शुक्रवार, मई 21, 2010

गोपालदास 'नीरज' का जीवन दर्शन : उनके चार विचारों के साथ !

जिंदगी को देखने और महसूस करने के हमारे मापदंड समय और हमारी सोच में हो रहे निरंतर विस्तार से बदलते रहते हैं। वक़्त से आगे देख पाने की सोच, एक आम मानव की प्रकृति में नहीं है। दरअसल हमारे अपने जीवन में जो घटित होता रहता है उसे ही जीवन का सच मानने के लिए हम तैयार बैठे रहते हैं।



पर जिस जीवन दर्शन को समझ पाने में शायद हम अपनी पूरी जिंदगी निकाल दें उसे गोपाल दास नीरज जैसा सक्षम कवि चंद पंक्तियों में कैसे व्यक्त कर देता है ये कविता इसका एक सुंदर उदाहरण है।

इस कविता के माध्यम से नीरज इस बात को सरल सहज शब्दों में पुरजोर तरीके से रखते हैं कि किसी मनुष्य के लिए जीवन की परिभाषा इस बात पर निर्भर करती है कि उसने अब तक जिंदगी के किन रंगों का स्वाद चखा है?

तो आइए जीवन के प्रति नीरज के अनुभवो से रूबरू होते हैं उनकी इस कविता चार विचार में...

(1)
जो पुण्य करता है वह देवता बन जाता है,
जो पाप करता है वह पशु बन जाता है,

और जो प्रेम करता है वो आदमी बन जाता है


(2)
जब मैंने प्रेम किया तो मुझे लगा जीवन आकर्षण है,
जब मैंने भक्ति की तब मुझे लगा जीवन समर्पण है,

किंतु जब से मैंने सेवाव्रत लिया
तब
मुझे पता चला कि जीवन सबसे पहले सर्जन है

(3)
जब मैं बैठा था तो समझता था कि जीवन उपस्थिति है,
जब मैं खड़ा था तब समझता था कि जीवन स्थिति है,

किंतु जब मैं चलने लगा तब लगने लगा, "जीवन गति है"


(4)
जब तक मैं पुकारता रहा
तब तक समझता रहा कि जीवन तुम्हारी आवाज़ है

और जब मैं स्वयम् को पुकारने लगा

तो कहने लगा जीवन अपनी ही आवाज़ है

किंतु जिस दिन मैंने संसार को पुकारना शुरु किया है

उस दिन से मुझे लगने लगा है

कि जीवन मेरी और तुम्हारी नहीं

उन सबकी आवाज़ है
जिनकी कि कोई आवाज़ ही नहीं है.....

पता नहीं आपने जीवन के किन रूपों का अब तक अनुभव किया है । हो सकता है आपका नज़रिया भिन्न हो? पर सारे नज़रियों को मिला कर देखें तो शायद सबमें ही जीवन का कोई ना कोई सच छुपा बैठा मिले।

अब ऊपर के चित्र को ही लें। किसी को वो खरगोश नज़र आया होगा तो किसी को बत्तख! पर वास्तविकता तो ये है कि चित्र में ये दोनों ही रूप विद्यमान है। शायद जिंदगी भी ऐसा ही एक चित्र है जिसमें कई सारे चित्र समाए बैठे हैं...क्यूँ है ना?
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16 टिप्पणियाँ:

डॉ टी एस दराल on मई 21, 2010 ने कहा…

वाह पाप , पुण्य , प्रेम और जीवन की ऐसी परिभाषा नीरज जैसा महान कवि ही दे सकता है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। आभार।

राज भाटिय़ा on मई 21, 2010 ने कहा…

बहुत सुंदर लगी जीवन की परिभाषा कवि की कविता मै. धन्यवाद

Priyank Jain on मई 21, 2010 ने कहा…

second one was not so good but the remaining three are awesome. How candidly Neeraj approaches the life and brings out the core of it to us!!!
Thank you

Udan Tashtari on मई 22, 2010 ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति..नीरज जी की रचनाओं में दर्शन है.

राजकुमार सोनी on मई 22, 2010 ने कहा…

नीरजजी का दर्शन काफी उपयोगी है। मैं तो उन्हें खूब पढ़ता रहा हूं.. पढ़ता हूं। दुनिया में उनके लाखों फैन है मैं भी एक छोटा सा फैन हूं।

प्रिया on मई 22, 2010 ने कहा…

achcha laga padh kar

दिलीप कवठेकर on मई 23, 2010 ने कहा…

नीरज की कविताओं के साथ उनके व्यक्तित्व के साथ आपके ब्लो के माध्यम से रू ब रू होना अच्छा लगा.

रंजना on मई 24, 2010 ने कहा…

कैसा अनमोल चिरंतन,सार्थक चिंतन है.....
मन मुग्ध और तृप्त हो गया....

आपका कोटिशः आभार मनीष जी.....

मीनाक्षी on मई 27, 2010 ने कहा…

नीरज जी को जितना सुनो जितना पढ़ो .. उतना ही और सुनने पढने की लालसा होती है .

Manish Kumar on मई 30, 2010 ने कहा…

नीरज जी का जीवन दर्शन आप लोगों को भाया जानकर खुशी हुई।

Dhirendra Giri on जून 01, 2010 ने कहा…

aapki rachna se apki sahirdayta ke darshan hote hai..........sarthak rachna ke liye badhai

Unknown on दिसंबर 11, 2010 ने कहा…

ATI UTTAM.... MUJHE BHI BAHOT ACHA LAGA .... AAJ SE MAIN BHI NEERAJ JI KI FAN HO GAYI :)

Ashish on अप्रैल 27, 2011 ने कहा…

Neeraj ji ki kavita aur darshan tareef ke kaabil hai. Aisa shresth karya ek shresth vyakti hi kar sakta hai.

SHARATSARANGI on फ़रवरी 16, 2012 ने कहा…

Fantastic

madan jat. research scholar mlsu udaipur ने कहा…

neeraj ji ka jivan darsan sabi ke liye perana he

बेनामी ने कहा…

नीरज जी की कविता का भाव अंतर्मन की गहराइयों को स्पर्श करता हुआ जीवन दर्शन को परिभाषित करता है.

 

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