घनशाम वासवानी.. अस्सी के दशक में इस नाम को मैंने पहली बार सुना था विविध भारती के रंग तरंग कार्यक्रम में। उस ज़माने में जगजीत सिंह, पंकज उधास, अनूप जलोटा, चंदन दास और पीनाज़ मसानी की ग़ज़ल गायिकी में तूती बोलती थी। इनके आलावा जो ग़ज़ल गायक इस दशक में उभरे उन्हें श्रोताओं के सामने लाने में जगजीत सिंह का बड़ा हाथ था। तलत अजीज़ , घनशाम वासवानी, अशोक खोसला, विनोद सहगल कुछ ऐसे ही नाम हैं जो जगजीत के प्रोत्साहन से ग़जल गायिकी के सीमित क्षितिज में चमके।
पर मैं तो आपसे बात घनशाम वासवानी की कर रहा था जिन्हें जगजीत और चित्रा ने अंतर महाविद्यालय संगीत प्रतियोगिता में पहली बार सुना था और उनकी गायिकी से खासे प्रभावित भी हुए थे। घनशाम वासवानी एक सांगीतिक परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता संतू वासवानी सिंधी के जाने माने सूफ़ी गायक थे। विज्ञान में स्नातक और कानून की पढ़ाई पढ़ने वाले घनश्याम वासवानी का झुकाव शुरु से संगीत की ओर रहा। उस्ताद आफताब अहमद खाँ, पंडित अजय पोहनकर और पंडित राजाराम शु्क्ल से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और उसके बाद जगजीत के मार्गदर्शन में वो एक ग़ज़ल गायक बन गए।
अस्सी के ही दशक में ही जगजीत सिंह के संगीत निर्देशन में घनशाम वासवानी का एक एलबम HMV पर आया । एलबम का नाम था Jagjit Singh presents Ghansham Vaswani..। जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया था कि इसी एलबम की एक ग़ज़ल विविधभारती पर उन दिनों खूब बजा करती थी। ग़ज़ल का मतला था मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते..हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते.............। जख़्म खाने की उम्र थी सो उस ग़ज़ल के पहले श्रवण के पश्चात ही मैं घायल हो गया था। लिहाजा स्कूल की एक कॉपी में वो ग़ज़ल सहेज कर रख ली गई थी। पर वक्त के साथ पिताजी के तबादले हुए और वो कॉपी कब रद्दी वाले की भेंट चढ़ गई पता ही नहीं चला। उस ज़माने में ना कंप्यूटर था और ना ही इंटरनेट, इसलिए अपनी इस प्रिय ग़ज़ल को अपने मस्तिष्क के कोने की 'मेमोरी' में डालने के आलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था। दशक बीतते गए और साथ ही ग़ज़ल के शेर होठो पर गाहे बगाहे दस्तक देते रहे।
कुछ ही दिनों पहले फेसबुक पर घनशाम वासवानी का नाम दिखा तो वो ग़ज़ल फिर से याद आ गई। ग़ज़ल को सुना गया और खूब खूब सुना गया। आप में से जो पुराने ग़ज़ल प्रेमी होंगे उन्होंने जरूर कभी ना कभी ये ग़ज़ल सुनी होगी। इस ग़ज़ल के शायर का नाम तो मुझे नहीं मालूम पर इसके सादगी से कहे अशआरों में अपने मीत को दी जाने वाली जो मीठी उलाहनाएँ हैं वो आपका मन जीत लेती हैं। तो आइए सुनें घनशाम वासवानी की आवाज़ में ये दिलकश ग़ज़ल..
मिल मिल के बिछड़ने का मज़ा क्यों नहीं देते?
हर बार कोई ज़ख़्म नया क्यों नहीं देते?
ये रात, ये तनहाई, ये सुनसान दरीचे
चुपके से मुझे आके सदा क्यों नहीं देते?
है जान से प्यारा मुझे ये दर्द-ए-मोहब्बत
कब मैंने कहा तुमसे दवा क्यों नहीं देते?
गर अपना समझते हो तो फिर दिल में जगह दो
हूँ ग़ैर तो महफ़िल से उठा क्यों नहीं देते
क्या आपको पता है कि जिस तरह के जगजीत के संगीत निर्देशन में घनशाम वासवानी ने ग़ज़ले गायी हैं वैसे ही घनशाम जी ने भी जगजीत सिंह की एलबम फॉरगेट मी नॉट (Forget Me Not) में अपना संगीत दिया है।
घनशाम वासवानी और उनके समकालीन गायकों को अपना हुनर दिखाने के मौके कम ही मिल पाए। ग़ज़लों की लोकप्रियता अस्सी के दशक में शीर्ष पर पहुँचने के बाद नब्बे में फिल्म संगीत के स्तर में सुधार के कारण गिरने लगी। इस दौरान वे रेडिओ और दूरदर्शन के कार्यक्रमों और देश विदेश की ग़ज़ल की महफिलो में शरीक होते रहे और ये सिलसिला आज भी बदस्तूर ज़ारी है। वैसे क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि साठ वर्ष की आयु में घनश्याम आजकल क्या कर रहे हैं? हाल ही में अपने एक लाइव कान्सर्ट में उन्होंने जगजीत जी की याद में हो रहे एक कार्यक्रम ये ग़जल सुनाई तो श्रोतागण खुशी से झूम उठे। इस ग़जल को सुनने के बाद तो मुझे यही लगा कि आज भी उनकी आवाज़ में वही आकर्षण है जो दशकों पहले होता आया था।
बरसात के इस मौसम में वासवानी जी के रससिक्त स्वरों में गाई ये ग़ज़ल आपको यक़ीनन पसंद आएगी। ज़रा सुन के तो देखिए जनाब..
बरसात के इस मौसम में वासवानी जी के रससिक्त स्वरों में गाई ये ग़ज़ल आपको यक़ीनन पसंद आएगी। ज़रा सुन के तो देखिए जनाब..
चोट वो खाई है इस दिल पे कि बस अबके बरस
ग़म को भी आया मेरे दिल पे तरस, अबके बरस
उनको नादों पे भी होने लगा नग्मों का गुमाँ
किस क़दर है मेरी फ़रियाद में रस, अबके बरस
हम मसर्रत* से बहुत दूर रहे तेरे बगैर
ग़म में डूबा रहा एक एक नफ़स**, अबके बरस
*खुशी, **साँस
मुझसे रूठी हुई तक़दीर ये कहती है 'सबा'
फूल तो फूल हैं काँटों को तरस, अबके बरस
आशा है वे इसी तरह ग़ज़ल साधना में लीन होकर हमारे जैसे ग़ज़ल प्रेमियों को आनंदित करते रहेंगे।
17 टिप्पणियाँ:
पहली बार सुना, मन आनन्दित हो गया।
बहुत मीठी आवाज़ है, मैंने इन्हें पहले नहीं सुना था. गाने का अन्दाज़ में जगजीत सिंह की झलक दिखती है.
wah wah wah ...........adbhut
सुनील जी जगजीत साहब के पसंदीदा शागिर्दों में एक हैं घनशाम जी। उनकी ग़ज़लों के संगीत और गायिकी के अंदाज पर जगजीत जी की छाप स्पष्ट है। खुशी की बात ये है कि आज भी उनकी आवाज़ की कशिश में कोई कमी नहीं हुई है।
कई बार सुन चुकी हूँ, घनश्याम वासवानी जी को ....कई रियलिटी प्रोग्राम के जज के रूप में भी लिंक्ड हो पाए उनसे..आज फिर से आपने मौका दिया उन्हें सुनने का ...शुक्रिया बहुत बहुत !
जगजीतसिंह जी की शागिर्दी का पूरा अक्स इनकी गायिकी में झलकता है, ग़ज़ल सुनने का शोंक अभी भी है ,पर इनकी ग़ज़ल तो कभी कॉलेज जीवन में रेडियो पर सुनी थी.आज फिर आपने अवसर दिया इस हेतु आभार.
बहुत खूबसूरत गजलें सुनवाने का आभार । जगजीत जी की छाप है घनशाम जी के गायकी में ।
अपने मुल्क़ मेँ आज जो भी गज़ल गायक हैँ उनमेँ घनशाम वासवानी , अशोक ख़ोसला . तलत अज़ीज . का नाम बड़े ही अदब के साथ लिया जाता है । जगज़ीत सिँह जी ने कई गज़ल गायकोँ , गायिकाओँ को अपनी मौसिक़ी मेँ गवा कर लोगोँ के सामने पेश किया । तलत अज़ीज , अशोक ख़ोसला , बिनोद सहगल , अंबर कुमार . जुनैद अख़्तर जैसे कई नाम ऐसे हैँ जिनकी गायिकी को जगज़ीत जी उस्तागी का पूज मिला । " जगज़ीत सिँह प्रजेँट्स तलत अज़ीज " एलबम मेँ तलत साहब को , " जगज़ीत सिँह प्रजेँट्स घनशाम वासवानी " एलबम मेँ घनशाम वासवानी साहब को पहली बार दुनिया भर के गज़ल के शौक़िनोँ के समक्ष पेश किया । 80 के दशक मेँ एक एलबम " जगज़ीत सिँह प्रजेँट्स द ब्राईटेस्ट टैलेँट्स आफ द 80s सौँग " काफ़ी मक़बूल रहा था । इस एलबम मेँ घनशाम वासवानी , अशोक ख़ोसला , सुमिता चक्रवर्ती , ज़ुनैद अख़्तर , बिनोद सहगल जैसे फ़नकारोँ से गज़लेँ गवायीँ । सच जगज़ीत सिँह साहब ने दम तोड़ती गज़लोँ को अपनी फ़लसफी नज़रिये से जिस तरह जिँदा रखा वो क़ाबिल - ए - तारीफ़ तो है ही साथ ही साथ ये सभी फ़नकार बड़े अदब से उनकी छोड़ी मिल्क़यत को बहुत ही ख़ूबसूयती के साथ अपने दिलोँ महफ़ूज रखे हुए हैँ । जगज़ीत साहब आज जहाँ भी होँगे इन फ़नकारोँ पर बेशक़ फ़ख़्र ही करते होँगे जो आज उनकी छोड़ी हुई गज़लोँ की विरासत को न सिर्फ़ संभाल रखा है बल्कि उसे ऊरुज़ तक पहुँचाने मेँ जुटे हैँ ।
pahle kabhi enka naam nahi suna pahli baar ghazal suni he wording r very nice.always listen jag jit singji mahndi hussen ji gulam ali & chanden dass.
Wah. Vintage! Thanks.
Ghansham Vaswani was a known name to Ghazal afficianados even before the release of this album....His ghazals"Apne khwabon ko" & "Hota raha tera hi bayaan" were very popular in his maiden album with Jagjitji "The brightest talent of the 80`s....In the album mentioned above my personal favourite is Krishn Adeeb`s "Zehen per chaayi hui gham ki ghata ho jaise"..It is surprising that Jagjitji sang very little of this wonderfull poet but most of the ghazals he sang .."jab bhi aati hai teri yaad....an unrecorded ghazal"Talkhiye main mein zara"are similar in tone and treatement to the one Ghansham bhai rendered....A coincidence?
I am grateful and overwhelmed by the love of all ghazal lovers and my friend Manish bhai .They enthuse us to really work hard.
thanku manish ji i have never heard it but it was awsome
आप सबको घनश्याम वासवानी की गाई ये ग़ज़लें पसंद आई जानकर खुशी हुई।
सोनरूपा जी जानकर अच्छा लगा कि आपको घनश्याम वासवानी से प्रत्यक्ष मिलने का अवसर मिला है।
संजय तायल और कुंदन श्रीवास्तव बहुत बहुत शुक्रिया आप दोनों का घनश्याम जी की उस दौर में गाई मशहूर ग़ज़लों को याद दिलाने का।
घनशाम वासवानी जी आभार तो हम ग़ज़ल प्रेमियों का आपके लिए है जो इस दौर में भी ग़ज़ल के परचम को लहराने में अपना योगदान दे रहे हैं।
aapki wajah se aaj in do behtareen gazlon se mulaqat hui. shukriya
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