पिछले हफ्ते थाइकैंड की यात्रा पर निकलने की वज़ह से एस डी बर्मन से जुड़ी श्रंखला का आख़िरी भाग आपके सम्मुख पहले नहीं ला सका। जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में जिक्र किया था कि इस कड़ी में मैं उन गीतों की बात करूँगा जिनके बारे में चर्चा करने का अनुरोध आपने अपनी टिप्पणियों में किया है। साथ ही एक सरसरी सी नज़र हिंदी फिल्मों में गाए उनके अन्य गीतों पर भी होगी...
तो आज की कड़ी की शुरुआत करते हैं निहार रंजन के पसंदीदा बाँग्ला गीत रंगीला रंगीला रंगीला रे..से। बर्मन दा ने अपनी आवाज़ में ये गीत सन 1945 में रिकार्ड किया था और ये बेहद लोकप्रिय भी हुआ था। खागेश देव बर्मन, सचिन दा से जुड़ी अपनी किताब में इस गीत के संदर्भ में लोक संगीत को निभाने में सचिन दा की माहिरी के बारे में संगीतकार व गायक कबीर सुमन को उद्धृत करते हुए कहते हैं
लोक संगीत की नब्ज़ जाने बगैर इस गीत की पंक्ति तुमी होइयो किनर बंधु, आमि गांगेर पानी के बाद ई ई.. स्वर को खींचना एक आम गायक के बस की बात नहीं है। खागेश का मानना है कि इस गीत में कुछ खास शब्दों पर जोर देने के लिए सचिन दा का रुकना और डुबियो गेलो बेला के पहले हे हे ..का प्रयोग डूबते सूरज की स्थिति को गायिकी द्वारा चित्रित करने में सहायक होता है।
इस गीत को पूर्वी बंगाल के कवि जसिमुद्दिन ने लिखा था। बाँग्लादेश में जसिमुद्दिन को लोक या ग्रामीण कवि के रूप में जाना जाता है। रंगीला रे एक नाविक द्वारा गाया भाटियाली प्रेम गीत है जिसमें वो अपनी प्रेमिका से पूछता है कि आख़िर तुम मुझे छोड़ कर कहाँ चली गयी?
बंधु रंगीला रंगीला रंगीला रे
आमरे छाड़ियर बंधु कोइ गैला रे
नाविक कहता है कि तुम अगर चंदा हो तो मैं नदी की बहती धारा हूँ। देखना ज्वार भाटा की बेला में हम एक हो जाएँगे। अगर तुम फूल हो तो तुम्हारी सुगंध के पीछे मैं बहती हवा के रूप में देश विदेश तब तक भटकूँगा जब तक पागल ना हो जाऊँ। वैसे बंगाली ना होने के बावज़ूद ये गीत सहज ही मन में बैठ जाता है। आप भी सुनकर देखिए..
वैसे हिंदी फिल्मों में भाटियाली गीतों की परंपरा सचिन दा ने सुजाता में गाए अपने बेहद लोकप्रिय गीत सुन मेरे बंधु रे सुनो मोरे मितवा ...से की। क्या सहज व प्यारे बोल लिखे थे मज़रूह ने इस गीत में...
होता तू पीपल मैं, होती अमरलता तेरी
तेरे गले माला बनके, पड़ी मुसकाती रे, सुन मेरे...
दीया कहे तू सागर मैं, होती तेरी नदिया
लहर लहर करती मैं पिया से मिल जाती.. रे सुन मेरे.
भाटियाली लोक संगीत के बारे में सचिन दा का अपना एक नज़रिया था। उन्होंने लोक संगीत से जुड़े अपने एक लेख में लिखा है..
"मेरे लिए भाटियाली मिट्टी की एक धुन है। इसकी जड़े ज़मीन से निकलती हैं और धरती ही इन धुनों को पोषित पल्लवित करती है। भाटियाली एक तरह से बहती नदी का गीत है। इसके सुर, इसके बोल, इसकी पीड़ा, इसकी खुशियाँ हमें बंगाल की नदियों की याद दिलाती हैं। भाटियाली गीत एक आम किसान का प्रेम गीत भी हो सकता है तो वहीं वो राधा कृष्ण के रास रंग को भी चित्रित कर सकता है। भाटियाली गीतों का मूड, उनकी कैफ़ियत दार्शनिकता में डूबे अकेलेपन को स्वर देती है पर ये दार्शनिकता बाउल गीतों से अलग होती है।"
1969 में आराधना के साथ एक और फिल्म आयी थी जिसका नाम था तलाश जिसका जिक्र हर्षवर्धन ने अपनी टिप्पणी में किया है। इस फिल्म में भी सचिन दा ने अपने अन्य फिल्मी गीतों की तरह पार्श्व से एक गीत गाया था। गीत के बोल थे मेरी दुनिया है माँ तेरे आँचल में शीतल छाया तू, दुख के जंगल में। फिल्म के ठीक प्रारंभ में आने वाले इस गीत के बोल लिखे थे गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने। माँ की ममता को सर्वोपरि मानने वाले इस गीत की भावनाओं से भला कौन अपने आपको अलग कर सकता है?
इन गीतों के आलावा सचिन दा ने Eight Days,ताजमहल, प्रेम पुजारी,तेरे मेरे सपने,ज़िंदगी ज़िंदगी व सगीना जैसी फिल्मों में भी पार्श्व गायक की भूमिका अदा की पर इन फिल्मों के लिए उनके गाए गीत उतने चर्चित नहीं रहे। इस प्रविष्टि के साथ सचिन दा की गायिकी से जुड़ी इस श्रंखला का यहीं समापन करता हूँ। आशा है सचिन दा के गाए इन गीतों और उनके पीछे छुपे व्यक्तित्व से जुड़ी बातों को आपने पसंद किया होगा।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर जानकारी,मनीष जी.
sun mere bandhu re sun mere mitva sun mere saathi re,ek na bhulne wala geet he Sd burman ne es gaane me apni awwaj se ese ek kaljai geet bana diya he.
सचिन दा के गीतों ने भारतीय सिनेमा को एक अलग ऊँचाई तक पहुँचाया है, वे सदा हमारे यादों में अमर रहेंगें। बेहतरीन प्रस्तुति।।
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रोचक और गहन आलेख..
राजीव, हर्षवर्धन, नूतन जी, प्रवीण शु्क्रिया इस पोस्ट को सराहने के लिए।
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