वेलेंटाइन डे के मौके पर 'एक शाम मेरे नाम' के स्नेही पाठकों को प्यार भरी शुभकामनाएँ। इस अवसर पर आपके लिए तोहफे के रूप में पेश है वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पॉयदान पर प्रेम की सोंधी सोंधी खुशबू फैलाता हुआ ये प्यारा सा नग्मा। इस नग्मे को आप में से ज्यादातर ने नहीं सुना होगा क्यूँकि जिस फिल्म में ये नग्मा था वो मुख्यतः म्ल्टीप्लेक्सों की शोभा कुछ दिन बढ़ाकर चलती बनी। ये फिल्म थी 'स्ट्राइकर'। अब इस स्ट्राइकर से इसे कोई मार धाड़ वाली फिल्म ना मान लीजिएगा। ये स्ट्राइकर कैरमबोर्ड वाला है और फिल्म भी कैरम खेलने वाले एक खिलाड़ी की कहानी कहती है।
ये बात ध्यान देने की है कि लीक से हटकर फिल्में बनाने वाले निर्देशक आजकल संगीत में जिस विविधता और प्रयोग की छूट अपने संगीतकारों को देते हैं वो मुख्यधारा के नामी निर्माता निर्देशकों से देखने को नहीं मिलती। अब Striker को ही लें। निर्देशक चंदन अरोड़ा ने फिल्म के आठ गीतों के लिए छः अलग अलग संगीतकारों का चुना। इनमें विशाल भारद्वाज और स्वानंद किरकिरे के संगीतबद्ध गीत भी थे। पर इन गीतों में जो गीत संगीतमाला में जगह बना पाया है वो है एक नई मराठी गीत संगीतकार जोड़ी का। इस गीत के संगीतकार हैं शैलेंद्र बार्वे और गीतकार हैं जीतेंद्र जोशी।
जीतेंद्र जोशी एक बहुमुखी प्रतिभा वाले कलाकार है। मराठी फिल्मों, नाटकों और सीरियलों में बतौर अभिनेता का काम करते हैं और कविताएँ लिखने का शौक भी रखते हैं। पुणे से अपनी आंरंभिक और कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले जीतेंद्र गुलज़ार और विशाल भारद्वाज के बड़े प्रशंसक हैं। ये गीत देखकर उन दिनों की याद दिला देते है जब प्यार संवाद से नहीं पर मूक भावनाओं, आँखों के इशारे और छत पर पत्थर से बाँध के फेंके गए ख़तों से आगे बढ़ता था।
जोशी और बार्वे को भी फिल्म में एक ऍसी परिस्थिति दी गई जहाँ नायक अपने ठीक सामने के घर में रहने वाली एल लड़की के मोहजाल में इस क़दर डूब जाता है कि दिन रात उसकी हर इक गतिविधि का साझीदार हो जाता है। ये तो आप भी मानेंगे कि जब प्रेम संवादविहीन होता है तो उसकी गहराई दिन दूनी रात चौगुनी कुलाँचे भरने लगती है। आप किसी के बारे में सोचना शुरु करते हैं, दिन रात सोचते हैं तो आपकी कल्पनाओं के पंख लग जाते हैं। अपने प्रेमी का हर कृत्य आपको इस अवस्था में अद्बुत सा नज़र आता है। जोशी नायक के मन में चल रही कल्पनाओं की उड़ान को अपने लफ़्जों में इस तरह बुनते हैं कि मन का हर कोना रूमानियत के रंगों से भींग जाता है।
शैलेंद्र बार्वे ने इस गीत में प्रेम के सच्चे और भोले स्वरूप को जाग्रृत करने के लिए सूफ़ी संगीत का रंग देने का प्रयास किया है। हिंदुस्तानी वाद्य यंत्र और ताली के सम्मिलित संगीत संयोजन के साथ उन्होंने गीत का टेम्पो धीमा रखा है जिससे हर शब्द को एक खिंचाव के साथ गाना पड़ता है। इस गीत को निभाने के लिए एक ऐसे कलाकार की आवाज़ की जरूरत थी जो कुछ नया करने में विश्वास रखता हो और इसीलिए गायक के तौर पर सोनू निगम को चुना गया। सोनू ने इस कठिन गीत को इस बेहतरीन तरीके से निभाया है कि उनकी गाई हर पंक्ति, हर आलाप पर बस वाह वाह ही निकलती है। सोनू निगम ख़ुद इस गीत को अपने द्वारा गाए गीतों में सबसे अच्छों में से एक गिनते हैं।
तो आइए सुनते हैं इस प्यारे से गीत को इसके लाजवाब बोलों के साथ
हो जन्नतों के दर खुले, कुछ बाशिंदे थे चले
ले आए वो, नन्ही जान
उस ख़ुदा का इक पयाम
तब से तू है ज़हाँ में
बनके रौनक यहाँ की मेरी जान
ख़्वाहिशों से भी आगे जो ख़ुशी का मिले वो अरमान
रा रे रा रा आ..
चमचम झिलमिलाते,ये सितारों वाले हाथ
भीनी भीनी खुशबू, जैसे तेरी मीठी बात
उजला उजला सा ये तन, जैसा महका हो चन्दन
बाहों में तेरी गुजरे, मेरा ये सारा जीवन
तेरी अदा में मासूमियत है
फिर भी है शोखी, रंगीनियत है
तारों से भर दूँ मैं, आँचल तेरा
रब से भी प्यारा है, चेहरा तेरा, चेहरा तेरा, चेहरा तेरा
रा रे रा रा आ...
फूल होंठों पे खिले, चाँद आँखों में मिले
फूल होंठों पे खिले, चाँद आँखों में मिले
बिखरे मोती जुबान की जैसे किरणें तेरी यह मुस्कान
नूर बरसे नज़र से नूरी तुझमें बसी है मेरी जान
नूर बरसे नज़र से नूरी तुझमें बसी है मेरी जान
तेरी झलक की प्यासी नज़र है, दीवानगी ये तेरा असर है
रूहाने रंगों का ये आँचल तेरा
सपनो इरादों का ये बादल मेरा बादल मेरा बादल मेरा
रा रे रा रा आ
धीरे धीरे सर चढ़ा, तेरा जादू, आगे बढ़ा
धीरे धीरे सर चढ़ा, तेरा जादू, आगे बढ़ा
हुआ खुद से जुदा फिर भी तुझपे फ़िदा मैं मेरी जान
इश्क ले ले तू ले ले ,ले ले तू मेरा इम्तिहान
इश्क ले ले तू ले ले ,ले ले ले ले मेरा इम्तिहान
सूने सफ़र की तू सोहबत है.
बख्शी खुदा ने, यह मिलकियत है
आजा सजा दे गोरी आँगन मेरा
जैसे सजाया तूने लमहा मेरा
रा रे रा रा आ....
ये गीत एक ऐसा गीत है जिसका नशा धीरे धीरे चढ़ता है इसलिए इसे जब भी सुनिएगा फुर्सत से सुनिएगा...
चलते चलते इस गीत के फिल्मांकन के बारे में कुछ बातें। दो सटे सटे घरों के बीच होते प्रेमपूर्ण भावनाओं के आदान प्रदान को मेरी पीढ़ी ने अपनी आँखों से देखा और महसूस किया है। गीत में भी इस वास्तविकता का बखूबी चित्रण हुआ है। शूटिंग के दौरान एक बड़ा मजेदार वाक़या हुआ।
नायक को अपना प्रेम पत्र कागज के तिकोने जहाज के रूप में ऐसा फेंकना था कि वो सामने की बॉलकोनी में खड़ी नायिका के पास गिरे। पर पहले चार टेकों में बच्चों वाला ये मामूली काम नायक अंजाम नहीं दे पाए। दो बार वो जहाज नायिका के घर के खपड़ैल की छत पर जा पहुँचा और दो बार नीचे जा गिरा। :)
तो आइए देखते हैं इस गीत का वीडिओ..
6 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर गीत, धन्यवाद
बोल तो बहुत अच्छा है पर म्यूजिक की कमी है
कहीं किसी चैनल पर फिल्म दे रहा था एक दिन...एक दो दृश्य देखकर ही मुझे लगा की यह लीक से हटकर पसंद आने लायक है..पर पूरी फिल्म न देख पायी..लेकिन देखने का इरादा आपने वर्णन कर पक्का करवा दिया...
आपने बताया न होता तो गीत सुनकर अंदाजा लगाना कठिन है की इसमें गायक सोनू निगम हैं...
लाजवाब गीत और संगीत है...बहुत बहुत प्यारी...
और फिल्मांकन...तो बस वाह...
सच है,आज किसको इतना धैर्य कहाँ की शालीनता और संवाद हीनता के संग प्रेम निभा ले...
इस सुन्दर गीत को महत्त्व देने के लिए आभार आपका...
मुझे ऐसे ही म्यूजिक अच्छे लगते हैं,जो कानों और मन को सुकून दे..
आमतौर से इस तरह की जानकारी प्रिंट मीडिया में आजकल नहीं ही मिलती. आभार.
हाँ रंजना जी बिल्कुल सही कहा आपने !
सच है,आज किसको इतना धैर्य कहाँ की शालीनता और संवाद हीनता के संग प्रेम निभा ले..
मृत्युंजय गीत का संगीत सूफ़ियत के रंग में रँगा है और एक धीमे पेस में गीत के बोलों के पीछे चलता है। पर गीत का रंग तुरंत एक बार सुनने में तो नहीं पर धिरे धीरढ़ चढ़ता है। मेरा अनुभव ऍसा ही रहा।
काजल जी व राज जी गीत व पोस्ट आपको पसंद आई जानकर खुशी हुई।
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