होली का हंगामा थम चुका है। सप्ताहांत की इन छुट्टियों के बाद एक अज़ीब सी शान्ति का अहसास तारी है। ये सन्नाटा उदासी का सबब नहीं। मन तो माहौल में बहती खामोशी में ही रमना चाहता है। वैसे भी उत्साह और उमंग की पराकाष्ठा के बाद कौन सा मन सुकून के दो पल नहीं चाहेगा। ऐसे पलों में जब गुलज़ार के लिखे और हेमंत दा के गाए इस गीत का साथ आपके पास हो तो समझिए बस परम आनंद है।
वैसे तो गुलज़ार और हेमंत दा का नाम जब भी एक साथ आता है तो सबसे पहले याद फिल्म ख़ामोशी की ही आती है। वो शाम कुछ अज़ीब थी, प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो और तुम्हारा इंतज़ार है पुकार लो जैसे संवेदनशील गीतों को भला कौन भूल सकता है ? पर आज जिस फिल्म के गीत की बात मैं कर रहा हूँ वो गीत है फिल्म 'सन्नाटा 'से जो कि फिल्म 'ख़ामोशी' के तीन साल पहले यानि 1966 में प्रदर्शित हुई थी।
ये एक छोटा सा नग्मा है। गुलज़ार ने अंतरों में ज्यादा शब्द खर्च नहीं किए, ना ही उनके भावों में जटिलता है। जैसा कि गुलज़ार प्रेमी जानते हैं कि गुलज़ारिश गीत एकबारगी में ही पकड़ में आ जाते हैं। पर पहली बार जब मैंने इस गीत को सुना था तो कम से कम मैं तो अंदाज़ नहीं ही लगा पाया था कि इसे गुलज़ार ने लिखा है।
पर इस गीत में कुछ तो ऐसा है कि एक बार सुन कर ही आप इसके हो के रह जाते हैं। एक तो गुजरते जीवन के प्रति संतोष का भाव मन को सुकून पहुँचाता है तो दूसरी ओर जिस भावपूर्ण अंदाज़ में हेंमंत दा गीत को निबाहते हैं कि अन्तरमन तक गदगद हो जाता है। हेमंत दा ने गीत में संगीत नाममात्र का रखा है। उनके स्वर को संगत देता घड़ा और हारमोनियम पूरे गीत में पार्श्व में बजता रहा है।
वैसे ये तो बताइए मुझे इस गीत का कौन सा अंतरा सबसे प्रिय लगता है? हाँ जी वही जिसमें गुलज़ार सहर, रात और दोपहर के बदले शाम को चुनने की बात करते हैं। आख़िर इस चिट्ठे का नाम एक शाम मेरे नाम यूँ ही तो नहीं पड़ा ना :) !
पर इस गीत में कुछ तो ऐसा है कि एक बार सुन कर ही आप इसके हो के रह जाते हैं। एक तो गुजरते जीवन के प्रति संतोष का भाव मन को सुकून पहुँचाता है तो दूसरी ओर जिस भावपूर्ण अंदाज़ में हेंमंत दा गीत को निबाहते हैं कि अन्तरमन तक गदगद हो जाता है। हेमंत दा ने गीत में संगीत नाममात्र का रखा है। उनके स्वर को संगत देता घड़ा और हारमोनियम पूरे गीत में पार्श्व में बजता रहा है।
वैसे ये तो बताइए मुझे इस गीत का कौन सा अंतरा सबसे प्रिय लगता है? हाँ जी वही जिसमें गुलज़ार सहर, रात और दोपहर के बदले शाम को चुनने की बात करते हैं। आख़िर इस चिट्ठे का नाम एक शाम मेरे नाम यूँ ही तो नहीं पड़ा ना :) !
बस एक चुप सी लगी है नहीं उदास नहीं
कहीं पे साँस रुकी है नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है
कोई अनोखी नहीं ऐसी ज़िंदगी लेकिन
खूब न हो..
मिली जो खूब मिली है.
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है ...
सहर भी ये रात भी
दुपहर भी मिली लेकिन
हमीं ने शाम चुनी,
हमीं ने....शाम चुनी है
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है ...
वो दास्ताँ जो हमने कही भी
हमने लिखी
आज वो ...खुद से सुनी है
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है
यूँ तो ये गीत मुझे हेमंत दा की आवाज़ में ही सुनना पसंद है पर इस गीत को हेमंत दा ने लता जी से भी गवाया है। इस वर्जन में हेमंद दा ने संगीत थोड़ा भिन्न रखा है। तो चलते चलते लता जी को भी सुन लीजिए..
23 टिप्पणियाँ:
सुर मधुर गीत और उस पर आपका कहन ......लाजबाब !
ये सन्नाटा उदासी का सबब नहीं। मन तो माहौल में बहती खामोशी में ही रमना चाहता है।..kya baaat...bahut sundar
बहुत सुंदर पोस्ट ...
दोनों गाने सुने ...हेमंत दा की आवाज़ में संगीत के साथ एक ख़ामोशी भी सफर कर रही है ....ह्रदय के ज्यादा करीब लगा उनका गायन ...!!
आभार इन नायाब गीतों के लिए ....
माहौल से मेल खाता खूबसूरत गीत !
आपके ब्लॉग पर आना सुकून देता है....
कहीं कुछ छू जाता है दिल को हौले से.............
बहुत सुन्दर.
शुक्रिया.
Dear Manish Sir,
I feel excited after reading your post each & every time more than earlier.
Thanking U a lot,
Dayanand Sahu
गज्ज़ब...
किस किस कोने से ढूंढ मोती निकाल लाते हैं आप...
न सुनवाते आप तो अनसुना ही रह जाता यह..
बहुत बहुत बहुत आभार...
मन मोहक गीत से सजी बहुट ही सुंदर एवं सार्थक रचना...
dear Manish
Gulzar aur Hemant da wah aise palo men jab aap masti aur tarang se lablabain ho aisa lagta hai ki oxygen paida kar ne liye hawa ko seetal kar -180 degree per leaaya ho bahoot sunder
ashok mehra
Kayi baar aapki udaasi ko kahin aur se lafz mil jaate hain.
जब भाव प्रचुर स्पष्ट हो तो कम शब्द ही सब कह जाते हैं।
love these lines ...
वो दास्तान जो हमने कही भी
हमने लिखी
आज वो
खुद से सुनी है
नहीं उदास नहीं
बस एक चुप सी लगी है
हमें भी हेमंत कुमार के गाने बड़े अच्छे लगते हैं. छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा, याद किया दिल नें कहां हो तुम, ये नयन डरे डरे, ना तुम हमें जानो, बस इक चुप सी लगी है, जैसे गानें हमारे पसंदीदा गानों की सूची में रहे हैं..
हेमंत दा नें कुछ रवीन्द्र संगीत भी गाया है, जो मैं अक्सर सुनता रहता हूं..
मनीष....
आपका selection of song is too good ......
नए हों या पुराने....
एक से एक बेहरतीन...
शुक्रिया.....
ये ठीक नहीं मनीष.....
इस तरह के गाने पोस्ट करना बैन है...
मन ही नही भर रहा है...६ बार सुन चुके हैं.....
ये परेशान करने का अच्छा तरीका है....!!
फिर भी शुक्रिया.....!!!
manish...
its really bad....!!
Hemant da ka nasha nahin utar raha hai.......!!
very bad choice.....!!
abhi do-chaar baar aur sunna padega....!!
Too bad Manish....
aaj bhi nahin utra nasha...
pahle se hi suna hua hai hai ye....
lekin aaj gaane ke bol n jaane kya kya kah rahe hain...
aur music....
Hemant Da....
pata nahin kya nasha hai aaj....!!
सोनरूपा जी, रश्मि जी शु्क्रिया !
रविकर जी आभार !
अनुपमा जी वैसे तो लता जी का भी वर्जन अच्छा है पर यहाँ हेमंद दा की बात ही कुछ और है।
वाणी गीत, अनु, साहू, राजना जी, पल्लवी, अशोक जी, अमिता गीत आप सबको पसंद आया जानकर खुशी हुई।
प्रवीण सही कहा आपने !
अनु सिंह चौधरी ऐसा क्या..!
प्रशांत हेमंत दा को आप पसंद करते हैं जानकर अच्छा लगा। चूंकि आप बंगाली परिवेश से जुड़े हैं एक बात आपसे जानना चाहूँगा। टैगोर ने जिन गीतों को संगीतबद्ध किया क्या बाकी कलाकार उन्हीं धुनों पर उनके गीत गाते रहे हैं और क्या इसीलिए इसे रवींद्र संगीत कहा जाता है?
पूनम जी आपका सा ही हाल पिछले कुछ दिनों से मेरा रहा है। बहरहाल मेरी पसंद आपको भी भाती है जानकर खुशी हुई।
beautiful song, had never heard before. thanx for sharing.
bhut unda..... cnt explain
manish g mai bare arse bad aapko kuchh likh raha hoo, maafi chahta hoo lekin aap wakai sagar se moti chun lete hai
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