सोमवार, जनवरी 23, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 14 : शीत लहर है,भीगे से पर हैं, थोड़ी सी धूप माँगी है...

वार्षिक संगीतमाला के दो हफ्तों का सफ़र पूरा करके हम आ पहुँचे हैं चौदहवीं पॉयदान पर जहाँ पर गीत है पिछले महिने ही प्रदर्शित हुई फिल्म 'लंका' का। गीत की गायिका हैं एक बार फिर श्रेया घोषाल। पर आज मैं बात करूँगा इस नग्मे की नवोदित युवा गीतकार‍‍-संगीतकार जोड़ी के बारे में जिनकी हिंदी फिल्म संगीत में आने की कहानी ना केवल दिलचस्प है बल्कि इस बात को पुख़्ता भी करती है कि अगर हमें अपने हुनर पर विश्वास हो तो उससे जुड़ी विधा में मुकाम बनाने के लिए भले ही संघर्ष करना पड़े पर अंततः सफलता मिलती ही है।

तो चलिए पहले बात करते हैं गीतकार सीमा सैनी की। भोपाल से ताल्लुक रखने वाली सीमा पेशे से सिविल इंजीनियर हैं। कॉलेज के समय से ही उन्हें कविताएँ लिखने का शौक़ था। कॉलेज में उन्होंने नाटकों के लिए भी काम किया।  अब इंजीनियरिंग पूरी की, तो नौकरी भी करनी थी। शुरुआत उन्होंने एक आर्किटेक्ट फर्म में काम करने से की पर दिल था कि एक अलग ही ख़्वाब बुन रहा था.... मुंबई जाने और वहाँ के फिल्म उद्योग में पाँव जमाने का ख़्वाब। माता पिता पहले अनिच्छुक थे पर बेटी की खुशियों के लिए उसे मुंबई ले जाने के लिए तैयार हो गए। नौकरी छोड़कर वर्ष 2005 में सीमा मुंबई जा पहुँची। बहुत मुश्किल से संगीतकार इस्माइल दरबार के 'दरबार' में पहुँचने का मौका मिला पर इस्माइल को उनके गीतों में कुछ खास बात नहीं दिखी। सीमा के लिए यह गहरा झटका था। वो कुछ दिन और कोशिश कर वापस भोपाल लौट आयीं।

हताशा और निराशा के इस दौर से उबरने में सीमा को तीन साल और लगे पर अंत में उन्होंने अपने दिल की बात मानी और वर्ष 2008 में अपनी किस्मत आज़माने वे एक बार फिर मुंबई जा पहुँची। कुमार शानू के एक गैर फिल्मी एलबम में  वर्ष 2009 में पहली बार उन्हें गीतकार बनने का मौका मिला। पर इससे अच्छी बात सीमा के लिए हुई वो थी एक मित्र के ज़रिए नवोदित संगीतकार गौरव डागोनकर के साथ मुलाकात।

29 वर्षीय गौरव डागोनकर अंगर आज फिल्म लंका के लिए संगीत रचना नहीं दे रहे होते तो लाखों की मासिक पगार पर वो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के वरीय प्रबंधक होते। भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद जैसे प्रतिष्ठित कॉलेज से 2006 में MBA की डिग्री लेने वाले गौरव ने जब संगीत के क्षेत्र में कूदने की सोची तो वे चारों ओर चर्चा के पात्र बन गए। MBA की डिग्री की वज़ह से गौरव को फिल्म जगत ने पहले गंभीरता से नहीं लिया। पर दो सालों के प्रयास के बाद जब उनका एलबम College Days बाजार में आया तो लोगों को उन्हें नज़रअंदाज़ करना मुश्किल हो गया। वैसे तो सीमा के साथ गौरव दो तीन फिल्मों में काम कर रहे हैं पर इस जोड़ी की सबसे पहले प्रदर्शित फिल्म है लंका

सीमा लंका के इस गीत के बारे में बताती हैं कि..

"फिल्म में ये गीत एक ऐसी लड़की पर फिल्माया गया है जिसे शहर का दबंग नेता उसके घर से उठवा कर ले जाता है और जबरन अपने साथ रखता है। मैंने जब इस किरदार के मनोभावों को समझना चाहा तो मेरे मन में एक ऐसे पंक्षी की कल्पना जागी जिसके पर बर्फीले पानी से इस तरह तर बतर हैं कि वो चाह कर भी उड़ नहीं पा रहा है और इसीलिए मैंने लिखा..

शीत लहर है,भीगे से पर हैं
थोड़ी सी धूप माँगी है
आँखो भर है नीला गगन और
ठहरा हुआ कुछ पानी है..."
कितना सजीव चित्रण किया है सीमा ने इन परिस्थितियों के बीच फँसी एक असहाय स्त्री का! गीत के अंतरों में यह एहसास पुरज़ोर होता चला जाता है। अंतरों के बीच सीमा द्वारा रचे भावों को गौरव ने कोरस के रूप में बखूबी इस्तेमाल किया है। गीत कै दौरान जब
तिनका तिनका रात उधेड़ो, दिन आज़ाद है कह दो ना
भीतर भीतर कितनी उमस है, थोड़ी साँसें दे दो ना


का स्वर गूँजता है तो हृदय में उदासी की चादर सी बिछ जाती है। मुखड़े के पहले और इंटरल्यूडंस में गौरव का दिया संगीत गीत के मूड से आपको निकलने नहीं देता। रही श्रेया की गायिकी तो वो दिन पर दिन नए आयामों को छू रही है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को दर्द में डूबे श्रेया के स्वर में..........


शीत लहर है,भीगे से पर हैं
थोड़ी सी धूप माँगी है
आँखो भर है नीला गगन और
ठहरा हुआ कुछ पानी है
शीत लहर है....

सुनसान राहों पे क्यूँ शर्मसार साये हैं
बददुआ सी लगती है क्यूँ, कोसती हवाएँ हैं
हमसे क्या गुनाह हुआ है, कैसी ये सज़ाएँ हैं
भीगी नज़र है, शाम ओ सहर है
थोड़ी सी ख़ैर माँगी है
आँखो भर है नीला गगन और
ठहरा हुआ कुछ पानी है
शीत लहर है....

तिनका तिनका रात उधेड़ो, दिन आज़ाद है कह दो ना
भीतर भीतर कितनी उमस है, थोड़ी साँसें दे दो ना
थोड़े थोड़े पर हैं भोले, कुछ आकाश भी दे दो ना
भीतर भीतर कितनी उमस है, थोड़ी साँसें दे दो ना, थोड़ी साँसें दे दो ना

गुमसुम पहाड़ों पे जब सूरज ये ढलता है
खारे खारे आँसुओ से जख़्म और जलता है
तैरता है रास्तों पर, इक धुआँ सा खलता है
लंबा सफ़र है, बिसरी डगर है
थोड़ी सी राह माँगी है
शीत लहर है....



(चलते चलते मैं हृदय से आभारी हूँ सीमा सैनी का जिन्होंने 'एक शाम मेरे नाम' के लिए इस गीत, अपने संगीतिक सफ़र और आज के गीत संगीत के बारे चर्चा के लिए वक़्त निकाला।)
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9 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

अन्य क्षेत्रों से संगीत में प्रतिभा आने से संगीत ही धनी होगा..

Amita Maurya on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

nice song and lyrics too .....

Sanjay Verma on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

एक सिविल इंजीनियर और एम.बी.ए.(आनर्स) होने के नाते मैं संगीतकार गौरव डागोनकर और गीतकार सीमा सैनी का अभिनंदन करता हूं और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं....

Manish Kumar on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

प्रवीणजी बिल्कुल ऐसे लोग जिनके लिए गीत संगीत एक पेशे से बढ़कर हो ऊनसे ही अच्छे परिणाम की उम्मीद की जा सकती है।

अमिता अच्छा लगा जानकर कि आपको भी गीत के बोल पसंद आए।

संजय जी इस बात का तो मुझे ख्याल ही नहीं था। आपकी कामना में मैं आपके साथ हूँ।

विश्व दीपक on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

मनीष जी,
इस गाने का एक और वर्ज़न है... फिल्म की हिरोईन टिया (ट्विंकल) वाजपेयी की आवाज़ में... वो भी बहुत खूबसूरत है...

Manish Kumar on जनवरी 24, 2012 ने कहा…

मैंने उसे सुना है तनहा। आप तो जानते ही होंगे टिया यानि ट्विंकल पहले गायिकी में ही अपनी मंजिल तलाशने सारेगामा में आई थीं। मैंने पहली बार उसी कार्यक्रम में उन्हें सुना था। मेरे ख्याल से इससे पहले वो अपनी फिल्म Haunted का भी एक गीत गा चुकी हैं।

रंजना on जनवरी 25, 2012 ने कहा…

इम्प्रेसिव...बहुत ही सुन्दर...

गीत संगीत मन को छू अपने प्रभाव में ले लेने वाले हैं...

इनका जीवन भी अत्यंत प्रभावित करने वाला है...

फिल्म देखने की अपार उत्सुकता हो आई...

आभार तथ्यों संग इस भावपूर्ण कर्णप्रिय गीत से अवगत कराने हेतु...

Kavita Malaiya on जनवरी 27, 2012 ने कहा…

sachmuch bahut sunder....

***Punam*** on जनवरी 29, 2012 ने कहा…

ek ajab sa talmel....geet ke bol,sangeet aur aawaaz...kahin suduoor tak le kar chali jaati hai...

 

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