गुरुवार, अगस्त 01, 2013

कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े : क्या आप 'शर्मा जी' जैसा बनना नहीं चाहेंगे?

पिछले हफ्ते टीवी पर तनु वेड्स मनु दोबारा देखी। फिल्म तो ख़ैर दोबारा देखने पर भी उतनी ही मजेदार लगी जितनी पहली बार लगी थी पर 'शर्मा जी (माधवन)' का चरित्र इस बार दिल में कुछ और गहरे बैठ गया। कितनी दुत्कार, कितनी झिड़कियाँ सहते रहे पर हिम्मत नहीं हारी उन्होंने।  कोशिश करते रहे, नाकामयाबी हाथ लगी तो उसे ही समय का तकाज़ा मान कर ना केवल स्वीकार कर लिया पर अपने रकीब की सहायता करने को भी तैयार हो गए। मन के अंदर हाहाकार मचता रहा पर प्रकट रूप में अपने आप को विचलित ना होने दिया। पर शर्मा जी एकदम से दूध के धुले भी नहीं हैं वक़्त आया तो कलम देने से कन्नी काट गए।  आखिर शर्मा जी इंसान ही थे, धर्मराज युधिष्ठिर तक अश्वथामा का इतिहास भूगोल बताए बगैर उसे दुनिया जहान से टपका गए थे। अब इतना तो बनता है ना 'इसक' में ।


दिक्कत यही है कि आज कल की ज़िदगी में 'शर्मा जी' जैसे चरित्र मिलते कहाँ हैं? आज की पीढ़ी प्यार में या परीक्षा में नकारे जाने को खुशी खुशी स्वीकार करने को तैयार दिखती ही नहीं है। अब आज के अख़बार की सुर्खियाँ देखिए। प्रेम में निराशा क्या हाथ लगी  चल दिए हाथ में कुल्हाड़ी लेकर वो भी जे एन यू जैसे भद्र कॉलेज में। इंतज़ाम भी तिहरा था। कुल्हाड़ी से काम ना बना तो पिस्तौल और छुरी तो है ही।

आजकल हो क्या रहा है इस समाज को? जब मर्जी आई एसिड फेका, वो भी नहीं तो अगवा कर लिया। क्या इसे प्रेम कहेंगे ? इस समाज को जरूरत है शर्मा जी जैसी सोच की। उनके जैसे संस्कार की। नहीं तो वक़्त दूर नहीं जब प्रेम कोमल भावनाओं का प्रतीक ना रह कर घिन्न और वहशत का पर्यायी बन जाएगा।

दरअसल 'शर्मा जी' का जिक्र छेड़ने के पीछे  मेरा एक और प्रयोजन था। आपको तनु वेड्स मनु के उस खूबसूरत गीत को सुनवाने का जिसे मेरे पसंदीदा गीतकार राजशेखर ने लिखा था। लिखा क्या था 'शर्मा जी' के दिल के मनोभावों को हू बहू काग़ज़ पर उतार दिया था।

संगीतकार कृष्णा जिन्हें 'क्रस्ना' के नाम से भी जाना जाता है और राजशेखर की जोड़ी के बारे में तो आपको यहाँ बता ही चुका हूँ। सनद रहे कि ये वही राजशेखर हैं जो आजकल फिल्म 'इसक' में ऐनिया ओनिया रहे हैं यानि सब एन्ने ओन्ने कर रहे हैं। 

गीत में क्रस्ना बाँसुरी का इंटरल्यूड्स में बेहतरीन इस्तेमाल करते हैं। मोहित चौहान रूमानी गीतों को निभाने में वैसे ही माहिर माने जाते हैं पर यहाँ तो एकतरफा प्रेम के दर्द को भी वो बड़े सलीके से अपनी आवाज़ में उतार लेते हैं। 


कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े
वैसे तो तेरी ना में भी मैंने ढूँढ़ ली अपनी ख़ुशी
तू जो गर हाँ कहे तो बात होगी और ही
दिल ही रखने को कभी, ऊपर-ऊपर से सही, कह दे ना हाँ
कह दे ना हाँ, यूँ ही
कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े

कितने दफ़े हैराँ हुआ मैं ये सोचके
उठती हैं इबादत की ख़ुशबुएँ क्यूँ मेरे इश्क़ से
जैसे ही मेरे होंठ ये छू लेते हैं तेरे नाम को
लगे कि सजदा किया कहके तुझे शबद के बोल दो
ये ख़ुदाई छोड़ के फिर आजा तू ज़मीं पे
और जा ना कहीं, तू साथ रह जा मेरे
कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े

कितने दफ़े मुझको लगा, तेरे साथ उड़ते हुए
आसमानी दुकानों से ढूँढ़ के पिघला दूँ मैं चाँद ये
तुम्हारे इन कानों में पहना भी दूँ बूँदे बना
फिर ये मैं सोच लूँ समझेगी तू, जो मैं न कह सका
पर डरता हूँ अभी, न ये तू पूछे कहीं, क्यूँ लाए हो ये
क्यूँ लाए हो ये, यूँ ही
कितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े

वैसे भी ये गीत उन सबको अच्छा लगेगा जिनमें शर्मा जी के चरित्र का अक़्स है। मुझमें तो है और आपमें?
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14 टिप्पणियाँ:

मदन मोहन सक्सेना on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

वाह . बहुत उम्दा,
कभी यहाँ भी पधारें और टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें

Unknown on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

शर्मा जी कितना अक्स है मुझमे, मुझे नहीं मालूम। पर उनके जैसे प्रेमी ही पसंद हैं। शर्मा जी की शख्सियत की गहराई में उतारने के लिए धन्यवाद!

मुकेश कुमार सिन्हा on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

behtareen moviee
umda post...

Jiten Dobriyal on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

"इस समाज को जरूरत है शर्मा जी जैसी सोच की। उनके जैसे संस्कार की। नहीं तो वक़्त दूर नहीं जब प्रेम कोमल भावनाओं का प्रतीक ना रह कर घिन्न और वहशत का पर्यायी बन जाएगा।.."

bilkul sahi kaha aapne..!!!

Pramod Kumar on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

bahut sundar samikhha....

lori on अगस्त 01, 2013 ने कहा…

:)
pyaari post.
apke sense ka jawab nhi

http://chandsitaarephoolaurjugnu.blogspot.com/2013/07/blog-post.html
2

Jyoti Sharma on अगस्त 02, 2013 ने कहा…

wah ji wah...achcha likhte ho..

दीपिका रानी on अगस्त 02, 2013 ने कहा…

इस गीत के बोल बेहद अच्छे हैं.. खासकर इस जमाने में जब पूरे गीत में एक दो पंक्तियां ही समझ आती हैं, बाकी बस शोर बजता रहता है या अंग्रेजी में शब्द जैसे फिसलते रहते हैं, कानों तक रुकते ही नहीं।

a gal in city on अगस्त 03, 2013 ने कहा…

Bahut hi ache tarike se likha hai apne is post ko....aur Sharma Ji to humare upar bhi chaye rahe the kuch dino tak....wakae aisa kirdaar real life me nhi sirf reel life me hi milte hain dekhne ko ab to...

Manish Kumar on अगस्त 03, 2013 ने कहा…

@ Blog Bulletin हार्दिक आभार !

मुकेश, मदनमोहन, प्रमोद, जितेन, ज्योति, लोरी ये प्रविष्टि और गीत आप सबको पसंद आए जानकर खुशी हुई।

Manish Kumar on अगस्त 03, 2013 ने कहा…

पंकज सॉ : अच्छा लगने का मतलब ही है पंकज कि आप शर्मा जी के व्यक्तित्व से प्रेरित हैं और अपने जीवन में उन्हीं मूल्यों को अपनाने के लिए कटिबद्ध हैं।


"शहर की इक लड़की" : अगर आज की फिल्मों की बात करें तो फिल्मों में भी शर्मा जी से ज्यादा आक्रमक और उसूलों को गाहे बगाहे दरकिनार करने वाले किरदार आपको बतौर हीरो ज्यादा मिलेंगे।
पर हाँ वास्तविक ज़िदगी में भी शर्मा जी आउट आफ फैशन जरूर हो गए हैं और लीक से हट कर करने की हिम्मत और संयम सबमें नहीं होता।

Manish Kumar on अगस्त 03, 2013 ने कहा…

दीपिका सही कह रही हैं आप पर इस शोर के माहौल में भी तीस चालीस गीत तो हर साल ऐसे बनते ही हैं जिन्हें सुनकर दिल को सुकून पहुँचता है। वैसे भी जैसी स्क्रिप्ट होगी गीत भी उसी तरह बनेंगे ना। भाग मिल्खा भाग और लुटेरा जैसी कहानियाँ जब आती हैं तो गीतकार संगीतकार भी कुछ कर दिखाने का मौका मिलता है।

Kulwant on अगस्त 05, 2013 ने कहा…

Bahut badiya :)

kebhari on अगस्त 06, 2013 ने कहा…

excellent blog...

 

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