मंगलवार, फ़रवरी 12, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 9 : फैली थी स्याह रातें आया तू सुबह ले के...

कितनी विशाल है ना ये दुनिया? अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में हम ना जाने कितने लोगों से रूबरू होते हैं। पर ऐसा क्यूँ है कि किसी से कुछ घंटों की मुलाकात जीवन पर्यन्त याद रहती है और कभी तो रोज़ मिलने वाले भी हमारे ख़्यालों में दूर दूर तक नहीं फटकते? दरअसल मन तो हमेशा तलाश में रहता है उस ख़ास शख़्सियत के जिसकी छवियाँ हम अपने सपनों में गढ़ते रहते हैं। पर ऐसा इंसान जल्द मिलता कहाँ है? अकेलेपन के अंधेरे में हमें अपना जीवन बेमानी लगने लगता है। और फिर... तनहा सी इस ज़िंदगी में अचानक हमारे सपनों का सौदागर प्रकट हो कर समंदर में डोलती अपनी कश्ती को  इतनी सहजता से किनारे लगा देता है कि हमें कहना ही पड़ता है कुछ तो है तुझसे राबता कुछ तो है तुझसे राबता ..


वार्षिक संगीतमाला की नौवीं सीढ़ी पर है ऐसी ही भावनाओं की प्रतिध्वनि करता एक प्यारा सा नग्मा। फिल्म एजेंट विनोद के इस गीत से मेरा पहला परिचय दो महिने पहले साल भर के गानों को सुनते समय हुआ और एक बार सुनकर ही इस गीत की धुन ने मुझे ऐसा आकर्षित किया कि ये मेरी संगीतमाला का हिस्सा बन गया। संगीतकार प्रीतम सुरीले गीत रचने में तो पहले से ही माहिर हैं पर अमिताभ भट्टाचार्य जैसे प्रतिभाशाली गीतकार उनकी मधुर धुन को अपने शब्दों से एक अलग स्तर पर ले जाते हैं। प्रीतम ने इस गीत के तीन रूपों को तीन अलग अलग गायिकाओं से गवाया है। श्रेया घोषाल, हमसिका अय्यर और अदिति सिंह शर्मा के गाए अलग अलग वर्जन में सबसे ज्यादा मुझे हमसिका और अरिजित सिंह का वर्जन पसंद आया जिसे एलबम में स्याह रातें का नाम दिया गया है।

सा रे गा मा के 1995 के संस्करण के फाइनल में जगह बनाने वाली गायिका हमसिका का सांगीतिक सफ़र पिछले दशक में बहुत उत्साहवर्धक नहीं रहा है। वर्ष 2007 में एकलव्य दि रॉयल गार्ड के गीत चंदा रे से चर्चा में आयी हमसिका को पिछले कुछ सालों में हिंदी फिल्म जगत में ज्यादा मौके नहीं मिल पाए हैं। इस युगल गीत में उनका साथ दिया है युवा प्रतिभाशाली गायक अरिजित सिंह ने। गीत के मुखड़े में प्रीतम पहले पियानो और फिर इलेक्ट्रिक गिटार की मधुर धुन से श्रोताओं का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं और फिर द्रुत पर सुरीली रिदम में गीत के बोल मूड को रूमानी बना देते हैं। इंटरल्यूड्स में गिटार के प्रयोग के बाद गीत का आनंद तब दूना हो जाता है जब अरिजित सिंह की आवाज़ आपके कानों से टकराती है। सरगम के साथ अरिजित ऊँचे सुरों को जिस सहजता से सँभालते हैं कि मन उनकी गायिकी को दाद दिए बिना नहीं रह पाता। तो आइए सुनें इस नग्मे को

फैली थी स्याह रातें आया तू सुबह ले के
बेवजह सी ज़िंदगी में जीने की वज़ह ले के
खोया था समंदरों में, तनहा सफीना मेरा
साहिलों पे आया है तू जाने किस तरह ले के
कुछ तो है तुझसे राबता कुछ तो है तुझसे राबता
कैसे हम जानें, हमें क्या पता
कुछ तो है तुझसे राबता
तू हमसफ़र है, फिर क्या फिकर है

अब क्या है कहना ,हमको है रहना
जन्नतें भुला के तेरी बाहों में पनाह ले के
फैली थी स्याह रातें आया तू सुबह ले के

मेहरबानी जाते-जाते मुझपे कर गया
गुज़रता सा लमहा एक दामन भर गया
तेरे नज़ारा मिला, रोशन सितारा मिला
तकदीर की कश्तियों को किनारा मिला

रूठी हुई ख़्वाहिशों से, थोड़ी सी सुलह ले के
आया तू ख़ामोशियों में बातों की जिरह ले के
खोया था समंदरों में, तनहा सफीना मेरा
साहिलों पे आया है तू जाने किस तरह ले के
फैली थी स्याह रातें ....
(साहिल - किनारा, सफ़ीना - नाव,  राबता - रिश्ता)

वैसे ये गीत मुझे किशोर दा के गाए एक गीत की याद दिलाता है। क्या आपको ऐसा कोई गीत याद आता है? अगर हाँ तो बताइए ज़रा।
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8 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 12, 2013 ने कहा…

बहुत प्यारा गीत, कर्णप्रिय..

Abhishek Ojha on फ़रवरी 12, 2013 ने कहा…

one of my fav from last year :)

Abhishek Agarwal on फ़रवरी 13, 2013 ने कहा…

रूठी हुई ख़्वाहिशों से, थोड़ी सी सुलह ले के VERY GOOD LINE

Neha Sharan on फ़रवरी 13, 2013 ने कहा…

Love this song
मेहरबानी जाते-जाते मुझपे कर गया,
गुज़रता सा लमहा एक दामन भर गया

Manish Kumar on मार्च 05, 2013 ने कहा…

शु्क्रिया प्रवीण, ओझा, अभिषेक व नेहा गीत पसंद करने के लिए !

Ankit on मार्च 08, 2013 ने कहा…

इस गीत ने शुरुआत से ही अपनी ओर खींच लिया था, इसके तीनों वर्सन कई-कई बार सुने हैं। अरिजित ने प्रभावित किया है। अमिताभ के बोल सहज और बहाव लिए हुए हैं। आजकल तो एक-एक पंक्ति को अलग अलग गाने की सुविधा हो गई है और फिर उसे बाद में कंप्यूटर पर जोड़ कर एक कर दिया जाता है। यह गीत लाइव परफॉरमेंस में आज के गायकों द्वारा कैसे निभाया जाएगा ये देखने और जानने की उत्सुकता है क्योंकि साँसों का बहुत कम इस्तेमाल है और है भी तो वो पता नहीं चलना चाहिए।

किशोर दा के तो बहुत गीत हैं जो अभी ख़याल में आ रहे हैं, वैसे आप किस गीत का ज़िक्र कर रहे हैं? फिलहाल जो एकदम मेरे ज़ेहन में उभरा वो दो और दो पाँच का " तूने अभी देखा ........." आ रहा है।

Manish Kumar on मार्च 11, 2013 ने कहा…

कुछ तो है तुझसे राबता कुछ तो है तुझसे राबता...
से मुझे किशोर दा का वो गीत याद आया था अंकित :)


मेरा तुझ से है पहले का नाता कोई यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई

Manish Kumar on मार्च 11, 2013 ने कहा…

अंकित मेरे ग्यारह वर्षीय पुत्र का भी ये पसंदीदा नग्मा है। :) खासकर उसे मैं परेशां का दोहराव का तरीका खूब जमता था। सो वो रोज़ पूछता था कि इसे आप किस क्रम पर रखेंगे। "इशक़जादे" "इक डोर बंधने लगे .........." का शुरूआती प्रील्यूड जबरदस्त है। बिल्कुल अगर अंतरे भी वैसे होते तो निश्चित ही वो गीत भी इस गीतमाला का हिस्सा बनता।

 

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