पंजाबी लोकगीतों का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है। बुल्लेशाह का सूफी गीत हो या हीर और सोहणी महीवाल के प्रेम या विरह में डूबे गीत, सब अपना जादू जगाते रहे हैं। आज आपके सामने पंजाब की एक ऐसे ही एक लोकगीत श्रेणी से परिचय कराने जा रहा हूँ जिसे 'जुगनी' के नाम से जाना जाता है। बरसात की अंधकारमयी रातों में चमकते जुगनू तो हम सब ने देखे हैं। पर जुगनू की भार्या इस जुगनी को देखने या पहचानने का हुनर तो शायद ही हम में से किसी के पास होगा।
पंजाबी लोकगीतों में यही जुगनी एक मासूम पर्यवेक्षक का काम करती है। इन गीतों में जुगनी के इस बिंब से हँसी ठिठोला भी होता है .कटाक्ष भी होते हैं, तो कभी आस पास के परिवेश का दुख इसके मुँह से फूट पड़ता है। पर जुगनी से जुड़े अधिकांश गीत मूलतः एक अध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाते हैं। ये सोच कभी अपने आस पास के संसार को समझने की होती है तो कभी मानव से भगवान के रिश्ता को टटोलने की क़वायद।
वैसे क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि जुगनी लोकगीत कैसे रचती है? अब जुगनी का क्या है उड़ कर गली मोहल्ले, स्कूल या बाजार कहीं भी पहुँच सकती है और इन जगहों पर वो जो देखती है उसे ही तीन या चार अंतरों में कह देती है। ठेठ पंजाबी शैली में गाए इन गीतों को आम जन बड़ी आसानी से अपनी ज़िंदगी से जोड़ लेते हैं।
जुगनी से जुड़े लोकगीतों को अपनी गायिकी से सरहद के दोनों ओर के कलाकार लोगों तक पहुँचाते रहे हैं। कुछ साल पहले रब्बी शेरगिल का ऐसा ही एक गीत बेहद चर्चित रहा था। रब्बी के आलावा गुरुदास मान और आशा सिंह मस्ताना ने भी श्रोताओं को कई जुगनी गीत दिए हैं।
सरहद पार यानि अगर पाकिस्तान की बात की जाए तो जुगनी ही क्या पंजाबी लोकगीतों की हर विधा को पूरे मुल्क में मशहूर करने में सबसे पहला नाम आलम लोहार का आता है। आलम लोहार ने साठ और सत्तर के दशक में जुगनी गीतों की एक अलग पहचान बना दी। आलम जब जुगनी गाते थे तो एक अद्भुत वाद्य यंत्र उनके हाथों में रहता था। ये वाद्य यंत्र था चिमटा,! जी हाँ आलम लोहार ने ही इन गीतों के साथ साथ चिमटे के टकराने से निकलने वाली ध्वनि का बीट्स की तरह इस्तेमाल किया। फ्यूजन के इस युग में भी उनके पुत्र आरिफ़ लोहार अपने पिता द्वारा शुरु की गई इस गौरवशाली परंपरा का वहन कर रहे हैं। हाँ लोहे के उस पुराने चिमटे के स्वरूप में जरूर थोड़ा बदलाव हुआ है।
पिछले हफ्ते ही मुझे आरिफ़ लोहार का गाया एक जुगनी लोकगीत सुनने को मिला। ये लोकगीत उन्होंने इस साल पाकिस्तान में कोक स्टूडिओ ( Coke Studio ) के तीसरे सत्र के दौरान गया था। अगर आप ये सोच रहे हों कि ये कोक स्टूडिओ क्या बला है तो ये बताना मुनासिब रहेगा कि कोक स्टूडिओ पाकिस्तान में कोला कंपनी कोक की सहायता से स्थापित किया गया एक सांगीतिक मंच है जो देश के विभिन्न हिस्सों में पनपते परंपरागत संगीत को बढ़ावा देता है। इस मंच पर देश के नामी व नवोदित गायक लाइव रिकार्डिंग के तहत अपनी प्रतिभा को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
पहली बार इस जुगनी को सुनते ही आरिफ़ लोहार की गायिकी का मैं शैदाई हो गया। गीत की भावनाओं के अनुरूप ही उनके चेहरे के भाव बदलते हैं। आरिफ लोहार का शब्दों का उच्चारण इतना स्पष्ट है कि गीत को कोई शब्द आपके ज़ेहन से भटकने की जुर्रत नहीं कर पाता। गीत में वो तो डूबते ही हैं सुनने वालों को भी अपने साथ बहा ले जाते हैं। लोहार की बेमिसाल गायिकी के साथ साथ फ्यूजन और कोरस का जिस तरह से इस गीत में प्रयोग हुआ है कि सुनने के साथ हाथ पाँव थिरकने लगते हैं। इस गीत में उनका साथ दिया पाकिस्तान की युवा मॉडल और अब गायिका मीशा शफ़ी ने। जिस तरह हम माता शेरोवाली के भजन गाते समय माता की जयजयकार करते हैं उसी तरह मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि चाहे आपको पंजाबी आती हो या नहीं गीत को सुनने के साथ साथ आप कोरस में उठ रहे जुगनी जी के सुर में सुर मिलाना अवश्य चाहेंगे।
पर इस गीत का पूर्ण आनंद उठाने के लिए पहले ये जानते हैं कि इस गीत में आख़िर जुगनी ने कहना क्या चाहा है ....
अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी.
ते मेरे मुर्शिद मन विच लाइ हू
हो नफी उस बात दा पाणी दे के
हर रगे हरजाई हू
हो जुग जुग जीवे मेरा मुर्शिद सोणा
हत्ते जिस ऐ बूटी लाइ हो
मेरे साई ने मेरे हृदय में प्रेम का पुष्प अंकुरित किया है। साई की भक्ति से मेरे आचरण में जो विनम्रता और दया आई है उससे मन का ये फूल और खिल उठा है। मेरा साई, मेरी हर साँस, हर धड़कन में विद्यमान है। मुझमें प्राण भरने वाले साई तुम युगों युगों तक यूँ ही बने रहो।
पीर मेरिआ जुगनी जी
ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी,ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी
ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी, ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी
ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी,ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी, ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी
ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी, ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ
पढ़े साईं ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया
मेरे साथ मेरा मार्गदर्शक है मेरा संत है , मेरी आत्मा, भगवन और उनके दूतों के विचारों से पवित्र है। भगवन जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ मेरा हृदय एक आनंद से धड़कने लगता है। उल्लास के इन क्षणों में मैं ख़ुद ब ख़ुद तेरे नाम का मैं कलमा पढ़ने लगता हूँ।
जुगनी तार खाईं विच थाल
छड्ड दुनिया दे जंजाल
कुछ नी निभणा बंदया नाल
राक्खी सबद सिध अमाल
ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी
मेरे साई कहते हैं कि तुम्हारे पास जो भी है उसे बाँटना सीखो। मोह माया जैसे दुनिया के जंजालों से दूर रहो। जीवन में ऍसा कुछ भी ऍसा नहीं है जो तुम्हें दूसरों से मिलेगा और जिसे तुम मृत्यु के बाद तुम अपने साथ ले जा सकोगे। इसलिए ऐ अल्लाह के बंदे अपने कर्मों और भावनाओं की पवित्रता बनाए रखो।
जुगनी दिग पई विच रोई
ओथ्थे रो रो कमली होई
ओद्दी वाथ नइ लैंदा कोई
ते कलमे बिना नइ मिलदी तोई
ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ
अब इस जुगनी को ही देखो। लोभ मोह के जाल से ऐसी आसक्त हुई कि पाप की गहराइयों में जा फँसी। अब लगातार रोए जा रही है। पर अब उसे पूछनेवाला कोई नहीं है। इस बात को गाँठ बाँध कर सुन लो बिना सृष्टिकर्ता का ध्यान किए तुम्हें कभी शांति या मोक्ष नहीं मिल सकता।
हो वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
हो ना कर तीया खैड़ पियारी
माँ दैंदियाँ गालड़ियाँ
दिन दिन ढली जवानी जाँदी
जूँ सोना पुठिया लरियाँ
औरत मरद शहजादे सोणे
ओ मोती ओ ला लड़ियाँ
सिर दा सरफाँ कर ना जैड़े
पीर प्रेम प्या लड़ियाँ
ओ दाता के दे दरबार चाखो
पावन खैड़ सवा लड़ियाँ
लड़कियों वो वाली चूड़ियाँ पहन लो जो तुम्हें साई के दरबार से मिली थीं। और हाँ अपने यौवन का इतना गुमान ना करना कि तुम्हें अपनी माताओं की डाँट फटकार सुनने को मिल जाए। जैसे जैसे दिन बीतते हैं ये यौवन और बाहरी सुंदरता और फीकी पड़ती जाती है। इस संसार में कोई वस्तु हमेशा के लिए नहीं है। इस सोने को ही लो कितना चमकता है पर एक बार भट्टी के अंदर जाते ही पिघलकर साँचे के रूप में अपने आप को गढ़ लेता है। सच बात तो ये है कि इस दुनिया के वे सारे मर्द और औरत उन माणिकों और मोतियों की तरह सुंदर हैं जो अपनों से ज्यादा दूसरों के लिए सोचते और त्याग करते हैं। ऐसे ही लोग सच्चे तौर पर पूरी मानवता से प्यार करते हैं। इसलिए सच्चे मन से साई का नमन करो वो तुम्हारी झोली खुशियों से भर देंगे।
हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ..करे साईं
पढ़े साई ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी....
एक शाम मेरे नाम पर लोकगीतों की बहार
पंजाबी लोकगीतों में यही जुगनी एक मासूम पर्यवेक्षक का काम करती है। इन गीतों में जुगनी के इस बिंब से हँसी ठिठोला भी होता है .कटाक्ष भी होते हैं, तो कभी आस पास के परिवेश का दुख इसके मुँह से फूट पड़ता है। पर जुगनी से जुड़े अधिकांश गीत मूलतः एक अध्यात्मिक सोच को आगे बढ़ाते हैं। ये सोच कभी अपने आस पास के संसार को समझने की होती है तो कभी मानव से भगवान के रिश्ता को टटोलने की क़वायद।
वैसे क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि जुगनी लोकगीत कैसे रचती है? अब जुगनी का क्या है उड़ कर गली मोहल्ले, स्कूल या बाजार कहीं भी पहुँच सकती है और इन जगहों पर वो जो देखती है उसे ही तीन या चार अंतरों में कह देती है। ठेठ पंजाबी शैली में गाए इन गीतों को आम जन बड़ी आसानी से अपनी ज़िंदगी से जोड़ लेते हैं।
जुगनी से जुड़े लोकगीतों को अपनी गायिकी से सरहद के दोनों ओर के कलाकार लोगों तक पहुँचाते रहे हैं। कुछ साल पहले रब्बी शेरगिल का ऐसा ही एक गीत बेहद चर्चित रहा था। रब्बी के आलावा गुरुदास मान और आशा सिंह मस्ताना ने भी श्रोताओं को कई जुगनी गीत दिए हैं।
सरहद पार यानि अगर पाकिस्तान की बात की जाए तो जुगनी ही क्या पंजाबी लोकगीतों की हर विधा को पूरे मुल्क में मशहूर करने में सबसे पहला नाम आलम लोहार का आता है। आलम लोहार ने साठ और सत्तर के दशक में जुगनी गीतों की एक अलग पहचान बना दी। आलम जब जुगनी गाते थे तो एक अद्भुत वाद्य यंत्र उनके हाथों में रहता था। ये वाद्य यंत्र था चिमटा,! जी हाँ आलम लोहार ने ही इन गीतों के साथ साथ चिमटे के टकराने से निकलने वाली ध्वनि का बीट्स की तरह इस्तेमाल किया। फ्यूजन के इस युग में भी उनके पुत्र आरिफ़ लोहार अपने पिता द्वारा शुरु की गई इस गौरवशाली परंपरा का वहन कर रहे हैं। हाँ लोहे के उस पुराने चिमटे के स्वरूप में जरूर थोड़ा बदलाव हुआ है।
पिछले हफ्ते ही मुझे आरिफ़ लोहार का गाया एक जुगनी लोकगीत सुनने को मिला। ये लोकगीत उन्होंने इस साल पाकिस्तान में कोक स्टूडिओ ( Coke Studio ) के तीसरे सत्र के दौरान गया था। अगर आप ये सोच रहे हों कि ये कोक स्टूडिओ क्या बला है तो ये बताना मुनासिब रहेगा कि कोक स्टूडिओ पाकिस्तान में कोला कंपनी कोक की सहायता से स्थापित किया गया एक सांगीतिक मंच है जो देश के विभिन्न हिस्सों में पनपते परंपरागत संगीत को बढ़ावा देता है। इस मंच पर देश के नामी व नवोदित गायक लाइव रिकार्डिंग के तहत अपनी प्रतिभा को दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं।
पहली बार इस जुगनी को सुनते ही आरिफ़ लोहार की गायिकी का मैं शैदाई हो गया। गीत की भावनाओं के अनुरूप ही उनके चेहरे के भाव बदलते हैं। आरिफ लोहार का शब्दों का उच्चारण इतना स्पष्ट है कि गीत को कोई शब्द आपके ज़ेहन से भटकने की जुर्रत नहीं कर पाता। गीत में वो तो डूबते ही हैं सुनने वालों को भी अपने साथ बहा ले जाते हैं। लोहार की बेमिसाल गायिकी के साथ साथ फ्यूजन और कोरस का जिस तरह से इस गीत में प्रयोग हुआ है कि सुनने के साथ हाथ पाँव थिरकने लगते हैं। इस गीत में उनका साथ दिया पाकिस्तान की युवा मॉडल और अब गायिका मीशा शफ़ी ने। जिस तरह हम माता शेरोवाली के भजन गाते समय माता की जयजयकार करते हैं उसी तरह मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि चाहे आपको पंजाबी आती हो या नहीं गीत को सुनने के साथ साथ आप कोरस में उठ रहे जुगनी जी के सुर में सुर मिलाना अवश्य चाहेंगे।
पर इस गीत का पूर्ण आनंद उठाने के लिए पहले ये जानते हैं कि इस गीत में आख़िर जुगनी ने कहना क्या चाहा है ....
अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी.
ते मेरे मुर्शिद मन विच लाइ हू
हो नफी उस बात दा पाणी दे के
हर रगे हरजाई हू
हो जुग जुग जीवे मेरा मुर्शिद सोणा
हत्ते जिस ऐ बूटी लाइ हो
मेरे साई ने मेरे हृदय में प्रेम का पुष्प अंकुरित किया है। साई की भक्ति से मेरे आचरण में जो विनम्रता और दया आई है उससे मन का ये फूल और खिल उठा है। मेरा साई, मेरी हर साँस, हर धड़कन में विद्यमान है। मुझमें प्राण भरने वाले साई तुम युगों युगों तक यूँ ही बने रहो।
पीर मेरिआ जुगनी जी
ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी,ऐ वे अल्लाह वालियाँ दी जुगनी जी
ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी, ऐ वे नबी पाक दी जुगनी जी
ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी,ऐ वे मौला अली वाली जुगनी जी
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी, ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी
ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी, ऐ वे सारे सबद दी जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ
पढ़े साईं ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया
मेरे साथ मेरा मार्गदर्शक है मेरा संत है , मेरी आत्मा, भगवन और उनके दूतों के विचारों से पवित्र है। भगवन जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचता हूँ मेरा हृदय एक आनंद से धड़कने लगता है। उल्लास के इन क्षणों में मैं ख़ुद ब ख़ुद तेरे नाम का मैं कलमा पढ़ने लगता हूँ।
जुगनी तार खाईं विच थाल
छड्ड दुनिया दे जंजाल
कुछ नी निभणा बंदया नाल
राक्खी सबद सिध अमाल
ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी
मेरे साई कहते हैं कि तुम्हारे पास जो भी है उसे बाँटना सीखो। मोह माया जैसे दुनिया के जंजालों से दूर रहो। जीवन में ऍसा कुछ भी ऍसा नहीं है जो तुम्हें दूसरों से मिलेगा और जिसे तुम मृत्यु के बाद तुम अपने साथ ले जा सकोगे। इसलिए ऐ अल्लाह के बंदे अपने कर्मों और भावनाओं की पवित्रता बनाए रखो।
जुगनी दिग पई विच रोई
ओथ्थे रो रो कमली होई
ओद्दी वाथ नइ लैंदा कोई
ते कलमे बिना नइ मिलदी तोई
ऐ वे अल्लाह .... जुगनी जी
ओ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ....गुटकूँ गुटकूँ
अब इस जुगनी को ही देखो। लोभ मोह के जाल से ऐसी आसक्त हुई कि पाप की गहराइयों में जा फँसी। अब लगातार रोए जा रही है। पर अब उसे पूछनेवाला कोई नहीं है। इस बात को गाँठ बाँध कर सुन लो बिना सृष्टिकर्ता का ध्यान किए तुम्हें कभी शांति या मोक्ष नहीं मिल सकता।
हो वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
वंगा चढ़ा लो कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
हो ना कर तीया खैड़ पियारी
माँ दैंदियाँ गालड़ियाँ
दिन दिन ढली जवानी जाँदी
जूँ सोना पुठिया लरियाँ
औरत मरद शहजादे सोणे
ओ मोती ओ ला लड़ियाँ
सिर दा सरफाँ कर ना जैड़े
पीर प्रेम प्या लड़ियाँ
ओ दाता के दे दरबार चाखो
पावन खैड़ सवा लड़ियाँ
लड़कियों वो वाली चूड़ियाँ पहन लो जो तुम्हें साई के दरबार से मिली थीं। और हाँ अपने यौवन का इतना गुमान ना करना कि तुम्हें अपनी माताओं की डाँट फटकार सुनने को मिल जाए। जैसे जैसे दिन बीतते हैं ये यौवन और बाहरी सुंदरता और फीकी पड़ती जाती है। इस संसार में कोई वस्तु हमेशा के लिए नहीं है। इस सोने को ही लो कितना चमकता है पर एक बार भट्टी के अंदर जाते ही पिघलकर साँचे के रूप में अपने आप को गढ़ लेता है। सच बात तो ये है कि इस दुनिया के वे सारे मर्द और औरत उन माणिकों और मोतियों की तरह सुंदर हैं जो अपनों से ज्यादा दूसरों के लिए सोचते और त्याग करते हैं। ऐसे ही लोग सच्चे तौर पर पूरी मानवता से प्यार करते हैं। इसलिए सच्चे मन से साई का नमन करो वो तुम्हारी झोली खुशियों से भर देंगे।
हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
हो वंगा चढ़ा ला कुड़ियों
मेरे दाता दे दरबार धियाँ
दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ दम गुटकूँ..करे साईं
पढ़े साई ते कलमा नबी दा, पढ़े साई पीर मेरया
ऐ वे मेरे पीर दी जुगनी जी....
एक शाम मेरे नाम पर लोकगीतों की बहार
- उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से.....छठ लोकगीत, गायिका - अनुराधा पोडवाल
- अम्मा मेरे बाबा को भेजो री, कि सावन आया, गायिका - मालिनी अवस्थी
- कदि आ मिल साँवल यार वे, गायक - अली अब्बास
- छल्ला वश नहीं मेरे.... रब्बी शेरगिल, एलबम - अवेंगी जा नहीं
- दैया री दैया चढ़ गयो पापी बिछुआ, गायिका - कल्पना
- बुल्ला कि जाणां मैं कौन? .....*** गीत -बुल्ले शाह /रब्बी संगीत - रब्बी
- नन्ही नन्ही बुँदिया रे, सावन का मेरा झूलना, गायिका - मालिनी अवस्थी
- हाथ में मेंहदी मांग सिंदुरवा, बर्बाद कजरवा हो गइले, गायिका - कल्पना
- हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला, गायिका - कल्पना
10 टिप्पणियाँ:
ओह..... क्या सुनवा दी आपने मनीष जी..
झूमने को विवश कर दिया इसने...क्या पवित्र भाव हैं और क्या गायकी है....आत्मा तृप्त हो गयी...
आपका आभार किन शब्दों में अभिव्यक्त करूँ ,एकदम समझ नहीं पा रही...
यह विषय मेरे लिए बिलकुल कोरा था...कुछ नहीं जानती थी इसके विषय में...
कुछ गीतों में जुगनी शब्द का इस्तेमाल सुना था और इसने आकर्षित भी किया था,पर जिज्ञासा का समाधान आज तक न हुआ था...
आप जो इस प्रकार संगीत और इससे जुड़े तथ्य इस भांति सार्वजनिक कर रहे हैं, यह ब्लॉग जगत और संगीत प्रेमी पर उपकार है आपका......
आपके इस सद्प्रयास को नमन मेरा...
एक उम्दा पोस्ट।
loved the song .. thank you so much for the song and the information... keep posting such stuff and keep musically enlightening and enriching people like me! :)
क्या बात है ! डाउनलोड किया मैं मैंने आरिफ का जुगनी और बाकी गाने , पर अब भी रब्बी शेरगिल का जुगनी ही बेस्ट है ...
मनीष जी आपका ब्लॉग अद्भुत है , विविधता से भरपूर .. ह्रदय को छू जाता है आपका कथ्य .. कोटिशः धन्यवाद् ..
आप यकीन करेंगे? पिछले तीन दिनों से मैं सिर्फ और सिर्फ कोक स्टूडियो के बुल्ले शाह compositions सुन रही हूं। और सोच ही रही थी शब्दों के सही मायने कोई बता पाते। कुछ और गीत समझने में हमारी मदद कीजिए मनीष जी।
kal shaam sun rahaa tha , majaa aagayaa... shukriya :)
Bhai Manish, achhi mahfil jama rahe ...really a great effort...keep going man...
navdeep
अरे वाह तन मन आत्मा तृप्त हुई...क्या सुना दिया ये सुबह सुबह...पूरा दिन नशा रहेगा....भाई ये शृंखला कमाल की है...
यह सुनने से रह जाते मनीष जी यदि इस ब्लॊग के पाठक नहीं होते !
अद्बुत प्रस्तुति !
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