वार्षिक संगीतमाला की नवीं पॉयदान पर एक बार फिर आ रहे हैं जनाब राहत फतेह अली खाँ । राहत इधर कुछ गलत कारणों से समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बटोर रहे थे। अपनी रूहानी आवाज़ से जो शख़्स मन को शांत और मुदित कर देता है उससे इस तरह के आचरण की उम्मीद कम से कम हम और आप जैसे प्रशंसक तो नहीं ही कर सकते। आशा है राहत इस घटना से सबक लेंगे और भविष्य में जब भी उनकी चर्चा हो तो सिर्फ उनकी गायिकी के लिए...
जब राहत का पिछला गीत सोलहवीं पॉयदान पर बजा था तो मेंने आपसे कहा था कि इस साल की वार्षिक संगीतमाला में राहत ने अपने गीतों से जो धूम मचाई है उसकी मिसाल पहले की किसी भी संगीतमाला में देखने को नहीं मिली। राहत की गायिकी के दबदबे का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस साल के प्रथम दस गीतों में से पाँच उनके द्वारा गाए नग्मे हैं।
तो अब बात करें नवीं पॉयदान के इस गीत की जो लिया गया है फिल्म 'आक्रोश' से। अनुपम अमोद की आवाज़ में इस फिल्म का एक और प्यारा गीत सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है, ले ले उड़ानें मेरी.. आप पहले ही संगीतमाला में सुन चुके हैं। आक्रोश का संगीत दिया है प्रीतम ने और लिखा है इरशाद क़ामिल ने। दरअसल राहत की गायिकी तो अपनी जगह है ही पर इस गीत की जान है इरशाद क़ामिल के बोल। रूमानियत भरे गीतों में इरशाद कमाल करते हैं वो तो आप पिछले सालों में जब वी मेट, लव आज कल, अजब प्रेम की गजब कहानी और इस साल Once Upon A Time In Mumbai सरीखी फिल्मों में पहले ही देख चुके हैं। पर आक्रोश के इस गीत में इरशाद गीत के बोलों में एक दार्शनिक चिंतन का भी सूत्रपात करते हैं। वैसे तो गीत के हर अंतरे में इरशाद अपनी लेखनी से चमत्कृत करते हैं पर खास तौर पर उनकी लिखी ये पंक्तियाँ मन को लाजवाब सा कर देती हैं।
"..मन से थोडी अनबन रखना,
मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा.."
इरशाद क़ामिल आज हिंदी फिल्म संगीत में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाते जा रहे हैं। पर अगर उनके पिता की चलती तो वो आज इंजीनियरों की जमात में खड़े होते। रासायन शास्त्र के प्रोफेसर के पुत्र होने के नाते उन्हें कॉलेज में गणित और विज्ञान विषयों को जबरन चुनना पड़ा। अरुचिकर विषयों का साथ और उसके साथ चार चार ट्यूशन करने की बाध्यता इरशाद को नागवार गुज़री। कॉलेज की उस व्यस्त दिनचर्या में क़ामिल कुछ सुकून की तलाश में रंगमंच में रुचि लेने लगे। साल के अंत में जब नतीजे निकले तो वो गणित और भौतिकी में फेल हो गए थे। क़ामिल के पिता के लिए वो निराशा का दिन था पर क़ामिल इसे अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी असफलताओं में गिनते हैं क्यूँकि इस असफलता ने ही उन्हें जीवन की नई दिशा प्रदान की।
वैसे तो मानव मन की विचित्रताओं पर पहले भी गीत लिखे जा चुके हैं और इरशाद साहब का ये गीत उसी कड़ी में एक उल्लेखनीय प्रयास है। प्रीतम संगीत के साथ यहाँ ज्यादा प्रयोग नहीं करते और गीत के फक़ीराना मूड को अपनी धुन से बरक़रार रखते हैं।
वैसे मन के भटकाव के बारे में सब जानते समझते भी क्या हम इसकी इच्छाओं के आगे घुटने नहीं टेक देते, इसके दास नहीं बन जाते। खासकर तब जब हमारे हृदय में किसी के प्रति प्रेम की वैतरणी बहने लगती है। तो आइए सुनते हैं इस अर्थपूर्ण गीत को राहत जी के स्वर में..
इस गीत को आप यहाँ भी सुन सकते हैं
इश्क मुश्क पें जोर ना कोई
मनसे बढकर चोर ना कोई
बिन आग बदन सुलगा देगा
ये रग रग रोग लगा देगा
मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
माशूक़ मोहल्ले में जाके बेसब्रा रोज दगा देगा
हो. मन की मंडी, मन व्यापारी, मन ही मन का मोल करे
हा हा हा...
भूल भाल के नफ़ा मुनाफा, नैन तराजू तोल करे
नैन तराजू तोल करे
खुद ही मोल बढा दे मनवा, खुद ही माल छुपा दे मनवा
खुद ही भाव गिरा देगा
मन के मत पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
मन बहकाए, मन भटकाए, मन बतलाए सौ रस्ते
मन की मत में प्यार हैं मँहगा, प्राण पखेरू हैं सस्ते
प्राण पखेरू हैं सस्ते
मन से थोडी अनबन रखना, मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा
मन के मत पे चलिओ..
चलते चलते इरशाद क़ामिल की लिखी इन पंक्तियों के साथ आपको छोड़ना चाहूँगा
जो सामने है सवाल बनके…
कभी मिला था ख़याल बनके…
देगी उसे क्या मिसाल दुनिया …
जो जी रहा हो मिसाल बनके
इरशाद बतौर गीतकार एक मिसाल बन कर उभरें, मेरी उनके लिए यही शुभकामनाएँ हैं..
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
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9 टिप्पणियाँ:
मन के मत मत में प्यार है सस्ता, प्राण पखेरू है सस्ते
डूब कर सुना है ये गीत....! बहुत सच्चा और बहुत अच्छा लगता है इसे सुनना बार बार।
राहत जी का व्यक्तित्व देखने में, बात चीत में, बहुत शालीन सा लगता है, फिर बाकी तो हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी। करना भी क्या है हमें उनके हर कोण से हमें तो उनके गीत स्वार्गिक लगते हैं हमें बस इसी से काम है
लीजिए आपने प्राण पखेरू के साथ साथ प्यार को भी सस्ता कर दिया। :)
हाँ पर उनके प्रशंसक होने के नाते मैं तो यही चाहता हूँ कि वो ऍसी गलती करने से बचें। क्यूँकि दुबारा ऍसा करने पर भारतीय कानूनों के तहत उनका वीसा हमेशा के लिए रदद किया जा सकता है और बड़े घर की सैर अलग से। आखिरकार फिर तो हमें उनकी आवाज़ गीतों में सुनने को नहीं मिलेगी।:(
शानदार पता नहीं इतने सुकून आवाज वाला गायक ..किस पचड़े में किस वजह से पाश गया....जाहिर है उसे पता था की वो क्या कर रहा है.... इससे और कुछ तो नहीं हाँ पाकिस्तानी कलाकारों की रह जरुर कुछ टेढ़ी हो गई है...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
kya baat hai manish bhaiya.
sach me ye line to dil ko chuu gai.
awgat karane ke liye dhanyabad
wakai khubsoorat geet hai
नायाब गीत जिस नायाब तरीके से आप सुनवाते हैं और उससे जुडी बातें बताते हैं...नायाब है....
आपके बहुत बहुत आभारी हैं हम...बहुत बहुत आभारी !!!!
बहुत धक्का लगा रहत जी के बारे में समाचार में सुनकर ...ईश्वर करें की भविष्य में यह सब सुनने का अवसर हमें न मिले....
ha ha ha .. sorry for mistake
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