राजा मेंहदी अली खाँ, जब भी ये नाम सुना तो लगा भला इतने रईस खानदान के चराग़ को गीत लिखने का शौक कैसे हो गया? गोकि ऍसा भी नहीं कि हमारे राजे महाराजे इस हुनर से महरूम रहे हों। तुरंत ही जनाब वाज़िद अली शाह का ख्याल ज़ेहन में उभरता है। पर उनकी मिल्कियत दिल्ली और अवध तक फैली हुई थी पर राजा साहब को क्या सूझी कि वो अपने बाप दादाओं की जमीदारी छोड़कर मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बन बैठे?
राजा साहब के बारे में जानने की इच्छा बहुत दिनों तक बनी रही पर उनके अनमोल गीतों और संगीतकार मदनमोहन के साथ उनकी अनुपम जोड़ी के किस्सों के आलावा कुछ ज्यादा हाथ नहीं लगा।
कुछ दिनों पहले फिल्म 'दुल्हन एक रात की' का अपना एक पसंदीदा नग्मा गुनगुना रहा था कि याद आया कि अरे ये गीत भी तो राजा साहब का ही लिखा हुआ है। राजा साहब के बारे में मेरा पुराना कौतुहल, फिर जाग उठा। इस बार उन पर लिखे कुछ लेख हाथ लगे। पता चला कि राजा साहब, अविभाजित भारत के करमाबाद की पैदाइश हैं। पिता बचपन में ही गुजर गाए और माता हेबे जी के संरक्षण में मेंहदी अली खाँ पले बढ़े। माँ अपने ज़माने उर्दू की क़ाबिल शायरा के रूप में जानी गयीं। चालिस के दशक में जब वो आकाशवाणी दिल्ली में काम कर रहे थे तो मुंबई से उन्हें सदात हसन मंटो का बुलावा आ गया। मंटों ने तब हिंदी फिल्मों में काम करना शुरु किया था।
पर राजा साहब ने आते ही अपनी शायरी के जलवे दिखाने शुरु कर दिये ऐसा भी नहीं था। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजा साहब की फिल्म उद्योग में शुरुआत बतौर पटकथा लेखक के हुई। और तो और उन्होंने एक फिल्म के लिए छोटा सा रोल भी किया। पर पटकथालेखन और अभिनय उन्हें ज्यादा रास नहीं आया। 1947 की फिल्म दो भाई में राजा साहब को पहली बार गीत लिखने का मौका मिला । इस फिल्म का गीत "मेरा सुंदर सपना टूट गया..." बेहद चर्चित रहा। विभाजन और दंगों की आग में जल रहे देश में डटे रहने का फ़ैसला भी राजा साहब के भारत के प्रति प्रेम को दर्शाता है। और फिर फिल्म शहीद (1950) में देशप्रेम से ओतप्रोत उनके लिखे उस गीत को भला कौन भूल सकता है 'वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो'.. '
पचास का दशक राजा मेंहदी अली खाँ के उत्कर्ष का दशक था। दशक की शुरुआत में संगीतकार मदनमोहन के साथ फिल्म 'मदहोश' में उनकी जो सफल जोड़ी बनी वो 'अनपढ़', 'मेरा साया', 'वो कौन थी', 'नीला आकाश', 'दुल्हन एक रात की' आदि फिल्मों में और पोषित पल्लवित होती गई।
राजा मेंहदी अली खाँ के लिखे गीतों पर नज़र रखने वाले फिल्म समीक्षकों का मानना है कि राजा ने ही फिल्मी गीतों में 'आप' शब्द का प्रचलन बढ़ाया। मसलन उनके लिखे इन गीतों को याद करें... 'आप की नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे...' या 'जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यूँ रोए ' , 'आपने अपना बनाया मेहरबानी आपकी...'। मदन मोहन के आलावा राजा साहब ने ओ पी नैयर व सी रामचंद्र के संगीत निर्देशन में भी बेहतरीन नग्मे दिये। वैसे क्या आपको पता है कि 'मेरे पिया गए रंगून वहाँ से किया है टेलीफून.. ' भी राजा साहब का ही लिखा हुआ गीत है।
साठ के दशक के मध्य में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ 'अनीता' और 'जाल' जैसी फिल्में उनके फिल्मी सफ़र की आखिरी फिल्में थी। जुलाई 1996 में राजा साहब इस दुनिया से कूच कर गए। पर उनके रचे गीतों से आज भी वे हमारे मन में समाए हैं। आज की ये पोस्ट उस गीत के जिक्र बिना अधूरी रह जाएगी जिसकी वज़ह से राजा साहब की याद पुनः मन में आ गई।
पर राजा साहब ने आते ही अपनी शायरी के जलवे दिखाने शुरु कर दिये ऐसा भी नहीं था। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजा साहब की फिल्म उद्योग में शुरुआत बतौर पटकथा लेखक के हुई। और तो और उन्होंने एक फिल्म के लिए छोटा सा रोल भी किया। पर पटकथालेखन और अभिनय उन्हें ज्यादा रास नहीं आया। 1947 की फिल्म दो भाई में राजा साहब को पहली बार गीत लिखने का मौका मिला । इस फिल्म का गीत "मेरा सुंदर सपना टूट गया..." बेहद चर्चित रहा। विभाजन और दंगों की आग में जल रहे देश में डटे रहने का फ़ैसला भी राजा साहब के भारत के प्रति प्रेम को दर्शाता है। और फिर फिल्म शहीद (1950) में देशप्रेम से ओतप्रोत उनके लिखे उस गीत को भला कौन भूल सकता है 'वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हो'.. '
पचास का दशक राजा मेंहदी अली खाँ के उत्कर्ष का दशक था। दशक की शुरुआत में संगीतकार मदनमोहन के साथ फिल्म 'मदहोश' में उनकी जो सफल जोड़ी बनी वो 'अनपढ़', 'मेरा साया', 'वो कौन थी', 'नीला आकाश', 'दुल्हन एक रात की' आदि फिल्मों में और पोषित पल्लवित होती गई।
राजा मेंहदी अली खाँ के लिखे गीतों पर नज़र रखने वाले फिल्म समीक्षकों का मानना है कि राजा ने ही फिल्मी गीतों में 'आप' शब्द का प्रचलन बढ़ाया। मसलन उनके लिखे इन गीतों को याद करें... 'आप की नज़रों ने समझा प्यार के क़ाबिल मुझे...' या 'जो हमने दास्ताँ अपनी सुनाई आप क्यूँ रोए ' , 'आपने अपना बनाया मेहरबानी आपकी...'। मदन मोहन के आलावा राजा साहब ने ओ पी नैयर व सी रामचंद्र के संगीत निर्देशन में भी बेहतरीन नग्मे दिये। वैसे क्या आपको पता है कि 'मेरे पिया गए रंगून वहाँ से किया है टेलीफून.. ' भी राजा साहब का ही लिखा हुआ गीत है।
साठ के दशक के मध्य में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ 'अनीता' और 'जाल' जैसी फिल्में उनके फिल्मी सफ़र की आखिरी फिल्में थी। जुलाई 1996 में राजा साहब इस दुनिया से कूच कर गए। पर उनके रचे गीतों से आज भी वे हमारे मन में समाए हैं। आज की ये पोस्ट उस गीत के जिक्र बिना अधूरी रह जाएगी जिसकी वज़ह से राजा साहब की याद पुनः मन में आ गई।
फिल्म 'दुल्हन एक रात की' फिल्म का ये गीत मुझे बेहद पसंद है और क्यूँ ना हो 'शामों' से मेरे लगाव की बात क्या आप सब से छिपी हे। और फिर जहाँ गीत में ऐसी ही किसी शाम को अपने हमसफ़र की यादों में गोता लगाने का जिक्र हो तो वो गीत क्या दिलअज़ीज नहीं बन जाएगा ?
मदनमोहन द्वारा मुखड़े की आरंभिक धुन कमाल की है। यही कारण हे कि इस गीत के मुखड़े को गुनगुनाना मेरा प्रिय शगल रहा है। आज सोचा मोहम्मद रफ़ी साहब की मखमली आवाज़ में गाए पूरे गीत को गुनगुनाने की कोशिश करूँ। रफ़ी साहब ने जिस मस्ती से इस गीत को गाया है कि सुन कर ही मन झूम उठता है और होठ थिरकने लगते हैं।
इक हसीन.. शा..म को दिल मेरा... खो गया
पहले अपना, हुआ करता था, अब किसी का... हो गया
मुद्दतों से.., आ..रजू थी, जिंदगी में.. कोई आए
सूनी सूनी, जिंदगी में. कोई शमा.. झिलमिलाए
वो जो आए तो रौशन ज़माना हो गया
इक हसीन.. शा..म को दिल मेरा... खो गया
मेरे दिल के, कारवाँ को ले चला है.. आज कोई
शबनमी सी. जिसकी आँखें, थोड़ी जागी.. थोड़ी सोई
उनको देखा तो मौसम सुहाना हो गया
इक हसीन.. शा..म को दिल मेरा... खो गया
पहले अपना, हुआ करता था, अब किसी का... हो गया
पहले अपना, हुआ करता था, अब किसी का... हो गया
मुद्दतों से.., आ..रजू थी, जिंदगी में.. कोई आए
सूनी सूनी, जिंदगी में. कोई शमा.. झिलमिलाए
वो जो आए तो रौशन ज़माना हो गया
इक हसीन.. शा..म को दिल मेरा... खो गया
मेरे दिल के, कारवाँ को ले चला है.. आज कोई
शबनमी सी. जिसकी आँखें, थोड़ी जागी.. थोड़ी सोई
उनको देखा तो मौसम सुहाना हो गया
इक हसीन.. शा..म को दिल मेरा... खो गया
पहले अपना, हुआ करता था, अब किसी का... हो गया
मुझे झेल लिया है ! ठीक है जनाब अब रफ़ी की आवाज़ में भी इस गीत को सुनवाए देते हैं। वैसे फिल्म में इस गीत को फिल्माया गया था धर्मेंद्र व नूतन पर..
6 टिप्पणियाँ:
शानदार और दिलचस्प लेख...
सुकून है ब्लॉग्गिंग की बक-झक से दूर कुछ अच्छे ब्लॉग भी हैं ! बढ़िया प्रस्तुति.
आनन्द आ गया..बहुत उम्दा आलेख और गीत सुनकर तबीयत प्रसन्न हो गई.
वाह....आनंद आ गया....
बहुत बहुत आभार नायाब गीत सुनवाने और रोचक जानकारी देने के लिए...
E-mail alert ka fayda mil ja raha hai.Sabhi aalekh Padh kar aanandit hone mein jara bhi vilamb nahin karta.Is rochak jaankaari evam NaaYaab geet Sunvane ke liye AABHAAR evam Dhanyavaad Jnaapan mein vilamb ke liye Apology chaahungaa.
शुक्रिया आप सब का इस लेख को पसंद करने के लिए !
एक टिप्पणी भेजें