गुरुवार, नवंबर 14, 2013

बाल दिवस विशेष : जब इब्ने इंशा ने दौड़ाया कछुए और खरगोश को !

कुछ महीने पहले मैंने इब्ने इंशा की लिखी 'उर्दू की आख़िरी किताब' के बारे में विस्तार से चर्चा की थी। उस चर्चा में ये भी बताया था कि इस किताब का एक विशेष पहलू ये भी है कि इसके अंतिम खंड में शामिल कहानियाँ यूँ तो बचपन में नैतिक शिक्षा की कक्षा में पढ़ाई गई कहनियों से प्रेरित है पर इब्ने इंशा अपनी धारदार लेखनी और जबरदस्त तंज़ों से  इन कहानियों में ऐसा घुमाव ले आते हैं कि हँसी के फव्वारे छूट पड़ते हैं। इस पुस्तक के बारे में लिखते हुए आपको 'एकता में बल है' वाली कहानी तो पहले ही सुना ही चुका हूँ। आज बाल दिवस के अवसर पर सोचा कि बच्चों के साथ साथ आपको भी 'कछुए और खरगोश' की कहानी सुनाई जाए। 


अब आप ही बताइए भला हममें से किसका बचपन पचतंत्र की इस कहानी को बिना सुने गुजरा होगा? उस कहानी में जरूरत से ज्यादा आत्म विश्वास खरगोश मियाँ को धूल चटा गया था। और तभी से हम सब को ये कहावत 'Slow and Steady wins the race'  तोते की तरह कंठस्थ हो गयी थी। पर इब्ने इंशा ने जिस खरगोश और कछुए की जोड़ी का ज़िक्र इस किताब में किया है वो दूसरी मिट्टी के बने थे। इब्ने इंशा कि कहानी कुछ यूँ शुरु होती है..
"एक था कछुआ, एक था खरगोश। दोनों ने आपस में दौड़ की शर्त लगाई। कोई कछुए से पूछे कि तूने ये शर्त क्यूँ लगाई? क्या सोचकर लगाई? बहरहाल तय ये हुआ कि दोनों में से जो नीम के टीले तक पहले पहुँचे उसे एख़्तियार है कि हारनेवाले के कान काट ले.."

आगे क्या हुआ?  किसकी कान कटी? जानने के लिए सुनिए इब्ने इंशा की ये मज़ेदार कहानी मेरी ज़ुबानी...

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7 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

हा हा हा हा इस वाले कछुए और इस वाले खरगोश से तो हम पहले मिले ही नहीं थे । बहुत ही सुंदर और आपकी आवाज़ में तो और भी गजब :)

Manish Kumar on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

कहानी आप को मनोरंजक लगी जान कर खुशी हुई अजय !

Prashant Suhano on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

:D:D
वाह.. मजा आ गया आपकी आवाज में सुनकर...
लगे हाथों हमने भी 'आर्डर' कर दिया है ये किताब....

Manish Kumar on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

सही किया प्रशांत बिल्कुल पैसा वसूल है ये किताब!:)

ANULATA RAJ NAIR on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

सचमुच छुटपन याद दिला दिया आपने :-)
ये किताब वाकई बार बार पढ़े जाने योग्य है...

अनु

Manish Kumar on नवंबर 14, 2013 ने कहा…

अनु जी आपने तो ये कहानियाँ पढ़ी ही हैं। जब मैंने इसे पहली बार पढ़ा था तो अपने बेटे को भी पढ़कर सुनाया था। गुरु और चेले वाली कहानी का खूब आनंद उठाया था उसने !

lori on नवंबर 15, 2013 ने कहा…

:)

 

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