प्रसिद्ध काव्य समीक्षक शेरजंग गर्ग नीरज के मुक्तकों की लोकप्रियता के बारे में लिखते हैं..
नीरज के मुक्तक बेहिसाब सराहे गए। इसका एक कारण नीरज की मिली जुली गंगा जमुनी भाषा थी। जिसे समझने के लिए शब्दकोष उलटने की जरूरत नहीं थी। इसमें हिंदी का संस्कार था तो उर्दू की ज़िंदादिली। इन दोनों खूबियों के साथ नीरज के अंदाजे बयाँ ने अपना हुनर दिखाया और उनके मुक्तक भी गीतिकाओं के समान यादगार और मर्मस्पर्शी बन गए।
आज नीरज के लिखे अपने पसंदीदा मुक्तकों से आपका परिचय कराता हूँ। आशा है ये आप को भी उतने ही पसंद आएँगे जितने मुझे आते हैं...
(1)
कफ़न बढ़ा तो किस लिए नज़र तू डबडबा गई?
सिंगार क्यों सहम गया बहार क्यों लजा गई?
न जन्म कुछ न मृत्यु कुछ बस इतनी सिर्फ बात है
किसी की आँख खुल गई, किसी को नींद आ गई।
(2)
खुशी जिसने खोजी वह धन ले के लौटा,
हँसी जिसने खोजी चमन ले के लौटा,
मगर प्यार को खोजने जो चला वह
न तन ले के लौटा, न मन ले के लौटा।
(3)
रात इधर ढलती तो दिन उधर निकलता है
कोई यहाँ रुकता तो कोई वहाँ चलता है
दीप औ पतंगे में फ़र्क सिर्फ इतना है
एक जलके बुझता है, एक बुझके जलता है
(4)
बन गए हुक्काम वे सब जोकि बेईमान थे,
हो गए लीडर की दुम जो कल तलक दरबान थे,
मेरे मालिक ! और भी तो सब हैं सुखी तेरे यहाँ,
सिर्फ़ वे ही हैं दुखी जो कुछ न बस इंसान थे।
(5)
छेड़ने पर मौन भी वाचाल हो जाता है, दोस्त !
टूटने पर आईना भी काल हो जाता है दोस्त
मत करो ज्यादा हवन तुम आदमी के खून का
जलके काला कोयला भी लाल हो जाता है दोस्त !
चलते चलते गोपाल दास नीरज द्वारा अपनी काव्य रचनाओं पर लिखी बात उद्धृत करना चाहूँगा
जब लिखने के लिए लिखा जाता है तब जो कुछ लिखा जाता है उसका नाम है गद्य। पर जब लिखे बिना न रहा जाए और जो खुद खुद लिख जाए तो उसका नाम है कविता। मेरे जीवन में कविता लिखी नहीं गई। खुद लिख लिख गई है, ऐसे ही जैसे पहाड़ों पर निर्झर और फूलों पर ओस की कहानी।
19 टिप्पणियाँ:
AAH ! maza aa gaya... shukriya
पढ़कर आनन्द आ गया।
एक आडियो क्लिप भी होता तो ....
गोपाल दास 'नीरज जी की इन सुंदर रचनाओ के लिये आप का धन्यवाद
मेरे प्रिय गीतकार... मुझे उनकी कही हर बात भली लगती है....
Neeraj ji ko padh kar
aseem aanand prapt huaa
aabhaar svikaareiN .
kabhi kuchh "falak dehlavi" sb ke
baare meiN bataa paaeNge... !?!
बहुत ही उम्दा रचना दिल को छु ले गई ! गोपाल दस नीरज जी को प्रणाम ! आपको सधन्यवाद !
ढेर सारा शुक्रिया.. इन पन्क्तियों से परिचय करवाने का....
एक बार मुझे भी नीरज जी से अलीगड नुमाईश में मिळणे का सौभाग्य प्राप्त हुआ था उस समय पर उन्होने जो सुनाया वाह आज भी याद है .
" बादलो से सलाम लेता हु ,
वक्त को हाथो में थाम लेता हु .
और मौत मार जाती है पाल भर के लिये .
जब की हाथो में जाम लेता हु ..."
mai bahut sukragujar rahunga apka aisi -aisi kavitaye aur muktak padhwane ke liye
Excellent selection! Each one of them touched the heart!!! Hats off to Neeraj.
आपलोगों को ये मुक्तक पसंद आए. ज़ाहिर है इस बाबत आप सब की व मेरी पसंद मिलती जुलती है। :)
दानिश भाई मैंने फलक़ देहलवी को नहीं पढ़ा है. मुझे लगता है कि आपको उनके बारे में लिखना चाहिए ताकि उनकी शायरी से हम सब रूबरू हों।
चाणक्य बहुत सुंदर मुक्तक जोड़ा है आपने , आभार !
यूट्यूब पर ढूंढा. नहीं मिला :(
वैसे आपने पहले ढूंढा ही होगा.
ओह...
प्रशंसा को शब्द कहाँ से लाऊं ????
ह्रदय से आभार आपका....
कमाल के हैं सारे के सारे मुक्तक...आभार इन्हें पढवाने का..
bahut achchha laga
Dr gopal das neeraj ko last yyrs me indian oil panipat me sunne ko mila me jivan ka sapna poora hua.
Us Iswar se dua hai ki is sresjtha geetkar ko lambi nirogi kaya de.
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Bàhut Khoob
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