इंसान की इस फितरत से भला कौन वाक़िफ़ नहीं ? अक्सर उन चीजों के पीछे भागा करता है जो पहुँच से बाहर होती है। पर दुर्लभ को प्राप्य बनाने की जुगत में बने बनाये रिश्तों को भी खो देता है। गीतकार जावेद अख्तर मनुष्य की इसी मनोदशा को वार्षिक संगीतमाला 2012 की चौथी पॉयदान पर के गीत के मुखड़े में बखूबी चित्रित करते हुए कहते हैं..मन तेरा जो रोग हैं, मोहे समझ ना आये..पास हैं जो सब छोड़ के , दूर को पास बुलाये । फिल्म तलाश के इस गीत की धुन बनाई है राम संपत ने और इस युगल गीत को गाया है सोना महापात्र और रवींद्र उपाध्याय की जोड़ी ने।
सोना महापात्र और राम संपत
इंजीनियरिंग और एमबीए कर चुकीं सोना महापात्र के संगीत के सफ़र के शुरुआती दौर की चर्चा तो एक शाम मेरे नाम पर मैं पहले भी कर चुका हूँ। पिछले साल सत्यमेव जयते कार्यक्रम में उनके गाए गीतों ने उन्हें फिर चर्चा में ला दिया था। सोना महापात्र की आवाज़ का मैं हमेशा से शैदाई रहा हूँ खासकर वैसे गीतों में जिनमें एक तरह का ठहराव है, जिनके बोल आपसे कुछ कहना चाहते हैं। कुछ तो है उनकी आवाज़ में जिसकी क़शिश श्रोताओं को अपनी ओर खींचती है। फिल्म तलाश के इस गीत को जब मैंने पहली बार सुना तो इस गीत के प्रभाव से उबरने में मुझे हफ्तों लग गए थे। खुद सोना के लिए ये गीत उनके दिल के बेहद करीब रहा है। इस गीत के बारे में वो कहती हैं
"मुझे इस गीत की रिकार्डिंग में सिर्फ दस मिनट लगे थे। ये गीत पुराने और नए संगीत को एक दूसरे से जोड़ता है । इस गीत में पुरानी शास्त्रीय ठुमरी और आज के पश्चिमी संगीत (ड्रम व बॉस इलेक्ट्रानिका) का अद्भुत संगम है । आज की हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय रागों से जुड़ी बंदिशें कम ही सुनने को मिलती हैं। दरअसल इस गीत की पैदाइश तब हुई थी जब राम ने अपने एलबम Let's Talk के लिए वर्ष 2001 में सारे देश में घूम घूमकर शिप्रा बोस और ज़रीना बेगम जैसी नामी ठुमरी गायकिओं की आवाज़ रिकार्ड की थी। राम से मेरी पहली मुलाकात इसी एलबम के एक गीत को गाने के लिए हुई थी पर एलबम की अन्य रिकार्डिंग्स को सुनने के बाद मुझे लगा कि उनकी तुलना में मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है और उस एलबम में शामिल होने लायक मेरी काबिलियत नहीं है। "
पर ग्यारह सालों बाद उसी प्रकृति के गीत को इतनी खूबसूरती से निभाना उनके लिए गर्वित होने का अवसर था। ये बताना जरूरी होगा कि सोना की राम संपत से ये मुलाकात आगे जाकर पति पत्नी के रिश्ते में बदल गई। आज ये युगल अपने बैंड Omgrown Music के साझा निर्माता हैं। फिल्म तलाश के इस गीत के लिए राम संपत सोना को तो बहुत पहले ही चुन चुके थे पर उन्हें इस गीत में उनका साथ देने के लिए उपयुक्त युगल पुरुष स्वर नहीं मिल पा रहा था। बहुत सारे गायकों से इस गीत को गवाने के बाद उन्होंने रवींद्र उपाध्याय को चुना। जयपुर से वकालत की डिग्री लेने वाले रवींद्र उपाध्याय वैसे तो TV पर एक रियालटी शो जीत चुके थे पर फिल्मों में उन्होंने गिनती के नग्मे ही गाए थे। पर राम को लगा कि इस गीत के बोलों के साथ रवी्द्र की आवाज़ पूरा न्याय कर सकती है।भले ही सोना की गायिकी इस गीत की जान हो पर रवींद्र ने भी अपने अंतरों में श्रोताओं को निराश नहीं किया।
तो आइए सुनते हैं इस गीत को
मन तेरा जो रोग है, मोहे समझ ना आये
पास हैं जो सब छोड़ के , दूर को पास बुलाये
जिया लागे ना तुम बिन मोरा
क्या जाने क्यों हैं, क्या जाने कैसी, अनदेखी सी डोर
जो खेंचती हैं, जो ले चली हैं, अब यूँ मुझे तेरी ओर
मैं अनजानी हूँ वो कहानी, होगी ना जो पूरी
पास आओगे तो पाओगे, फिर भी हैं इक दूरी
जिया लागे ना तुम बिन मोरा
मन अब तक जो बूझ ना पाया, तुम वो पहेली हो
कोई ना जाने क्या वो रहस हैं, जिसकी सहेली हो
मैं मुस्काऊँ, सबसे छुपाऊँ, व्याकुल हूँ दिन रैन
कब से ना आयी नैनों में निंदिया, मन में ना आया चैन
जिया लागे ना तुम बिन मोरा
2 टिप्पणियाँ:
मन को भा गयी यह श्रंखला
साथ बने रहने का शुक्रिया प्रवीण
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