कोक स्टूडिओ ये नाम सुना है आपने। अगर आप फिल्म संगीत के इतर लोक संगीत व फ्यूजन में रुचि रखते हैं और अंतरजाल पर सक्रिय हैं तो जरूर सुना होगा। वैसे भी संगीत का ये कार्यक्रम ब्राजील और पाकिस्तान का विचरण करते हुए पिछले शुक्रवार से MTV India का भी हिस्सा हो गया है। हालांकि इसके भारतीय संस्करण की पहली कड़ी उतनी असरदार नहीं रही जितनी की सामान्यतः कोक स्टूडिओ पाकिस्तान की प्रस्तुति रहा करती है। पर भारत में इस तरह के कार्यक्रम को किसी संगीत चैनल और वो भी MTV की ये पहल निश्चय ही सही दिशा में उठाया एक कदम है।
ख़ैर आज मैं आपको एक ऐसे लोकगीत से रूबरू करा रहा हूँ जिसे सत्तर के दशक में अफगानिस्तान में रचा गया। पश्तू भाषा में रचे इस गीत को गाया है जएब (Zeb) ने और उनके साथ में हैं हानीया। जएब और हानीया (Zeb and Haniya)
पाकिस्तान की पैदाइश पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम पश्तून इलाके से है। पाकिस्तान में इन दो चचेरी बहनों ने पहला लड़कियों का बैंड बनाया। जएब गाती हैं और हानीया गिटार वादक हैं। पाकिस्तान में इस बैंड का एक गीत 'चुप' बेहद चर्चित रहा था।
इस अफ़गानी लोकगीत की भाषा अफगानिस्तान में बोली जाने वाली फ़ारसी है जिसे 'दरी' भी कहा जाता है। गीत की शुरुआत में जो वाद्य यंत्र बजता है वो किसी भी संगीतप्रेमी श्रोता के मन के तार झंकृत कर सकता है। इस वाद्य यंत्र का नाम है रूबाब। रुबाब अफ़गानिस्तान के दो राष्ट्रीय वाद्य यंत्रों में से एक है और अफ़गानी शास्त्रीय संगीत में इसकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। गीत का शुरुआती एक मिनट इसकी तान में खो सा जाता है और फिर पीछे से उभरता है जएब का मधुर स्वर।
पिछले साल मेरी एक मित्र ने मुझे जब कोक स्टूडिओ पाकिस्तान के कार्यक्रम में प्रसारित इस गीत के बारे में बताया तो मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर रुबाब की मधुर धुन के आलावा गायिका ने इस गीत में क्या कहना चाहा है? तो आइए गीत का आनंद लें इसमें व्यक्त भावनाओं के साथ
पैमोना बेदेह के खुमार असतम
मन आशिक ए चश्मे मस्ते यार असतम
बेदेह बेदेह के खुमार असतम
पैमोना बेदेह के खुमार असतम
साकी शराब का प्याला ले आओ । आज मैं इस जाम की खुमारी में अपने आप को डुबो लेना चाहता हूँ। तुम्हारी नशीली आँखें मुझे तुम्हारा दीवाना बना रही हैं। लाओ लाओ कि इसकी ख़ुमारी मैं मैं अपने आप को खो देना चाहता हूँ।
चश्मत के बाहू ए खुतन मेमोनाए
रूयात बा गुलाब हाय चमन मेमोनाए
गुल रोब ए कुनैद वरक़ वरक़ बू ए कुनैद
बा लाला ए ज़ार ए बे वतन मींयारात
पैमोना बेदेह के खुमार.... असतम
क्या तुम्हे पता है कि तुम्हारी आँखें मेरे दिल के बगीचे में रोशनी भर देती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरे दिल के बाग के सभी गुलाबों को खिला देता है। सच पूछो तो तुम्हारा ये चेहरा मेरे दिल की बगिया में रंग भरता है, उनकी पंखुड़ियों में सुगंध का संचार करता है।
अज ओमादान ए तगार खबर में दास्तान
पेश ए कदमात कोचा रा गुल में कोश्ताम
गुल में कोश्तम गुल ए गुलाब में कोश्ताम
खाक़ ए कदमात पद ए दम ए वादाश्ताम
पैमोना बेदेह के खुमार.... असतम
सोचता हूँ जब तुम्हारे पवित्र कदमों की आहट इस हृदय को सुनाई देगी, तब मैं तुम्हारे रास्ते में दिल के इन फूलों को कालीन की तरह बिछा दूँगा। चारों ओर फूल बिछे होंगे..गुलाब के फूल और उन फूलों के बीच पड़ती तुम्हारे चरणों की धूल में मैं खुद को न्योछावर कर दूँगा।
तो प्रेम में रससिक्ता इस गीत को सुना आपने। आपको क्या लगा कि ये किसी प्रेमिका के लिए एक प्रेमी के हृदय का क्रंदन है। ज़ाहिर सी बात है शाब्दिक तौर पर ये गीत तो हमसे यही कहता है और यही सही भी है ।
पर ये बताना जरूरी है कि ये गीत वास्तव में एक सूफी गीत से प्रेरित हैं । दरअसल मूल गीत जिसमें कई छंद हैं को मशहूर सूफ़ी कवि उमर ख़्य्याम ने ग्यारहवीं शताब्दी में लिखा था। दरअसल सूफी संतों ने अपने लिखे गीतों में शराब और साक़ी को रूपकों की तरह इस्तेमाल किया है। मजे की बात ये है कि इन संतों ने कभी मदिरा को हाथ भी नहीं लगाया।
सूफी विचारधारा में भक्त और भगवान का संबंध एक आशिक का होता है जिसे ऊपरवाले की नज़र ए इनायत का बेसब्री से इंतज़ार होता है। साक़ी सौंदर्य का वो प्रतिमान है जो उसे ईश्वर के प्रेम में डूबने को उद्यत करती है। सूफी साहित्य में कहीं कहीं इस साक़ी को अलौकिक दाता की संज्ञा दी गई है जो हम सभी को ज़िदगी रूपी मदिरा का पान कराती है।
कोक स्टूडिओ के कार्यक्रम में आप जएब और हानीया को देख सकते हैं साथ में बजते रुबाब के साथ...
एक शाम मेरे नाम पर लोकगीतों की बहार
- अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ
- उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से.....छठ लोकगीत, गायिका - अनुराधा पोडवाल
- अम्मा मेरे बाबा को भेजो री, कि सावन आया, गायिका - मालिनी अवस्थी
- कदि आ मिल साँवल यार वे, गायक - अली अब्बास
- छल्ला वश नहीं मेरे.... रब्बी शेरगिल, एलबम - अवेंगी जा नहीं
- दैया री दैया चढ़ गयो पापी बिछुआ, गायिका - कल्पना
- बुल्ला कि जाणां मैं कौन? .....*** गीत -बुल्ले शाह /रब्बी संगीत - रब्बी
- नन्ही नन्ही बुँदिया रे, सावन का मेरा झूलना, गायिका - मालिनी अवस्थी
- हाथ में मेंहदी मांग सिंदुरवा, बर्बाद कजरवा हो गइले, गायिका - कल्पना
- हे डोला हे डोला, हे डोला, हे डोला, गायिका - कल्पना
9 टिप्पणियाँ:
चुनिन्दा कर्णप्रिय मनमोहक गीत तो आप सुनवाते ही हैं,साथ में जो नायाब जानकारियाँ देते हैं, हम जैसे अज्ञानियों का ज्ञानवर्धन हो जाता है...
सत्य है संगीत कान से नहीं दिल से सुनी और महसूसी जाती है और कोई आवश्यक नहीं कि गीत के बोल समझ में आयें तभी वव प्रिय लगें...
बहुत बहुत आनंद आया....... आभार.
पश्तू भाषा,रूबाब और गीत का अनुवाद....बहुत कुछ पाया ..शुक्रिया..
कुछ दिनो पहले ही फ़ेसबुक पर शेयर किया था.. अच्छा लगा इसे यहाँ देखकर और पूरी गाने का मतलब समझकर.. बज़ पर शेयर कर रहा हूँ..
मनीष भाई,
बहुत शुक्रिया इस मधुर गीत को सुनवाने के लिये। मजा आ गया कसम से.
बहुत बढ़िया. ऐसे और दो गानों की धुन बज रही है दिमाग में लेकिन कुछ याद नहीं आ रहा. शाम तक ढूंढ़ के भेजता हूँ लिंक आप तक.
बहुत ही प्यारा गीत...बार बार सुनने का जी चाहे... अभिषेक सही कह रहे है ...मेरे दिमाग मे भी इसी तरह की धुन गूँज रही है लेकिन कुछ याद नही आ रहा है...
Sir ye gana pashto me nahi, afghanistan ki farsi me hai jise Dari bhasha kaha jata hai.
Is jaankaari ke liye shukriya Zia ! Mujhe pashtu/dari mein confusion ho raha tha ki ye ek hi dialect hain persian ke.I have made the required correction.
गीत आप सबको मधुर लगा जान कर खुशी हुई। अभिषेक, मीनाक्षी जी कौन सी धुन दिमाग में आ रही है? अब तक तो याद आया होगा !
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