जगजीत जी को गुजरे एक साल होने को आया है। दस अक्टूबर को उनकी पहली बरसी है। जगजीत ऐसे तो यूँ दिल में बसे हैं कि उनकी गायी ग़ज़लें या नज़्में कभी होठों से दूर नहीं गयीं और इसीलिए एक शाम मेरे नाम पर उनके एलबमों का जिक्र होता रहा है। पर जगजीत जी के कुछ एलबम बार बार चर्चा करने के योग्य रहे हैं और कहकशाँ उनमें से एक है।
यूँ तो दूरदर्शन के इस धारावाहिक में प्रस्तुत अपनी कई पसंदीदा ग़ज़लों और नज्मों मसलन मजाज़ की आवारा, हसरत मोहानी की रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम और फिराक़ गोरखपुरी की अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं की चर्चा पहले ही इस ब्लॉग पर हो चुकी है। पर कहकशाँ ग़ज़लों और नज़्मों का वो गुलिस्तां है जिसकी झोली में ऐसे कितने ही फूल हैं जिसकी खुशबू को इस महफिल में फैलाना बेहद जरूरी है। जगजीत जी की पहली बरसी के अवसर पर इस चिट्ठे पर अगले कुछ हफ्तों में आप सुनेंगे इस महान ग़ज़ल गायक के धारावाहिक कहकशाँ से चुनी कुछ पसंदीदा ग़ज़लें और नज़्में
यूँ तो दूरदर्शन के इस धारावाहिक में प्रस्तुत अपनी कई पसंदीदा ग़ज़लों और नज्मों मसलन मजाज़ की आवारा, हसरत मोहानी की रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम और फिराक़ गोरखपुरी की अब अक्सर चुप चुप से रहे हैं की चर्चा पहले ही इस ब्लॉग पर हो चुकी है। पर कहकशाँ ग़ज़लों और नज़्मों का वो गुलिस्तां है जिसकी झोली में ऐसे कितने ही फूल हैं जिसकी खुशबू को इस महफिल में फैलाना बेहद जरूरी है। जगजीत जी की पहली बरसी के अवसर पर इस चिट्ठे पर अगले कुछ हफ्तों में आप सुनेंगे इस महान ग़ज़ल गायक के धारावाहिक कहकशाँ से चुनी कुछ पसंदीदा ग़ज़लें और नज़्में
तो शुरुआत मजाज़ लखनवी की एक रूमानी ग़ज़ल से। मजाज़ व्यक्तिगत जीवन के एकाकीपन के बावज़ूद अपनी ग़ज़लों में रूमानियत का रंग भरते रहे। अब उनकी इस ग़ज़ल को ही देखें जो आज की रात नाम से उन्होंने 1933 में लिखी थी। मजाज़ ने अपनी ग़ज़ल में 17 शेर कहे थे। जगजीत ने उनमें से चार अशआर चुने। ये उनकी अदाएगी का असर है कि जब भी उनकी ये ग़ज़ल सुनता हूँ हर शेर के साथ उनका मुलायमियत से कहा गया आज की रा...त बेसाख्ता होठों से निकल पड़ता है। अब जब जगजीत जी की इस ग़ज़ल का जिक्र आया है तो क्यूँ ना मजाज़ की लिखी इस ग़ज़ल के 17 तो नहीं पर चंद खूबसूरत अशआर से आपकी मुलाकात कराता चलूँ।
ग़ज़ल का मतला सुन कर ही दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं। आपके कंधे पर उनका सर हो तो इतना तो मान कर चलिए कि वो आपसे बेतक्कलुफ़ हो चुके हैं। कितना प्यारा अहसास जगाती हैं ये पंक्तियाँ
देखना जज़्बे मोहब्बत का असर आज की रात
मेरे शाने पे है उस शोख़ का सर आज की रात
अब इस घायल दिल को और क्या चाहिए देख तो लिया उन्होंने आज एक अलग ही अंदाज़ में.. अब तो समझ ही नहीं आता देखूँ तो कहाँ देखूँ हर तरफ तो उनके हुस्न का जलवा है।
और क्या चाहिए अब ये दिले मजरूह तुझे
उसने देखा तो ब अंदाज़े दिगर आज की रात
नूर ही नूर है किस सिम्त उठाऊँ आँखें
हुस्न ही हुस्न है ता-हद्दे- नज़र आज की रात
अरे ये तो मेरी इन चंचल निगाहों का कमाल है जिसने उनके गालों को सुबह की लाली के समान सुर्ख कर दिया है। गीत का माधुर्य और शराब का नशा मुझे मदहोश कर रहा है। मेरी मधुर रागिनी का ही असर है जिसने उनकी आँखों में एक ख़ुमारी भर दी है।
आरिज़े गर्म पे वो रंग ए शफक़ की लहरें
वो मिरी शोख़-निगाही का असर आज की रात
नगमा-ओ-मै का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहना
मेरा घर बन गया ख़ैयाम का घर आज की रात
नरगिस-ए-नाज़ में वो नींद का हलका सा ख़ुमार
वो मेरे नग़्म-ए-शीरीं का असर आज की रात
मेरी हर धड़कन पर उनकी नज़र है और मेरी हर बात पर उनका स्वीकारोक्ति में सर हिलाना इस रात को मेरे लिए ख़ास बना रहा है। ये उनकी मेहरबानी का ही जादू है कि आज मैं अपने दिल को पहले से ज्यादा प्रफुल्लित और हलका महसूस कर रहा हूँ
मेरी हर साँस पे वह उनकी तवज़्जह क्या खूब
मेरी हर बात पे वो जुंबिशे सर आज की रात
उनके अल्ताफ़ का इतना ही फ़ुसूँ काफी है
कम है पहले से बहुत दर्दे जिगर आज की रात
और चलते चलते इसी माहौल को कायम रखते हुए असग़र गोंडवी की ग़ज़ल के अशआर। गोंडा से ताल्लुक रखने वाले असग़र और मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी की पत्नियाँ आपस में बहनें थीं और कहते हैं कि जिगर असग़र को अपना उस्ताद मानते थे। जगजीत जी ने इस ग़ज़ल को भी उसी संज़ीदगी से गाया है जिनकी वो हक़दार हैं
नज़र वो है कि कौन ओ मकाँ के पार हो जाए
मगर जब रूह ए ताबाँ पर पड़े बेकार हो जाए
(यानि आँखों का तेज़ ऐसा हो कि वो आसमाँ और जमीं की हदों को पार कर जाए पर जब किसी पवित्र आत्मा पर पड़े तो ख़ुद ब ख़ुद अपनी तीव्रता, अपनी चुभन खो दे।)मगर जब रूह ए ताबाँ पर पड़े बेकार हो जाए
नज़र उस हुस्न पर ठहरे तो आखिर किस तरह ठहरे
कभी जो फूल बन जाए कभी रुखसार* हो जाए
चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज़-ए-हवादिस** से
अगर आसानियाँ हों ज़िन्दगी दुशवार हो जाए
*चेहरा ** खतरों की लहरों
कहकशाँ में गाई ग़ज़लों की ख़ासियत ये है कि वे चुने हुए शायरों की प्रतिनिधि रचनाएँ तो हैं ही साथ ही साथ ज्यादातर ग़ज़लों में जगजीत की आवाज़ ना के बराबर संगीत संयोजन के बीच कानों तक पहुँचती है। इसीलिए उन्हें बार बार सुनने को जी चाहता है। कहकशाँ में गाई जगजीत की ग़ज़लों का सिलसिला आगे भी चलता रहेगा...
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- ख़ुमार-ए-गम है महकती फिज़ा में जीते हैं...गुलज़ार
- 'चराग़-ओ-आफ़ताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी...सुदर्शन फ़ाकिर,
- परेशाँ रात सारी है सितारों तुम तो सो जाओ...क़तील शिफ़ाई,
- फूलों की तरह लब खोल कभी..गुलज़ार
- बहुत दिनों की बात है शबाब पर बहार थी..., सलाम 'मछलीशेहरी',
- रौशन जमाल-ए-यार से है अंजुमन तमाम... हसरत मोहानी
- शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया...सुदर्शन फ़ाकिर
- सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं...क़तील शिफ़ाई,
- हम तो हैं परदेस में, देस में निकला होगा चाँद...राही मासूम रज़ा
- फूल खिला दे शाखों पर पेड़ों को फल दे मौला
- जाग के काटी सारी रैना, गुलज़ार
- समझते थे मगर फिर भी ना रखी दूरियाँ हमने...वाली असी
9 टिप्पणियाँ:
बेहद खूबसूरत ग़ज़लें और जगजीत जी की आवाज़ तो माशाअल्लाह है ही... आपकी "टीका" ने भी चार चांद में एक और जोड़ दिया :)
वाह.....
सांस रोके पढते और सुनते गए.....
जाने कब जान निकल गयी..पता ही नहीं लगा..
अब चलते हैं...
शुक्रिया.
अनु
अहा, एक दूसरे जहाँ में ही पहुँच जाते हैं...
Baat niklegi to dur talak jayegi....
bahut bahut shukriya...in gazlon se milvane ka...
दीपिका,प्रवीण,अनु जी,पारामिता, शारदा जी अुक्रिया जगजीत की यादों में शामिल होने के लिए !
आप के जरिये "........आज की रात" के और शेर पढने को मिले और जगजीत सिंह साब की मखमली आवाज़ तो जैसे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन गई है. कहकशां की ग़ज़लें आज फिर से सुनता हूँ.
कहकशाँ और जगजीत दोनों का ज़िक्र बहुत पसंद है मुझे। इस ब्लॉग की खूबसूरती और बढ़ती है जगजीत सिंह की गायी इन ग़ज़लों के ज़िक्र से।
सारे लिंक इकट्ठा करने के लिए आभार।
अंकित चलिए इसी बात पर ग़ज़ल का एक शेर और सुनते जाइए
वो तबस्सुम ही तबस्सुम का जमाले पैहम
वो मुहब्बत ही मुहब्बत की नज़र आज की रात
हिमांशु जगजीत की आवाज़ जिस महफिल में तैरेगी वो खुद ब खुद खूबसूरत हो जाएगी।
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