जगजीत जी की ग़ज़लों की इस श्रृंखला का अगला मुकाम यूँ तो उनका पहला एलबम दि अनफॉरगेटेबल (The Unforgettable) था पर कल जब उस एलबम की एक चहेती ग़ज़ल को दोबारा सुन रहा था तो उसके शायर का नाम मुझे अनजाना सा लगा। सहज उत्सुकता जगी कि उनकी लिखी कुछ और ग़ज़लें सुनी और पढ़ी जाएँ। अंतरजाल पर उनके क़लाम सुने तो उर्दू जुबाँ पर उनकी पकड़ और मंच पे शेर पढ़ने के सलीके ने इस क़दर प्रभावित किया कि लगा कि मेरी अगली पोस्ट तो सिर्फ उन पर लिखी जा सकती है खासकर तब जबकि अंतरजाल पर उनकी शायरी के बारे में ज्यादा कुछ लिखा नहीं गया है। ये शायर थे जनाब कुँवर मोहिंदर सिंह बेदी 'सहर' ।
बेदी साहब दिल्ली की प्रशासनिक सेवा में एक आला अफ़सर थे। सत्तर और अस्सी के दशक और उसके बाद भी मुशायरों के संचालन में वो सिद्धस्थ माने जाते थे। जगजीत सिंह ने अपने एलबमों में उनकी हल्की फुल्की पर असरदार ग़ज़लों का ही इस्तेमाल किया है। इन ग़ज़लों की भाषा बिल्कुल सहज है और आसानी से बिना किसी उर्दू ज्ञान के समझ आती है। यही कारण है अस्सी के दशक जब तेरह चौदह साल का रहा हूँगा तो पहली बार उनकी ये ग़ज़ल जगजीत चित्रा की प्यारी आवाज़ में सुनी थी । क्या संगीत क्या गायिकी सब कुछ मन में रच बस गया था।
आए हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग
दैर-ओ-हरम1 में चैन जो मिलता
क्यूं जाते मैखाने2 लोग
1. मंदिर मस्जिद, 2. शराबखाना
जान के सब कुछ कुछ भी ना जाने
हैं कितने अनजाने लोग
वक़्त पे काम नहीं आते हैं
ये जाने पहचाने लोग
अब जब मुझको होश नहीं है
आए हैं समझाने लोग
बेदी साहब की लिखी ग़ज़लों से दूसरी मुलाकात सन 2002 में तब हुई जब जगजीत जी ने उनकी लिखी ग़ज़लों को एलबम के तौर पर पेश कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने अपने इस एलबम का नाम 'Forget Me Not' रखा था। ये नाम बेदी जी की यादों से जुड़ा तो था ही पर साथ ही जगजीत जी ने इसे इसलिए भी चुना कि पहाड़ों पर इसी नाम का एक खूबसूरत फूल भी पाया जाता है। एलबम का मूड रोमांटिक था। एलबम की आठ ग़ज़लों में दो मुझे खास पसंद आई थीं। जगजीत की आवाज़ में जरूर सुना होगा इसे आपने
तुम हमारे नही तो क्या गम है
हम तुम्हारे तो हैं यह क्या कम है
मुस्कुरा दो ज़रा ख़ुदा के लिए,
शाम-ए-महफिल में रौशनी कम है,
पर रूमानियत का पूरा तड़का बेदी साहब की इस ग़ज़ल में उभर कर आया था। आप भी गौर फ़रमाइए ना लफ़्ज़ों की इस मुलायमियत पर
अभी वो कमसिन उभर रहा है, अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में ख़लिश है आधी, अभी है मुझ पर एतमाद1 आधा
मेरे सवाल-ए-वस्ल2 पर तुम नज़र झुका कर खड़े हुए हो
तुम्हीं बताओ ये बात क्या है, सवाल पूरा, जवाब आधा
कभी सितम है कभी करम है, कभी तवज़्जह3 कभी तगाफ़ुल4
ये साफ ज़ाहिर है मुझ पे अब तक, हुआ हूँ मैं कामयाब आधा
1. विश्वास, 2. मिलने की बात पर, 3.ध्यान देना , 4. उपेक्षा
पर जगजीत की इन रूमानी ग़ज़लों से दूर मुशायरों में बेदी साहब को जो रूप उभर कर सामने आता है वो सर्वथा अलग है। उनकी मुशायरों की रिकार्डिंग सुन कर आपको ऐसा लगेगा मानो मुगले आज़म में जनाब पृथ्वीराज कपूर को सुन रहे हों। गहरी आवाज़ के साथ उर्दू और फारसी जुबाँ का उनका उच्चारण मन को मोहता तो था ही, मंच पर उनका हास्य बोध देखते ही बनता था। अब उनकी इस ग़ज़ल को देखिए। जहाँ भी मुशायरों में वो इसका मकता पढ़ते , मंच और श्रोता में हँसी की लहर दौड़ जाती..
मोहब्बत अब रुह -ए-ख़मदार* भी है
ये एक चलती हुई तलवार भी है
*झुकी हुई
मोहब्बत एक ऐवान*-ए-तमन्ना
मगर गिरती हुई दीवार भी है
* भव्य इमारत
दीवाना इश्क़ किंच-ए-गराँ है
इसी से गर्मी-ए-बाज़ार भी है
अज़ब तुरफ़ा* तमाशा है'सहर' भी
वो शायर है मगर सरदार भी है
*विलक्षण
पर इस अज़ीम शायर का ये हास्य बोध मंच तक सीमित ना था। बेदी साहब ने मज़ाहिया शायरी भी लिखी हैं। कल ही हम सबने विश्व जनसंख्या दिवस मनाया। बढ़ती आबादी की इस समस्या पर बेदी साहब की कलम हल्के मूड में ही सही पर खूब चली है। मुझे यक़ीन है कि उनकी इस नज़्म को पढ़ कर आपके चेहरे पे एक मुस्कान जरूर खिल उठेगी और साथ ही साथ जो संदेश वो देना चाहते हैं वो भी आप तक पहुँचेगा...
ऐ नौजवान बज़ा कि जवानी का दौर है
रंगीन सुबह शाम सुहानी का दौर है
ये भी बज़ा कि प्रेम कहानी का दौर है
लेकिन रहे ये याद गरानी1 का दौर है
1.मँहगाई
जाँ का उबाल बशर्ते औलाद बन ना जाए
तादे शबाब आपकी बेज़ार1 बन ना जाए
वो जो अधेड़ उम्र हैं उनसे भी है ख़िताब2
बच्चे हैं एक दो तो ठहर जाइए ज़नाब
बेबा नहीं है आप को मसनूई3 आबो-ताब4
जब ढल चुका शबाब तो बेकार है खिज़ाब5
करते हैं आप पेश ये उलटी मिसाल क्यूँ
बासी कढ़ी को आया अब आख़िर उबाल क्यूँ
1.दुख, 2.संबोधन,3.बनावटी, 4. शान-ओ-शौकत 5. बालो को रँगना
ह्व्वा की बेटियाँ भी सुने मेरी बात को
मुमकिन नहीं कि पाल सकें पाँच सात को
जन्म भी लिए तो रोएँगे वो दाल भात को
तरक़ीब इस लिए सुनें जब भी रात को
देखे बुरी नज़र से मियाँ आपकी तरफ़
सो जाएँ आप फेर के मुँह दूसरी तरफ़
अच्छा है जो हो बीवी और शौहर में तालमेल
लेकिन ना इस क़दर कि हो बच्चों की रेलपेल
हर साल नौनिहाल की डालो ना दाग़ बेल
आख़िर अगर हो वक़्त तो खेलो कुछ और खेल
इस बात पर किया है कभी तुमने गौर भी
मर्दानगी दिखाने के मैदाँ हैं और भी
बेदी साहब ने इबादत और राजनीतिक मसलों को भी अपनी शायरी का विषय बनाया। वे मुशायरों में अक्सर 'नात' भी सुनाते थे।
लोग प्रश्न करते थे कि एक सरदार होकर भी ये पैगंबर मोहम्मद की इबादत में शायरी क्यूँ कर रहा है? बेदी साहब का जवाब होता।
इश्क़ हो जाए किसी से कोई चारा तो नहीं
सिर्फ मुस्लिम का मोहम्मद से इजारा* तो नहीं
*अधिकार
ज़ाहिर है गंगा जमुनी तहज़ीब में पले बढ़े बेदी साहब को हिंदुस्तान और पाकिस्तान के आपसी संबंधों की खटास का दुख हमेशा सालता रहा। दोनों देशों के लोगों के दिलों को जोड़ने के लिए उन्होंने एक लंबी नज़्म लिखी जो बेहद मशहूर हुई थी। पूरी नज़्म तो आप वीडिओ में देख सकते हैं।
पर इसकी कुछ पंक्तियाँ जो मुझे बेहद पसंद हैं आप तक पहुँचा रहा हूँ
जंग हम कहते हैं जिसको ये ख़ुदा की मार है
जंग करना हर तरह बेसूद है बेकार है
दोस्त दुश्मन सब से बेगाना बना देती है जंग
मुल्क है क्या चीज़ तहज़ीबें मिटा देती हैं जंग
जंग करना है करें हम मिल के बेकारी से जंग
झूठ से मकरुरिया से, चोरबाज़ारी से जंग
क़ैद से, सैलाब से, तूफाँ से, बीमारी से जंग
भूख से, .... से, ग़ुरबत1 से, नादारी2 से जंग
पूछना होगा ये मुझको हिंदो पाकिस्तान से
पेट भूखों का भरेंगे जंग के सामान से
1.पराधीनता,2.गरीबी,
आओ दिल से दूर कर दें हम शरार1-ए-इंतकाम
आओ फिर दुनिया को पहुँचा दें मोहब्बत का पयाम2
रह सके अमनों सुकूँ से शाद3 हो अपने अवाम4
ऐसे वीराने करम पहुँचे तुम्हे मेरा सलाम
हाल ओ मुस्तक़्बिल5 हो अपना ताबदार6 और तामनाक
हिन्द ओ पाइन्दाबाद है सरजमीने हिंदोपाक
1.चिंगारी, 2.संदेश,3.सुखी 4.आम जन, .5.भविष्य , 6. चमकदार
जगजीत सिंह साहब का अहसानमंद हूँ जिनकी वज़ह से कुँवर महेन्द्र सिंह बेदी की शायरी के ख़जाने तक पहुँच सका। आप में से बहुत लोग ऐसे होंगे जो बेदी साहब की शायरी को और करीब से जानते होंगे। आशा है आप उन्हें हम सब के साथ यहाँ साझा करेंगे।
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
12 टिप्पणियाँ:
VERY GOOD
बहुत शानदार...बेदी साहब की गजलें..क्या कहना..सुनकर आनन्द आ गया. बेहतरीन प्रस्तुति..आभार.
इस लाजवाब शक्शियत वाले शायर से मिलवाने का बहुत बहुत शुक्रिया...बेहतरीन पोस्ट है आपकी...
नीरज
लजाबाव जी मजा आ गया. धन्यवाद
"एह्सानमंदगी का ये सिलसिला जो है अजीब
तवज्जह न कभी तगाफुल होने पाए मनीष "
आभार के अतिरिक्त कुछ और कहना है, क्या कहना है...!!! क्या कहना है....!!! सच में जनाब बस इन्हीं शेरों और मतलों में डूबे रहना है
इतने महान शायर से मिलवाने के लिये आभार्।
बेहतरीन नज्म है ,,, जानदार :)
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पूछना होगा ये मुझको हिंदो पाकिस्तान से
पेट भूखों का भरेंगे जंग के सामान से...
धन्यवाद मनीष भाई , इस नज्म से परिचय कराने के लिये !
जगजीत साब की ग़ज़लों के बनाने महिंदर सिंह बेदी साहब को ट्रिब्यूट देती इस पोस्ट को एक ’जेम’ के कम नही कहा जा सकता है..बहुत पहले बेदी साब का एक शेर कही पढ़ा था जबसे उनका मुरीद बना.. कुछ ऐसे था
ज़िंदगी सोज बने साज न होने पाये
दिल तो टूटे मगर आवाज न होने पाये
यहाँ इतना कुछ बेदी साहब का साझा करने के लिये आपका आभार है!!
अपूर्व क्या लाजवाब शेर साझा किया आपने बेदी साहब का। पढ़कर मन खुश हो गया।
chaliye jagjeet ji ki mehfil mein hona bhi unforgetteable hai :)
'forget me not' सुना है पूरा का पूरा..कई-कई बार !
बेदी जी के बारे में इतना कुछ जानना उस अलबम को और प्यार से सुनने का शौकीन बनाता है !
इस बेहद मूल्यवान पोस्ट के लिए आभार !
बहुत अच्छा लगा बेदी साहब के बारे में जानकर आगे भी उम्मीद करते है की ऐसे ही एक और शख़्स से हमें रूबरू करवायें।
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