पिछले हफ्ते हरिवंश राय बच्चन की कविताओं के इस संकलन को पढ़ा। इस संकलन की खास बात ये है कि इसमें संकलित सत्तर कविताओं का चयन अमिताभ बच्चन ने किया है। अमिताभ ने इस संकलन में अपने पिता द्वारा चार दशकों में लिखी गई पुस्तकों आकुल अंतर, निशा निमंत्रण, सतरंगिनी, आरती और अंगारे, अभिनव सोपान, मधुशाला, मेरी कविताओं की आधी सदी, मधुबाला, चार खेमे चौंसठ खूँटे, बहुत दिन बीते, दो चट्टानें , त्रिभंगिमा, मिलन यामिनी, जाल समेटा, एकांत संगीत और कटती प्रतिमाओं की आवाज़ में से अपनी पसंदीदा कविताएँ चुनी हैं।
अमिताभ के लिए उनके पिता की लिखी ये कविताएँ क्या मायने रखती हैं? अमिताभ इस प्रश्न का जवाब इस पुस्तक की भूमिका में कुछ यूँ देते हैं..
मैं यह नहीं कह सकता कि मुझे उनकी सभी कविताएँ पूरी तरह समझ आती हैं। पर यह जरूर है कि उस वातावरण में रहते रहते, उनकी कविताएँ बार बार सुनते सुनते उनकी जो धुने हैं, उनके जो बोल हैं वह अब जब पढ़ता हूँ तो बिना किसी कष्ट के ऐसा लगता है कि यह मैं सदियों से सुनता आ रहा हूँ, और मुझे उस कविता की धुन गाने या बोलने में कोई तकलीफ़ नहीं होती। मैंने कभी बैठकर उनकी कविताएँ रटी नहीं हैं। वह तो अपने आप मेरे अंदर से निकल पड़ती हैं।
ज़ाहिर है कि इस संकलन में वो कविताएँ भी शामिल हैं जिनसे शायद ही हिन्दी काव्य प्रेमी अनजान हो पर जिन्हें बार बार पढ़ने पर भी मन एक नई धनात्मक उर्जा से भर उठता है। जो बीत गई सो बात गई, है अँधेरी रात तो दीवा जलाना कब मना है, इस पार प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा, जीवन की आपाधापी में कब वक़्त मिला.., नीड़ का निर्माण फिर फिर, मधुशाला की रुबाइयाँ, अग्निपथ व बुद्ध और नाचघर को ऐसी ही लोकप्रिय कविताओं की श्रेणी में रखा जा सकता है। पर इनके आलावा भी इस पुस्तक में आम बच्चन प्रेमियों के लिए उनकी उन रचनाओं का भी जखीरा है जिसे शायद आपने पहले ना पढ़ा हो और जिसका चुंबकीय आकर्षण उनके सस्वर पाठ करने पर आपको मजबूर करता है।
इस पुस्तक में शामिल बच्चन जी कुछ जानी अनजानी रचनाओं को आज आपके सम्मुख लाने की कोशिश कर रहा हूँ जिनमें दर्शन भी है और प्रेम भी,एकाकीपन के स्वर हैं तो दिल में छुपी वेदना का ज्वालामुखी भी।
(1)
मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!
(2)
जानकर अनजान बन जा।
पूछ मत आराध्य कैसा,
जब कि पूजा-भाव उमड़ा;
मृत्तिका के पिंड से कह दे
कि तू भगवान बन जा।
जानकर अनजान बन जा।
आरती बनकर जला तू
पथ मिला, मिट्टी सिधारी,
कल्पना की वंचना से
सत्य से अज्ञान बन जा।
जानकर अनजान बन जा।
किंतु दिल की आग का
संसार में उपहास कब तक?
किंतु होना, हाय, अपने आप
हत विश्वास कब तक?
अग्नि को अंदर छिपाकर,
हे हृदय, पाषाण बन जा।
जानकर अनजान बन जा।
(3)
सन्नाटा वसुधा पर छाया,
नभ में हमनें कान लगाया,
फ़िर भी अगणित कंठो का यह राग नहीं हम सुन पाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं
स्वर्ग सुना करता यह गाना,
पृथ्वी ने तो बस यह जाना,
अगणित ओस-कणों में तारों के नीरव आँसू आते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं
उपर देव तले मानवगण,
नभ में दोनों गायन-रोदन,
राग सदा उपर को उठता, आँसू नीचे झर जाते हैं
कहते हैं तारे गाते हैं
(4)
कोई पार नदी के गाता!
भंग निशा की नीरवता कर,
इस देहाती गाने का स्वर,
ककड़ी के खेतों से उठकर, आता जमुना पर लहराता!
कोई पार नदी के गाता!
होंगे भाई-बंधु निकट ही,
कभी सोचते होंगे यह भी,
इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानों से सुख पाता!
कोई पार नदी के गाता!
आज न जाने क्यों होता मन,
सुन कर यह एकाकी गायन,
सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता!
कोई पार नदी के गाता!
(5)
आज मुझसे बोल, बादल!
तम भरा तू, तम भरा मैं,
गम भरा तू, गम भरा मैं,
आज तू अपने हृदय से हृदय मेरा तोल, बादल!
आज मुझसे बोल, बादल!
आग तुझमें, आग मुझमें,
राग तुझमें, राग मुझमें,
आ मिलें हम आज अपने द्वार उर के खोल, बादल!
आज मुझसे बोल, बादल!
भेद यह मत देख दो पल--
क्षार जल मैं, तू मधुर जल,
व्यर्थ मेरे अश्रु, तेरी बूँद है अनमोल बादल!
आज मुझसे बोल, बादल
171 पृष्ठों की इस पुस्तक का सबसे रोचक पहलू है इसके साथ दिया गया परिशिष्ट जिसमें अमिताभ बच्चन ने बड़ी संवेदनशीलता से बाबूजी से जुड़ी अपने बचपन की स्मृतियों को पाठकों के साथ बाँटा है। भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित 180 रुपये मूल्य की ये पुस्तक बच्चन प्रेमियों के लिए अमूल्य धरोहर साबित होगी ऐसा मेरा मानना है।
13 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर पोस्ट..वाकई कितनी सुन्दर कविताएँ है बच्चन जी की....
पुस्तक flip card पर available होगी न ??
शुक्रिया...
अनु
मनीष बहुत अच्छी जानकारी दी।
मैं भी आजकल बच्चन जी की 'क्या भूलूंँ क्या याद करूँ' पढ़ रही हूँ।
बहुत ही सुन्दर कवितायें हैं...निश्चय ही संग्रहणीय पुस्तक है .
मनीष जी,हरिवंश बच्चन मेरी भी पसंदीदा कवि है और मैं नेट पर ही पढ़ती रहती हूँ।लेकिन यहाँ आप ने इस कविता संग्रह को जिस जिस तरह प्रस्तुत किया है वो वाकई सोने पे सुहागा है।हार्दिक धन्यवाद॥
वाह मनीष जी बहुत अच्छा लगा
आलोक
अभी मैंने इस संग्रह मैं संग्रहित कविताएँ देखी .अच्छी लगी .बच्चन जी की रचनाएं हमेशा स्तरीय रही है.फिर भी पता नहीं क्यों समकालीन कवि समाज एवं समालोचकों के बीच उन्हें वह स्थान प्राप्त नहीं हो सका जिसके वे अधिकारी रहे हैं ?आजइस पर विचार होना चाहिए ताकि आने वाले समय मैं उनको वह सम्मान मिल सके जो उनको मिलना ही चाहिए
राज कुमार जी साहित्यिक वर्ग से यथोचित सम्मान मिला या नहीं इस पर एक आम पाठक की हैसियत से मैं टिप्पणी नहीं कर सकता पर जहाँ तक भारत की काव्य प्रेमी जनता का सवाल है बच्चन और दिनकर जैसे कवि दशकों से उनके हृदय में राज करते आए हैं और करते रहेंगे।
प्लेअर चले नहीं ....सुन नहीं पाई ..:-(
उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
अर्चना जी यहाँ तो प्लेयर धड़्ल्ले से चल रहा है। हो सकता है जब आपने देखा उस समय डिवशेयर के सर्वर में कुछ समस्या रही हो।
अनु जी मुझे तो ये फ्लिपकार्ट पर नहीं दिखी !
बड़ी दी, चतुर्वेदी जी, सुनीता जी, रश्मि जी व आलोक आप सब को कविताएँ और मेरी यह प्रस्तुति पसंद आई जानकर खुशी हुई।
सुन्दर कवितायें, सुन्दर चयन।
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