सच पूछिए तो 24 वीं पॉयदान पर एक बार फिर आयशा फिल्म के इस गीत ने दस्तक दी है तो वो अपनी इसी बेमिसाल धुन के लिए। दुख, तनाव और अवसाद के भावों को व्यक्त करते इस गीत के लिए इससे अच्छी धुन नहीं हो सकती थी। गीत की शुरुआत वॉयला के इस्तेमाल से शुरु होती है। वॉयला की टंकार को बाद बजते वॉयलिन की मधुरता मन मोह लेती है और नायिका की यादों के साथ दिल बहता सा प्रतीत होता है।

खोई खोई सी हूँ मैं
क्यूँ यह दिल का हाल है
धुँधले सारे ख्वाब है
उलझा हर ख़याल है
सारी कलियाँ मुरझा गयी
रंग उनके यादों में रह गए
सारे घरौंदे रेत के
लहरें आई, लहरों में बह गये
राह में कल कितने चराग थे
सामने कल फूलों के बाग़ थे
किस से कहूँ कौन है जो सुने
काँटे ही क्यूँ मैंने हैं चुने
सपने मेरे क्यूँ हैं खो गए
जागे है क्यूँ दिल में गम नए
सारी कलियाँ ....लहरों में बह गये
ना ना .......
क्या कहूँ क्यूँ ये दिल उदास है
अब कोई दूर है ना पास है
छू ले जो दिल वो बातें अब कहाँ
वो दिन कहाँ रातें अब कहाँ
जो बीता कल है अब ख़्वाब सा
अब दिल मेरा है बेताब सा
सारी कलियाँ .... लहरों में बह गये
पता नहीं आप इस गीत की धुन में कितना बहे। वैसे फिल्म में इस गीत को सोनम कपूर पर फिल्माया गया है..
9 टिप्पणियाँ:
geet achchha hai
हमें आयशा फिल्म का दूसरा गाना ज्यादा अच्छा लगता है वो है तुझे चांद की चूड़ी ....... आपके पास होतो अवश्य भेजना जी।
आपकी पारखी नजर...वाह !!!
पहली बार इसे ध्यान से सुना...वाकई बहुत ही मधुर धुन है...
हम्म्म्म.....! सुना...मेरी अटैन्डेन्स लगा लीजिये...!
जो नही सुने वो यही सुनना है ....आभार..
मेरे हिसाब से यह गीत "जावेद अख्तर" ने लिखा है... आयशा के सारे गीत उन्हीं के लिखे हुए हैं।
Vishva Deepak kya sanyog hai idhar aap ye comment kar rahe the aur theek usi waqt main apni post mein yahi baat edit kar raha tha :)
वही मैं सोच रहा था कि आपसे ऐसी गलती कैसे हो गई :) महफ़िल-ए-ग़ज़ल लिखते वक़्त कई सारी जानकारियाँ मैं आपके चिट्ठे से हीं हासिल करता हूँ और आप गलत लिख जाएँ.. असंभव है
खैर कोई नहीं... :)
नहीं तनहा कभी कभी कुछ असावधानी वश त्रुटि हो जाती है। आप जैसे सजग पाठक ध्यान दिलाते रहें ये जरूरी है।
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