शुक्रवार, अप्रैल 16, 2010

आइए भ्रमण करें संवेदना के संसार में : एक मुलाकात रंजना जी के साथ!

बात पिछली चौदह जनवरी यानि तीन महिने पहले की है। दोपहर का समय रहा होगा कि अचानक ही मोबाइल की घंटी घनघना उठी। नंबर जाना हुआ ना था सो मैंने सोचा जरूर किसी साथी चिट्ठाकार का ही फोन होगा जिसने जन्मदिन की मुबारकबाद देने के लिए फोन किया हो। फोन कनेक्ट हुआ तो उधर से एक महिला स्वर उभरा कि मनीष जी कैसे हैं?

अक्सर ऐसी कॉल्स में (जहाँ आप जानते हों कि सामनेवाला है तो जान पहचान का पर पकड़ में नहीं आ रहा) बातों का रुख ऐसा रखना पड़ता है हाँ ठीक हूँ, आप कैसी हैं और कैसा चल रहा है सब कुछ वैगेरह वैगेरह। बातों के इन आवरण में आवाज़ के लहज़े पर ध्यान देते हुए याददाश्त की गाड़ी फुल स्पीड पर दौड़ानी होती है ताकि जब तक बंदा हमारा हाल भाँपते हुए पूछे कि पहचान रहे हो या यूँ ही गपिया रहे हो तब तक हम सही जवाब के साथ तैयार हो जाएँ। पहचानने में पहली दिक्कत ये थी कि सामने वाला हमें बर्थडे विश भी नहीं कर रहा था। दूसरी विकट समस्या ये थी कि गर कहीं गलती से अंतरजालीय जान पहचान वाली दूसरी मित्रों का नाम मुँह से निकला तो सामनेवाले से खिंचाई की पूरी गारंटी है

पर एक मिनट की बात के पहले ही मैं समझ चुका था कि हो ना हो ये संवेदना संसार वाली रंजना जी हैं। दरअसल वो अपने बिजनेस के सिलसिले में राँची और वो भी हमारे कार्यालय के समीप आने वाली थीं और इसी की सूचना देने के लिए उन्होंने मुझे फोन किया था। इससे पहले रंजना जी से मेरी मुलाकात राँची ब्लॉगर मीट के दौरान हुई थी। मीट के बाद सारे पत्रकार तो चले गये थे पर बाकी सारे लोगों ने कॉवेरी में साथ बैठकर चाय पी थी। उस मीट में तो नहीं पर उसके बाद मुझे पता चला कि मेरे एक सहकर्मी रंजना जी को पारिवारिक रूप से जानते हैं और उनकी कंपनी सेल के राँची स्थित कुछ उपक्रमों का कम्प्यूटर मेंटेनेंस का काम देखती है।

उस दिन फोन पे बात के कुछ ही दिनों बाद मेरे कार्यालय में उनका अपने व्यवसाय के सिलसिले में आना हुआ। दो ढाई घंटे चली उस मुलाकात में बहुत सारी बातें हुईं। दरअसल अगर आप संवेदना संसार में रंजना जी को पढ़ेंगे तो आपके सामने उनकी परिमार्जित हिंदी लेखन शैली और अद्भुत तर्कशीलता देख कर टीचर प्रोफेसर टाइप वाली छवि उभरेगी। पर इसके विपरीत प्रकट में वो काफी मिलनसार और हँसमुख प्रवृति की महिला हैं।

बातचीत की शुरुआत हमने अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमियों के आदान प्रदान से की। रंजना जी ने बताया कि पिताजी की नौकरी ऐसी थी कि बचपन दूर दराज़ के इलाकों में बीता। धीरे धीरे पढ़ने लिखने में रुचि जगी। जो विषय उन्हें पसंद आता उसमें गहराई तक जाने में ही उन्हें संतोष मिलता। पर इसका नतीजा ये होता की परीक्षा में मन लायक प्रश्न आ जाता तो उसके उत्तर में रंजना जी इतनी कापियाँ भरती चली जातीं कि कई बार बाकी प्रश्नों के उत्तर छूट जाते। पर जितने प्रश्न भी उन्होंने किए होते उसी में परीक्षक इतना प्रसन्न हो जाता कि उन्हें कुल मिलाकर अच्छे मार्क्स ही मिलते।

पढ़ने लिखने के साथ रंजना जी को संगीत में भी काफी रुचि है और उन्होंने कई दिनों तक संगीत सीखा भी। मैंने भी अपने संगीत प्रेम से जुड़ी कई बातें साझा कीं। रंजना जी ने बताया कि लिखने पढ़ने के सिलसिले को बीच में जो विराम लगा वो अब ब्लॉगिंग की दुनिया में आने के बाद से फिर चालू हुआ है। उनसे बातें कर के मुझे लगा ब्लॉगिंग के बारे में मेरी और उनकी सोच एक सी है। बाद में मैंने उनके ब्लॉग पर भी इस सोच को प्रतिध्वनित पाया। ब्लागिंग में हुए अपने अनुभवों और इस माध्यम से अपनी अपेक्षाओं को रंजना जी समय समय पर अपने लेखों में शब्द देती रही हैं। अपनी ब्लागिंग के शुरुआती दौर में उन्होंने लिखा

यदि हम समकालीन हिन्दी ब्लोगिंग को देखेंगे तो परिणाम काफ़ी उत्साहजनक हैं.अब प्रतिक्रिया सांख्यिकी पर न जायें,अधिकांश लोग हैं जो केवल पढने में अभिरुचि रखते हैं,टिप्पणियां देने में नही.इस से रचना या रचनाकार विशेष का महत्व कम नही हो जाता.और पाठक बेवकूफ भी नही होता उसे ठीक पता है कि रचना और रचनाकार का बौद्धिक/साहित्यिक स्तर क्या है.और उसी अनुसार अपना पाठ्य चयन कर लेता है.कुछ ब्लाग/विषय सनसनीखेज सामग्रियां परोस उबलते पानी के बुलबुले से क्षणिक प्रसिद्धि भले पा जायें पर इससे सम्मानजनक स्तर नही पा सकते. दीर्घजीवी नही हो सकते......... मेरा मत है कि लेखन को सर्वोच्च दायित्व मानकर व्यक्ति समाज देश और दुनिया के लिए जो लिखेगा या लिखा जाता है,लेखन निसंदेह नैसर्गिक साहित्य ही है और रचनाकार साहित्यकार.बिना विवाद में फंसे अपने धर्म का सतत पालन ही हमारा कर्तव्य होना चाहिए,तभी हम आंशिक रूप से अपनी मातृभाषा के क़र्ज़ का एकांश मोल चुका पाएंगे.
वहीं फरवरी 2009 में हुई राँची ब्लॉगर मीट के अनुभव के बाद उन्होंने लिखा

आज ब्लाग अभिव्यक्ति को व्यक्तिगत डायरी के परिष्कृति परिवर्धित रूप में देखा जा रहा है, परन्तु यह डायरी के उस रूप में नही रह जाना चाहिए जिसमे सोने उठने खाने पीने या ऐसे ही महत्वहीन बातों को लिखा जाय और महत्वहीन बातों को जो पाठकों के लिए भी कूड़े कचड़े से अधिक न हो प्रकाशित किया जाय. इस अनुपम बहुमूल्य तकनीकी माध्यम का उपयोग यदि हम सृजनात्मक /रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए करें तो इसकी गरिमा निःसंदेह बनी रहेगी और कालांतर में गरिमामय महत्वपूर्ण स्थान पाकर ही रहेगी. केवल अपने पाठन हेतु निजी डायरी में हम चाहे जो भी लिख सकते हैं,परन्तु जब हम सामग्री को सार्वजानिक स्थल पर सर्वसुलभ कराते हैं, तो हमारा परम कर्तव्य बनता है कि वैयक्तिकता से बहुत ऊपर उठकर हम उन्ही बातों को प्रकाशित करें जिसमे सर्वजन हिताय या कम से कम अन्य को रुचने योग्य कुछ तो गंभीर भी हो.

रंजना जी के ईमानदार सरोकार आज की हिंदी ब्लॉगिंग के परिपेक्ष्य में कितने प्रासंगिक है ये सिर्फ ब्लॉगवाणी की सबसे ज्यादा पसंदीदा या पढ़े जाने वाली पोस्ट की फेरहिस्त को पढ़कर ही लगाया जा सकता है। आजकल लिखी जा रही सामग्री को देखकर उन्हें इस बात का अफ़सोस होता है उनके अपने शहर में उससे कही ज्यादा प्रतिभावान लेखक कंप्यूटर ना जानने की वज़ह से इस माध्यम तक नहीं आ पा रहे हैं। रंजना जी ऐसे लोगों के निःशुल्क कंप्यूटर प्रशिक्षण के बारे में गंभीरता से विचार कर रही हैं।

अपने चिट्ठे पर रंजना जी कहानियाँ भी लिखती हैं और कभी कभी कविताएँ भी। पौराणिक कथाओं से आध्यात्मिक चिंतन, गंभीर लेखन से नुकीले व्यंग्य बाण तक इनकी लेखनी से निकलते रहते है। मैंने उनसे उनकी शुद्ध पर थोड़ी क्लिष्ट हिंदी की शैली के बारे में पूछा तो रंजना जी का जवाब था कि हिंदी के इस रूप को आगे तक की पीढ़ियों तक पहुँचाने की जिम्मेवारी भी किसी को तो लेनी चाहिए और मैं वही करने का प्रयास कर रही हूँ।

रंजना जी के दो प्यारे बच्चे हैं। उनकी बेटी से हम सभी ब्लॉगर मीट के दौरान मिल चुके हैं। बेटे की तस्वीर तो उनके ब्लॉग पर मौजूद है ही। रही बात पतिदेव की तो उनके बारे में मेरे कुछ कहने से अच्छा ये रहेगा कि आप उनके बारे में उन्हीं की लिखी ये पंक्तियाँ पढ़ लें...




"नयनों में पलते स्वप्न तुम्ही,तुमसे ही आदि अंत मेरा.
जीवन पथ के संरक्षक तुम,निष्कंटक करते पंथ सदा .
तुमने जो ओज भरा मुझमे, दुष्कर ही नही कोई कर्म बचा.
जितने भी नेह के नाते हैं,तुममे हर रूप को है पाया.
आरम्भ तुम्ही अवसान भी तुम,प्रिय तुमसे है सौभाग्य मेरा..
"

तो ये था लेखा जोखा रंजना जी से मेरी मुलाकात का... अगली पोस्ट में लें चलेंगे आपको लखनऊ ये बताने के लिए किस तरह आपके इस नाचीज़ को दो साथी चिट्ठाकारों की आपसी मिलीभगत से परेशान किया गया !



इस चिट्ठे पर इनसे भी मिलिए


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32 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

हर विषय पर गंभीर विचारों और उसकी सुंदर प्रस्‍तुति के कारण ही रंजना जी को मैं भी‍ नियमित तौर पर पढती हूं .. आपलोगों का यूं अचानक मिलना बहुत ही सुखद रहा होगा .. अपने अनुभवों से रूबरू कराने के लिए धन्‍यवाद !!

Randhir Singh Suman on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

nice

पारुल "पुखराज" on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

फलदार पेड़ सदा झुका रहता है --रंजना दी एक्दम ऐसी ही हैं । परायेपन से परे ,बहुत सरल कभी भी मिलिये सदा हसती-खिलखिलाती मिलेंगी :)

रंजू भाटिया on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी और इनके पतिदेव से दिल्ली में अपने घर में मुलाकात कर चुकी हूँ वाकई वह बहुत सरल और कभी न भूलने वाला व्यक्तित्व हैं ..

mamta on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी को हमने ज्यादा नहीं पढ़ा है क्यूंकि बीच मे काफी दिन ब्लॉगिंग से दूर थे पर आपके जरिये उन्हें जानना अच्छा लगा।

Udan Tashtari on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

अच्छा लगा रंजना जी आपकी मुलाकात के विषय में जानकर. रंजना जी को पढ़ना हमेशा सुखद होता है.

Jandunia on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी के लेखन के क्या कहने। पोस्ट अच्छी है।

PN Subramanian on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी के बारे में आपके माध्यम से जानकार हम तुरंत उनके ब्लॉग पर चले गए. आज की उनकी पोस्ट बहुत ही रोचक भी मिली. आभार. हाँ आपको बधाईयाँ.

L.Goswami on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी बहुत सहज -सरल हैं ...यह मैंने रांची में ही समझ लिया था ..अफ़सोस बहुत देर तक रुक नही सकी थी वहां ...खैर फिर कभी...अच्छा लगा पढ़कर विवरण .

Arvind Mishra on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

रंजना जी को मैंने उनकी उत्कृष्ट हिन्दी के लिए डॉ रंजना की उपाधि दी है -संकोचवश इसका उल्लेख वे नहीं करतीं !

Abhishek Ojha on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

ये बात सही है कि धीरे-धीरे हम कुछ ब्लोग्स पर कन्वर्ज हो जाते हैं.... और टिपण्णी करे न करे उन ब्लोग्स की हर पोस्ट पढ़ ही लेते हैं. और क्षणिक प्रसिद्धि पाए ब्लोग्स के बारे में भी कम से कम मेरे लिए तो वही सच है जो रंजना जी कह रही हैं.... मेरे कन्वर्ज हुए छोटे से लिस्ट में रंजनाजी का ब्लॉग तो है ही.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

सच कहा आपने - और रंजना जी हमेशा ऐसे ही हमारे मन को आनंदित करती रहीं हैं
उत्कृष्ट लेखन और सच्चे मन की स्वामिनी
असल जीवन में भी वैसे ही हैं जानकार सुख मिला
- लावण्या

रंजना on अप्रैल 16, 2010 ने कहा…

आपके इस अप्रत्याशित पोस्ट ने तो बस अचंभित और चमत्कृत ही कर दिया मुझे...
आश्चर्यचकित हूँ आपके ओबजर्वेशन पर.... एक फोन कॉल और एक मुलाकात में कितना कुछ जान समझ लिया आपने और फिर जिस तरह ग्लोरिफाई कर उसे आपने प्रस्तुत किया कि संकोच से भी गडी जा रही हूँ...मैं अति साधारण,इतनी प्रशंशा के बिलकुल भी योग्य नहीं भाई....यह तो बस आपका बड़प्पन है कि इतना मान दिए जा रहे हैं....

और हाँ कहाँ कहाँ से निकाल कर आप वाक्यांशों को ले आये हैं...पहले तो लगा,यह सब मैंने कब कहा...बहुत जोर डाला दिमाग पर तो उक्तियाँ कुछ जानी पहचानी लगीं...
जितनी मेहनत आप गीत संगीत के पोस्ट बनाने में करते हैं,उतनी ही मेहनत और तन्मयता से आपने यह पोस्ट भी बनायीं...

आपके इस मान के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
पोस्ट ने तो अभिभूत किया ही टिप्पणियों में सबका स्नेह देख मन आह्लादित हो गया है...सुधि जन टिप्पणीकर्ताओं की भी आभारी हूँ...

डा० अमर कुमार on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…


कभी रँजना जी से फ़ेसबुक पर अक्सर मुलाकात हो जा ती थी,
उनकी ग़ज़ल की लाइनों को लेकर मैं उन्हें बहुत टीज़ ( Tease ) भी किया करता था ।
अब समय नहीं मिलता कि फ़ेसबुक पर अपना फ़ेस दिखाऊँ । यदि और कोई होता तो भड़क जाता, रँजना ने मुझे बर्दाश्त किया, इसके लिये धन्यवाद । यह उनके व्यक्तित्व का उज़्ज़्वल पक्ष है ।

वाणी गीत on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

शुद्ध वजनदार हिंदी लेखिका होने के साथ ही वे बहुत विश्वसनीय सलाहकार और मार्गदर्शक भी हैं ...
मिली तो कभी नहीं हूँ मगर उनके लेखन में मृदुलता और सदाशयता तथा हिंदी ब्लॉगिंग के प्रति उत्तरदायित्व की भावना बहुत प्रभावित करती है ....
रंजना जी के इस परिचय के लिए बहुत आभार ...!!

Himanshu Pandey on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

रंजना जी की चिट्ठाकारी का शुरु से ही प्रशंसक हूँ ! नियमित पढ़े जाने वाले चिट्ठों में से है संवेदना संसार !
रंजना जी से और भी परिचित करा दिया आपने ! आभार ।

कंचन सिंह चौहान on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

रंजना दी का नाम आते ही बस एक ममतामयी छवि सामने आ जाती है। प्रेम भरा है उनकी हर बात में और ओज भी। सही है कि पोस्ट पढ़ कर पहले तो डर लगता है इतनी बौद्धिक महिला से बात करने में। मगर जब बाता करो तो वो ऐसा नही लगने देतीं कि वे हमारे इर्द गिर्द का हिस्सा नही हैं।

इस पोस्ट द्वारा दीदी को प्रणाम करने का मौका देने का धन्यवाद।

डा० अमर कुमार on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…


from : Manish Kumar
to : डा० अमर कुमार
date17 April 2010 09:55
subject-Re: [एक शाम मेरे नाम] New comment on आइए भ्रमण करें संवेदना के संसार में : एक मुलाकात र....
Dr Sahab
Aapke comments se mujhe thoda confusion hua isliye clear kar na chah raha hoon. Aap kahin Ranjana Bhatia ji (Ranju) ji ki to baat nahin kar rahe. Kyunki Samvedna Samsaar wali Ranjna ji ko ghazal liikhte hue maine to nahin padha aur wo facebook par hain ismein bhi mujhe sandeh hai.

regards
Manish

@ Manish

हाँ यह सच है, दोस्त !
मैं इनको रँजू भाटिया के रूप में ही देख रहा था । थोड़ा ठिठका भी, किन्तु बिजली कटौती का समय निकट होने से ज़लदबाजी कर गया । मुझे इस खूबसूरत इत्तेफ़ाक़ के लिये खेद हैं । आशा है कि, मुक्तहृदय रँज़ना जी तक मेरा सँदेश गलत रूप से न जायेगा ।

अजित गुप्ता का कोना on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

ब्‍लाग जगत की आत्‍मीयता इसी प्रकार बनी रहे, प्रभु से यही प्रार्थना है।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

यह मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी....

ममा से सहमत...ब्‍लाग जगत की आत्‍मीयता इसी प्रकार बनी रहे, प्रभु से यही प्रार्थना है।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

सुंदर प्रस्‍तुति

Shiv on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

मैं उनका ब्लॉग हमेशा पढ़ता हूँ. मैं उन्हें टिप्पणी देता हूँ और वे भी मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट करती हैं. उनसे रांची ब्लॉगर मीट में मिलना हुआ था. ब्लागिंग को उन्होंने बहुत गंभीरता से लिया और अपने लेखन से उसे समृद्ध कर रही हैं.

इस प्रस्तुति के लिए आपको बधाई.

rashmi ravija on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

रंजना जी , से आपकी मुलाक़ात का विवरण बहुत ही अच्छा लगा...उनके लेखन के तो हम सब कायल हैं

अनूप शुक्ल on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Priyank Jain on अप्रैल 17, 2010 ने कहा…

samvedna sansar se bhi bhi nata jod lete hain
dhanyawaad

गौतम राजऋषि on अप्रैल 18, 2010 ने कहा…

पिछले साल की सितम्बर की वो शाम थी....मैं आइ०सी०यू० से बाहर आया ही थी जेनरल वार्ड...कि उनका फोन आया....शुद्ध मैथिली ने पहले तो अचंभित किया और फिर उनका स्नेह....आह!

जब से उनको पढ़ना शुरू किया है, अपनी हिंदी पे तनिक शर्म आने लगी। रंजना बहिन से ये एक और मुलाकात करवा कर बड़ा उपकार किया मनीष जी....

दिलीप कवठेकर on अप्रैल 19, 2010 ने कहा…

aap yoo hee milawaate rahiye.aapake blo par aakar kuch na kuch to hasil hota hi hai!!

अपूर्व on अप्रैल 19, 2010 ने कहा…

रंजना जी के ब्लॉग पर विषयों की विविधता और उनकी गंभीरता बेहद प्रभावित भी करती है और हिंदी ब्लॉगिंग के लिये एक आदर्श भी..मगर आपके ब्लॉग के माध्यम से उनके व्यक्तित्व को भी जानना सुखद रहा..धन्यवाद!!

जितेन्द़ भगत on अप्रैल 19, 2010 ने कहा…

रंजना जी के लेख मुझे हमेशा प्रभावि‍त करते हैं।
मनीष जी का शुक्रि‍या उनसे मि‍लवाने के लि‍ए।

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2010 ने कहा…

रंजना जी की लेखनी के बारे में अपने अपने विचार प्रकट करने के लिए आप सब का शुक्रिया !

हरकीरत ' हीर' on अप्रैल 20, 2010 ने कहा…

मैं थोड़ी कन्फ्यूज हो जाती हूँ ...रंजना ब्लॉग जगत में तीन नाम हैं ....ये तस्वीर भी ब्लॉग से नहीं मिलती .....खैर

जब तस्वीर ही इतनी खूबसूरत और प्यारी है तो रंजना जी ने तो मिलनसार होना ही था ....अच्छा लगा इनके विषय में जानकार .....!!

अनूप शुक्ल on मई 16, 2010 ने कहा…

रंजनाजी के बारे में आपकी पोस्ट पढ़कर बहुत अच्छा लगा। रंजना जी के बारे में कंचन ने कहा ही कि जब बात करो तो वो ऐसा नही लगने देतीं कि वे हमारे इर्द गिर्द का हिस्सा नही हैं।

 

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