बचपन से बड़े होते होते ऐसी कई शख़्सियत हमारे जीवन में आती हैं, जिनसे हम खासा प्रभावित रहते हैं। उनसे मिलने की, देखने की और दो बाते करने की हसरत मन में पाले रहते हैं। पर जब किसी सुखद संयोग से हमारी ये मनोकामना पूरी हो जाती है तो अपने उस प्रेरणा स्रोत के सामने अपने आप को निःशब्द पाते हैं। पर ऐसा सिर्फ मेरे आपके जैसे आम लोगों के साथ ही होता है ऐसा भी नहीं है। बड़े बड़े सेलीब्रिटी भी जब अपने पसंदीदा व्यक्तित्व के पास अपने आप को पाते हैं तो उनकी हालत भी कुछ वैसी ही हो जाती है।
एक ऐसा ही किस्सा याद आता है जो जानी मानी अभिनेत्री शबाना आज़मी ने एक बार अपने साक्षात्कार में अपने प्रिय शायर फ़ैज़ अहमद 'फैज़' की याद में सुनाया था। जैसा कि आपको मालूम होगा कि ये साल फ़ैज़ की जन्मशती वर्ष भी है तो मैंने सोचा क्यूँ ना उस रोचक किस्से को आप सब से साझा किया जाए। शबाना जी के लिए फ़ैज़, शेक्सपियर, कीट्स और ग़ालिब जैसे उस्ताद कवियों शायरों से भी ज्यादा पसंदीदा शायर रहे हैं। अब उन्हीं की जुबानी सुनिए कि जब फ़ैज से उनकी प्रत्यक्ष मुलाकात हुई तो उसका उनके दिल ओ दिमाग पर क्या असर पड़ा...
"एक बार ऐसा हुआ था कि मास्को फिल्म फेस्टिवल के दौरान मुझे पता चला कि फ़ैज़ साहब भी वहीं हैं तो मैं बहुत खुशी से गई उनसे मिलने के लिए। तो फिर उन्होंने कहा कि बेटा तुम शाम को आओ मुझसे मिलने तो मैं फिर गई उनके कमरे में। तो उन्होंने कहा कि कुछ शेर हो गए हैं लो पढ़ो बिल्कुल नए हैं। मेंने ज़रा सा खिसियाते हुए, सर खुजाते हुए कहा ...
फ़ैज़ चाचा मैं उर्दू नहीं पढ़ सकती। वो एकदम से आगबबूला हो गए और कहने लगे...
क्या मतलब है तुम्हारा ? नामाकूल हैं तुम्हारे माँ बाप ...(सनद रहे कि शबाना आज़मी मकबूल और अज़ीम शायर कैफ़ी आजमी की बेटी हैं और फ़ैज़ उनके माता पिता के अच्छे मित्रों में से थे। ऐसी उलाहना आत्मीय मित्रों को ही दी जा सकती है )
मैंने सफाई देते हुए कहा कि ऐसा नहीं है। मगर मैं शायरी खूब अच्छी तरह समझ सकती हूँ। आप की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ और मैं उर्दू समझती हूँ। सिर्फ लिख पढ़ नहीं सकती। आप की पूरी शायरी मुझे मुँहज़ुबानी याद है। जैसे कि.. जैसे कि.. और उस वक़्त मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा था। मैंने कहा जैसे कि"देख कि दिल की जाँ से उठता हैये धुआँ सा कहाँ से उठता है...."
तो उन्होंने एक क़श लेते हुए कहा. कि भई ....वो तो मीर का क़लाम है...
मैंने कहा कि नहीं नहीं मेरा मतलब वो थोड़ी था मतलब...
"बात करनी कभी मुझे मुश्किल कभी ऍसी तो ना थी.."तो फिर उन्होंने अपनी सिगरेट रखी और कान खुजाते हुए कहा कि देखिए भई मीर की हद तक तो ठीक था पर बहादुर शाह ज़फर को मैं शायर नहीं मानता...
इतना सुनना था कि मेरा चेहरा शर्म से लाल हो गया और किसी तरह मुँह छुपाते हुए मैं कमरे से निकल गई। मैंने सोचा ये सचमुच समझेंगे कि मुझे कुछ नहीं आता और मैं बाहर गई और उनकी तमाम शायरी मुझे पट पट पट पट पट याद आ गई। पर उस वक़्त मैं इतना घबड़ा गई थी कि मुझे कुछ याद नहीं आया। फ़ैज चाचा से मुलाकात का ये एक ऍसा वाक़या है जो मैं जिंदगी भर नहीं भूलूँगी।"
वैसे क्या आपको पता है कि शबाना एक कुशल अभिनेत्री के साथ साथ एक अच्छी गायिका हैं? सुनिए उनकी आवाज़ फ़ैज़ की ये मशहूर नज़्म जो हमेशा से लोगों की आवाज़ को हुक्मरानों तक पहुंचाने के लिए प्रेरित करती रही है। कुछ वर्षों पहले मैंने इस नज़्म को टीना सानी की आवाज़ में आप तक पहुँचाया था
बोल कि लब आजाद हैं तेरे
बोल, जबां अब तक तेरी है
तेरा सुतवां* जिस्म हे तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है
* तना हुआ
देख कि आहनगर* की दुकां में
तुन्द** हैं शोले, सुर्ख है आहन^
खुलने लगे कुफलों के दहाने^^
फैला हर जंजीर का दामन
*लोहार, ** तेज, ^लोहा, ^^तालों के मुंह
बोल, ये थोड़ा वक्त बहुत है
जिस्मों जबां की मौत से पहले
बोल कि सच जिंदा है अब तक
बोल कि जो कहना है कह ले
10 टिप्पणियाँ:
शबानाजी के रोचक किस्से... उनकी आवाज़ तो माशाल्लाह ...
ये किस्सा हमें ना था पता। और फैज साहब की जितनी बात की जाए उतनी ही कम है।
हम्म्म्...शबाना जी की आवाज़ भली है। वो मुझे एक ज़हीन महिला लगती हैं।
आज के हालात पर ऐसा ही कुछ मै भी सोच रही थी किसी पोस्त को पढ़ कर। सच है गाँधी जी ने अकेले आज़ादी नही दिलायी, मगर गाँधी ने आज़ाद होने का जज़्बा घर घर तक, बच्चों और महिलाओं तक पहुँचाया। महिलाओं ने धान कूटते हुए स्वराज के गीत गाये। बच्चों ने अपने विदेशी खिलौने जला कर आज़ादी माँगी। ये एक वैचारि क्रांति थी, जो कम से कम अन्ना हज़ारे ला सके। कुछ पलों को ही सही, कुछ जनो में ही सही....
bahut hee khoobsurat.....shukriya...
Thanks for sharing...bahut sunder.
Shabaana Azmi ki
Janaab Faiz Ahmed Faiz sb ke saath
mulaaqaat ka qissa padh kar
bahut lutf haasil huaa ...
aapka bahut bahut shukriyaa .
bahut hi sundar hai.....achha laga aap aisi khas baten share karte hai jo kahi aur nahi mil pati hain shukriya
कहाँ कहाँ से चुन बीन कर ले आते हैं आप ऐसे मास्टरपीस....ओह...ग्रेट !!!!
सचमुच सबाना जी की आवाज़ कितनी मधुर है...
आना हजारे का जिक्र देखकर तारीख देखी..पोस्ट पुरानी है..पर मेरे लिए तो नई ही है.
एक अभिनेत्री...और एक सेलिब्रेटी को यूँ घबराते देख पता चल जाता है..आखिर हैं तो सब इंसान ही.
रोचक वाकया
हाँ रश्मि जी पिछले साल की पोस्ट है अन्ना जी का जिक्र अब हटा दिया है। :)
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