भावनाएँ तो सबके मन में होती हैं और उनकों अभिव्यक्त करने के लिए जरूरी भाषा भी । पर फिर भी दिल के दरवाजों में बंद उन एहसासों को व्यक्त करना हमारे लिए दुरूह हो जाता है। पर ये शायर, उफ्फ बार बार उन्हीं शब्दों से तरह तरह से खेलते हुए कमाल के भाव रच जाते हैं। ऐसे लफ़्ज़ जो ना जाने दिल कबसे किसी को कहने को आतुर था। दोस्तों यकीन मानिए वार्षिक संगीतमाला की छठी पॉयदान के गीत में भी कुछ ऐसे जज़्बात हैं जो शायद हम सब ने अपने किसी ख़ास के लिए ज़िंदगी के किसी मोड़ पर सोचे होंगे।
और इन जज़्बों में डूबा अगर ऐसा कोई गीत गुलज़ार ने लिखा हो और आवाज़ संगीतकार विशाल भारद्वाज की हो तो वो गीत किस तरह दिल की तमाम तहों को पार करता हुआ अन्तरमन में पहुँचेगा, वो इन विभूतियों को पसंद करने वालों से बेहतर और कौन समझ सकता है?
गीतकार संगीतकार जोड़ी का नाम सुनकर तो आप समझ ही गए होंगे कि ये गीत फिल्म सात ख़ून माफ़ का है। पर इससे पहले कि इस गीत की बात करूँ, आप सबको ये बताना दिलचस्प रहेगा कि ये गीत कैसे बना। ये बात तबकी है जब फिल्म 'सात ख़ून माफ़' की शूटिंग हैदराबाद में शुरु हो चुकी थी पर अब तक इसके गीतों पर काम शुरु भी नहीं हो पाया था। हैदराबाद की ऐसी ही एक शाम को ज़ामों के दौर के बीच गुलज़ार ने विशाल को अपनी एक नज़्म का टुकड़ा सुनाया और कहा अब इसे ही आगे डेवलप करो। नज़्म कुछ यूँ थी...
गैर लड़की से कहे कोई मुनासिब तो नही
इक शायर को मगर इतना सा हक़ है
पास जाए और अदब से कह दे
इक ज़रा चेहरा उधर कीजै इनायत होगी
आप को देख के बड़ी देर से मेरी साँस रुकी है
विशाल ने जब ये नज़्म सुनी तो उनका दिल धक्क सा रह गया। उन्हें गुलज़ार की ये सोच कि किसी लड़की की खूबसूरती इस क़दर लगे कि कोई जा कर कहे कि मोहतरमा अपना चेहरा उधर घुमा लें नहीं तो ये साँस जो आपको देखकर रुक गई है हमेशा के लिए रुक जाएगी बहुत ही प्यारी लगी। और विशाल ने आख़िर को दो पंक्तियों को लेते हुए मुखड़ा तैयार किया। विशाल से एक रेडियो इंटरव्यू में गीत के अज़ीब से लगने वाले मुखड़े के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा..
"हाँ मुझे मालूम है कि इस गीत को सुननेवाले मुखड़े में प्रयुक्त शब्द बेकराँ को बेकरार समझेंगे पर वो शब्द गीत के मुखड़े को खूबसूरत बना देता है। दरअसल बेकराँ का मतलब है बिना छोर का.."
डूबने लगे हैं हम
साँस लेने दीजै ना लिल्लाह
साँस लेने दीजै ना लिल्लाह
(भई अब तो अपनी आँखे बँद कर लो ! बिना छोर की इन खूबसूरत आँखों की गहराई मैं मैं डूबने लगा हूँ। अब क्या तुम मेरी जान लोगी ?) है ना कितना प्यारा ख़याल !
गुलज़ार पहले अंतरे में अपनी प्रेयसी को देख वक़्त के ठहरने की बात करते हैं और दूसरे में बीती रात के उन अतरंग क्षणों को याद कर शरमा उठते हैं। विशाल भारद्वाज ने अपनी फिल्मों में बतौर गायक गुलज़ार के लिखे वैसे गीत चुने हैं जिनमें खूबसूरत कविता हो, गहरे अर्थपूर्ण बोल हों जो गायिकी में एक ठहराव माँगते हों। चाहे वो फिल्म ओंकारा का ओ साथी रे दिन डूबे ना हो या फिर फिल्म कमीने का इक दिल से दोस्ती थी या फिर इस गीत की बात हो, ये साम्यता साफ़ झलकती है।
बारिश की गिरती बूँदों की आवाज़ से गीत शुरु होता एक ऐसे संगीत के साथ जो कोई रहस्य खोलता सा प्रतीत होता है। ये एक ऐसा गीत है जिसकी सारी खूबियाँ आपको एक बार सुनकर नज़र नहीं आ सकती। यही वज़ह है जितनी दफ़े इसे सुना है उतनी आसक्ति इस गीत के प्रति बढ़ी है। तो आइए सुनें इस बेहद रूमानी नग्में को जो कल के प्रेम पर्व के लिए तमाम 'एक शाम मेरे नाम' के पाठकों के लिए मेरी तरफ़ से छोटा सा तोहफा है..
बेकराँ हैं बेकरम आँखें बंद कीजै ना
डूबने लगे हैं हम
साँस लेने दीजै ना लिल्लाह
इक ज़रा चेहरा उधर कीजै इनायत होगी
आप को देख के बड़ी देर से मेरी साँस रुकी है
बेकराँ है बेकरम...
इक ज़रा देखिए तो आपके पाँव तले
कुछ तो अटका है कहीं
वक़्त से कहिए चले
उड़ती उड़ती सी नज़र
मुझको छू जाए अगर
एक तसलीम को हर बार मेरी आँख झुकी
आपको देख के...
आँख कुछ लाल सी है
रात जागे तो नहीं
रात जब बिजली गयी
डर के भागे तो नहीं
क्या लगा होठ तले
जैसे कोई चोट चले
जाने क्या सोचकर इस बार मेरी आँख झुकी
आप को देख के बड़ी देर से मेरी साँस रुकी है
बेकराँ हैं बेकरम आँखें बंद कीजै ना
डूबने लगे हैं हम
साँस लेने दीजै ना लिल्लाह
इक ज़रा चेहरा उधर कीजै इनायत होगी
आप को देख के बड़ी देर से मेरी साँस रुकी है
बेकराँ है बेकरम...
इक ज़रा देखिए तो आपके पाँव तले
कुछ तो अटका है कहीं
वक़्त से कहिए चले
उड़ती उड़ती सी नज़र
मुझको छू जाए अगर
एक तसलीम को हर बार मेरी आँख झुकी
आपको देख के...
आँख कुछ लाल सी है
रात जागे तो नहीं
रात जब बिजली गयी
डर के भागे तो नहीं
क्या लगा होठ तले
जैसे कोई चोट चले
जाने क्या सोचकर इस बार मेरी आँख झुकी
आप को देख के बड़ी देर से मेरी साँस रुकी है
बेकराँ है बेकरम...
फिल्म में ये गीत फिल्माया गया है इरफ़ान खाँ और प्रियंका चोपड़ा पर । इरफ़ान का किरदार एक शायर का है। गीत के पहले वो एक शेर पढ़ते हैं
इस बार तो यूँ होगा थोड़ा सा सुकूँ होगा
ना दिल में कसक होगी, ना सर पर जुनूँ होगा
ना दिल में कसक होगी, ना सर पर जुनूँ होगा
9 टिप्पणियाँ:
गुलज़ार का कोई सानी नहीं है, पंचम दा के बाद विशाल भारद्वाज का साथ उनके लफ़्ज़ों को सुकून देता सा लगता है. ये गीत वाकई बहुत खूबसूरत है. मनीष जी,शुक्रिया उस छोटी सी नज़्म से मिलवाने के लिए.
Is kadar hamein dekh kar,
saja na deeje,
Anjaane mein he sahi,
Ek baar mulaakat ki duaa to kije....:-)
विशाल इन लफ्जों की रूह को समझते है , इनकी उदासियो को भी , ओर गुलज़ार को भी ....दरअसल शायर से मुतासिर हुए बगैर अच्छा कम्पोज़ करना मुश्किल काम है .सच कहूँ तो आर डी के बाद अगर किसी ने गुलज़ार को "पूरा "समझा है तो वो विशाल ही है ....बेकराँ मुझे बेहद अज़ीज़ है....विशाल की आवाज को बहुत सूट करता है , विशाल जानते है रहमान की तरह की उन्हें कहाँ ओर कब गाना है .
गुलजार के शब्द स्वयं ही गाते हैं..
गजब का गाना है ! गाने सुनना काम हो गया है. लेकिन ये रिपीट मोड में चलने वाला गाना है.
1 of my fav
विशाल और गुलजार .........उफ़ ....सच ही तो कह रहे हैं आप जान पर बन आती है.... बेमिसाल शायरी और सुरों के तीर से बचना भी नहीं चाहते और मारना भी नहीं चाहते .....खैर बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुतिकरण !
वाह ..............
अंकित बिल्कुल सहमत हूँ तुम्हारी राय से। रही उस नज़्म की बात तो उसे सुनने के बाद तो गीत का मज़ा ही दूना हो गया !
राज कुमार हम्म्म लगता है गुलज़ार ने तुम्हारे कवि मन को जागृत कर दिया।
प्रवीण ये भी सही कहा आपने..
अभिषेक व राकी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया !
अनुराग व सोनारूपा जी विशाल गुलज़ार की जोड़ी पर व्यक़्त आपकी भावनाओं से पूरी तरह सहमत हूँ।
मुझे तो लगता है कि रहमान जैसा संगीतकार भी गुलज़ार के लेखन से वो तालमेल नहीं बिठा सका है जितना करीब आज के दौर में विशाल या सत्तर के दशक में पंचम दा पहुँचे थे।
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