वार्षिक संगीतमालाओं में पीयूष मिश्रा की अद्भुत सांगीतिक प्रतिभा से मेरा सबसे पहले परिचय हुआ था गुलाल में उनके लिखे और संगीतबद्ध गीतों से। पर चुनिंदा फिल्मों में काम करने वाले पीयूष की झोली से पिछले साल संगीतप्रेमियों को कुछ हाथ नहीं लगा था। पर इस साल सबसे पहले GOW में दिखने वाले पीयूष ने बाल फिल्म जलपरी में भी एक गीत लिखा, गाया और संगीतबद्ध किया था। अब इस फिल्म का नाम आपने सुना होगा इसकी उम्मीद कम ही है क्यूँकि साल में बहुत सी फिल्में बिना किसी मार्केटिंग के कब आती और कब चली जाती हैं ये पता ही नहीं लगता। I am Kalam से चर्चा में आए इस फिल्म के निर्देशक नील माधव पंडा की भ्रूण हत्या पर आधारित ये फिल्म पिछले साल अगस्त में प्रदर्शित हुई थी।
पीयूष मिश्रा के लिखे गीतों की विशेषता है कि वो अपनी ठहरी हुई गंभीर आवाज़ और अर्थपूर्ण शब्दों से आपको एक अलग मूड में ले जाते हैं। गीत ख़त्म होने के बाद भी गीत में व्यक्त भावनाएँ जल्दी से आपका पीछा नहीं छोड़तीं। इस गीत में पीयूष हमें अपने बचपन में ले जाते हैं। बचपन की बातों से ख़ुद को जोड़ते गीतों के बारे में जब सोचता हूँ तो एक गीत और एक नज़्म तुरंत दिमाग में आती है। याद है ना आशा जी का गाया वो गीत बचपन के दिन भी क्या दिन थे उड़ते फिरते तितली बन के और फिर जगजीत व चित्रा सिंह की गाई उस कालजयी नज़्म को कौन भूल सकता है...
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो वो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
पीयूष जी का ये गीत भी जगजीत की उस नज़्म और बहुत कुछ उन्हीं भावनाओं को पुनर्जीवित करता है। आपको याद होगा कि कितनी खूबसूरती से उस नज़्म में कहानी सुनाने वाली बूढ़ी नानी और बचपन में खेले जाने वाले खेलों चिड़िया, तितली पकड़ना, झूले झूलना, गुड़िया की शादी आदि का जिक्र हुआ है। इस गीत में भी पीयूष बीते समय की छोटी सुनहरी यादों को हमसे बाँटते हुए उसी अंदाज़ में युवावस्था से वापस अपने बचपन में लौट जाने की बात करते हैं
बरगद के पेड़ों पे शाखें पुरानी पत्ते नये थे हाँ
वो दिन तो चलते हुए थे मगर फिर थम से गए थे हाँ
लाओ बचपन दोबारा, नदिया का बहता किनारा
मक्के की रोटी, गुड़ की सेवैयाँ,
अम्मा का चूल्हा, पीपल की छैयाँ
दे दूँ कसम से पूरी जवानी, पूरी जवानी हाँ
पनघट पे कैसे इशारे, खेतों की मड़िया किनारे
ताऊ की उठती गिरती चिलम को, हैरत से देखे थे सारे
हाए..गुल्ली के डंडे की बाते, गाँव में धंधे की बातें
बस यूँ गुटर गूँ इक मैं कि इक तू
यूँ ही गुजरती थी रातें...
ग्रामीण पृष्ठभूमि में लिखा ये गीत गाँव की उन छोटी छोटी खुशियाँ को क़ैद करता है जिनसे आज का शहरी बचपन महरूम है। बरगद का पेड़ हो या पीपल की छैयाँ, अम्मा का चूल्हा हो या खेतों की मड़िया, बेमकसद की गुटरगूँ में गुजरते वो इफ़रात फुर्सत के लमहे हों या फिरताऊ की चिलम से उठता धुआँ, इन सारे बिम्बों से पीयूष एक माहौल रचते चले जाते हैं। जिन श्रोताओं का बचपन गाँव - कस्बों में गुजरा हो उन्हें इस गीत से जुड़ने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगता। गीत के आखिरी अंतरे में बचपन के अनायास ही खो जाने का दर्द फूट पड़ता है। पीयूष अपने इस गीत के बारे में कहते हैं "बरगद के बोल मेरे दिल की आवाज़ हैं जो मुझे अपनी पुरानी यादों तक खींच ले जाते हैं।"
देखो इन्ही गलियों में वो खोया था हमने
यादों के सीने में थोड़े पिघल के जम से गए थे हाँ
वो दिन तो चलते हुए थे मगर फिर थम से गए थे हाँ
यादों में है कैसा कभी आया था बचपन
कैसे कहूँ मेरा कभी साया था बचपन
इनके कदम खिल खिल हँसी लाया था बचपन
जाने को था फिर भी मुझे भाया था बचपन
भोली जुबाँ के नग्मे, भोले से मन के सपने
लोरी बने थे...
रुकने की ख़्वाहिश बड़ी थी लेकिन गुजर से गए थे हाँ
वो दिन तो चलते हुए थे मगर फिर थम से गए थे हाँ
लाओ बचपन दोबारा, नदिया का बहता किनारा...
बरगद के पेड़ों पे...
ये एक ऐसा गीत है जो धीरे धीरे आपके दिल में जगह बनाता है तो आइए सुनते हैं इस संवेदनशील नग्मे को..
रुकने की ख़्वाहिश बड़ी थी लेकिन गुजर से गए थे हाँ
वो दिन तो चलते हुए थे मगर फिर थम से गए थे हाँ
लाओ बचपन दोबारा, नदिया का बहता किनारा...
बरगद के पेड़ों पे...
ये एक ऐसा गीत है जो धीरे धीरे आपके दिल में जगह बनाता है तो आइए सुनते हैं इस संवेदनशील नग्मे को..
गीत का वीडिओ देखना चाहें तो ये रहा...
11 टिप्पणियाँ:
यह सुनकर पीयूषमिश्रा का गाया हुआ होसना याद आ गया।
बेहतरीन पोस्ट...
पियूष मिश्र जी का कोई जवाब नहीं....
अनु
बहुत सुन्दर लगा गीत ...हम सब बचपन को ही ढूँढते रहते हैं ...
सुन्दर...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
sundar or umdaa geeto ka jawab nahi or apka bhi manish ji jo aap inhe dhundh kar late hain din ban jata hai inhe sunkar...dhanyawad..pihu
गीत के बोल वापस बचपन की तरफ खीचते हैं.... इन गानों में अलग ही मिठास महसूस होती है...
धन्यवाद ऐसे गीत चुनकर लाने के लिए।
धन्यवाद ऐसे गीत चुनकर लाने के लिए।
फिल्म का नाम भी पहलू बार सुना तो गीत की तो बात ही क्या ? पियूष जी के गीतों की बात अलग है, अलग अंदाज़.... धन्यवाद सुनवाने का।
शायद अनुराग कश्यप ने पीयूष मिश्रा के सन्दर्भ में ये बात कही थी कि सही मायनों में भारत के रॉक स्टार हैं।
जलपरी फिल्म देखनी अभी बाकी है लेकिन कब आई और कब गई ये मालूम है। इस गीत में जिस तरह से पीयूष मिश्रा ने खूबसूरत बिम्ब बांधे हैं वो कमाल है। इस गीत की शुरूआती पंक्तियाँ सुन के "गैंग्स ऑफ़ वासीपुर" के 'इक बगल में चाँद होगा ........" की भी याद आती है, शायद वो इसलिए क्योंकि दोनों कि शुरूआती ट्यून एक ही है।
Beautiful song...very sweet
एक टिप्पणी भेजें