मैंने ये फिल्म नहीं देखी पर इसके गीत संगीत पर विशाल शेखर ने जो काम किया है वो निश्चय ही प्रशंसनीय है। जैसा कि अनजाना अनजानी के गीत तू ना जाने आस पास है ख़ुदा ... के बारे में बातें करते वक़्त मैंने आपको बताया था कि विशाल और शेखर एकदम भिन्न संगीतिक परिवेश से आए हैं। पर इस भिन्नता को इन्होंने अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल किया है। कुछ दिनों पहले मैं कोमल नाहटा द्वारा उनके टीवी पर लिए साक्षात्कार को सुन रहा था। साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि अपना संगीत वो किस तरह रचते हैं। क्या उनके पास कोई म्यूजिक बैंक है ? विशाल शेखर का कहना था..
आज का युग धुनों को इकट्ठा करके उन्हें इस्तेमाल करने का नहीं रह गया है। आज तो सारे निर्देशक हमें स्क्रिप्ट लिखने के समय से ही हमें विचार विमर्श में शामिल कर लेते है। हमारी खुशकिस्मती है कि अब तक हम लोगों ने जितने निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें ज्यादातर हमारे निकट के मित्र थे। इसलिए धुन सुनाते समय हमें उनकी निष्पक्ष राय मिलती रही। वैसे भी अगर हम सफल हैं तो बस ऊपरवाले की वजह से। चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें पर विश्वास मानिए वो मेहनत गीत का मुखड़ा हमारे मन में नहीं लाती। हमारे अधिकांश लोकप्रिय नग्मों का सृजन कॉफी शाप में, गाड़ी में ड्राइव पर या ऐसी ही किसी अनौपचारिक अवस्था में हुआ है । इसीलिए हम अपने आप को बस एक माध्यम मानते हैं उसका जो हमसे ये करा रहा है। कोई गीत हिट होगा या नहीं इससे ज्यादा हमें ये बात ज्यादा मायने की लगती है कि हम अपने रचे संगीत का आनंद ले पा रहे हैं या नहीं।
विशाल ददलानी इस गीत के गीतकार भी हैं। गीतकार और संगीतकार की दोहरी भूमिकाएँ वो पहले भी निभा चुके हैं। वैसी भी रॉक बैंड से अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत करने वाले विशाल को ये काम आसान लगता है क्यूँकि बैंड में काम करने वालों को गीत लिखने से लेकर उसके संगीत और गायन का काम खुद ही करना पड़ता है।
गिटार की धुन और फिर शुरुआती अंग्रेजी कोरस से इस गीत का आगाज़ होता है।
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
फिर उभरती है पार्श्व से शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ जो मुखड़े के साथ ही आपको गीत की उदासी में भिंगो लेती है। बन कर बिगड़ते रिश्तों की पीड़ा गीत में सहज ही व्यक्त होती है। नतीजा ये कि नायक की जिंदगी का एकाकीपन आपको भी काटने सा दौड़ता है । खासकर तब जब अमानत तरह तरह से बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में को अपने अलग अलग अंदाजों में दोहराते हैं। शफक़त अमानत अली खाँ , राहत की तरह हिंदी फिल्मों में निरंतरता से तो नहीं गाते पर अपने गिने चुने गीतों में वो खासा असर छोड़ जाते हैं। मितवा... और मोरा सैयाँ मोसे बोले ना... में उनकी गायिकी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूँ। तो आइए सुने उनकी व सुनिधि की आवाज़ में इस बेहतरीन नग्मे को...
है क्या ये जो तेरे मेरे दरमियाँ है
अनदेखी अनसुनी कोई दास्तां है
लगने लगी अब ज़िन्दगी खाली, है मेरी
लगने लगी हर साँस भी खाली
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे
अजनबी से हुए क्यूँ पल सारे
ये नज़र से नज़र ये मिलाते ही नहीं
इक घनी तन्हाई छा रही है
मंजिलें रास्तों में ही गुम होने लगी
हो गयी अनसुनी हर दुआ अब मेरी
रह गयी अनकही बिन तेरे
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
राह में रौशनी ने है क्यूँ हाथ छोड़ा
इस तरफ शाम ने क्यूँ है अपना मुँह मोड़ा
यूँ के हर सुबह इक बेरहम सी रात बन गयी
है क्या ये ......
ये गीत इरफान खान और सोनम कपूर पर फिल्माया गया है और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों ही इसे इस फिल्म का सबसे अच्छा गीत मानते हैं।
इस गीत का एक और वर्सन भी फिल्म में है जिसे लिखा है कुमार ने और गाया है शेखर ने। इस वर्सन की खास बात ये है कि इसमें वाद्य यंत्र के रूप में सिर्फ गिटार का इस्तेमाल हुआ है।
चलते चलते गीत के मूड को क़ायम रखना चाहता हूँ कंचन जी की इन पंक्तियों के साथ
हँसी बेफिक्र वही और हमारी फिक्र वही,
तेरी शरीर निगाहों में मेरा ज़िक्र वही,
दिखाई देती न हो उसकी इबारत लेकिन,
है सारी बात फिज़ा में वही, हवा में वही...
तुम्हारी खुशबू अभी भी यही पे बिखरी है
तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं आस पास वही...
2 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर, धन्यवाद
कान से सीधे दिल में उतर जाने वाला गीत है यह...
बहुत बहुत पसंद है मुझे भी....
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