कनु रॉय से जुड़ी इस श्रृंखला में पिछली पोस्ट में हम बातें कर रहे थे उनके व्यक्तित्व के कुछ अछूते पहलुओं के बारे में गुलज़ार की यादों के माध्यम से। पिछले दो गीतों में आपने सुना कनु दा, कपिल और मन्ना डे की तिकड़ी को। पर आज इस तिकड़ी से मन्ना डे और कपिल कुमार रुखसत हो रहे हैं और उनकी जगह आ रहे हैं गुलज़ार और गीता दत्त।
कनु दा ने गीता दत्त से चार गीत गवाए। ये गीत खासे लोकप्रिय भी हुए। इनमें से दो को लिखा था गुलज़ार ने। उनमें से एक गीत था मेरा दिल जो मेरा होता। सच ही तो है ये दिल धड़कता तो इस शरीर के अंदर है पर इसकी चाल को काबू में रखना कब किसी के लिए संभव हो पाया है। गुलज़ार ने इसी बात को अपने गीत में ढालने की कोशिश की है।
कनु दा ने गीता दत्त से चार गीत गवाए। ये गीत खासे लोकप्रिय भी हुए। इनमें से दो को लिखा था गुलज़ार ने। उनमें से एक गीत था मेरा दिल जो मेरा होता। सच ही तो है ये दिल धड़कता तो इस शरीर के अंदर है पर इसकी चाल को काबू में रखना कब किसी के लिए संभव हो पाया है। गुलज़ार ने इसी बात को अपने गीत में ढालने की कोशिश की है।
पहले अंतरे में गुलज़ार अपनी काव्यात्मकता से मन को प्रसन्न कर देते हैं। जरा गौर कीजिए इन पंक्तियों को सूरज को मसल कर मैं, चन्दन की तरह मलती...सोने का बदन ले कर कुन्दन की तरह जलती। इन्हें सुनकर तो स्वर्णिम आभा लिया हुआ सूरज भी शर्म से लाल हो जाए। गुलज़ार तो जब तब हमें अपनी कोरी कल्पनाओं से अचंभित करते रहते हैं। पर कनु दा के संगीत निर्देशन में काम करते हुए एक बार गुलज़ार भी अचरज में पड़ गए। इसी सिलसिले में कनु दा के बारे में अपने एक संस्मरण में वो कहते हैं..
"गीत का मीटर बताने के लिए अक्सर संगीतकार कच्चे गीतों या डम्मी लिरिक्स का प्रयोग करते रहे हैं। और वो बड़ी मज़ेदार पंक्तियाँ हुआ करती थीं जिनमें से कई को तो मैंने अब तक सहेज कर रखा हुआ है। जैसे कुछ संगीतकार मेरी जान मेरी जान या कुछ जानेमन जानेमन की तरन्नुम में गीत का मीटर बतलाते थे। कुछ डा डा डा डा ...तो कुछ ला ला ला ला... या रा रा रा रा....। पर कनु का मीटर को बताने का तरीका सबसे अलग था। वो अपनी हर संगीत रचना का मीटर ती टा ती ती, ती टा ती ती.. कह के समझाते थे। उनका ये तरीका थोड़ा अज़ीब पर मज़ेदार लगता था। अपने इस ती टा ती ती को उन्होंने अंत तक नहीं छोड़ा।"
कनु दा ने अपने अन्य गीतों की तरह फिल्म अनुभव के इस गीत में भी कम से कम वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया है। संगीत सुनने का आनंद तब दूना हो जाता है गीता जी की आवाज़ के साथ प्रथम अंतरे की हर पंक्ति के बाद सितार की धुन लहराती सी गीत के साथ साथ चलती है। तो आइए सुनें इस गीत को..
मेरा दिल जो मेरा होता
पलकों पे पकड़ लेती
होंठों पे उठा लेती
हाथों मे. खुदा होता
मेरा दिल ...
सूरज को मसल कर मैं
चन्दन की तरह मलती
सोने का बदन ले कर
कुन्दन की तरह जलती
इस गोरे से चेहरे पर
आइना फ़िदा होता
मेरा दिल ...
बरसा है कहीं पर तो
आकाश समन्दर में
इक बूँद है चंदा की
उतरी न समन्दर में
दो हाथों की ओट मिली
गिर पड़ता तो क्या होता
हाथों में खुदा होता
मेरा दिल ...
बासु भट्टाचार्य के गीतों को फिल्माने का एक अलग अंदाज था। गीतों के दौरान वो फ्लैशबैक को ऐसे दिखाते थे मानो स्क्रीन पर लहरें उठ रही हों और उन्हीं में से पुरानी यादें अनायास ही प्रकट हो जाती हों। ये गीत अभिनेत्री तनुजा पर फिल्माया गया था।
अगली प्रविष्टि में बात करेंगे कनु दा, गुलज़ार और गीता दत्त के सबसे ज्यादा सराहे जाने वाले नग्मे के बारे में..
11 टिप्पणियाँ:
rochak ...jaari rakhiye :-)
बहुत बढ़िया..............
ऐसे अनछुए पहलु जो आम तौर पर फ़िल्मी किताबों में नहीं मिले करते.......
शुक्रिया मनीष जी.
अनु
शब्दों को समुचित संगीत देना, अभिव्यक्ति के निष्कर्षों को पाना है।
jaankaari se bharpoor
iss sureele aalekh
ke liye dhanyavaad svikaareiN .
बेहतरीन चल रही है श्रृंखला...
बेहद ख़ूबसूरत गीत है ये, शब्द-संगीत दोनों नायाब.....इस फिल्म को फिर से देखने की इच्छा जाग उठी है..
melodious song, with beautiful lyrics
lovely , really beautiful
bahut pasand aai post... achha laga.
पोस्ट तो पढ़ ली थी लेकिन अगर ये गीत नहीं सुनता तो बहुत कुछ खो देता. गुलज़ार की तो चमित्कृत शब्दों का जाल बुनने की तो आदत है ही मगर कनु राय जी का संगीत निर्देशन कमाल का है, वाकई कितने कम वाद्य यन्त्र में मिसरी से मीठा गाना बना दिया है, और शायद गाने में रिदम भी नहीं है, केवल कुछ वाद्य यन्त्र और सितार एक मधुर धुन छेड़ रहे है.
शुक्रिया मनीष जी.
प्रवीण, अर्श, सोनल, अमिता, दीपिका, दानिश, रश्मि जी, कंचन, शास्त्री जी व अनु इस गीत और इस पोस्ट को पसंद करने के लिए आप सबका शुक्रिया
अंकित सही कहा तुमने !
राजेश कुमारी जी धन्यवाद !
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