गुरुवार, जुलाई 21, 2011

मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती : मुन्नवर राना की किताब 'घर अकेला हो गया'

करीब साल डेढ़ साल पहले मुन्नवर राना की एक किताब खरीदी थी। नाम था 'घर अकेला हो गया'। पिछले साल से मैं इस किताब में राना जी की लिखी 112 ग़ज़लों को टुकड़ों में पढ़ता आया हूँ। शायरी की किताबों के साथ एक बात जो मैंने महसूस की है वो ये कि अगर आप उसका पूरा लुत्फ़ उठाना चाहते हैं तो एक बार में ना पढ़ें। हर ग़ज़ल का अपना एक मूड होता है जो शायद पहले की ग़ज़ल से बिल्कुल ना मेल खाता हो। इसलिए पढ़ते समय मन में उठते विचारों पे निरंतरता नहीं आ पाती। एक ग़ज़ल आपको कुछ सोचने पर मज़बूर करती है तो दूसरे को पढ़ते ही पहले वाले विचार एकदम से गड्डमगड हो जाते हैं।

अब जबकि इतने लंबे समय के बाद ये किताब निबटाई जा चुकी है तो सोचा आज इसके शायर और इस पुस्तक के बारे में कुछ बातें हो जाएँ।

नवंबर 1952 में रायबरेली में जन्मे मुन्नवर राना का पूरा नाम 'सैयद मुन्नवर अली राना' है। साठ की उम्र के पास पहुँचते इस शायर के दर्जन भर से ज्यादा ग़ज़ल संग्रह छप चुके हैं और ये उनकी बढ़ती लोकप्रियता का सबूत हैं। मुन्नवर साहब ने अपनी शायरी में जिस भाषा का प्रयोग किया है उसे समझने के लिए आपको उर्दू का प्रकांड पंडित होने की आवश्यकता नहीं। इस मामले में मैं उनककी शायरी को बशीर बद्र की शायरी के करीब पाता हूँ। पर जब बात ग़ज़ल में व्यक्त किए गए मसायलों की आती है तो ये समानता ख़त्म हो जाती है।

मुन्नवर राना की शायरी उनके दिल में देश की सियासत के प्रति उनकी नफ़रत का इज़हार बार बार करती है। मुन्नवर का मानना है कि राजनीति में पैठ रखने वाले पत्थरदिल हैं जो देश की जनता से कुत्तों सा व्यवहार करते हैं।

मसलन इन अशआरों को देखिए..

सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल लगती है।

या फिर...
हुकूमत मुँह भराई के हुनर से खूब वाक़िफ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है।

राजनीति में सर्वविदित भ्रष्टाचार को भी शायर आड़े हाथों लेते हुए लिखते हैं..
वो शायर हों कि आलिम हों कि ताजिर या लुटेरे हों
सियासत वो जुआ है जिसमें सब पैसे लगाते हैं

मुनासिब है कि पहले तुम आदमखोर बन जाओ
कहीं संसद में खाने पीने कोई चावल दाल जाता है

दंगों में नेताओं की भूमिका से मुन्नवर आहत रहे हैं। इनका ये दर्द और आक्रोश इन मिसरों में साफ़ झलकता है

अगर दंगाइयों पर तेरा बस नहीं चलता
तो सुन ले ऐ हुकूमत हम तुम्हें नामर्द कहते हैं

मज़हबी मजदूर सब बैठे हैं इनको काम दो
एक इमारत शहर में काफी पुरानी और है
खामोशी कब चीख़ बन जाए किसे मालूम हैं
जुल्म कर लो जब तलक ये बेज़बानी और है

अपनी कौम को शक़ की निगाह से देखे जाने का उनमें रोष है उसका अंदाजा आप उनके इस शेर से लगा सकते हैं....
बस इतनी सी बात पर उसने हमें बलवाई लिक्खा है
हमारे घर के बरतन पे आईएसआई लिक्खा है

मकबूल शायर वाली आसी साहब इस पुस्तक की भूमिका में कहते हैं कि मुनव्वर राना एक दुखी आत्मा का नाम है। मुन्नवर के दुखों का कारण क्या है?  मुन्नवर की ये तल्खियाँ क्या सिर्फ सियासत, मज़हबी जुनून और नेताओं तक ही सीमित हैं? क्या ये दुख उनकी निजी जिंदगी से जुड़े हैं इन सवालों पर बात करेंगे इस पुस्तक चर्चा के अगले भाग में। फिलहाल तो अपने मिज़ाज के बारे में उनकी कलम ख़ुद क्या कहती है वो पढ़ लें....
मियाँ मैं शेर हूँ शेरों की गुर्राहट नहीं जाती
मैं लहजा नर्म भी कर लूँ तो झुँझलाहट नहीं जाती
 मैं एक दिन बेख्याली में कहीं सच बोल बैठा था
मैं कोशिश कर चुका हूँ, मुँह की कड़वाहट नहीं जाती


पुस्तक के बारे में
नाम :घर अकेला हो गया
मूल्य  :१२५ रुपये मात्र
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
Related Posts with Thumbnails

7 टिप्पणियाँ:

daanish on जुलाई 21, 2011 ने कहा…

जनाब मुनव्वर राणा जी को रु.ब.रु सुना है
उनकी शाईरी लाजवाब है
जितनी बार भी सुनो,, हर बार वोही लुत्फ़
वही मज़ा , वही तासीर ....
उनके बारे में पोस्ट डाल कर आपने
सब अदब नवाज़ पढने वालों पर अहसान किया है
मुबारकबाद .

प्रवीण पाण्डेय on जुलाई 21, 2011 ने कहा…

नाम सुना था, आज आपके माध्यम से पढ़ भी लिया।

रंजना on जुलाई 22, 2011 ने कहा…

बड़ा ही सुखद लगा पढना...

बहुत बहुत आभार इस सुन्दर पोस्ट के लिए..

सागर on जुलाई 23, 2011 ने कहा…

bhaut hi accha laga jaankar....

रविकर on जुलाई 23, 2011 ने कहा…

बहुत खूबसूरत प्रस्तुति ||
बधाई ||

Manish Kumar on जुलाई 29, 2011 ने कहा…

शुक्रिया आप सब का इस पुस्तक चर्चा को पसंद करने के लिए। मुन्नवर साहब की शायरी के पीछे छुपे इंसान के बारे में जानने के लिए देखें इस चर्चा का अगला भाग।

चंदन कुमार मिश्र on अगस्त 14, 2011 ने कहा…

वाह! क्या कहा है। एकदम आसान शब्दों में और वह भी छू लेने वाली पँक्तियाँ।

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie