वार्षिक संगीतमाला की अगली पॉयदान पर के गीत को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। बेवफाई से व्यथित हृदय की वेदना को व्यक्त करते इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने। गीत साइयाँ के कोरस से शुरु होता है और जैसे ही राहत के स्वर में मेरे साइयाँ रे की करुण तान आपके कानों में पड़ती हैं आपको गीत का मूड समझने में देर नहीं लगती। फिल्म 'हीरोइन' के इस गीत की धुन बनाई है सलीम सुलेमान ने। दर्द की अभिव्यक्ति के लिए इंटरल्यूड्स में वॉयलिन का प्रयोग संगीतकार बखूबी करते हैं।
प्रेम की सबसे बड़ी शर्त है आपसी विश्वास और एक दूसरे के प्रति सम्माऩ। पर जो आपका सबसे प्रिय हो वही आपके भरोसे की धज्जियाँ उड़ा दे तो..पैरों तले ज़मीन खिसकने सी लगती है। सच्चा प्यार कुछ होता भी है इस पर भी मन में संशय उत्पन्न होने लगता है। अपने आस पास के लोग, सारी दुनिया बेमानी लगने लगती है।
अमिताभ के बोल इसी टूटे दिल की भावनाओं को टटोलते हैं इस गीत में। पर अमिताभ भट्टाचार्य के शब्दों से ज्यादा राहत की गायिकी और गीत की लय श्रोताओं को अपनी ओर खींचती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को।
साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे
साचा बोले ना झूठा माहिया रे हो
मेरे साइयाँ रे, साइयाँ रे
झूठी माया का झूठा है जिया रे हो
अब किस दिशा जाओ, कित मैं बसेरा पाऊँ
तू जो था मैं सँभल जाऊँ
साइयाँ रे
मेरे साइयाँ रे
दामन में समेटे, अँधेरा लाई है
बहुरूपिया रौशनी
हो...लोरियाँ गाए तो
नींदे जल जाती हैं
लागे कलसुरी चाँदनी
दिल शीशे का टूटा आशियाँ रे
साइयाँ रे, मेरे साइयाँ रे
6 टिप्पणियाँ:
दर्शनभरा गीत, मधुर संगीत..
इस साल वैसे लगभग कुछ भी नही सुना..... ये भी नही...भावपूर्ण गीत, राहत जी की आवाज़ और उस पर ये लिरिक्स.... धन्यवाद।
राहत साब की आवाज़ सुकून देती है। पूरी फिल्म में एक ही कर्ण प्रिय गाना है जो अपना असर देर तक बनाये रखता है।
आपके द्वारा गीत के पहले लिखी गई भूमिका गीत सुनने का माहौल बना देती है।
अंकित हीरोइन का सिर्फ एक कर्णप्रिय गीत होने की बात से मैं पूर्णतः सहमत नहीं हूँ। इसी फिल्म का एक गीत ख़्वाहिशें मुझे इस गीत से ज्यादा पसंद है। बड़े प्यारे बोल लिखे हैं निरंजन अयंगार ने !
हम्म ...... मनीष जी, इस गीतमाला की 18 वीं पायदान पर उसे देखा और सुना। दरअस्ल फिल्म देखते वक़्त उसका उतना असर महसूस नहीं कर पाया था।
दरअसल मैंने फिल्म अभी तक नहीं देखी अंकित सिर्फ अलग से सारे गीत सुने एक एक कर के।
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