बुधवार, अप्रैल 04, 2012

मेहदी हसन के दो नायाब फिल्मी गीत : मुझे तुम नज़र से.. और इक सितम और मेरी जाँ ..

बतौर ग़ज़ल गायक तो मेहदी हसन की गायिकी से शायद ही कोई संगीत प्रेमी परिचित ना होगा। पर ये बात भारत में कम ही लोगों को पता है कि ग़ज़ल गायिकी के इस बादशाह ने 1960-80 के दशक में साठ से ज्यादा पाकिस्तानी फिल्मों में पार्श्वगायक की भूमिका अदा की। आज भी पाकिस्तान में उनके गाए पुराने नग्मे चाव से सुने जाते हैं। तो आज आपसे बातें होगी ऐसे ही दो गीतों के बारे में जिनमें एक तो भारत में भी बेहद मशहूर है। 


इन दोनों गीतों के बारे में एक और साम्यता ये है कि इन्हें लिखनेवाले थे मसरूर अनवर जिन्हें पाकिस्तानी फिल्म उद्योग के लोकप्रिय गीतकार का दर्जा प्राप्त था। मसरूर के लिखे हिट गीतों की फेरहिस्त का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वो दस से ज्यादा बार निगार अवार्ड से सम्मानित हुए जो कि पाकिस्तान में हमारे फिल्मफेयर एवार्ड के बराबर की हैसियत रखता है।

1967 में परवेज़ मलिक ने एक फिल्म बनाई थी दो राहा। इस फिल्म का सिर्फ एक गीत मेहदी हसन साहब ने गाया था। फिल्म के संगीतकार थे सुहैल राना। गीत में तीन बातें गौर करने की है। एक तो ग़ज़ल सम्राट की आवाज़ जिसका पैनापन उस समय चरम पर था। दूसरी संगीतकार सुहैल राना द्वारा गीत के मुखड़े और इंटरल्यूड्स में रची हुई पियानो की धुन। तीसरे इस गीत को सुनने के बाद कोई भी संगीतप्रेमी इसे गुनगुनाए बिना नहीं रह सकता। इतनी आसानी से ये गीत होठों पर उतर आता है कि क्या कहें!

मेहदी साहब ने बाद अपने लाइव कन्सर्ट में इस गीत ग़ज़ल के अंदाज़ में  पेश करना शुरु कर दिया था।  पर मुझे आज भी ज्यादा आनंद इसके फिल्मी संस्करण को सुनने में ही आता है।


मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
मुझे तुम कभी भी भुला ना सकोगे
ना जाने मुझे क्यूँ यक़ीं हो चला है
मेरे प्यार को तुम मिटा ना सकोगे
मुझे तुम नज़र से....

मेरी याद होगी, जिधर जाओगे तुम,
कभी नग़मा बन के, कभी बन के आँसू
तड़पता मुझे हर तरफ़ पाओगे तुम
शमा जो जलायी मेरी वफ़ा ने
बुझाना भी चाहो, बुझा ना सकोगे
मुझे तुम नज़र से....

कभी नाम बातों में आया जो मेरा
तो बेचैन हो हो के दिल थाम लोगे
निगाहों पे छाएगा ग़म का अँधेरा
किसी ने जो पूछा, सबब आँसुओं का
बताना भी चाहो, बता ना सकोगे
मुझे तुम नज़र से....

1968 में आई फिल्म सैक़ा के लिए मसरूर अनवर ने एक बेहद संज़ीदा नज़्म लिखी। क्या कमाल का मुखड़ा था इक सितम और मेरी जाँ अभी जाँ बाक़ी है..। मेहदी साहब ने भी अपनी आवाज़ में गीत की भावनाओं को क्या खूब उतारा। आप खुद ही सुन लीजिए ना



इक सितम और मेरी जाँ अभी जाँ बाक़ी है
दिल में अबतक तेरी उल्फ़त का निशाँ बाक़ी है

जुर्म-ए-तौहीन-ए-मोहब्बत की सज़ा दे मुझको
कुछ तो महरूम-ए-उल्फ़त का सिला1 दे मुझको
जिस्म से रूह2 का रिश्ता नहीं टूटा है अभी
हाथ से सब्र का दामन नहीं छूटा है अभी
अभी जलते हुये इन ख़्वाबों का धुआँ बाक़ी है

अपनी नफ़रत से मेरे प्यार का दामन भर दे
दिल-ए-गुस्ताख़ को महरूम-ए-मोहब्बत कर दे
देख टूटा नहीं चाहत का हसीन ताजमहल
आ के बिखरे नहीं महकी हुई यादों के कँवल3
अभी तक़दीर के गुलशन में ख़िज़ा4 बाकी है
इक सितम और मेरी जाँ अभी जाँ बाक़ी है...

1. प्रेम से दूर रखने की सज़ा,  2. आत्मा बिना, 3. फूल   4. पतझड़.

मसरूर साहब सिर्फ गीत ही नहीं लिखते थे। कई फिल्मों की उन्होंने पटकथा भी लिखी। इसके आलावा वो कमाल के शायर भी थे। चलते चलते उनकी एक हल्की फुल्की ग़ज़ल भी पढ़वाना चाहूँगा जिसे गुलाम अली ने बड़ी मस्ती के साथ गाया है

हमको किसके ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किसने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही

दिल के लुटने का सबब पूछो न सबके सामने
नाम आयेगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही

नफ़रतों के तीर खा कर दोस्तों के शहर में
हमने किस किस को पुकारा ये कहानी फिर सही


क्या बताएँ प्यार की बाज़ी वफ़ा की राह में
कौन जीता कौन हारा ये कहानी फिर सही
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13 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

अहा, आनन्दमना..

ANULATA RAJ NAIR on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

वाह वाह....

वाह वाह.........................
सांझा करने का शुक्रिया..

***Punam*** on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

शुक्रिया मनीष....
बढ़िया ग़ज़लों का हुजूम है यहाँ पर..!
कोई भी आये...
खाली हाथ न जाए...
कम से कम अपने बारे में तो कह ही सकती हूँ....!!

Puja Upadhyay on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो...मुझे बेहद पसंद रहा है...कई कई बार सुना है. इसके साथ दूसरे गीत को जानना अच्छा लगा. पहले वाली ग़ज़ल में पिआनो का interlude वाकई काफी खूबसूरत है...मैंने उसका लाइव संस्करण नहीं सुना है. इसके शेर भी बेहद खूबसूरत हैं...शुक्रिया इनपर ये जानकारी के लिए.

Udan Tashtari on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

सुबह सुन्दर हो गई खुद ब खुद....आभार इस प्रस्तुति का.

Anand Jha on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

A treat for the ears, untrammeled by unnecessary instrumentals.

Sharat Sarangi on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

आपकी बातें पढ़ कर मज़ा आ गया मनीष जी .
बड़े जबरदस्त और नायाब बातों का पता चलता है आपके पोस्ट पर . धन्यवाद. लिखते रहिये.

संदीप द्विवेदी on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

लाजवाब ग़ज़ल है ये मनीष जी! पहली बार इसे तलत अज़ीज़ की आवाज़ में सुना था तभी इसका दीवाना हो गया था मगर जब हसन साहब की मखमली आवाज़ में ओरिजिनल स्कोर सुना तो पूरी तरह से इसमें डूब गया| सचमुच ये ग़ज़लों के मुकुट का अनमोल नगीना है|

Radha Chamoli on अप्रैल 04, 2012 ने कहा…

bahut sundar :)

सुशील कुमार जोशी on अप्रैल 05, 2012 ने कहा…

वाकई जवाब नहीं है मेंहदी हसन का !!

Ashok Kumar Mehra ने कहा…

bahoot khoob la jawab mehandi hasan Baba Nagarjun per kuch kahen

Manish Kumar on अप्रैल 13, 2012 ने कहा…

पूजा, आनंद और संदीप द्विवेदी जी सहमत हूँ गीत के बारे में आपकी राय से !

प्रवीण, पूनम जी, अनु, राधा, सुशील जी, समीर जी, शरत जी आपको मेहदी हसन के गाए ये नग्मे पसंद आए जान कर खुशी हुई.

दिलबाग इस प्रस्तुति को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए आभार !

अशोक जी नागार्जुन की जब कोई नई किताब पढ़ूँगा तो जरूर आपसे साझा करूँगा।

Parul Singh on मई 26, 2012 ने कहा…

nayab gajle hai ye mehndi sahab ki reshmi awaj main. mehndi hasan ji ke pakistani movies songs main se ak halke fulke rumani song ka link yanha parastut hai ye 1971 main aayi movie "salam-a-mohabbat" ka hai.music rashed attre ka hai aur mashoor shayar qateel shifai ji ne esse likha hai.ye pak movies ki hit jodi mohd ali aur zeba par filmaya gya hai.
http://youtu.be/p_BZOQJGa-o

 

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