वार्षिक संगीतमाला 2010 में आप सबका स्वागत है। जैसा कि मैं पहले भी इस चिट्ठे पर कह चुका हूँ कि वार्षिक संगीतमालाएँ मेरे लिए नए संगीत में जो कुछ भी अच्छा हो रहा है उसको आप तक संजों लाने की कोशिश मात्र है। बचपन से रेडिओ सीलोन की अमीन सयानी की बिनाका और फिर विविधभारती पर नाम बदल कर आने वाली सिबाका गीतमाला सुनता रहा। उसका असर इतना था कि जब 2005 के आरंभ में अपने रोमन हिंदी ब्लॉग की शुरुआत की तो मन में एक ख्वाहिश थी कि अपने ब्लॉग पर अपनी पसंद के गीतों को पेश करूँ।
तो आइए एक नज़र डालें पिछली तीन साल की संगीतमालाओं की तरफ। मैंने अपनी पहली संगीतमाला की शुरुआत 2004 के दस बेहतरीन गानों से की जिसे 2005 में 25 गानों तक कर दिया। 2006 में जब खालिस हिंदी ब्लागिंग में उतरा तो ये सिलसिला इस ब्लॉग पर भी चालू किया जो कि आज अपने पाँचवे साल में है।
वार्षिक संगीतमाला 2004 में मेरी गीतमाला के सरताज गीत का सेहरा मिला था फिर मिलेंगे में प्रसून जोशी के लिखे और शंकर अहसान लॉए के संगीतबद्ध गीत "खुल के मुस्कुरा ले तू" को जबकि दूसरे स्थान पर भी इसी फिल्म का गीत रहा था कुछ खशबुएँ यादों के जंगल से बह चलीं। ये वही साल था जब कल हो ना हो, रोग, हम तुम, मीनाक्षी और पाप जैसी फिल्मों से कुछ अच्छे गीत सुनने को मिले थे।
वार्षिक संगीतमाला 2005 में बाजी मारी स्वानंद किरकिरे और शान्तनु मोइत्रा की जोड़ी ने जब परिणिता फिल्म का गीत 'रात हमारी तो चाँद की सहेली' है और हजारों ख्वाहिशें ऍसी के गीत 'बावरा मन देखने चला एक सपना' क्रमशः प्रथम और द्वितीय स्थान पर रहे थे।
वार्षिक संगीतमाला 2006 में ओंकारा और गुरु के गीत छाए रहे पर बाजी मारी 'उमराव जान' के संवेदनशील गीत 'अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो' ने। इस गीत
और दूसरे नंबर के गीत 'मितवा ' को लिखा था जावेद अख्तर साहब ने
और दूसरे नंबर के गीत 'मितवा ' को लिखा था जावेद अख्तर साहब ने
वार्षिक संगीतमाला 2007 में एक बार फिर प्रसून जोशी के लिखे और शंकर अहसान लॉए के संगीतबद्ध, 'तारे जमीं पर' के गीतों के बीच ही प्रथम और द्वितीय स्थानों की जद्दोजहद होती रही। पर माँ...जैसे नग्मे की बराबरी भला कौन गीत कर सकता था
वार्षिक संगीतमाला 2008 में सरताज गीत का का सेहरा बँधा युवा संगीतकार अमित त्रिवेदी के सर पर। सरताज गीत था शिल्पा राव के गाए और अमिताभ द्वारा लिखे इस बेहद संवेदनशील नग्मे के बोल थे इक लौ इस तरह क्यूँ बुझी मेरे मौला !.
बतौर संगीतकार ए आर रहमान ने 2008 की संगीतमाला पर अपनी बादशाहत कायम रखी थी। जोधा अकबर, युवराज, जाने तू या जाने ना, गज़नी की बदौलत उस साल की संगीतमाला में उनके गीत दस बार बजे। रहमान के आलावा 2008 के अन्य सफल संगीतकारों में विशाल शेखर, सलीम सुलेमान और अमित त्रिवेदी का नाम लिया जा सकता है। उसी साल संगीतमाला में अमिताभ वर्मा, जयदीप साहनी, अशोक मिश्रा, इरफ़ान सिद्दकी, मयूर सूरी, कौसर मुनीर,अब्बास टॉयरवाला और अन्विता दत्त गुप्तन जैसे नए गीतकारों ने पहली बार अपनी जगह बनाई। वहीं गायक गायिकाओं में विजय प्रकाश, जावेद अली, राशिद अली, श्रीनिवास और शिल्पा राव जैसे नामों ने पहली बार संगीत प्रेमी जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।
पर साल 2009 किसी एक संगीतकार का नहीं बल्कि मिश्रित सफलता का साल रहा। रहमान, विशाल भारद्वाज, शांतनु मोइत्रा जैसे संगीतकार जो साल में चुनिंदा फिल्में करते हैं, का काम भी बेहतरीन रहा। इसलिए लोकप्रियता में दिल्ली ६ , कमीने और थ्री इडियट्स भी पीछे नहीं रहे। अमित त्रिवेदी को देव डी और वेक अप सिड के लिए जहाँ शाबासी मिली वहीं सलीम सुलेमान द्वारा संगीत निर्देशित कुर्बान और रॉकेट सिंह जैसी फिल्में भी चर्चा में रहीं। वैसे जहाँ साल २००९ के गीतकारों की बात आती है तो पीयूष मिश्रा का नाम सबसे पहले आता है। ना केवल उन्होंने फिल्म गुलाल के गीतों को अपने बेहतरीन बोलों से सँवारा पर साथ ही गीतों में कुछ अभिनव प्रयोग करते हुए फिल्म संगीत के बोलों को एक नई दिशा दी।
अब ये स्पष्ट कर दूँ कि इस गीतमाला का पॉपुलरटी से कोई लेना देना नहीं है। गायिकी, संगीत , बोल और इनका सम्मिलित प्रभाव इन सभी आधारों को बराबर वज़न दे कर मैं अपनी पसंद के गीतों का क्रम तैयार करता हूँ। कई बार ये स्कोर्स लगभग बराबर होते हैं इसलिए गीतों को ऊपर नीचे करना बड़ा दुरुह होता है।
साल 2010 की संगीतमाला का स्वरूप क्या होगा इसका अंदाजा तो आप अगले साल जनवरी के पहले सप्ताह से लगा सकेंगे जब वार्षिक संगीतमाला की 25 वीं सीढ़ी से पहली सीढ़ी तक चढ़ने की उल्टी गिनती शुरु होगी। वैसे उसके पहले 31 दिसंबर को आना ना भूलिएगा क्यूँकि इस ब्लॉग पर वो शाम होगी साल के मस्ती भरे गीतों के साथ आपको झूमने झुमाने की ...
5 टिप्पणियाँ:
the countdown begins .....!!!
good, waise bhi maine apna iPod format kiya hai. to khaali pada hai :)
@ Abhishek : loz ye bhi khoob kaha tumne :)
बहुत दिनों से इंतज़ार था कि इस गीतमाला का!
आपने भले अमीन सयानी जी की आवाज़ में कहा नहीं ...
तो भाइयों और बहनों..दिल थाम के बैठ जाइए.....
हम दिल थाम के बैठे हैं श्रृंखला के लिए...
क्योंकि आप जो मोती निकालेंगे..नायाब होंगे..हमारे लिए भी संजोगने लायक होंगे...
सो बस शुरू कीजिये...
एक टिप्पणी भेजें