पंचम को इस नेपाली वाद्य यंत्र से परिचित कराने का श्रेय नेपाल के मादल वादक रंजीत गाजमेर को जाता है जिन्हें पंचम 'कांचाभाई' भी कहते थे। पंचम दा को इस वाद्य यंत्र से कितना लगाव था ये इसी बात से स्पष्ट है कि उन्होंने कांचाभाई को अपनी आर्केस्ट्रा का स्थायी सदस्य बना दिया था।
विविध भारती पर पंचम की संगीत यात्रा वाले कार्यक्रम में आशा व गुलज़ार जी से इस गीत में किए गए अपने प्रयोग के बारे में बात करते हुए पंचम ने कहा था..
ये बड़ी मजेदार चीज़ है। जिस सुर में गाने की पंक्ति खत्म होती हो, उसी सुर में... उसी सुर का तबला बजे। जैसे हमारे यहाँ तबला तरंग है तो हम लोगों ने कोशिश की कि उसे मादल तरंग में बजाया जाए...यानि जिस तरह तबला तरंग में एक साथ कई तबलों को अलग अलग सुरों में लगा कर एक साथ बजाया जाता है वैसा ही यहाँ मादल के साथ किया गया। मादल तरंग को देखना चाहते हों तो यहाँ देख सकते हैं।
पंचम ने इस गीत के आरंभिक तीस सेकेंड में जो गिटार की धुन पेश की है उसे जब भी मैं सुनता हूँ इसे बार बार सुनने का दिल करता है और फिर गीत के पचासवें सेकेंड के बाद से पंचम की मादल पर की गई कलाकारी (जिसका ऊपर जिक्र किया गया) सुनने को मिलती है और मन पंचम को उनकी बेमिसाल प्रतिभा के लिए दाद दिये बिना नहीं मानता। गीत सुनने के बाद भी गीत का मुखड़ा और पंचम की धुन घंटों दिलो दिमाग पर अपना असर बनाए रखती है। ऊपर की रिकार्डिंग में आपने लता के साथ किशोर को भी एक अलग तरीके से गाते सुना। आइए अब सुनते हैं लता जी द्वारा गाया ये नग्मा।
तेरे बिना जिया जाए ना
बिन तेरे तेरे बिन साजना
साँस में साँस आए ना
तेरे बिना ...
जब भी ख़यालों में तू आए
मेरे बदन से खुशबू आए
महके बदन में रहा न जाए
रहा जाए ना, तेरे बिना ...
रेशमी रातें रोज़
न होंगी
न होंगी
ये सौगातें रोज़ न होंगी
ज़िंदगी तुझ बिन रास न आए
रास आए ना, तेरे बिना ...
चलते चलते पंचम और उनके मादल प्रेम से जुड़ा एक और किस्सा बताता चलूँ। 1974 में एक फिल्म आई थी 'अजनबी'। पंचम को उसके गीत रिकार्ड करने थे। पर हुआ यूँ कि ठीक उसी वक़्त फिल्म जगत में साज़कारों की हड़ताल हो गई। इंटरल्यूड्स में संगीत संयोजन में आर्केस्ट्रा का होना तब एक आम बात थी। अब गाना तो रिकार्ड होना था तो किया क्या जाए। पर पंचम तो आखिर पंचम थे। उन्होंने एक रास्ता ढूँढ निकाला। पंचम ने गीत के अंतरे में बजते मादल के रिदम यानि ताल को इंटरल्यूड्स में भी बरकरार रखा और साथ में जोड़ दी ट्रेन की आवाज़ और गाना हो गया सुपर हिट। आप समझ रहे हैं ना किस गीत की बात हो रही है? जी हाँ ये गीत था लता व किशोर की युगल आवाज़ में गाया नग्मा हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले...
16 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर जानकारी दी तबले की, ओर पंचम दा के बारे पढ कर ओर गीत सुन कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद
बहुत ही उम्दा गीत और साथ में जानकारी भी.. धन्यवाद.
इस दौर के बहुत कम गीत पसन्द आए...."तेरे बिन जिया न जाए" गीत बेहद पसन्द है..... शुक्रिया
i feel enlightened , thx for re-sharing this gem.
Is geet ke sath hi is film ke sabhi geet bahut sundar ban pade hai.
That's a lovely article again! Being a "Kishore, RD, Gulzar" trio fan myself, I really enjoyed reading this post! Many thanks, Manish-ji!!
Munish Sharma,Sandeep Lele : Nice to know that both of u liked the article.
माधवी : सही कहा आपने, व्यक्तिगत तौर पर मुझे इस फिल्म का गीत "फिर वही रात है..." सबसे प्रिय है । साथ ही 'आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख़्वाब हैं' में भी गुलज़ार के शब्द व लता किशोर की युगल गायिकी मन को मोहती है।
राज जी, अजीत आपको गीत व ये पोस्ट पसंद आई जान कर खुशी हुई.
गुमनाम सत्तर के दशक के गीत आपको कम पसंद हैं इसका अर्थ ये हुआ कि आपको पंचम व किशोर दा शायद उतने अच्छे नहीं लगते क्योंकि ये इन दोनों कलाकारों का उद्भव काल था। मुझे तो साठ व सत्तर दोनों दशकों के गीत पसंद आते हैं।
It's quite excellent, informative & interesting .
D.Sahu
झारखण्ड का मांदर इससे अलग है?
अभिषेक मांदर और मादल दोनों ताल वाद्य हैं। पर दोनों से निकलने वाली ध्वनियों में कोई साम्य नहीं है। यहाँ की जनजाति जिस मांदर का प्रयोग करती है वो सामन्यतः मिट्टी के बने होते हैं और मादल से कहीं लंबे होते हैं।। नतीजन इससे निकलने वाली आवाज़ गूँजदार होती है। मांदर को tune करने के लिए लकड़ी के गुटके भी नहीं लगाए जाते जैसा तबले या मादल के साथ होता है।
वहीं मादल जिसके बारे में यहाँ चर्चा हो रही है मूलतः हल्की व मधुर टोन्स निकालने के लिए फिल्मी गीतों में प्रयोग किया जाता रहा है। बाकी जैसा मैंने बताया नेपाल के पहाड़ी लोक गीतों में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।
Apkey blog mein hamesha kuch na kuch sangit sey juda naya jaaney ko milta hai.
or y song key lyrics to behot hee badiya hain.:)
दिल की तंतुओं में तो वर्षों से यह गीत संगीत गुन्थाया हुआ था,पर मांदर,मादल ....आज जाना क्या होता है...
ये जो आनंद रस में सराबोर होने का मौका आपने दिया....बहुत बहुत बहुत आभार...
Bahut dinon baad mene apka post padha hai and as usual ek aur sundar post !!
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