गीतमाला की पिछली दो पॉयदानों पर आपने दो अलग मिज़ाज के गीत सुने। जहाँ आईना बदल गया..... के गहरे बोलों में उदासी का रंग था तो वहीं आफ़रीन....... रूमानी रंगों से सराबोर था। वार्षिक संगीतमाला की बीसवीं पॉयदान पर जो गीत आज मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ वो इन दोनों रंगों से अलग है। ज़िंदगी ना मिले दोबारा के इस गीत में मौज है, मस्ती है और उस उमंग को आप तक पहुँचाने वाला जबरदस्त संगीत है।
जिन्होंने ये फिल्म देखी है या इस गीत को टीवी पर देखा है वो जानते होंगे कि इस गीत में स्पेन के ला टोमेटीना पर्व को पूरे हुड़दंग के साथ पर्दे पर क़ैद करने की कोशिश की गई है। शकर अहसान लॉए के समक्ष चुनौती थी कि संगीत में जिस उमंग और उर्जा की जरूरत है उसे वो कैसे उत्पन्न करें? एहसान बताते हैं कि कीबोर्ड में रोबोटिक वॉयस एफेक्ट के जरिए ऊ आ... की रिदम बनी और उससे खेलते खेलते पूरे गीत का संगीत बन गया। इस गीत में इस तिकड़ी का दिया संगीत ऐसा है जो आपको अपनी जगह से उठाकर थिरकने पर मज़बूर कर दे।
जावेद साहब ने भी अपने बोलो को गीत की परिस्थिति के अनुसार रचा है। आख़िर जब हम इस तरह के माहौल में अपने आप को पाते हैं तो फिर एक नई उमंग और तरंग मन में प्रवाहित होने लगती है। और उस तरंग के साथ हमारा ख़ुद का अस्तित्व नहीं रह जाता । रहती है बस सारे समूह के साथ मस्ती के रंग में अपने को डुबो लेने की इच्छा । इसीलिए तो जावेद साहब गीत के मुखड़े में इन हालातों को कुछ यूँ बयान करते हैं
इक जुनूँ इक दीवानगी
हर तरफ़ हर तरफ़
बेखुदी बेखुदी बेखुदी
हर तरफ़ हर तरफ़
कहे हल्के हल्के,ये रंग छलके छलके
जो किस्से हैं कल के भुला दे तू
कोई हौले हौले, मेरे दिल से बोले
किसी का तू हो ले, चल जाने दे कोई जादू
और विशाल और शंकर की मुख्य आवाज़ों में ये मुखड़ा सुनते ही मन झूमने लगता है। टमाटरों की वर्षा से पूरी राह की रंगत लाल हो जाती है और फिर कोरस का स्वर उभरता है..
Oo-Aa Take The World And Paint it Red
Oo-Aa Paint it Red
जावेद अख्तर हल्के फुल्के शब्दों के साथ अगले दो अंतरों में गीत का ये मूड बरक़रार रखते हैं..
ये पल जो भरपूर हैं जो नशे में चूर हैं
इस पल के दामन में हैं मदहोशियाँ
अब तो ये अंदाज़ है हाथों हाथों साज है
आवाज़ों में घुलती है रंगीनियाँ
कहे हल्के हल्के ...जादू
सब जंजीरें तोड़ के, सारी उलझन छोड़ के
हम हैं दिल है और है आवारगी
कुछ दिन से हम लोग पर, आता है सबको नज़र
आया है जो दौर है आवारगी
कहे हल्के हल्के ...जादू
क्या आप जानते हैं कि इस गीत में ला टोमेटीना पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए करीब एक करोड़ रुपये में 16 टन टमाटरों को पुर्तगाल से मँगाया गया। फिल्म के पर्दे पर आपको फरहान, अभय, हृतिक और कैटरीना भले ही टमाटरों की इस फेंका फेंकी में प्रफुल्लित दिखाई पड़े पर असलियत ये थी कि शूटिंग के थोड़ी देर में ही टमाटर की बास से उनकी हालत ये थी कि हर शॉट के बाद वो गर्म पानी की बाल्टी अपने सर पर डाल रहे थे। टमाटरों के दिन भर के इस सानिध्य ने कलाकारों की ये दशा कर दी कि उन्होंने हफ्तों अपने भोजन के किसी भी हिस्से में टमाटर का मुँह नहीं देखा। तो आइए देखते हैं इस गीत का फिल्मांकन..
5 टिप्पणियाँ:
सुन्दर गीत..
superb song
सुन्दर गीत| धन्यवाद|
ये फिल्म देख कर आया था. शायरी अच्छी थी बीच बीच में. गाने कुछ ख़ास असर छोड़ नहीं पाए थे !
अभिषेक सही कहा तुमने जितनी इस फिल्म के गीतों से अपेक्षा थी उस कसौटी पर तो गीत खरे नहीं उतरे।
प्रवीण, पटाली, मृत्युंजय इस गीत को पसंद करने के लिए धन्यवाद !
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