राजश्री प्रोडक्सन्स.. सत्तर के उत्तरार्ध में रेडिओ पर किसी नई फिल्म के प्रचार के लिए आने वाले कार्यक्रम में जब ये नाम सुनाई देता था तो तीन बातें शर्तियाँ होती थीं। पहली तो ये कि फिल्म का संगीत मधुर होगा, दूसरी ये कि फिल्म पारिवारिक होगी और सबसे महत्त्वपूर्ण ये कि पिताजी अवश्य हमें वो फिल्म दिखाने ले जाएँगे। बचपन के उन दिनों में हमने अँखियों के झरोखे से, दुल्हन वही जो पिया मन भाए, सावन को आने दो और नदिया के पार जैसी फिल्में सपरिवार सिनेमा हॉल में देखीं और जहाँ तक मुझे याद है हम सभी भाई बहनों को फिल्म की कहानी और गीत बड़े भले लगे थे।
जहाँ तक "सावन को आने दो" की बात है 1979 में प्रदर्शित इस फिल्म के गीतों ने उस वक़्त एक जादू सा कर दिया था। उस छोटी उम्र में भी चाँद जैसे चेहरे पे बिंदिया सितारा और तुझे गीतों में ढालूँगा, तेरे बिना सूना मोरे मन का मंदिर आ रे आ जैसे गीत होठों पर रच बस गए थे। बोलों से ज्यादा शायद उस वक़्त गीत का माधुर्य और येसूदास की आवाज़ दिल पर असर करती थी। इसलिए उसी फिल्म का ये गीत बोले तो बाँसुरी .. उस वक़्त मन पर अंकित नहीं हुआ और करीब एक दशक बाद मेरी पसंदीदा गीतों की फेरहिस्त में शामिल हो सका।
सावन को आने दो फिल्म का संगीत निर्देशन संगीतकार राजकमल ने किया था। बचपन में ही तबला वादन में निपुणता हासिल कर चुके राजकमल अपनी धुनों और वाद्य वादन से अपने कार्यक्रमों में श्रोताओं को मुग्ध करते रहते थे।। राजकमल को शास्त्रीय और लोक संगीत दोनों के बारे में अच्छी जानकारी थी। सावन के आने दो के विभिन्न गीतों में उनकी ये पकड़ साफ झलकती है। इन्हीं खूबियों के चलते आखिरकार ताराचंद जी ने उन्हें राजश्री प्रोडक्सन्स की इस फिल्म में काम करने का मौका दिया। अतिश्योक्ति नहीं होगी अगर मैं ये कहूँ कि संगीतकार राजकुमार के तीन दशकों के फिल्मी कैरियर में सावन को आने दो सफलता के मापदंडों में शिखर पर रही। वैसे चश्मेबद्दूर और महाभारत टीवी सीरियल में भी राजकमल का काम बेहद सराहा गया।
अब इस गीत की बात करें जिसे राजकमल जी ने राग केदार पर आधारित किया था जो कि रात्रि के प्रथम प्रहर में गाया जाने वाला राग है। भगवान शिव के नाम से जन्मे कल्याण थाट के इस राग से कई मधुर हिंदी गीतों की रचना हुई है और बोले तो बाँसुरी... उन सब में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। मुखड़े में येशुदास का आलाप तबले और बाँसुरी की संगत के साथ उभरता है। राजकमल जी ने इस गीत में द्रुत गति के इंटरल्यूड्स के साथ सितार और जलतरंग का खूबसूरत मिश्रण किया है और फिर वहाँ बाँसुरी की स्वरलहरी साथ है ही। और आखिर क्यूँ ना हो ये गीत बाँसुरी की बात से ही तो शुरु होता है।
संगीतकार राजकमल जी के तो कई और मधुर गीत आपने सुने होंगे पर शायद आप इस गीत के गीतकार के बारे में ऐसा नहीं कह पाएँगे। इस गीत के गीतकार हैं पूरन कुमार 'होश' । मुझे याद नहीं पड़ता कि इस गीत के आलावा पूरन जी का नाम किसी और गीत के क्रेडिट्स में आया है। पर अपने इस इकलौते गीत में पूरन अपने लाजवाब रूपकों से वो कमाल दिखला गए हैं जो कई गीतकार सैकड़ों गीतों को लिखकर भी नहीं कर पाते।
मुखड़े को ही लीजिए.... कितना प्यारी आवाज़ होगी उसकी जो बाँसुरी की धुन सी मीठी हो और शायद नायिका के पवित्र हृदय और श्याम वर्ण (ज़रीना वहाब इस फिल्म की नायिका थीं वैसे ये गीत रीता भादुड़ी पर फिल्माया गया है) को देखकर गीतकार ने कृष्ण के मंदिर जैसे बिंब की कल्पना की होगी।
बोले तो बाँसुरी कहीं बजती सुनाई दे..
बोले तो बाँसुरी कहीं बजती सुनाई दे
ऐसा बदन कि कृष्ण का मन्दिर दिखाई दे
बोले तो बाँसुरी कहीं..
इस गीत का पहला और आखिरी अंतरा मुझे बेहद प्रिय है। गीतों में ऍसी कविता जब पढ़ने को मिलती है तो मन गदगद हो उठता है। चेहरे की भाव भंगिमाओं में जिंदगी का गान अनुभव करने की सोच हो या फिर आँखों में तैरती परछाई की तुलना पानी को शीतलता भरी चमक देने वाले उस बर्फ के टुकड़े से की गई हो.. गीतकार की इन कल्पनाओं में डूबते हुए मन मंत्रमुग्ध सा हो जाता है।
चेहरा तमाम नग्मयी आँखें तमाम लय
देखूँ उसे तो ज़िंदगी गाती दिखाई दे
बोले तो बाँसुरी कहीं....
वो बोलता बदन है घटाओं के भेस में
बूँदों में उसका लहजा खनकता सुनाई दे
बोले तो बाँसुरी कहीं
तैरे हैं यूँ निगाह में परछाई आपकी
पानी में जैसे बर्फ़ का टुकड़ा दिखाई दे
बोले तो बाँसुरी कहीं ...
काश पूरन जी को कुछ मौके और मिले होते। ख़ैर अभी तो आप इस गीत का आनंद लें
13 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर गीत...प्यारी सी पोस्ट....
तब हमारे पास रिकॉर्ड प्लेयर था (अब भी है..)
सावन को आने दो का रिकॉर्ड सुन सुन कर घिस डाला था...
यादें ताज़ा हो गयीं...
यूँ भी इन दिनों बारिशों में,यादों के चले आने सिलसिला बढ़ जाता है...
शुक्रिया
अनु
कुछ नहीं कहना है सावन के बारे में
वो सयाना सावन खुद ही कह देगा अपने बारे में.......
दिन सावन के
तरसावन के
कौंधे बिजली
यादें उजली
अंगड़ाई ले
सांझें मचली
आते सपने
मन भावन के...
--विनोद रायसरा
राग केदार.. आहा! कई बार सुन लिया इस मधुर गीत को.... शुक्रिया सुनाने के लिए.
एक अलहदा किस्म का ब्लॉग है...यहाँ आ कर
हमेशा आनन्द ही मिला है...!
thanku manish ji it was simply awesome
बड़े ही मनभावन गीत थे उस समय के..
उस समय के मधुर गीतों की परंपरा का एक गीत.. बोल और धुन दोनों लाजवाब...
वह .. मधुर गीतों से सजी ... लाजवाब पोस्ट ... आनद आ गया ...
एक बहुत ही मधुर गीत से परिचय हुआ !
यूँ भी इन दिनों बारिशों में,यादों के चले आने सिलसिला बढ़ जाता है
अनु जी ऐसा क्या ! अच्छा लगा जान कर
यशोदा जी फिल्म के नाम के अनुरूप सावन से जुड़ी इस कविता को यहाँ साझा करने के लिए धन्यवाद !
पूनम जी शुक्रिया !
प्रवीण, दीपिका, शांगरीला, पल्लवी, दिगंबर, वाणी आप सब को ये गीत और उससे जुड़ी ये पोस्ट पसंद आई , ये जान कर अच्छा लगा।
acha blog achi rachna kabhi kabhi he padne ko milti hai waise bhi purane geeton ki baat he or hai or is geet ko sunane ka shukriya.....
Shukriya Gumnaam :)
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