जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन
सच किसी भी चेहरे की जान होती हैं ये आँखें। इसीलिए शायरों की कलम जब भी इनकी तारीफ़ में चली है..चलती ही गई है। और नतीजा ये है कि
इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
इन आँखों के वाबस्ता अफ़साने हजारों हैं
उन्हीं अफ़सानों को और समृद्ध करता फैज़ अनवर का लिखा फिल्म दबंग का ये गीत ऐसे ही दो मनचले शोख़ नयनों की कहानी कह रहा है। वैसे भी नैनों के वार से आशिक़ जन्म जन्मांतर से घायल होते रहे हैं। जगजीत जी की गाई ग़ज़ल की वो पंक्तियाँ याद है ना आपको
उनकी इक नज़र काम कर गई
होश अब कहाँ होश ए यार में
दबंग का ये गीत साल के सबसे चर्चित में से एक रहा है और इसकी मुख्य वज़ह है साज़िद वाज़िद की बेहद कर्णप्रिय धुन और राहत की गायिकी। वैसे क्या आपको पता है कि इन भाइयों की संगीतकार जोड़ी में कौन बड़ा है और कौन छोटा? चलिए आपकी मुश्किल मैं आसान किए देता हूं। बड़े हैं साज़िद जिन्हें रिदम में खास महारत हासिल है वहीं छोटे भाई वाज़िद शास्त्रीय संगीत सीखे हुए गायक हैं। संगीत इनके परिवार में कई पीढ़ियों से जुड़ा रहा है। इनके पिता उस्ताद शराफ़त खाँ माने हुए तबला वादक हैं।
इस जोड़ी ने जिस तरह पूरे गीत में तबले और इंटरल्यूड्स में गिटार का इस्तेमाल किया है वो एक बार सुन कर ही मन मोहित हो जाता है। पर गीत को लोकप्रियता के इस मुकाम तक पहुँचाने में राहत की गायिकी का भी बराबर का हाथ रहा है। वैसे इस गीत को राहत से गवाने के लिए साज़िद वाज़िद को काफी मशक्क़त उठानी पड़ी थी। मुंबई में जब रिकार्डिंग करने का समय आया तो राहत को भारत आने का वीसा नहीं मिल पाया। फिर गीत की रिकार्डिंग पाकिस्तान में हुई तो उसकी गुणवत्ता से साज़िद वाज़िद संतुष्ट नहीं हुए। अंत में साज़िद वाज़िद ने राहत को लंदन बुलाकर रिकार्डिंग करवाई।
उनकी गायिकी पर इतना विश्वास रखने वाले इन संगीतकारों के इस परिश्रम को राहत ने व्यर्थ जाने नहीं दिया और सम्मिलित प्रयासों से जो नतीजा निकला वो गीत के बाजार में आते ही हर संगीतप्रेमी शख़्स के होठों पर था। तो आइए एक बार फिर से आनंद लें इस गीत का.
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में... हाए, नैनों में..... हाए...
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन
मेरे दिल का ले गये चैन
मेरे दिल का ले गये चैन
तेरे मस्त मस्त दो नैन
पहले पहल तुझे देखा तो दिल मेरा
धड़का हाए धड़का, धड़का हाए
जल जल उठा हूँ मैं, शोला जो प्यार का
भड़का हाए भड़का, भड़का हाए
नींदों में घुल गये हैं सपने जो तेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन...
माही बेआब सा, दिल ये बेताब सा
तडपा जाए तडपा, तडपा जाए
नैनों की झील में, उतरा था यूँ ही दिल,
डूबा जाए डूबा, डूबा जाए
होशो हवास अब तो खोने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
तेरे मस्त मस्त दो नैन...
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन.....
और गीत का वीडिओ जो सलमान और सोनाक्षी सिन्हा पर फिल्माया गया है ये रहा।
सोनाक्षी कहती हैं कि वो सिर्फ सपने में सोचती थी कि उनकी आँखों को केंद्र में रखकर कोई गीत फिल्माया जाए। और देखिए उनका सपना कितनी जल्दी पूरा हो गया। चलते चलते उनके नयनों के लिए तो बस यही कहना चाहूँगा कि
डूब जा उन हसीं आँखों में फराज़
5 टिप्पणियाँ:
Ye geet muze bahut-bahut-bahut-bahut-bahut-bahut.... pasand hai, ise sunne k liye mahol banane ki zarurat nahi, balki ise sunne k baad mud apne aap ban jata hai or saath hi hum bhi gungnane lagte hai...THANXX MANISH JI iss geet ko no.6 par dene k liye.........
बहुत ही सुंदर, धन्यवाद
मनीषा जी आपकी राय से इत्तेफाक़ रखता हूँ। गीत की धुन और गायिकी बस गीत के साथ साथ झूमने को मजबूर कर देती है।
पसंद करने का शुक्रिया राज जी
दबंग जैसे वाहियात फिल्म में यह गीत ठीक ऐसे ही है जैसे चीथड़े में टंका हुआ बेशकीमती कोहीनूर...
जितनी गालियाँ इस घटिया फिल्म के लिए इसके निर्माता को दी मैंने उतनी ही दुआएं भी दीं इस गीत के लिए ..
बिना वीडियो देखे और अभिनेता अभिनेत्री और कहानी भूल जाओ तो गीत बस सुनते ही चले जाने को जी करता है...सचमुच, लाजवाब गीत है...
रंजना जी इस फिल्म के मामले में मेरी भी यही धारणा है। पर फिल्म देखने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग शायद मेरे या आपके विचारों से इत्तेफाक़ नहीं रखता। वर्ना ऐसी फिल्में सुपर हिट तो नहीं होती।
हाल में प्रीतीश नंदी जी का एक लेख पढ़ रहा था। उसमें उन्होंने लिखा था कि मैं आमिर, शाहरुख की फिल्में अक्सर देखता हूँ। वे अच्छे अभिनेता होने के साथ अच्छे बिसनेसमैन भी हैं।
पर जब सलमान की फिल्म आती है तो मैं हॉल में जाकर फिल्म देखना पसंद करता हूँ. इसलिए नहीं कि फिल्म अच्छी होगी पर इसलिए कि सलमान के पर्दे पर आने से लोगों की खुशी देखने का मजा ही कुछ और है। सलमान आम जनता के हीरो हैं इसीलिए अपनी फिल्में चला ले जाते हैं।
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