शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 15 : क्या आपको भी अपने दिल पे शक़ है ?

पिछले साल एक फिल्म आई थी इश्क़िया जिसका गीत दिल तो बच्चा है जी.. वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत बना था। निर्देशक मधुर भंडारकर को गीत का मुखड़ा इतना पसंद आया कि उन्होंने इसी नाम से एक फिल्म बना डाली। फिल्म तो मुझे ठीक ठाक लगी, पर खास लगा इसका एक प्यारा सा नग्मा जिसे लिखा है गीतकार नीलेश मिश्रा ने।

ओ हो! लगता है मैं गलत कह गया भई नीलेश को सिर्फ गीतकार कैसे कहा जा सकता है। अव्वल तो वे एक पत्रकार थे वैसे अभी भी वे शौक़िया पत्रकारिता कर रहे हैं (आजकल यूपी चुनाव कवर कर रहे हैं)। नीलेश एक लेखक, कवि और एक ब्लॉगर भी हैं। हाल ही में राहुल पंडिता के साथ मिलकर उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था The Absent State। इस किताब में उन्होंने देश में फैले माओवाद की वज़हों को ढूँढने का प्रयास किया है। 

नीलेश एक रेडिओ कलाकार व कहानीकार भी हैं। आप में से जो एफ एम रेडिओ सुनते हों वे बिग एफ़ एम पर उनके कार्यक्रम 'याद शहर' से जरूर परिचित होंगे जिसमें वो अपनी लिखी कहानियाँ गीतों के साथ सुनवाते थे। ठहरिए भाई लिस्ट पूरी नहीं हुई नीलेश एक बैंड लीडर भी हैं। उनके बैंड का नाम है A Band Called Nine। इस अनोखे बैंड में वो स्टेज पर जाकर कहानियाँ पढ़ते हैं और फिर उनके बाकी साथी गीत गाते हैं। तो चकरा गए ना आप  इस बहुमुखी प्रतिभा के बारे में जानकर..

बड़ी मज़ेदार बात है कि नीलेश मिश्रा के गीतकार बनने में परोक्ष रूप से स्वर्गीय जगजीत सिंह का हाथ था। लखनऊ,रीवा और फिर नैनीताल में अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने वाले नीलेश कॉलेज के ज़माने से कविताएँ लिखते थे। जैसा कि उनकी उम्र का तकाज़ा था ज्यादातर इन कविताओं की प्रेरणा स्रोत उनकी सहपाठिनें होती। जगजीत सिंह के वे जबरदस्त प्रशंसक थे। सो एक बार उन्होंने उनको अपनी रचना जगजीत जी को गाने के लिए भेजी पर उधर से कोई जवाब नहीं आया। पर उनके दिल में गीत लिखने का ख्वाब जन्म ले चुका था। बाद में मुंबई में अपनी किताब के शोध के सिलसिले में वो महेश भट्ट से मिले। इस मुलाकात का नतीज़ा ये रहा कि नीलेश को भट्ट साहब ने फिल्म जिस्म के गीत लिखने को दिए। इस फिल्म के लिए नीलेश के लिखे गीत जादू है नशा है... ने सफलता के नए आयाम चूमें।

वार्षिक संगीतमालाओं में नीलेश के लिखे गीत बजते रहे हैं । फिल्म रोग का नग्मा मैंने दिल से कहा ढूँढ लाना खुशी और गैंगस्टर का गीत लमहा लमहा दूरी यूँ पिघलती है उनके लिखे मेरे सर्वप्रिय गीतों में से एक है।
वार्षिक संगीतमाला की पॉयदान पन्द्रह का गीत प्रेम में पड़े दिल की कहानी कहता है। नीलेश की धारणा रही है कि असली रोमांस छोटे शहरों में पनपता है। अपने कॉलेज की यादों में  तैरते इन लमहों को अक्सर वे अपने गीतों में ढाला करते हैं। इस गीत में भी उनका अंदाज़ दिल को जगह जगह छूता है। नीरज का दिल के लिए ये कहना....

कोई राज़ कमबख्त है छुपाये
खुदा ही जाने कि क्या है
है दिल पे शक मेरा
इसे प्यार हो गया

.....मन जीत लेता है। मुखड़े के बाद अंतरों में भी नीलेश कमज़ोर नहीं पड़े हैं। गीत के शब्द ऐसे हैं कि इस नग्में को गुनगुनाते हुए मन हल्का हो जाता है। संगीतकार प्रीतम की गिटार में महारत सर्वविदित है। इस गीत के मुखड़े में उन्होंने गिटार के साथ कोरस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। प्रीतम ने इस गीत को गवाया हैं युवाओं के चहेते गायक मोहित चौहान जिनकी आवाज़ इस तरह के गीतों में खूब फबती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को..


अभी कुछ दिनों से लग रहा है
बदले-बदले से हम हैं
हम बैठे-बैठे दिन में सपने
देखते नींदें कम हैं

अभी कुछ दिनों से सुना है दिल का
रौब ही कुछ नया है
कोई राज़ कमबख्त है छुपाये
खुदा ही जाने कि क्या है
है दिल पे शक मेरा
इसे प्यार हो गया...

अभी कुछ दिनों से मैं सोचता हूँ
कि दिल की थोड़ी सी सुन लूँ
यहाँ रहने आएगी
दिल सजा लूँ मैं
ख्वाब थोड़े से बुन लूँ
है दिल पे...

तू बेख़बर, या सब ख़बर
इक दिन ज़रा मेरे मासूम दिल पे गौर कर
पर्दों में मैं, रख लूँ तुझे
के दिल तेरा आ ना जाए कहीं ये गैर पर
हम भोले हैं, शर्मीले हैं
हम हैं ज़रा सीधे मासूम इतनी ख़ैर कर
जिस दिन कभी जिद पे अड़े
हम आएँगे आग का तेरा दरिया तैर कर

अभी कुछ दिनों से लगे मेरा दिल
धुत हो जैसे नशे में
क्यूँ लड़खड़ाए ये बहके गाए
है तेरे हर रास्ते में
है दिल पे...

बन के शहर चल रात भर
तू और मैं तो मुसाफ़िर भटकते हम फिरे
चल रास्ते जहाँ ले चले
सपनों के फिर तेरी आहों में थक के हम गिरे
कोई प्यार की, तरकीब हो
नुस्खे कोई जो सिखाये तो हम भी सीख लें
ये प्यार है, रहता कहाँ
कोई हमसे कहे उससे जा के पूछ लें

मैं सम्भालूँ पाँव फिसल न जाऊँ
नयी-नयी दोस्ती है
ज़रा देखभाल सँभल के चलना
कह रही ज़िन्दगी है
है दिल पे... लूँ


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4 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on जनवरी 20, 2012 ने कहा…

नयेपन की फुहार से भरा लेखन..

Abhishek Ojha on जनवरी 20, 2012 ने कहा…

नीलेश मिश्र को तो ब्लॉग फेसबुक पर पढ़ते रहते हैं. ये फिल्म भी देखी हुई है. बढ़िया.

Anu Singh Choudhary on जनवरी 21, 2012 ने कहा…

‎‎Neelesh Misra , you have to read this. :)

Manish Kumar on जनवरी 29, 2012 ने कहा…

प्रवीण, अभिषेक, अक्षय गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया।

अनु जी, नीलेश को चुनावों से फुर्सत मिले तव तो :)

 

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