाहिए
अपना पडोसी उठे उससे पहले अपने को चल देना चाहिए
सो हमने भीड़ में रेंगना शुरू किया
पूरे दो घंटे में पहुँच पाए
बाथरूम का दरवाजा खटखटाया तो भीतर से एक सिर बाहर आया
बोला - क्या चाहिए ?
हमने कहा - बाहर तो आजा भैये हमें जाना है
वो बोला - किस किस को निकालोगे ? अन्दर बारह खड़े हैं
हमने कहा - भाई साहब हम बहुत मुश्किल में पड़े हैं
मामला बिगड़ गया तो बंदा कहाँ जायेगा ?
वो बला - क्यूँ आपके कंधे
पे जो झोला टँगा है
वो किस दिन काम में आयेगा ...
इतने में लाइट चली गयी
बाथरूम वाला वापस अन्दर जा चुका था
हमारा झोला कंधे से गायब हो चुका था
कोई अँधेरे का लाभ उठाकर अपने काम में ला चुका था
अचानक गाड़ी बड़ी जोर से हिली
एक यात्री ख़ुशी के मरे चिल्लाया - 'अरे चली, चली'
कोई बोला - जय बजरंग बली, कोई बोला - या अली
हमने कहा - काहे के अली और काहे के बली !
गाड़ी तो बगल वाली जा रही है
और तुमको अपनी चलती नजर आ रही है ?
प्यारे ! सब नज़र का धोखा है
दरअसल ये रेलगाडी नहीं हमारी ज़िन्दगी है
और हमारी ज़िन्दगी में धोखे के अलावा और क्या होता है ?
वैसे प्रदीप जी कवि सम्मेलनों में अपनी ये कविता संपादित करकर सुनाते रहे हैं। तो लीजिए सुनिए उन्हीं की आवाज़ में ये कविता..
तो होली के हुड़दंग में आप सभी रंग अबीर से सराबोर रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ ! आप सब को होली मुबारक!
20 टिप्पणियाँ:
आप और आप के परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं ओर बधाई जी
जब कोई बात बिगड़ जाए
जब कोई मुश्किल पड़ जाए तो
तो होठ घुमा सिटी बजा सिटी बजा के
बोल भैया "आल इज वेल"
हेपी होली .
जीवन में खुशिया लाती है होली
दिल से दिल मिलाती है होली
♥ ♥ ♥ ♥
आभार/ मगल भावनाऐ
महावीर
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
ब्लॉग चर्चा मुन्ना भाई की
द फोटू गैलेरी
महाप्रेम
माई ब्लोग
SELECTION & COLLECTION
होली का आनंद आ गया...हँसते हँसते बुरा हाल हो गया...मैंने ये कविता उनसे जयपुर के एक कवि सम्मलेन में सुनी थी...आज पढ़ कर भी उतना ही आनंद आया...आभार आपका इसे पढवाने के लिए...होली की शुभकामनाएं...
नीरज
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .... होली की हार्दिक शुभकामनाये .
आपको सपरिवार होली की बधाई.nice
बहुत बढ़िया भाई ... मज़ा आ गया ....
आप को और आप के परिवार को होली मुबारक !!
Bahut sundar,pradeep ji ki yaad aa gayi. Aapko aur parivar ko holi ki hardik shubhkamnaye, badhai
"Bahut achi kavita hai.. Dil khush ho gaya isko padh ke."
होली पर मजेदार प्रस्तुति. होली की शुभकामनायें.
मनीष जी होली का ये नया अंदाजा बहुत भाया है
प्रदीप जी की कविता का बहुत बहुत आनंद आया है
आभार
बहुत हीं सुन्दर प्रस्तुति । अच्छा लगा । होली की शुभकामनायें ।
होली में डाले प्यार के ऐसे रंग
देख के सारी दुनिया हो जाए दंग
रहे हम सभी भाई-चारे के संग
करें न कभी किसी बात पर जंग
आओ मिलकर खाएं प्यार की भंग
और खेले सबसे साथ प्यार के रंग
प्रदीप जी की यह कविता मैने कई बार सुनी है और हर बार आनन्द देती है। सुनवाने के लिए आभार।
क्या कहें, बस मज़ा आ गया. व्यंग के पैनेपन का जवाब नहीं.
होली के शुभ अवसर पर आप सभी को रंग बिरंगी शुभकामनायें.
मैं बहुत दिनों से इस कविता को खोज रहा था... आपका बहुत बहुत शुक्रिया. स्कूली दिनों में पढ़ी यह कविता टूटी टूटी से याद रह गयी थी... यहाँ पढ़ कर मन प्रफुल्लित हुआ.
http://manish2dream.blogspot.com/2008/06/blog-post_08.html
is par maine bhi likhi hai.....
आप सबों को ये कविता कुछ हल्के फुल्के लमहे दे गई जानकर खुशी हुई।
@मनीष. हाँ देखा मैंने आपने अपनी पोस्ट में उनकी एक किताब का जिक्र किया है। उस किताब के बारे में भी लिखें तो अच्छा रहेगा।
बहुत ही मजेदार हास्य कविता.
दिल बाग बाग हो गया.
मन मदमस्त हो गया.
कहाँ से ऐसी रचना उपजाते हैंआप.
Bahut badiya
Mind blowing !!
Happy holi
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