पिछले चार सालों में इस चिट्ठे पर जहाँ मैंने किशोर दा पर एक लंबी श्रृंखला की वहीं गुलज़ार साहब की अपनी पसंदीदा रचनाओं से आपको रूबरू कराता रहा हूँ। रह गए तो जगजीत सिंह साहब जिनके बारे में मेरी कलम उतनी नहीं चली जितनी चलनी चाहिए थी। खास तौर पर तब, जब कॉलेज जीवन में संगीत को दिए गए समय का सबसे बड़ा हिस्सा उन की झोली में गया हो। बीच में सुदर्शन फक़ीर साहब का देहान्त हुआ तो उनकी लिखी ग़ज़लों पर लेख लिखा। फिर गुलज़ार साहब के साथ उनका एलबम 'कोई बात चले' आया तो लिखना लाज़िमी हो गया पर इसके आलावा उन पर विशेष कुछ नहीं लिख पाया। इसकी कई वज़हें रहीं।
सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में जगजीत की गाई ग़ज़लों को हमने और हमारी पीढ़ी ने इतना सुना,गुनगुनाया कि उसके बारे में लिखना मन में उत्साह नहीं जगा पाता था। सोचते थे इनके बारे में तो सबको पता ही होगा। और नब्बे के उत्तरार्ध से जगजीत साहब के ऐसे एलबम आने लगे जिसका संगीत उनकी चिर परिचित पुरानी धुनों से मेल खाता था और इक्का दुक्का ग़ज़लों को छोड़ दें तो बाकी कोई खास असर भी नहीं छोड़ पाती थीं।। इससे मैंने उनके नए एलबमों में दिलचस्पी लेनी बंद कर दी। पर उनके सबसे अच्छे दौर की यादें हमेशा मन में समाई रही और साथ ही दिल में ये इच्छा भी कि उनकी गाई पसंदीदा ग़ज़लों के बारे में कुछ लिखूँ और आज इसी वज़ह से मैं इस श्रृंखला की शुरुआत कर रहा हूँ।
उर्दू का बेहद थोड़ा ज्ञान रखने वाली भारतीय जनता को ग़ज़ल की विधा के प्रति आकर्षित करने में जगजीत जी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। आज भी अगर कोई युवा मुझसे पहले पहल ग़ज़ल सुनने के लिए किसी एलबम का नाम पूछता है तो में उसे जगजीत जी के किसी एलबम का ही नाम बताता हूँ।
दरअसल जगजीत जी की ग़ज़लों की खासियत इसी बात में थी कि उन्होंने ज्यादातर ऐसे शायरों की ग़ज़लें गाने के लिए चुनीं जिनमें उर्दू के भारी भरकम शब्द तो नहीं थे पर भावनाओं की गहराई थी। अगर कोई ग़ज़ल इस मामले में थोड़ी कमज़ोर भी रहती तो जगजीत की आवाज़ का जादू उसकी वो कमी भी ढ़क लेता।
जगजीत ने पहली बार अपनी ग़ज़लों में परंपरागत भारतीय वाद्य यंत्रों तबला,सितार,संतूर, सरोद और बाँसुरी के साथ पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल किया। ग़ज़लों की डिजिटल रिकार्डिंग भी उनके एलबमों से ही शुरु हुई। ग़ज़ल गायिकी को उन्होंने सेमी क्लासकिल संगीत की परिधि से बाहर निकाला। लिहाज़ा वो परंपरागत ग़जल ग़ायिकी के प्रशंसकों की आलोचना के भी पात्र बने। पर जगजीत जी के ये नए प्रयोग, आम जनता को खूब भाए। जगजीत ना केवल देश के सबसे लोकप्रिय ग़ज़ल गायक बने बल्कि उन्होंने भारत में ग़ज़लप्रेमियों की एक नई ज़मात पैदा की।
जगजीत की गाई ग़ज़लों के माध्यम से बशीर बद्र, सुदर्शन फक़ीर, निदा फाज़ली,राजेश रेड्डी जैसे प्रतिभावान शायरों को एक विशाल पाठक वर्ग तक पहुँचने में मदद मिली। शायरों के आलावा जगजीत ने तलत अजीज़, घनश्याम वासवानी, अशोक खोसला जैसे कई प्रतिभावान ग़ज़ल गायकों को जनता के सामने लाने में मदद की। जगजीत सिंह एक ऐसे प्रकाश स्तंभ है जिसकी रोशनी के बिना भारतीय ग़ज़ल गायिकी की चमक फीकी पड़ जाती है। यूँ तो जगजीत ने अपने कैरियर की शुरुआत से अभी तक तकरीबन पचास के करीब एलबम्स निकाले हैं पर जगजीत से जुड़ी ये श्रृंखला उन एलबमों और ग़ज़लों से जुड़ी रहेगी जो मुझे खासे प्रिय रहे हैं।
तो आइए ग़ज़लों की इस श्रृंखला का आगाज़ करें उनके एक बेहतरीन एलबम की एक ग़ज़ल से। इसे लिखा था जनाब रुस्तम सहगल 'वफ़ा' ने। जगजीत जी ने जिस प्यार और आवाज़ की मुलायमित से ये ग़ज़ल गाई है वो सुनते ही बनती है। अपने किसी मीत से बरसों बाद मिलने का अहसास दिल को कितना गुदगुदाता है वो इस ग़ज़ल को सुनकर महसूस कर सकते हैं
आप आए जनाब बरसों में
हमने पी है शराब बरसों में
फिर से दिल की कली खिली अपनी
फिर से देखा शबाब बरसों में
तुम कहाँ थे कहाँ रहे साहिब,
आज होगा हिसाब बरसों में
पहले नादाँ थे अब हुए दाना*
उनको आया आदाब बरसों में
*बुद्धिमान
इसी उम्मीद पे मैं जिंदा हूँ
क्या वो देंगे जवाब बरसों में
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आपसे बाते होंगी इस एलबम की कुछ बेहतरीन ग़ज़लों के बारे में। वैसे क्या आपको याद आया कि कौन सा एलबम था ये जगजीत जी का?
हमने पी है शराब बरसों में
फिर से दिल की कली खिली अपनी
फिर से देखा शबाब बरसों में
तुम कहाँ थे कहाँ रहे साहिब,
आज होगा हिसाब बरसों में
पहले नादाँ थे अब हुए दाना*
उनको आया आदाब बरसों में
*बुद्धिमान
इसी उम्मीद पे मैं जिंदा हूँ
क्या वो देंगे जवाब बरसों में
इस श्रृंखला की अगली कड़ी में आपसे बाते होंगी इस एलबम की कुछ बेहतरीन ग़ज़लों के बारे में। वैसे क्या आपको याद आया कि कौन सा एलबम था ये जगजीत जी का?
इस श्रृंखला में अब तक
- जगजीत सिंह : वो याद आए जनाब बरसों में...
- Visions (विज़न्स) भाग I : एक कमी थी ताज महल में, हमने तेरी तस्वीर लगा दी !
- Visions (विज़न्स) भाग II :कौन आया रास्ते आईनेखाने हो गए?
- Forget Me Not (फॉरगेट मी नॉट) : जगजीत और जनाब कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' की शायरी
- जगजीत का आरंभिक दौर, The Unforgettables (दि अनफॉरगेटेबल्स) और अमीर मीनाई की वो यादगार ग़ज़ल ...
- जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 1
- जगजीत सिंह की दस यादगार नज़्में भाग 2
- अस्सी के दशक के आरंभिक एलबम्स..बातें Ecstasies , A Sound Affair, A Milestone और The Latest की
15 टिप्पणियाँ:
यह बहुत उम्दा श्रृंखला की शुरुवात की है. जगजीत सिंग की पर जितना भी लिखेंगे, कम ही होगा..इन्तजार करते हैं अगली कड़ी का.
....बेहतरीन!!!!
आपकी यह पोस्ट मुझे अपने मन की ही बात लगी...
इधर बहुत समय से जगजीत सिंह जी का ऐसा कोई संकलन न आया जिसे लपककर गले लगा लिया जाय..
पर उनके पिछले संकलन ख़ास कर चित्रा सिंह तथा बाद में लता मंगेशकर जी के साथ वाले सभी ग़ज़ल मुझे बहुत ही प्रिय हैं...
जगजीत सिंह जी की ग़ज़लों के साथ ही हम जवान हुए थे...हमें उन हसीन यादों में फिर से ले जाने का शुक्रिया...
नीरज
ग़ज़ल सुनी ......
आप आये जनाब बरसों में .....
वाह ....!!
किसकी लिखी है ....?
आपने अंतिम शे'र नहीं लिखा उसे भी लिख दें ....!!
यह सब गजले है तो बहुत सुंदर ओर जगजीत सिंह की आवाज से इन्हे ओर सुंदर बना दिया लेकिन इस के रचियता कोन है यह आप ने नही लिखा, जगजीत सिंह ने सभी गजले खुद लिखी है क्या? कुछ रोशनी इधर भी डाले. धन्यवाद
बहुत खूबसूरत गजल....
Harqeerat aur Raj ji shayad aapne dhyan nahin diya ,maine ghazal ke pehle ise likhne wale Rustam sehgal 'Wafa' ka naam likha to hai.
बार-बार सुनी हुई ग़ज़लों के बारे मे की और उन्हे लिखने वालों के बारे मे उत्सुकता खुदबखुद ही बढ़ जाती है..सो ऐसे प्रयासों की जरूरत महसूस होती है..वफ़ा सा’ब और जगजीत सा’ब की इस संगत से शुरू इस सफ़र का खुमार आगे और सर चढ़ कर बोलेगा..यही उम्मीद है..
पुणे की हसीन शाम, वफ़ा साब और जगजीत सिंह जी ये तीनो खूब रंग जमा रही हैं .... जमे रहिये ...
अर्श
लीजिये हम गुम क्या हुये कुछ दिनों के लिये मेरे पसंदीदा ब्लौग पे ये नयी श्रृंखला शुरू हो गयी...
फिर से पढ़ने आऊंगा जगजीत की इन दोनों पोस्टो को...
Truly a nice post !!!
MAja aa jata hai aisey blog padhney mein jo itne badey phankaaron ki zindagi pe roshni daalen ..
upar se Jagjit Singh ne kayi dilo ki akadan ko tapaya hai .. hamesha :)
अनुपस्थित रहा लगातार इन दिनों !
इधर जगजीत सिंह पर एक अद्भुत श्रृंखला प्रस्तुत कर दी आपने !
जगजीत की गायकी ने सँवारा है मुझे..उनकी गज़लों-नज़्मों का चयन था जिसने उनकी तरफ आकर्षित किया !
सब कुछ अपना-सा कहते हुए मालूम पड़ते थे जगजीत सिंह !
यह श्रृंखला पढ़ने को प्रवृत्त हूँ ! आभार ।
वाक़ई 'जग' को 'जीत' ही चुके थे...'जगजीत'।
ग़ज़ल गायकी को आम आदमी से जोड़ने का काम उन्होंने ही किया। पुत्र की असमय मृत्यु ने उनकी गायकी से 'संयोग श्रृंगार'(रस) छीन लिया था। मेरे विचार से बाद के गीतों में उनका दर्द ही उनकी ग़ज़लों में सुनाई देता है।
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