शुक्रवार, मार्च 05, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 7 - मन बावरा तुझे ढूँढता ..शाहाब के बोलों पर राहत का स्वर

वार्षिक संगीतमाला की सातवीं पॉयदान पर बड़ा ही खूबसूरत नग्मा है जो पिछले साल जनवरी में प्रदर्शित हुई फिल्म आसमाँ sky is the limit... का हिस्सा था। युवा कलाकारों को लेकर बनाई गई ये फिल्म ज्यादा तो नहीं चली पर इसने हिन्दी फिल्म संगीत में संगीतकार और गीतकार के रूप में दो नए नाम जरूर जोड़ दिए जिनसे आगे भी ऐसे ही प्यारे गीतों को सुनने की उम्मीद रहेगी।

वैसे राहत फतेह अली खाँ अक्सर बड़े बैनरों की फिल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरते रहे हैं। पर इस छोटे बजट की फिल्म का ये गीत उन्होंने इसके हृदय को छूने वाले बोलों और बेहतरीन धुन को देखकर ही चुना होगा। वैसे तो राहत ने इस साल कुछ ज्यादा चर्चित फिल्मों के भी नग्मे गाए हैं पर उन सबको सुनने के बाद मुझे ये उनके द्वारा संगीतप्रेमियों की दी हुई इस साल की सबसे बेहतरीन सौगात लगी। ये गीत है मन बावरा... जिसे लिखा शाहाब इलाहाबादी ने और इस गीत की धुन बनाई अफ़सार साज़िद की युगल जोड़ी ने।

गीत के मूड के अनुरूप गीत के पार्श्व में बाँसुरी और तबले का प्रयोग मन को सोहता है। राहत की आवाज़ का दर्द, शास्त्रीय गायिकी पर उनकी पकड़, शाहाब के अर्थपूर्ण बोलों को सीधे मन के भीतर ले जा कर छोड़ते हैं।

यक़ीन नहीं होता तो शाहाब के बोलों को पढ़ें और फिर आनंद लें राहत की बेमिसाल गायिकी का...



मन बावरा तुझे ढूँढता
पाने की खोने की पैमाइशें1
जीने की सारी मेरी ख़्वाहिशें
आसमाँ ये ज़हाँ, सब लगे ठहरा
मन बावरा तुझे ढूँढता

1.नाप जोख़,

बदगुमाँ था नादाँ ये दिल
धड़केगा ना कभी
होश खो बैठा है पागल
रूठी है ज़िंदगी
खुद से बातें कर करके हँसना
भीड़ में भी तनहा सा लगना
बज रही हैं जलतरंगें
साँसों के दरमियाँ
मन बावरा तुझे ढूँढता...


उन्सियत2 के ख़्वाब चुनकर
कटती रातें मेरी
इलतज़ा ए दीद3 लेकर
भटके आँखें मेरी
मीलों लंबे ये फ़ासले हैं
बस तस्सुवर4 के सिलसिले हैं
रतजगे गुमसुम पड़े हैं
पलकों पे रायगाँ5
2. प्रेम, 3.झलक, 4. ख्याल, 5.बेकार

मन बावरा तुझे ढूँढता ....

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तो हुजूर कैसा लगा आपको ये गीत ?
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8 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on मार्च 05, 2010 ने कहा…

आनन्द आ गया सुबह सुबह मान बावरा सुन कर...क्या गाया है..वाह वाह निकलती है, जब भी सुनते हैं.

Himanshu Pandey on मार्च 06, 2010 ने कहा…

गाया तो सच में जबर्दस्त है राहत साहब ने !
पूरा गीत लिखित रूप में पाना बेहतर रहा, साथ में उन कठिन शब्दों के अर्थ भी !
'उन्सियत'पहली बार जाना । यह अन्तिम पंक्तियाँ तो लुभाने वाली हैं -
"बस तसव्वुर के सिलसिले हैं
रतजगे गुमसुम पड़े हैं
पलकों पे रायगाँ "

सातवीं पायदान पर यह हाल है, आगे क्या होगा !

राज भाटिय़ा on मार्च 06, 2010 ने कहा…

बहुत सुंदर, बेहतररीन आवाज ओर बेहतरीन गजल.
धन्यवाद

Manish Kumar on मार्च 07, 2010 ने कहा…

जानकर खुशी हुई कि ये गीत आपको भी पसंद आया।

Abhishek Ojha on मार्च 07, 2010 ने कहा…

मैंने तो पहली बार ही सुना ये गाना... ये आपके यहाँ ही संभव था. वर्ना पता नहीं कब सुनने को मिलता.

सुशील छौक्कर on मार्च 08, 2010 ने कहा…

गीत के बोल दिल को छूते है पर सुनकर शाम को बताऐगे।

हरकीरत ' हीर' on मार्च 08, 2010 ने कहा…

मनीष जी ,

सुना आपकी पसंद का गीत......दर्दीले स्वर में गहरे बोल ....शुक्रिया ....!!



हाँ नज़्म में लय बनाये रखने कोशिश तो की थी ....फिर देखूंगी कहाँ कमी रह गयी ....!!

रंजना on मार्च 11, 2010 ने कहा…

प्लीज इसका साउंड फ़ाइल मेरे मेल में भेज दीजिये न....

अग्रिम आभार :))

 

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