गुरुवार, अगस्त 25, 2011

लो मशालों को जगा डाला किसी ने,भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने : प्रसून जोशी

पिछले एक हफ्ते से मन अनमना सा है। अन्ना हजारे ने देश में जो अलख जगाई है उससे एक ओर तो मन अभिभूत है पर दूसरी ओर इस बात की चिंता भी है कि क्या अन्ना इस जन आंदोलन को उसके सही मुकाम तक पहुँचा पाएँगे । आज जबकि राजनेताओं पर अविश्वास चरम पर है लोकपाल पर पूर्ण समझौते के आसार कम हैं। अन्ना के समर्थकों को समझना होगा कि ये लड़ाई जल्द खत्म नहीं होने वाली। जनसमर्थन से जन लोकपाल  बिल को संसद में पेश करवाना एक बात है पर उसपर आम सहमति बनाने के लिए सकरात्मक दबाव बनाने की जरूरत है ना कि अक्षरशः पारित करवाने की जिद पर अड़े रहने की। जिस जज़्बे को अन्ना लाखों करोड़ों आम जनों में पैदा करने में सफल रहे हैं उसे जलते रहने देना है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का ये तो पहला कदम है ऐसे कई और कदमों की जरूरत है।


नेता संविधान व संसद की सर्वोच्चता के बारे में चाहे जो कुछ भी बोलते रहें पर लोकतंत्र पर गर्व करने वाली जनता आज अगर इन संस्थाओं की कार्यशैली पर प्रश्न उठा रही है तो इसकी पूर्ण जवाबदेही इन राजनेताओं पर है। जनता के मन से इतना कटे रहने वाले ये नेता और ये सरकार अपने आप को जनता के नुमांइदे कैसे कह सकते हैं? सरकार को समझना होगा कि जनता की आशाओं को पूरा करने के लिए उसे अपने और सरकार के अंदर काम कर रहे तंत्र की कार्यशैली में व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है। इस देश की जनता बेहद सहनशील है पर इसका मतलब ये नहीं कि लोकतंत्र की आड़ में वो सब कुछ निर्बाध चलता रहे जिसकी इज़ाजत ना इस देश का कानून देता है ना संविधान।

प्रसून एक ऐसे गीतकार हैं जिनके गीतों से भी कविता छलकती है। मुंबई हमलों की बात हो या आज भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराते जनसैलाब की, प्रसून की लेखनी समय के अनुरूप लोगों की भावनाओं को उद्वेलित करने में सक्षम रही है।

देश में इस वक़्त लोगों के मन में वर्तमान हालातों से जो असंतोष व नाराजगी है उसे प्रसून जोशी ने अपनी एक कविता में बेहद संजीदगी से ज़ाहिर किया है। आज जब इस देश की नब्ज़ अन्ना की धड़कनों के साथ सुर में सुर मिला कर धड़ंक रही है आइए सुनते हैं कि प्रसून आज सत्ता में बैठे लोगों को अपनी इस कविता से क्या संदेश देना चाहते हैं?



लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने

है शहर ये कोयलों का
ये मगर न भूल जाना
लाल शोले भी इसी बस्ती में रहते हैं युगों से

रास्तो में धूल है ..कीचड़ है, पर ये याद रखना
ये जमीं धुलती रही संकल्प वाले आँसुओं से

मेरे आँगन को है धो डाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों...

आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नहीं है,
टोलियाँ जत्थे बनाकर चींखकर यूँ चलती नहीं है..
रात को भी देखने दो, आज तुम.. सूरज के जलवे
जब तपेगी ईंट तभी होश में आएँगे तलवे
तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने,


लो मशालों को जगा डाला किसी ने,
भोले थे अब कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों...

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6 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on अगस्त 25, 2011 ने कहा…

गज़ब की कविता।

अशोक सलूजा on अगस्त 25, 2011 ने कहा…

भोले थे ,बना डाला 'भाला किसी ने !!!!!
शुभकामनाये!

वाणी गीत on अगस्त 25, 2011 ने कहा…

हर देशभक्त अनमना है आज , क्या कीजे !

Archana Chaoji on अगस्त 25, 2011 ने कहा…

आभार! इसे साझा करने के लिये..

Archana Singh on अगस्त 26, 2011 ने कहा…

wah wah prasoon joshiji

Manish Kumar on अगस्त 28, 2011 ने कहा…

जो सोच कर लिखा था वो आज फलीभूत हो गया। संसद ने भी दिलदारी दिखलाई और अन्ना ने भी वादा निभाया। सच तो ये है कि इस लंबी लड़ाई का ये पहला पड़ाव है। आशा है अन्ना पूर्णतः स्वस्थ होकर अपने द्वारा जागृत युवा शक्ति को इस मुहिम में आगे भी कुशल नेतृत्व देते रहेंगे।

प्रसून जी की कविता आप सब के मन में भी जोश भर सकी जानकर अच्छा लगा।

 

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