रुड़की विश्वविद्यालय से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले संगीतकार आर आनंद का परिचय इसी फिल्म के गीत 'मन लफंगा..' की चर्चा के दौरान कर चुका हूँ। पिछले बीस साल से विज्ञापनों के लिए धुन बनाने वाले आर आनंद ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में अपने मित्र गोपाल राव के साथ मिलकर एक स्टूडियो बनाया था। स्टूडियो का नाम ऐसा कि बड़े बड़ों को दिमाग की बत्ती जलाने के लिए मेन्टोस का सेवन करना पड़े।
जी हाँ उनके स्टूडियो का नाम था 'Aqua Regia' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'Royal Water'। दरअसल रासायनशास्त्र की भाषा में इसे 'नाइट्रोहाइड्रोक्लोरिक एसिड' भी कहा जाता है और इस अम्ल को 'रॉयलटी' इस लिए मिली हुई है कि ये सोने और प्लेटिनम जैसी अकड़ में रहने वाली धातुओं को गलाने की क्षमता रखता है।
बाद में ड्रमवादक और आनंद के कॉलेज के मित्र, शालीन शर्मा भी इस समूह का हिस्सा बने और आगोश नाम के बैंड की शुरुआत हुई। बैंड ने एक एलबम जरूर बनाया पर वो ज्यादा चला नहीं और जैसा अक्सर होता है वक़्त के साथ बैंड बिखर गया।
प्रदीप सरकार एक ऐसे निर्देशक हैं जो अपनी फिल्मों के गीतकार व संगीतकार चुनने के बाद उन्हें अपने काम करने की पूरी आजादी दे देते हैं। आर आनंद कहते हैं कि नतीजन हमें भी लगने लगता है कि ऐसा काम किया जाए जिनसे उनके विश्वास पर खरा उतरा जा सके।
गीतकार स्वानंद किरकिरे को व्यावसायिक हिंदी सिनेमा में पहला मौका देने वाले भी प्रदीप सरकार ही थे। 'परिणिता' और 'लागा चुनरी में दाग' जैसी फिल्मों में स्वानंद ने जिस तरह का काम किया उसके बाद सरकार के लिए वो पहली पसंद ही बन गए। इस फिल्म की गीत रचना के बारे में स्वानंद कहते हैं
मुझे आनंद के कहा कि तुम पहले गीत लिख कर लाओ फिर मैं धुन बनाऊँगा। मैंने सोचा कि ये तो बड़ी अच्छी बात है। कितना भी लंबा गीत लिख दो कोई tension नहीं। फिल्म जिस तरह के युवाओं पर आधारित थी उनके बारे में सोचकर मुझे ख़्याल आया कि गली मोहल्लों के कई लड़के दिखते लफंगों जैसे हैं पर उनमें भी परिंदों की तरह उड़ान भरने की चाहत होती है। इस लिए लफंगे और परिंदे साथ हो गए। प्रदीप जी को ये शब्द इतने पसंद आए कि उन्होंने फिल्म का नाम भी यही रख दिया। मेरे लिए लफंगे और परिंदे शब्दों का साथ आना 'मन लफंगा' और 'नैन परिंदे' जैसे गीतों की रचना का सबब बन गया।
नैन परिंदे ..फिल्म का एकमात्र एकल गीत है जिसे फिल्म की हीरोइन पर फिल्माया गया है। दृष्टिहीन व्यक्ति भले ही देख नहीं सकता पर उसकी सोच का विस्तार वहाँ तक होता है जहाँ आम जन पहुँच भी नहीं पाते। स्वानंद ने अपने इस गीत में ऐसी ही एक लड़की के ख़्वाबों की उड़ान को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। स्वानंद सिर्फ तुकबंदी और राइमिंग को गीत रचना का ध्येय नहीं मानते। वो कोशिश करते हैं कि इनके अलावा गीत से वो विचार निकलें जो किरदार की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा सकें। स्वानंद की ये कोशिश मुखड़े और दोनों अंतरों में सफल होती नज़र आती है। वहीं संगीतकार आनंद का गिटार भी पहले इंटरल्यूड में अपना कमाल दिखला जाता है।
बाकी तो स्वानंद के शब्दों पर शिल्पा राव की आवाज़ मन में गहरी उतरती सी जाती है। जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली शिल्पा राव को संगीत की दुनिया में लाने का श्रेय शंकर महादेवन को जाता है। जहाँ फिल्म आमिर में उनका गाया गीत इक लौ मुंबई पर हुए हमले के दौरान राष्ट्र का गीत बन गया था वहीं पिछले साल ख़ुदा जाने को बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली थी। पर शिल्पा को उनकी प्रतिभा के हिसाब से जितने गीत मिलने चाहिए उतने मिल नहीं रहे। ख़ैर अभी तो सुनते हैं ये गीत..
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागे दिन रैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागें दिन रैन
पंख झटक ये उड़ जाएँगे, आसमान में खो जाएँगे
मग़रूर बड़े, बंजारे नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे बादल बादल, ख़्वाबों के सितारे चुग लेंगे
हो नैन परिंदे चाँद चुरा कर, पलकों से अपनी ढक लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, सपनों को अपने घर लाएँगे
मशहूर बड़े, मतवाले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
हो नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे
हो नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, गम को भुला के मुस्काएँगे
मजबूर नहीं, सपनीले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन...मग़रूर बड़े, बंजारे नैन
शीघ्र ही आपके सामने होगा वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सही चयन...आनन्द आया.
बहुत भावमयी सुन्दर रचना
badhiyaa gana
सचमुच लाजवाब है...
आपका चयन ...ओह....
बहुत भावमयी सुन्दर रचना| धन्यवाद|
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