दस बजे मिलने का वक़्त तय था पर मैं घर से इसके बीस मिनट पहले ही निकल सका। निकलने के बाद ख्याल आया ये कोई सिविलियन मीट तो है नहीं, एक फौजी से मिलने जा रहा हूँ वक़्त का ध्यान रखना चाहिए था। गौतम जरूर वक़्त के मुताबिक दस बजे पहुँच चुके होंगे। करीब पंद्रह बीस मिनट बाद मौर्य लोक के परिसर में कदम रखे तो दूर से ही गौतम मोबाइल पर बात करते दिखे। जैसी की आशा थी वो दस बजे से पहले ही वहाँ पहुँच चुके थे। पता चला की वो दिल की बात वाले अनुराग को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएँ दे रहे थे। शादी की सालगिरह और वो भी वैलेंटाइन डे के दिन..मन ही मन सोचा खूब दिन ढूँढ कर ब्याह रचाया अनुराग ने।
कहने को वो वैलेंटाइन डे था पर मौर्य लोक में कोई रौनक दिख नहीं रही थी। दिखती भी कैसे? रविवार होने की वज़ह से सारी दुकानें बंद थीं। हम घूमते टहलते बैठ कर बातें करने की जगह तलाशने लगे। परिसर के अंदर ही चाउमिन की दुकान के सामने कुछ खाली कुर्सियाँ दिखाई दीं। सोचा चाय का आर्डर देकर गप्पे हाँकने का काम शुरु किया जाए। पता चला वहाँ चाय कॉफी का कोई इंतज़ाम नहीं है। अब बैठ गए थे तो सोचा बैठे ही रहा जाए। वहीं से बातों का सिलसिला शुरु हुआ। मैंने गौतम को अपनी कॉलेज की जिंदगी व फरीदाबाद में अपनी नौकरी के संस्मरणों और किस्सों के बारे में बताया।
फिर जो बात मेरे मन में घूम रही थी उसी को प्रश्न बना कर मैंने दाग दिया। कविताएँ /ग़जलें उनकी जिंदगी में पहले आईं या फिर सेना में काम करने का जज़्बा? (वैसे मुझे बाद में पता चला कि मेरा मूल प्रश्न ही गलत था :)। इन दो बातों के बीच में गौतम की जिंदगी में और भी बहुत कुछ आया जिसने उनके इन दोनों पहलुओं को निखारने में मदद की।)
जिस तरह मुझमें गीत संगीत व साहित्य में रुचि अंकुरित करने का श्रेय मैं अपनी बड़ी बहन और माँ को देता हूँ वैसे ही गौतम को ग़ज़लों और कविताओं में रुचि जाग्रत करने में उनके पिता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। गौतम ने बताया कि किस तरह उनके पिता मँहदी हसन और गुलाम अली की ग़ज़लों को सुनवाकर उनका भावार्थ बताते थे। संयुक्त परिवार में पले बढ़े गौतम को किताबें पढ़ने का शौक भी लड़कपन से हो गया और शायद हाईस्कूल के आस पास ही उन्होंने अपनी पहली कविता भी लिखी।
जैसा कि एक आम उत्तर भारतीय और खासकर बिहार जैसे राज्य में होता रहा है मैट्रिक के बाद इंजीनियर डॉक्टर बनाने वाले के लिए माता पिता बच्चों को कोचिंग के लिए राज्य की राजधानी भेज देते हैं। गौतम को भी इसी वज़ह से पटना भेज दिया गया। अब डाक्टर पिता को अपने होनहार पुत्र को पटना भेजते समय उसकी काव्यात्मकता के बारे में जानकारी थी या नही ये तो पता नहीं, पर पुत्र ने पटना की धरती पर उतरते और कोचिंग का माहौल देखने समझने के बाद शीघ्र ही ये निर्णय ले लिया यह भूमि ही उसके काव्य की कर्म भूमि होगी..
आप समझ ही गए होंगे कि हमारे 'कवि' को उसकी 'प्रेरणा' मिल गई थी। पर उस प्रेरणा को अभी भी इस बात पर पर्याप्त संदेह था कि उसे सच्चा कवि मिला है या रोड साइड रोमियो :)। पर कवि अपने कावित्य कौशल से प्रेरणा को समझाने बुझाने में लगा रहा। शायद वो पंक्तियाँ कुछ इस तरह की रही हों जिसे आप व मैं पहले भी पढ़ चुके हैं
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो
'प्रेरणा' ने गौतम को पूरी तरह अनुमोदित तो नहीं किया पर उनकी लेखनी को एक संवेदनशील पाठक जरूर मिल गया। गौतम इतने से ही खुश थे। अपनी पाठिका को प्रेमिका की मंजिल तक पहुँचाने में उनकी लेखनी उनका अवश्य साथ देगी, ऐसा उनका भरोसा था। लिहाज़ा गौतम की शायरी में इश्क़ का ख़ुमार चढ़ता रहा। बहुत कुछ उनके इन खूबसूरत अशआरों की तरह
हर लम्हा इस मन में इक तस्वीर यही तो सजती है
तू बैठी है सीढ़ी पर, छज्जे से धूप उतरती है
एक हवा अक्सर कंधे को छूती रहती "तू" बनकर
तेरी गंध लिये बारिश भी जब-तब आन बरसती है
हमने देखा है अक्सर हर पेड़ की ऊँची फुनगी पर
हिलती शाख तेरी नजरों से हमको देखा करती है
अब बताइए भला ऐसे अशआरों को पढ़ और महसूस कर किसका हृदय नहीं पिघलेगा सो 'प्रेरणा' का भी पिघला। पर इधर गौतम ने एक और गुल खिलाया। इंजीनियरिंग से ज्यादा दिलचस्पी उन्हें एक रोमंचकारी ज़िंदगी जीने में थी। माता पिता को खुश रखने के लिए इंजीनियरिंग का पर्चा भरा पर साथ ही NDA में दाखिला के लिए भी परीक्षा दी। IIT की परीक्षा में रैंक नीचे आई,पर उसके बारे में घर पर बिना बताए NDA में दाखिला ले लिया। वो पुणे चले गए पर प्रेम का जज़्बा भी बना रहा। बस मुलाकात की जगह बदल गई.. शहर बदल गया...
और क्या बदला गौतम की जिंदगी में ये जानते हैं इस मुलाकात की अगली किश्त में...
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14 टिप्पणियाँ:
आप पटना में ही रहते हैं, फिर तो जून में हम भी मिल सकते हैं पर जगह थोडा चेंज होगा... मौर्या के बगल में गाँधी मैदान ? चलेगा :)
क्यूँ नहीं मौर्य लोक में एक शायर से मुलाकात हुई गाँधी मैदान में ये जान लेंगे कि "कवि और क्या क्या कहेगा?":)
पटना में आना जाना तो लगा रहता है। वैसे फिलहाल राँची ही अपना मुलुक है।
बहुत सुंदर लगी आप की मुलाकात,सब से ज्यादा खुशी हुयी आप सब के सही समय पर पहुचने की , हम भी कभी इस फ़ोजी जवान से मिलना चाहेगे, लेकिन पता नही कब....
अच्छा रहा ...
एक सिलसिले की मुलाक़ात लिखने में कई सिलसिले बनाती है !
राजरिशी जी को पढ़ना हुआ ही करता है , आपकी मुलाक़ात ने
एक अलग पाठ भी प्रस्तुत किया ! आभार !
wawo...............
bahut acchi lagi post sir........
वाह वाह ! बहुत दिनों से ऐसी एक श्रृंखला का इंतज़ार था. मैं सोचा करता था कहीं तो आएगी ही... और आपने शुरू कर दिया.
रोचक मिलन कथा चल रही है...अगली किश्त का इन्तजार लग गया.
अच्छा लगा पढ़ना।
गौतम से मेरी भेंट भी किसी रोमांच से कम नहीं थी।बिना पूर्वनियोजित । आकस्मिक!
किन्तु मन में बसी है, वह बहुत सरल व्यक्तित्व के धनी हैं और मेरे मन में उनके लिए बहुत स्नेह है। बस, उस भेंट के चित्र आपकी भाँति नहीं हैं; क्योंकि वे गौतम के कुछ मित्रों ने लिए थे,... और उन चित्रों की आज तक मुझे प्रतीक्षा है।
:(
ये गलत बात है.. मेरे पोस्ट का शीर्षक आपने लगाया है.. मैं भी उनसे वहीं मिला था २ मार्च को, और 'प्रेरणा' मतलब भाभी भी आई थी मुझसे मिलने.. :P
एक बात और चिढाना है आपको.. मैं भैया से पहले पहुँच गया था.. :)
अच्छा लगा आपको और गौतम जी दोनो को साथ देखकर..
गौतम जी से मुलाकात को सिलसिलेवार लिखना बेहतर अनुभव होगा आपके लिए ! हम तो पढ़कर खुश हुए जा रहे हैं !
आभार ।
सच गौतम जी इंसान ही ऐसे है कि सबका दिल चाहता है उनसे मिलने को, हमारा भी क्योंकि नही मिले ना अभी तक। पर इतना जानता हूँ कुछ अनोखापन है उनमें।
गोया कि धीरे-धीरे खुल रही हैं ग़ज़ल के ’बिहाइंड-द-सीन’ की गिरहें..आप कन्टीन्यू रहिये..हम सुन रहे हैं कान लगाये!! :-)
यह मुलाकात भी अच्छी रही, एक दूसरे को जानने के लिए। अगली किश्त में देखें क्या खबर है।
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