कुछ धुनें ऐसी होती हैं जो एक बार सुन लेने के बाद वर्षों भुलाए नहीं भूलती। दो साल पहले की ही तो बात है अमित त्रिवेदी ने आमिर के लिए इक गीत संगीतबद्ध किया था इक लौ जिंदगी की बुझी मेरे मौला। इस गीत के मुखड़े के संगीत में बजते पियानो की एक एक टंकार दिल में हथौड़े लगने के जैसी टीस उत्पन्न करती थी। दो साल बाद अमित ने संगीत के उसी कमाल को दुहराया है । फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उनका साज पियानो की जगह वॉयला है जो कि वॉयलिन श्रेणी का ही एक वाद्य यंत्र है। वॉयलिन की तुलना में वॉएला आकार में बड़ा होता है और इसके तार वॉयलिन से अपेक्षाकृत लंबे होते हैं।
सच पूछिए तो 24 वीं पॉयदान पर एक बार फिर आयशा फिल्म के इस गीत ने दस्तक दी है तो वो अपनी इसी बेमिसाल धुन के लिए। दुख, तनाव और अवसाद के भावों को व्यक्त करते इस गीत के लिए इससे अच्छी धुन नहीं हो सकती थी। गीत की शुरुआत वॉयला के इस्तेमाल से शुरु होती है। वॉयला की टंकार को बाद बजते वॉयलिन की मधुरता मन मोह लेती है और नायिका की यादों के साथ दिल बहता सा प्रतीत होता है।
फिल्म आयशा के इस गीत को बड़ी मुलायमियत से गाया है अनुषा मणि ने। अनुषा मुंबई से ताल्लुक रखती हैं और गायिका के रूप में फिल्मों में आने के पहले वो गुजराती नाटकों में गाया करती थीं। संगीतकार अमित त्रिवेदी के साथ उन्होंने एक एलबम रिकार्ड किया जो कभी प्रदर्शित नहीं हो पाया। पर उस एलबम का एक गीत दिल में जागे अरमां ऐसे देव डी में अमित त्रिवेदी ने इस्तेमाल किया। अनुषा की आवाज़ को शंकर अहसॉन लॉए भी अपनी फिल्मों में इस्तेमाल कर चुके हैं हैं। उनकी काबिलियत का अंदाजा लगा पाने के लिए उनके कुछ और गीतों के आने की प्रतीक्षा रहेगी। जावेद अख्तर ने इस गीत की भावनाओं के अनुरूप शब्द देने की कोशिश की है पर मुझे लगा कि वो इससे और बेहतर प्रयास कर सकते थे। फिलहाल तो सुनिए इस गीत को
खोई खोई सी हूँ मैं
क्यूँ यह दिल का हाल है
धुँधले सारे ख्वाब है
उलझा हर ख़याल है
सारी कलियाँ मुरझा गयी
रंग उनके यादों में रह गए
सारे घरौंदे रेत के
लहरें आई, लहरों में बह गये
राह में कल कितने चराग थे
सामने कल फूलों के बाग़ थे
किस से कहूँ कौन है जो सुने
काँटे ही क्यूँ मैंने हैं चुने
सपने मेरे क्यूँ हैं खो गए
जागे है क्यूँ दिल में गम नए
सारी कलियाँ ....लहरों में बह गये
ना ना .......
क्या कहूँ क्यूँ ये दिल उदास है
अब कोई दूर है ना पास है
छू ले जो दिल वो बातें अब कहाँ
वो दिन कहाँ रातें अब कहाँ
जो बीता कल है अब ख़्वाब सा
अब दिल मेरा है बेताब सा
सारी कलियाँ .... लहरों में बह गये
पता नहीं आप इस गीत की धुन में कितना बहे। वैसे फिल्म में इस गीत को सोनम कपूर पर फिल्माया गया है..
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6 माह पहले
9 टिप्पणियाँ:
geet achchha hai
हमें आयशा फिल्म का दूसरा गाना ज्यादा अच्छा लगता है वो है तुझे चांद की चूड़ी ....... आपके पास होतो अवश्य भेजना जी।
आपकी पारखी नजर...वाह !!!
पहली बार इसे ध्यान से सुना...वाकई बहुत ही मधुर धुन है...
हम्म्म्म.....! सुना...मेरी अटैन्डेन्स लगा लीजिये...!
जो नही सुने वो यही सुनना है ....आभार..
मेरे हिसाब से यह गीत "जावेद अख्तर" ने लिखा है... आयशा के सारे गीत उन्हीं के लिखे हुए हैं।
Vishva Deepak kya sanyog hai idhar aap ye comment kar rahe the aur theek usi waqt main apni post mein yahi baat edit kar raha tha :)
वही मैं सोच रहा था कि आपसे ऐसी गलती कैसे हो गई :) महफ़िल-ए-ग़ज़ल लिखते वक़्त कई सारी जानकारियाँ मैं आपके चिट्ठे से हीं हासिल करता हूँ और आप गलत लिख जाएँ.. असंभव है
खैर कोई नहीं... :)
नहीं तनहा कभी कभी कुछ असावधानी वश त्रुटि हो जाती है। आप जैसे सजग पाठक ध्यान दिलाते रहें ये जरूरी है।
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