राहत फतेह अली खाँ मौसीकी की दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसे सुनकर ही मन इस सुकून से भर उठता है कि अब जो आवाज़ कानों में छलकेगी वो दिलो दिमाग को यकीनन 'राहत' पहुँचाएगी। हिंदी फिल्म पाप के अपने गाए गीत लगन लागी तुमसे मन की लगन से.. अपना बॉलीवुड़ का सफ़र शुरु करने वाले राहत हर साल कुछ चुनिंदा गाने गाते हैं पर कमाल की बात ये हैं कि उनमें से अधिकांश आम और खास दोनों तरह के संगीतप्रेमियों के दिल में समान असर डालते हैं।
इस साल भी उन्होंने कुछ कमाल के गीत गाए हैं और इस बात का सुबूत आप एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला 2010 में निश्चय ही पाएँगे। पर इस ब्लॉग पर होने वाले सालाना वार्षिक संगीतमाला का जलसे में तो अभी भी करीब ढाई महिने का समय बाकी है।
राहत साहब का नाम अक्सर उनके चाचा नुसरत फतेह अली खाँ के साथ लिया जाता है। कव्वालियों के बेताज बादशाह नुसरत की सांगीतिक विरासत को राहत ने आगे बढ़ाने की कोशिश की है। पर उनके साथ अपनी किसी तरह की तुलना को वो बेमानी बताते हैं। राहत एक ऍसे परिवार में पैदा हुए जहाँ सिर्फ संगीत की तालीम को असली पढ़ाई माना जाता था। सात साल की आयु से ही उन्हें संगीत की शिक्षा दी जाने लगी थी। और तो और क्या आप मानेंगे की नौ साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने अपना पहला स्टेज शो दे दिया था।
संगीत के प्रति उनका ये समर्पण उनकी गायिकी में झलकता है। वे कोई गीत तभी गाते हैं जब उसके बोल उन्हें पसंद आते है् अन्यथा वो गीत गाने से ही मना कर देते हैं। किसी गीत के बोल उसकी आत्मा होते हैं। शायद यही वज़ह है कि गाते वक़्त अपने को गीत की भावनाओं से इस क़दर जुड़ा पाते हैं मानो गीतकार की कही हुई बातें उन पर खुद ही बीत रही हैं।
चलिए आज आपको राहत साहब का वो गाना सुनवाते हैं जो उन्होंने वर्ष 2008 में सलीम सुलेमान के संगीतनिर्देशन में फिल्म 'आजा नच ले' के लिए गाया था। इस गीत के बोल लिखे थे जयदीप साहनी ने। जयदीप के इस गीत में अपने पिया के लिए एक विकल पुकार है। पूरे गीत के बोलों में जगह जगह हाए शब्द का प्रयोग हुआ है। राहत जितनी बार 'हाए' कहते हैं हर बार उसका लहज़ा और उस से जुड़ी तड़प रह रह कर उभरती है।
ओ रे पिया हाए..हाए..हाए
उड़ने लगा क्यूँ मन बावला रे
आया कहाँ से ये हौसला रे
ओ रे पिया हाए
वैसे भी जब हवा की छूती सरसराहट, बारिश की मचलती बूँदें सब मिलकर उनकी ही याद दिलाएँ तो फिर मन को मसोस कर कहाँ तक रखा जा सकता है...
तानाबाना तानाबाना बुनती हवा हाए..
बुनती हवा
बूँदें भी तो आए नहीं, बाज यहाँ हाए..
साजिश में शामिल सारा ज़हाँ है
हर ज़र्रे ज़र्रे की ये इल्तिज़ा है
ओ रे पिया, ओ रे पिया हाए
ओ रे पिया
राहत की गायिकी का सबसे सुखद पहलू है, उनका अपनी गायिकी में शास्त्रीय संगीत की सीखी हुई विधा का अद्भुत प्रयोग। उनके लगभग हर गीत में एक सरगम सुनने को आपको मिलेगी जिसका टेम्पो सरगम के साथ बढ़ता चला जाता है। गीत के साथ जब अंतरे के बाद इस सरगम को सुनते हैं तो गीत प्रेम की भावनाओं से भी कहीं आगे आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाता है। राहत की गायिकी का ये पहलू उन्हें दूसरे गायकों से अलग कर देता है।
नि रे, रे रे गा
गा गा मा
मा मा पा
पा मा गा रे सा
सा रे रे सा
गा गा रे
मा मा गा
पा पा मा
धा धा पा
नि नि सा सा सा
पा सा मा पा धा नि सा नि
रे नि सा सा सा....
नज़रें बोलें दुनिया बोले
दिल कि ज़बाँ हाए दिल कि ज़बाँ
इश्क़ माँगे इश्क़ चाहे कोई तूफाँ
हाए चलना आहिस्ते इश्क नया है
पहला ये वादा हमने किया है
ओ रे पिया हाए ..
नंगे पैरों पे अंगारो
चलती रही हाए चलती रही
लगता है कि गैरों में
मैं पलती रही हाए
ले चल वहाँ जो
मुल्क तेरा है
ज़ाहिल ज़माना
दुश्मन मेरा है
ओ रे पिया हाए ..
राहत को 'लाइव' इस गीत को गाते देखना चाहेंगे....
एक शाम मेरे नाम पर राहत फतेह अली खाँ
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
-
आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
6 माह पहले
10 टिप्पणियाँ:
शानदार प्रस्तुति। धन्यवाद।
unka naam swayam hi unke sangeet ki vyakhya k liye kafi hai.........
बहुत सुंदर जी धन्यवाद
sach kahaa manish tumne......gazab hain....raahat ji..........
bahut sundar
bahut achha laga aapke blog pe aakar...
रहत साहब के विषय में आपने जो कुछ भी कहा शब्दशः मेरे मन में भी यही भाव हैं....
इनकी भोली सरल और और सधी आवाज श्रोता को अगल ही दुनिया में ले जाती है...
प्रस्तुत गीत मेरा भी पसंदीदा है...
यहाँ तो बोनस में आपने और भी गीत दे दिए हैं...
बहुत बहुत आभार आपका...
यूँ सच कहूँ तो आपका ब्लॉग, आपकी हर पोस्ट ही रूहानी दुनियां में ले जाया करती है..
पढ कर अच्छा लगा :-)
और कल मैं जब अपने कुछ डर को जीतने के लिए निकली थी तो राहत इस गीत के साथ राहत पहुंचा रहे थे!
राहत जी बहुत पसंदीदा गायक हो चुके हैं अब मेरे। अभी किसी सीडी में नुसरत फतेह जी के साथ छोटे से राहत को सुर मिलाते देख रही थी।
और इस गीत का आखिरी अंतरा विशेष पसंद है मुझे।
धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें