वार्षिक संगीतमाला की चौदहवीं पॉयदान पर गाना वो जिसे आपने पिछले साल बारहा सुना होगा और जिसे सुनने के बाद गुन गुन गुनाने पर भी मज़बूर हुए होंगे। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में पिछले साल मराठी फिल्मों के चर्चित संगीतकार अजय अतुल ने फिल्म सिंघम के गीत बदमाश दिल तो ठग है बड़ा से पहली दस्तक दी थी। उसी पोस्ट में मैंने आपको बताया था किस तरह विकट आर्थिक परिस्थितियों में भी इस जोड़ी ने स्कूल के समय से ही संगीत के प्रति अपने रुझान को मरने नहीं दिया था। सिंघम की सफलता के बाद अजय अतुल की झोली में दूसरी बड़ी फिल्म अग्निपथ आई जिसमें उन्होंने अपने प्रशंसकों को जरा भी निराश नहीं किया। ये कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नहीं कि अग्निपथ का संगीत इस साल के प्रथम तीन एलबमों में से एक था।
पर आज तो हम बात करेंगे इस फिल्म के मस्ती से भरे उस गीत की जिसे गाया सुनिधि चौहान और उदित नारायण ने। आजकल के संगीत के बारे में हो रहे परिवर्तन के बारे में जब भी पुराने फ़नकारों से पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि आज के संगीत में ताल वाद्यों का प्रयोग कम से कमतर हो जाता है। एक समय था जब हिंदी फिल्म का कोई तबले की थाप के बिना अधूरा लगता था पर आज संगीत मिश्रण की नई तकनीक और सिंथेसाइसर के इस्तेमाल ने इन वाद्यों की अहमियत घटा दी है। ऐसे समय में अजय अतुल जब ताल वाद्यों की डमडमाहट से आनंद और उत्सव वाले माहौल को इस गीत द्वारा जगाए रखते हैं तो ये बीट्स पहली बारिश के बाद आती मिट्टी की सोंधी खुशबू सी लगती हैं।
गीत की शुरुआत में घुँघरुओं की छम छम हो या शरीर में थिरकन पैदा करते इंटरल्यूड्स, या फिर अंतरे में सुनिधि की गाई पहली कुछ पंक्तियों के बाद बड़ी शरारत से लिया गया हूँ...... का कोरस हो, अजय अतुल का कमाल हर जगह दिखता है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के बोलों में एक ताज़गी है जिसका निखार गीत के हर अंतरे में नज़र आता है। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गीतों का मैं शैदाई रहा हूँ। वो एक बार संगीतमाला की सर्वोच्च सीढ़ी पर भी चढ़ चुके हैं। गीत की परिस्थिति ऐसी है कि नायिका मुँह फुलाए नायक के चेहरे में मुस्कुराहटों की कुछ लकीर बिखेरने का प्रयास कर रही है। अमिताभ भट्टाचार्य अपनी शानदार सोच का इस्तेमाल कर हर अंतरे में ऐसे नए नवेले भाव गढ़ते हैं कि मन दाद दिए बिना नहीं रह पाता। जी हाँ मेरा इशारा रात का केक काटना, चाँद का बल्ब जलाने, ग़म को खूँटी पर टाँगने, ब्लैक में खुशी का पिटारा खरीदने, बंद बोतल के जैसे बैठने जैसे वाक्यांशों की तरफ़ है।
सुनिधि चौहान ने इस गीत को उसी अल्हड़ता और बिंदासपन के साथ गाया है जिसकी इस गीत के मूड को जरूरत थी। उदित जी की आवाज़ आज भी जब मैं किसी गीत में सुनता हूँ तो अफ़सोस होता है कि इतनी बेहतरीन आवाज़ का मालिक होने के बावज़ूद उन्हें इतने कम गीत गाने को क्यूँ मिलते हैं? तो आइए सुनते और गुनते हैं फिल्म अग्निपथ का ये गीत।
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
हो.. मायूसियों के चोंगे उतार के फेंक दे ना सारे
कैंडल ये शाम का फूँक रात का केक काट प्यारे
सीखा ना तूने यार हमने मगर सिखाया रे
दमदार नुस्खा यार हमने जो आजमाया रे
आसुओं को चूरण चबा के हमने डकार मारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे-
हुँ.. है सर पे तेरे उलझनों के जो ये टोकरे
ला हमको देदे हल्का हो जा रे तू छोकरे
जो तेरी नींदे अपने नाखून से नोच ले..
वो दर्द सारे जलते चूल्हे में तू झोंक रे
जिंदगी के राशन पे, ग़म का कोटा ज्यादा है
ब्लैक में खरीदेंगे खुशी का पिटारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
तू मुँह फुला दे तो ये सूरज भी ढ़लने लगे
अरे तू मुस्कूरा दे चाँद का बल्ब जलने लगे
तू चुप रहे तो मानो बहरी लगे जिंदगी
तू बोल दे तो परदे कानों के खुलने लगे
एक बंद बोतल के, जैसा काहे बैठा है
खाली दिल से भर दे ना, ग्लास ये हमारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
हो.. बिंदास हो के हर गम को यार खूँटी पे टाँग दूँगा
थोडा उधार मै इत्मिनान तुमसे ही माँग लूँगा
है.. सीखा है मैने यार जो तुमने सिखाया रे
दमदार नुस्खा यार मैने भी आजमाया रे
आसुओं को चूरण चबा के मैने डकार मारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
अरे तू मुस्कूरा दे चाँद का बल्ब जलने लगे
तू चुप रहे तो मानो बहरी लगे जिंदगी
तू बोल दे तो परदे कानों के खुलने लगे
एक बंद बोतल के, जैसा काहे बैठा है
खाली दिल से भर दे ना, ग्लास ये हमारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
हो.. बिंदास हो के हर गम को यार खूँटी पे टाँग दूँगा
थोडा उधार मै इत्मिनान तुमसे ही माँग लूँगा
है.. सीखा है मैने यार जो तुमने सिखाया रे
दमदार नुस्खा यार मैने भी आजमाया रे
आसुओं को चूरण चबा के मैने डकार मारा रे
गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे
7 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर गाना..
I cant feel this song,and if i don't feel,i cant like .I like " Abhi mujh mein kahin, baaki thodi si hai zindagi "
Neha Sharan शु्क्रिया नापसंदगी की वज़ह बताने के लिए।
अभी मुझमें कहीं मुझे भी काफी पसंद है और इसलिए उसका जिक्र इस गीतमाला में थोड़ी देर से आएगा।
I like this song
NOT VERY GOOD
अमिताभ भट्टाचार्य से कई उम्मीदें बंधी हैं, इस गीत में 'गुन गुना रे .........." पहली पंक्ति वाकई गुनगुनाने पर मजबूर करती है। लेकिन अमिताभ का मुखड़े के आखिरी में "आँसुओं का चूरण .............." लाना कुछ भाया नहीं। हालांकि जिन अर्थों में उसे कहा गया है वो फिल्म के भाव से मैच करती हैं, लेकिन उसे बोलने वाले (प्रियंका चोप्रा के किरदार) से नहीं।
अन्नपूर्णा जी, प्रवीण गीत को पसंद करने का शुक्रिया।
अंकित मुझे तो अमिताभ का lingo जिसकी मैंने लेख में चर्चा भी की है और अजय अतुल का संगीत अच्छा लगा।
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