फिल्म 'अर्थ' और उसका संवेदनशील संगीत तो याद है ना आपको। बड़े मन से ये फिल्म बनाई थी महेश भट्ट ने। शबाना, स्मिता का अभिनय, जगजीत सिंह चित्रा सिंह की गाई यादगार ग़ज़लें और कैफ़ी आज़मी साहब की शायरी को भला कोई कैसे भूल सकता है। पर फिल्म अर्थ में शामिल एक ग़ज़ल के शायर का नाम शायद ही कभी फिल्म की चर्चा के साथ उठता है। ये शायर हैं इफ़्तिख़ार इमाम सिद्दिकी ( Iftikhar Imam Siddiqui ) साहब जिनकी मन को विकल कर देने वाली ग़ज़ल तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा ..को चित्रा सिंह ने बड़ी खूबसूरती से निभाया था।
आगरा से ताल्लुक रखने वाले जाने माने शायर सीमाब अकबराबादी के पोते इफ़्तिख़ार इमाम को कविता करने का इल्म विरासत में ही मिल गया था। सीमाब अकबराबादी ने उर्दू शायरी की पत्रिका 'शायर' (Shair) का प्रकाशन आगरा में 1930 से शुरु किया था। सीमाब तो विभाजन के बाद पाकिस्तान यात्रा पर गए और वहीं लकवा मारे जानी की वज़ह से स्वदेश नहीं लौट पाए। सीमाब के पाकिस्तान जाने के बाद ये जिम्मेदारी इफ़्तिख़ार इमाम के पिता इज़ाज सिद्दिकी ने सँभाली और 1951 में अपने आगरा के पुश्तैनी मकान से बेदखल होने के बाद मुंबई आ गए। आज भी मध्य मुंबई के ग्रांट रोड के एक कमरे के मकान से इस पत्रिका को इफ्तिख़ार इमाम अपने भाइयों के सहयोग से बखूबी चलाते हैं। इस पत्रिका की खास बात ये है कि इसके पाठकों द्वारा भेजे गए सारे ख़तों को आज भी सुरक्षित रखा गया है ।
'शायर' ने कई नौजवान शायरों की आवाज़ को आम जन तक पहुँचाने का काम किया। इसमें निदा फ़ाजली जैसे मशहूर नाम भी थे। इमाम के पास आज भी वो चिट्ठियाँ मौज़ूद हैं जब निदा उनसे 'शायर' पत्रिका में अपनी कविताएँ छापने का आग्रह किया करते थे।
'शायर' ने कई नौजवान शायरों की आवाज़ को आम जन तक पहुँचाने का काम किया। इसमें निदा फ़ाजली जैसे मशहूर नाम भी थे। इमाम के पास आज भी वो चिट्ठियाँ मौज़ूद हैं जब निदा उनसे 'शायर' पत्रिका में अपनी कविताएँ छापने का आग्रह किया करते थे।
तो इससे पहले कि इफ्तिख़ार इमाम सिद्दिकी के बारे में कुछ और बाते हों उनके चंद खूबसूरत रूमानी अशआरों से रूबरू हो लिया जाए। देखिए तो किस तरह एक आशिक के असमंजस को यहाँ उभारा है उन्होंने..
मैं जानता हूँ वो रखता है चाहतें कितनी
मगर ये बात उसे किस तरह बताऊँ मैं
जो चुप रहा तो समझेगा बदगुमाँ मुझे
बुरा भला ही सही कुछ तो बोल आऊँ मैं
ज़िदगी में जब तब कोई ख़्वाहिश अपने पर फड़फड़ाने लगती है। मन की ये सारी इच्छाएँ जायज नहीं होती या यूँ कहूँ तो ज्यादा बेहतर होगा कि व्यक्ति की वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होतीं । पर दिल तो वो सीमाएँ लाँघने के लिए कब से तैयार बैठा है बिना उनके अंजाम की परवाह किए। इसी बात को इफ्तिख़ार इमाम सिद्दिकी कितनी खूबसूरती से अपने शब्द देते हैं..
दिल कि मौसम के निखरने के लिए बेचैन है
हम अपने लक्ष्य के पीछे भागते हैं और वो हमारी बेसब्री पर मन ही मुस्कुराते हुए और ऊँचा हो जाता है। नतीजा वही होता है जो इफ्तिख़ार इमाम सिद्दिकी इस शेर में कह रहे हैं...
इक मुसलसल दौड़ में हैं मंजिलें और फासले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह
दिल कि मौसम के निखरने के लिए बेचैन है
जम गई है उनके होठों की घटा अपनी जगह
कर कभी तू मेरी ख़्वाहिशों का एहतराम
ख़्वाहिशों की भीड़ और उनकी सजा अपनी जगह
हम अपने लक्ष्य के पीछे भागते हैं और वो हमारी बेसब्री पर मन ही मुस्कुराते हुए और ऊँचा हो जाता है। नतीजा वही होता है जो इफ्तिख़ार इमाम सिद्दिकी इस शेर में कह रहे हैं...
इक मुसलसल दौड़ में हैं मंजिलें और फासले
पाँव तो अपनी जगह हैं रास्ता अपनी जगह
इफ़्तिख़ार साहब जितना अच्छा लिखते हैं उतना ही वो उसे तरन्नुम में गाते भी हैं। ग़ज़ल गायिकी का उनका अंदाज़ इतना प्यारा है कि आप उनकी आवाज़ को बार बार सुनना पसंद करें। इस ग़ज़ल में उनके शब्द तो सहज है पर अपनी गायिकी से वो उसमें एक मीठा रस घोल देते हैं।
ग़म ही चाँदी है गम ही सोना है
गम नहीं तो क्या खुशी होगी
उस को सोचूँ उसी को चाहूँ मैं
मुझसे ऐसी ना बंदिगी होगी
इमाम साहब की ज़िंदगी ने तब दुखद मोड़ लिया जब वर्ष 2002 में चलती ट्रेन पर चढ़ने की कोशिश में वो गिर पड़े और उस दुर्घटना के बाद उमका कमर से नीचे का हिस्सा बेकार हो गया। आज उनकी ज़िंदगी व्हीलचेयर के सहारे ही घिसटती है, फिर भी वो इसी हालत में 'शायर' के संपादन में जुटे रहते हैं।
उनकी ये ग़ज़ल जिस कातरता से अपने प्रियतम के विछोह से पैदा हुई दिल की भावनाओं को बयाँ करती है वो आँखों को नम करने के लिए काफी है। फिल्म में इस ग़ज़ल का दूसरा शेर प्रयुक्त नहीं हुआ है।
तू नहीं तो ज़िंदगी में और क्या रह जाएगा,
दूर तक तन्हाइयों का सिलसिला रह जाएगा
कीजिए क्या गुफ़्तगू, क्या उन से मिल कर सोचिए
दिल शिकस्ता ख़्वाहिशों का जायक़ा रह जाएगा
दर्द की सारी तहें और सारे गुज़रे हादसे
सब धुआँ हो जाएँगे इक वाक़या रह जाएगा
ये भी होगा वो मुझे दिल से भुला देगा मगर
यूँ भी होगा ख़ुद उसी में इक ख़ला रह जाएगा
दायरे इंकार के इकरार की सरग़ोशियाँ
ये अगर टूटे कभी तो फ़ासला रह जाएगा
(ख़ला : खालीपन,शून्य, सरग़ोशियाँ : फुसफुसाहट)
तो आइए सुनते हैं इस ग़ज़ल को चित्रा जी की आवाज़ में...
इसी जज़्बे के साथ अपनी पत्रिका को वो अपना वक़्त देते रहें यही मेरी मनोकामना है। चलते चलते उनके ये अशआर आपकी नज़र करना चाहता हूँ
वो ख़्वाब था बिखर गया ख़याल था मिला नहीं
मगर ये दिल को क्या हुआ क्यूँ बुझ गया पता नहीं
हम अपने इस मिज़ाज में कहीं भी घर ना हो सके
किसी से हम मिले नहीं किसी से दिल मिला नहीं
13 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन शायरी, बेहतरीन प्रस्तुति।
so nice
manpasand mein se ek...
thanx for this info
काफी अच्छा लेख है| बहुत कुछ पढ़ने को मिला जनाब इफ्तिखार इमाम सिद्दीकी के बारे में... और जगजीत-चित्रा वाली नज़्म तो पहली बार ही सुनी आज... इसके लिए धन्यवाद|
This song is very very dear to me. One of the best songs..........
मेरी पसंदीदा ग़ज़ल में से एक.....
खासकर ये शेर "ये भी होगा वो मुझे......" तो लाजवाब हे....
@Swati Gupta यूँ तो पूरी ग़ज़ल ही लाजवाब है पर इस शेर
ये भी होगा वो मुझे दिल से भुला देगा मगर
यूँ भी होगा ख़ुद उसी में इक ख़ला रह जाएगा
का तो कहना ही क्या। वैसे ये शेर कैसा लगा आपको जो फिल्म में नहीं इस्तेमाल हुआ
कीजिए क्या गुफ़्तगू, क्या उन से मिल कर सोचिए
दिल शिकस्ता ख़्वाहिशों का जायक़ा रह जाएगा
बहुत ही अच्छा शेर हे...मै आपसे पूछने ही वाली थी की ये शेर फिल्म में शामिल क्यों नहीं किया गया....
इस लेख के अंत में आपने एक और शेर लिखा हे....
"हम अपने इस मिजाज़ में......" ये भी बहुत अच्छा लगा....
आपके लेख काफी लम्बे अरसे से पढ़ रही हु....एक गुज़ारिश हे कि आप पुरानी गज़लों और शायरों के बारे में ज्यादा से ज्यादा बाते शेयर करें.... शुक्रिया...
अमूमन दो वज़हों से किसी शेर को फिल्मों में शामिल नहीं किया जाता। अगर वो थोड़ा समझने में मुश्किल हो या फिर ग़ज़ल की धुन में उसके शब्द ढल नहीं रहे हों। यहाँ भी ऐसी ही कोई वजह रही होगी।
रही उर्दू शायरों से जुड़ी बातों को बाँटने की तो इस लिंक को देखें..
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.in/2008/04/blog-post.html
इफ़्तिख़ार साहब के बारे में इतनी अच्छी जानकारी पा कर अच्छा लगा..
'तू नहीं तो' चित्रा सिंह द्वारा गाया एक बेहतरीन गजल है, ये गजल मुझे भी बहुत पसंद है...
आनंदमय, बेहतरीन, लाजवाब और विचारों की सटीक अभिव्यक्ति | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
शुक्रिया आप सब का ग़ज़ल और इस प्रविष्टि को पसंद करने के लिए !
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