पंचम और किशोर दा कॉलेज के ज़माने में हमारे कानों लिए वो खुराक हुआ करते थे जिसके बिना नींद हमारी आँखों से कोसों दूर भागती थी। बात नब्बे के दशक के शुरुआती दिनों की है। तब कैसेट्स बेचने वाली दुकानों में अपनी पसंद के गानों की सूची ले जाने और फिर उसे एक खाली कैसेट में रिकार्ड करने का चलन शुरु ही हुआ था। किशोर कुमार की ऐसी ही एक कैसेट मैंने भी तब बनवाई थी। उस सूची में किशोर के सदाबहार नग्मों के आलावा एक ही फिल्म के तीन गाने थे।
पंचम द्वारा संगीत निर्देशित ये फिल्म थी मेरे जीवनसाथी जिसे मैंने उस वक़्त क्या, आज तक नहीं देखा है। पर इस फिल्म के तीन गीतों दीवाना ले के आया है...., ओ मेरे दिल के चैन......... और चला जाता हूँ किसी की धुन में........ को कॉलेज से निकलने के बाद भी मैंने इतना सुना कि वो कैसेट बुरी तरह घिस गई। आज भी जब इन गीतों को सुनता हूँ तो सोचता हूँ कि आख़िर क्या था इन गीतों में जो अपने आने के इतने दशकों बाद भी ये उसी चाव से सुने जा रहे हैं?
सत्तर का दशक पंचम का उद्भव काल था। पंचम ने इस दौरान जितनी फिल्मों का संगीत निर्देशन किया उसमें ज्यादातर का संगीत सफल रहा। यहाँ तक वैसी फिल्मों का संगीत भी जो अपेक्षा के अनुरूप नहीं चल पायीं। 'मेरे जीवन साथी' इसका जीता जागता उदाहरण है। फिल्म के गाने फिल्म प्रदर्शित होने के कुछ महिने पहले से ही धूम मचाने लगे थे पर गानों ने दर्शकों को जो उम्मीद बँधाई , वो फिल्म में नज़र नहीं आई। नतीजन मेरे जीवन साथी चली नहीं पर इसके गाने चलते रहे और आज तक चल रहे हैं।
फिल्म निर्माता हरीश शाह और राजेश खन्ना ने इस फिल्म के लिए पंचम की बनाई पहली धुन अस्वीकृत कर दी थी और फिर उसके बाद पंचम ने रची ओ मेरे दिल के चैन... । इसके मुखड़े के पहले की धुन पूरे फिल्म की ट्रेडमार्क धुन बन गई और उसका इस्तेमाल अन्य गीतों में भी हुआ। फिल्मफेयर में सितंबर 1973 में छपे आलेख में वी श्रीधर ने जब इस गीत के बारे में पंचम से बात की तो उन्होंने कहा था कि
सत्तर का दशक पंचम का उद्भव काल था। पंचम ने इस दौरान जितनी फिल्मों का संगीत निर्देशन किया उसमें ज्यादातर का संगीत सफल रहा। यहाँ तक वैसी फिल्मों का संगीत भी जो अपेक्षा के अनुरूप नहीं चल पायीं। 'मेरे जीवन साथी' इसका जीता जागता उदाहरण है। फिल्म के गाने फिल्म प्रदर्शित होने के कुछ महिने पहले से ही धूम मचाने लगे थे पर गानों ने दर्शकों को जो उम्मीद बँधाई , वो फिल्म में नज़र नहीं आई। नतीजन मेरे जीवन साथी चली नहीं पर इसके गाने चलते रहे और आज तक चल रहे हैं।
फिल्म निर्माता हरीश शाह और राजेश खन्ना ने इस फिल्म के लिए पंचम की बनाई पहली धुन अस्वीकृत कर दी थी और फिर उसके बाद पंचम ने रची ओ मेरे दिल के चैन... । इसके मुखड़े के पहले की धुन पूरे फिल्म की ट्रेडमार्क धुन बन गई और उसका इस्तेमाल अन्य गीतों में भी हुआ। फिल्मफेयर में सितंबर 1973 में छपे आलेख में वी श्रीधर ने जब इस गीत के बारे में पंचम से बात की तो उन्होंने कहा था कि
"इसकी धुन जब अचानक से दिमाग में आई तो मन बेचैन हो उठा। उद्विग्नता इतनी बढ़ गई कि चार बजे सुबह उठकर मैंने उसे गुनगुनाते हुए कैसेट रिकार्डर में टेप किया और फिर अपने संगीत कक्ष में चला गया । इस तरह गीत की पूरी धुन तैयार हुई। उसी शाम ये धुन मैंने मजरूह को थमाई और मिनटों में पूरा गीत बन कर तैयार हो गया।"
मेरे जीवन साथी का दूसरा चर्चित नग्मा दीवाना ले के आया है दिल का तराना... था। संगीत संयोजन में आपको इस गीत में ओ मेरे दिल के चैन से कई समानताएँ सुनाई देंगी। खासकर गीत के पीछे बजने वाला तालवाद्य और इंटरल्यूडस। मजरूह के लिखे इस गीत में बीते हुए कल के लिए हताशा भी है और आने वाले कल के लिए धनात्मक सोच भी। पहले अंतरे के बाद पंचम फिर अपनी सिगनेचर धुन का इस्तेमाल करते है जिसका जिक्र मैंने ऊपर भी किया है। उत्तम सिंह के बजाए वायलिन के खूबसूरत टुकड़े से ये इंटरल्यूड समाप्त होता है।
अगर लोगों की जुबाँ पर ये गाने चढ़े तो उसमें पंचम की कर्णप्रिय धुन, मजरूह
के सहज सपाट बोल और किशोर की बेमिसाल आवाज़ का बड़ा हाथ था। साथ ही ऊँचे
सुरों का ना इस्तेमाल होने की वजह से पंचम के इन गीतों को गुनगुनाना एक आम
संगीत प्रेमी के लिए बेहद आसान रहा।
पर आज की तारीख़ में मेरे जीवन साथी के जिस गीत को मैं बारहा सुनना पसंद करता हूँ वो है किशोर कुमार का गाया चला जाता हूँ ...किसी की धुन में ..धड़कते दिल के ..तराने लिए..। कोई भी सफ़र हो, कैसी भी डगर हो जब भी मन प्रफुल्लित होता है गीत की धुन चुपचाप कब होठों पर रेंगने लगती है पता ही नहीं चलता। किसी गीत के सफल होने में संगीतकार और गीतकार का जबरदस्त योगदान होता है क्यूँकि कोई भी गीत उनके मातृत्व में ही कोख से निकल कर पल बढ़कर तैयार होता है। पर कुछ गीत ऐसे होते हैं जिनकी सफलता की कल्पना, उन्हें हम तक पहुँचाने वाले गायकों के बिना करना मुश्किल हो जाता है। चला जाता हूँ ....को मैं ऐसे ही गीतों की श्रेणी में रखता हूँ। किशोर कुमार इस गीत में अपनी बेमिसाल यूडलिंग से मस्ती और उमंग का जो माहौल रचते हैं उससे मन तो क्या पूरा शरीर ही तरंगित हो जाता है।
आज पंचम हमारे बीच नहीं हैं पर उनके रचे संगीत की लोकप्रियता दशकों बाद भी कम नहीं हुई है। पचास और साठ का दौर हिंदी फिल्म संगीत का स्वर्णिम दौर कहा जाता है। इस दौर में हिंदी फिल्म संगीत के महानतम संगीतकारों का काम श्रोताओं तक पहुँचा। पंचम इस दौर के आखिरी चरण में आए पर जब उनके संगीत की उनके पूर्ववर्ती संगीतकारों से तुलना करता हूँ तो जावेद अख्तर की वो बात याद आ जाती है जो उन्होंने किताब R D Burman The Man, The Music के प्राक्कथन में कही हैं..
"..पंचम के बारे में मैं क्या कहूँ? कुछ लोग एक विशेष कालखंड में सफल होते हैं। जैसे जैसे वक़्त बीतता है, तौर तरीके और शैलियाँ बदलती हैं। पुराने लोग गुजर जाते हैं या स्मृतियों के धुंधलके में खो जाते हैं। उनकी जगह नए लोग ले लेते हैं। हम सिर्फ उन लोगों को याद रख पाते हैं जो ना सिर्फ सफल हुए बल्कि जिन्होंने ऐसा कुछ अभूतपूर्व किया जिससे उनकी कला एक नए स्तर तक पहुँची और जिससे आने वाली पीढ़ियों को अपने हुनर को और तराशने के लिए नई सोच मिली। पंचम ने एक नई आवाज़ और बीट्स से सबका परिचय कराया। पुराने साजों के अलग तरीके से इस्तेमाल के साथ साथ उन्होंने कई नए वाद्य यंत्रों का भी प्रचलन किया। आज हम संगीत में जिन तकनीकी सुविधाओं को सामान्य मानते हैं वो साठ या सत्तर के दशक में थी ही नहीं। ये पंचम की विलक्षणता ही है कि तब भी उनका संगीत ताजा और आज के युग का लगता है।.."
16 टिप्पणियाँ:
यादे....
यादें.....
यादें.....!
कुछ यादें सुरीली भी होती हैं....!
कुछ कहना मुनासिब नहीं...
सुनती हूँ...
शुक्रिया
अनु
ये सब के सब मेरे यादगार गाने हैं, जितनी बार भी सुने, मन नहीं भरता।
evergreen beautiful music...
दिवाना लेके आया है पंचम दा के गीतों का खज़ाना..
very nice manishbhai.i'm fan of gulzarsaab,rd & kishorekumar sahab..........especially when all of them are together then it's a treat for our ears,heart & soul.......thn for such a nice post.please bless us with such nice posts in future too
I liked Pancham da's father S.D. burman.more. but some of the songs r nice like chala jaata hu
नूतन मुझे भी सचिन देव बर्मन अच्छे लगते हैं। सचिन दा ही क्या पचास और साठ के दशक में कई संगीतकार कमाल के थे। पर सत्तर में पंचम उस वक़्त के लिए एक नए तरह का संगीत ले के उभरे जिसने उन्हें अलग ही पहचान दिलाई।।
राहुल व्यक्तिगत तौर पर मुझे पंचम, किशोर और गुलज़ार का साथ साथ किया काम हृदय के बेहद करीब लगता है।
दिलीप, प्रवीण, पूनम , Canary पंचम आपके मन को भी झंकृत करते हैं, ये जानकर प्रसन्नता हुई।
सदाबहार गाने...
I agree.. I too personally love the creations from the Pancham, Kishore Kumar and Gulzar combination and are closest to my very existence.
Gulzar & kishor kumar r superb.sd burman manjhi's songs no match, Bhupen hajaarika was also sung like that.his ruddali songs & music were different from all.
बहुत उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
शायद पंचम में आजकल के संगीत निर्देशकों की तरह व्यवसायिक समझ नहीं थी।तभी तो बुढ्ढा मिल गया जैसी पिक्चरों में भी पंचम का संगीत सर चढ़ कर बोलता है।आजकल तो कई बार संगीत बनिस्बत अपनी काबिलियत के,फिल्मी सितारों के द्वारा किये गये प्रचार के कारण लोगों की जबान पर चढ़ता है।
sahi kaha dost pehla gana t series ki 60 ya 90 minute ki cassette me record karwate to o mere dil ke chain hi hota tha or dusra hota tha chingari koi bhadke...
पंचम सवसे अलहदा ओर श्रेष्ठ से रहे उस दौर में लक्ष्मी प्यारे ही उनके समकक्ष थे,
अपना मुकाम उन्होंने जो हासिल किया वो किसी को भी हासिल नही, लव यू पंचम
मिस यू
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