सा रे गा मा पा पर उभरती प्रतिभाओं के बारे में बात करते हुए पिछले हफ्ते आपसे बात हुई स्निति मिश्रा के बारे में। पर आज की ये प्रविष्टि है सुगंधा मिश्रा के बारे में। स्निति की तरह ही सुगंधा भी शास्त्रीय संगीत की उभरती हुई गायिका हैं। सा रे गा मा पा के इस साल के प्रतिभागियों में सुगंधा ही एक ऐसी प्रतिभागी हैं जो यहाँ आने के पहले ही टीवी के दर्शकों के बीच अपनी पहचान बना चुकी हैं। पर ये पहचान उन्हें अपनी गायिकी की वज़ह से नहीं बल्कि स्टार वन में आने वाले कार्यक्रम लॉफ्टर चैलेंज में मिमिकरी करने की वजह से मिली है।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी सुगंधा साल दर साल विभिन्न युवा महोत्सवों में शास्त्रीय गायन में ढेर सारे पुरस्कार बटोरने के साथ साथ वेस्टर्न सोलो श्रेणी में भी पुरस्कृत हो चुकी हैं। पर वो आज मेरी इस पोस्ट की केंद्र बिंदु में हैं तो अपने लाजवाब शास्त्रीय गायन की वज़ह से।
पच्चीस वर्षीय सुगंधा के पिता संतोष मिश्रा दूरदर्शन के जालंधर केंद्र में स्टेशन डॉयरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। बहुत छोटी उम्र से उन्होंने अपने दादा पंडित शंकर लाल मिश्रा से संगीत की शिक्षा लेनी शुरु की। सुगंधा का पूरा परिवार संगीत से जुड़ा है। चाचा अरुण मिश्रा सितार वादक हैं। दादा जी इंदौर के उस्ताद अमीर खाँ के शिष्य रहे है। उन्हें सुगंधा का मिमकरी करना और पाश्चात्य संगीत में दखल देना अच्छा नहीं लगता। पर सुगंधा शास्त्रीय संगीत को अपनाते हुए इन विधाओं में भी अपने हुनर को बिखेरते रहना चाहती हैं। आज के युवाओं की तरह सुगंधा के लिए भी शोहरत और पैसे की अहमियत है और वो मात्र शास्त्रीय संगीत का दामन पकड़ कर गुमनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती। मेरे ख्याल से इस तरह की सोच में कोई बुराई नहीं बशर्ते ये उनकी शास्त्रीय गायन की प्रतिभा को प्रभावित नहीं करे।
सुगंधा की मिमकरी के साथ गाने की कई झलकें मैं पहले भी देख चुका था। पर वो शास्त्रीय संगीत में इतनी प्रवीण है इसका अंदाज़ा मुझे पहली बार तब हुआ जब उन्होंने सा रे गा मा के आडिशन में एक पंजाबी टप्पा गा कर सुनाया। टप्पे के बोल थे यार दी मैनूँ तलब...। टप्पे के उस टुकड़े को सुन कर मुझे जिस आनंद की अनुभूति हुई उसका वर्णन करना मुश्किल है। बस इतना ही कहूँगा की आज भी मैं उस छोटी सी रिकार्डिंग को बार बार बार रिवाइंड कर सुनता रहता है और मन में एक गहन शान्ति का अहसास तारी होता रहता है।
वैसे पूरे टप्पे को ग्वालियर घराने के नामी शास्त्रीय गायक लक्ष्मण कृष्णराव पंडित ने गाया है। शास्त्रीय संगीत के समीक्षक मानते हैं कि टप्पा गाना कठिन भी है और द्रुत गति से गाने के लिए इसमें काफी उर्जा भी लगानी पड़ती है पर सुगंधा ने जब इसे सुनाया तो ऐसा लगा कि उनके लिए तो ये बड़ा ही सहज था।
सा रे गा मा में सुगंधा का सफर मिश्रित रहा है। उन्होंने पूरे कार्यक्रम में अलग अलग कलाकारों के गाए गीतों को अपनी आवाज़ दी है। कुछ को उन्होंने बड़ी बखूबी निभाया तो कुछ में उनका प्रदर्शन खास नहीं रहा। पर जब जब उन्होंने शास्त्रीय संगीत पर आधारित गीतों को चुना है तब तब सुनने वालों को उनकी सबसे सशक्त प्रस्तुति देखने को मिली है। मिसाल के तौर पर दिल्ली 6 के गीत भोर भई तोरी बाट तकत पिया जो राग गुजरी तोड़ी पर आधारित है को सुगंधा ने बड़ी मेहनत से निभाया। तो आइए एक बार फिर सुनें सुगंधा को
सुगंधा मिश्रा फिलहाल सा रे गा मा पा के अंतिम पाँच में हैं। वो प्रतियोगिता में अंत तक रहेंगी या नहीं, ये तो वक़्त ही बताएगा। हाँ इतना तो तय है कि अपनी बहुआयामी प्रतिभा को सँजोते हुए अगर वो शास्त्रीय गायिकी में अपनी निष्ठा और लगन को बनाए रखने में सफल हो पाती हैं तो अवश्य सफलता के उस मुकाम तक पहुँचेगी जिसकी उनको तलाश है।
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6 माह पहले
10 टिप्पणियाँ:
सुगन्धा मेरी मन पसंद प्रतिभागी हैं। बहुत सुरीली आवाज़ है। अच्छी लगी उस की गायकी। बधाई।उसकी सफलता की कामना करती हूँ।
बहुत खूब!
सुगंधा, रंजीत और स्निती मेरे भी फेवरेट हैं। मैं तो जब सुगंधा को लाआफ्टर चैलेंज में देखता था तभी लगता था कि हो ना यो यह लड़की शास्त्रीय गायिका होनी चाहिये।
इस लेख में आपसे एक छोटी सी भूल हुई है, दिल्ली ६ का वह गाना ए आर रहमान का संगीतबद्ध नहीं है, यह गाना बड़े उस्ताद गुलाम अली खाँ साहब का है। दिल्ली ६ में तो बस श्रेया घोषाल के साथ खां साहब की उस रिकारिडंग को मिक्सिंग किया गया है।
आप गुलाम अली खाँ साहब की आवाज में गीत यहाँ सुन सकते हैं।
शुक्रिया सागर साहब इस जानकारी के लिए।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!!
टप्पे को सुन कर हम भी टप्पन (उछलने)लग पड़े...सुगंध ने कमाल का गाया है...वाह...बार बार सुनने को जी करता है...ये गायिका बहुत आगे जायेगी...हमारी शुभकामनाएं...
नीरज
सुगंधा के परिवार को हम बरसों से जानते हैं मेरी मौसी लगभग चालीस साल पहले मिश्रा जी से संगीत सीखा करती थीं, तब हम मैं जालंधर में उनके यहाँ रहा करता था और मिश्रा जी से अक्सर भेंट होती रहती थी...मिश्रा जी तब जालंधर में ही नहीं सारे भारत में अपने गायन के कारण प्रसिद्द थे...उस परिवार की बेटी सुगंधा अच्छा नहीं गायेगी तो कौन गायेगा?
मन खुश कर दिया आपने...
बहुत बहुत आभार !!!!
manish ji,namashkar,pehle to bohot bohot dhanyawad apne in shabdo mein mera vivran kar mujhe izzat aur samman dene ke liye,jaan kar khushi hui ki abhi bhi hamare desh mein shastriya sangeet ke premi hain..main is dharohar ko bohot aage le kar jaana chahti hun usi ka pryas jaari hai,aur aap jaise kala premiyon ka protsahan milta rahe to is pryas ko bohot jald hi mukaam tak pohonchne mein kamyabi pa lungi..dhanyawad..sugandha mishra
सुगंधा, अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर। हम सब की दुआएँ आपके साथ हैं। मुझे विश्वास है कि अपनी लगन व प्रतिभा के बल पर उस मंजिल तक जरूर पहुँचेगी, जिसकी आप हक़दार हैं।
Sugandha,
you sing very good.
You are an excellent mimicker as well.
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