एक शाम मेरे नाम पर आज की महफिल सजी है जनाब नवाब मिर्ज़ा ख़ान की एक प्यारी ग़ज़ल से। ये वही खान साहब हैं जिन्हें उर्दू कविता के प्रेमी दाग़ देहलवी के नाम से जानते हैं।
दाग़ (1831-1905) मशहूर शायर जौक़ के शागिर्द थे। जौक़, बहादुर शाह ज़फर के दरबार की रौनक थे वहीं दाग़ का प्रादुर्भाव ऐसे समय हुआ जब जफ़र की बादशाहत में मुगलिया सल्तनत दिल्ली में अपनी आख़िरी साँसें गिन रही थी। सिपाही विद्रोह के ठीक एक साल पहले दिल्ली में गड़बड़ी की आशंका से दाग़ रामपुर के नवाबों की शरण में चले गए। दो दशकों से भी ज्यादा वहाँ बिताने के बाद जब नवाबों की नौकरी छूटी तो हैदराबाद निज़ाम के आमंत्रण पर वे उनके दरबार का हिस्सा हो गए और अपनी बाकी की ज़िंदगी उन्होंने वहीं काटी।
उर्दू साहित्य के समालोचक मानते हैं कि दाग़ की शायरी में उर्दू का भाषा सौंदर्य निख़र कर सामने आता है। इकबाल, ज़िगर मुरादाबादी, बेख़ुद देहलवी, सीमाब अकबराबादी जैसे मशहूर शायर दाग़ को अपना उस्ताद मानते थे। बहरहाल चलिए देखते हैं कि दाग़ ने क्या कहना चाहा है अपनी इस ग़ज़ल में
दाग़ (1831-1905) मशहूर शायर जौक़ के शागिर्द थे। जौक़, बहादुर शाह ज़फर के दरबार की रौनक थे वहीं दाग़ का प्रादुर्भाव ऐसे समय हुआ जब जफ़र की बादशाहत में मुगलिया सल्तनत दिल्ली में अपनी आख़िरी साँसें गिन रही थी। सिपाही विद्रोह के ठीक एक साल पहले दिल्ली में गड़बड़ी की आशंका से दाग़ रामपुर के नवाबों की शरण में चले गए। दो दशकों से भी ज्यादा वहाँ बिताने के बाद जब नवाबों की नौकरी छूटी तो हैदराबाद निज़ाम के आमंत्रण पर वे उनके दरबार का हिस्सा हो गए और अपनी बाकी की ज़िंदगी उन्होंने वहीं काटी।
उर्दू साहित्य के समालोचक मानते हैं कि दाग़ की शायरी में उर्दू का भाषा सौंदर्य निख़र कर सामने आता है। इकबाल, ज़िगर मुरादाबादी, बेख़ुद देहलवी, सीमाब अकबराबादी जैसे मशहूर शायर दाग़ को अपना उस्ताद मानते थे। बहरहाल चलिए देखते हैं कि दाग़ ने क्या कहना चाहा है अपनी इस ग़ज़ल में
उज्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं
देखते ही मुझे महफिल में ये इरशाद हुआ
कौन बैठा है इसे लोग उठाते भी नहीं
उन्हें मेरे यहाँ आने में भी संकोच है तो दूसरी तरफ़ अपनी महफ़िलों में उन्होंने मुझे बुलाना ही छोड़ दिया है। अगर ग़लती से वहाँ चला जाऊँ तो वो भी लोगों को नागवार गुजरता है। दुख तो इस बात का है कि मुझसे ना मिलने की उसने कोई वज़ह भी नहीं बतलाई है।
दाग़ का अगला शेर व्यक्ति की उस मनोदशा को निहायत खूबसूरती से व्यक्त करता है जिसमें कोई शख्स चाहता कुछ है और दिखाना कुछ और चाहता है। मन में इतनी नाराजगी है कि उनके सामने जाना गवारा नहीं पर दिल की बेचैनी उन्हें एक झलक देख भी लेना चाहती है। ऐसी हालत में चिलमन यानि बाँस की फट्टियों वाले पर्दे ही तो काम आते हैं..
दाग़ का अगला शेर व्यक्ति की उस मनोदशा को निहायत खूबसूरती से व्यक्त करता है जिसमें कोई शख्स चाहता कुछ है और दिखाना कुछ और चाहता है। मन में इतनी नाराजगी है कि उनके सामने जाना गवारा नहीं पर दिल की बेचैनी उन्हें एक झलक देख भी लेना चाहती है। ऐसी हालत में चिलमन यानि बाँस की फट्टियों वाले पर्दे ही तो काम आते हैं..
खूब पर्दा है के चिलमन से लगे बैठे हैं
साफ़ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं
और ये तो मुझे ग़ज़ल का सबसे खूबसूरत शेर लगता है..
हो चुका क़ता ताल्लुक तो जफ़ायें क्यूँ हों
जिनको मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं
यहाँ दाग़ कहते हैं जब आपस में वो रिश्ता रहा ही नहीं फिर क्यूँ मुझे प्रताड़ित करते हो। दरअसल तुम मुझे भूल नहीं पाए हो वर्ना मुझे सताने की इस तरह कोशिश ही नहीं करते।
मुंतज़िर हैं दमे रुख़सत के ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान के हम छोड़ के जाते भी नहीं
तुम्हें इंतज़ार है कि मैं इस ज़हाँ को छोड़ूँ तो तुम जा सको और मैं हूँ कि ये एहसान करना ही नहीं चाहता :)
सर उठाओ तो सही, आँख मिलाओ तो सही
नश्शाए मैं भी नहीं, नींद के माते भी नहीं
अरे तुमने कैसे समझ लिया कि मैं नींद में हूँ या नशे में हूँ। मेरे चेहरे की रंगत तो यूँ ही बदल जाएगी..बस एक बार तुम सिर उठाकर, आँखों में आँखें डाल कर तो देखो।
क्या कहा, फिर तो कहो; हम नहीं सुनते तेरी
नहीं सुनते तो हम ऐसों को सुनाते भी नहीं
देखिए दाग़ प्रेमियों की आपसी नोंक झोक को कैसे प्यार भरी उलाहना के रूप में व्यक्त करते हैं। लो सारा दिन तुम्हारा ख़्याल दिल से जाता ही नहीं । तिस पर तुम कहते हो कि हम तुम्हारी सुनते नहीं। ऐसे लोगों को कुछ कहने से क्या फ़ायदा जो दिल की बात भी ना समझ सकें।
मुझसे लाग़िर तेरी आँखों में खटकते तो रहे
तुझसे नाज़ुक मेरी आँखों में समाते भी नहीं
कुछ तो चाहत है हम दोनों के बीच जो हम जैसे भी हैं एक दूसरे को पसंद करते हैं। वर्ना क्या ऐसा होता कि मुझसे दुबली पतली काया वाले तुम्हें अच्छे नहीं लगते वहीं तुमसे भी हसीन, नाजुक बालाएँ मुझे पसंद नहीं आतीं।
ज़ीस्त से तंग हो ऐ दाग़ तो जीते क्यूँ हो
जान प्यारी भी नहीं जान से जाते भी नहीं
और मक़ते में दाग दार्शनिकता का एक पुट ले आते हैं। हम हमेशा अपनी ज़िंदगी, अपने भाग्य को कोसते रहते हैं। वही ज़िदगी जब हमें छोड़ कर जाने लगती है तो उसे किसी हालत में खोना नहीं चाहते। इसलिए अपनी तंगहाली का रोना रोने से अच्छा है कि उससे लड़ते हुए अपने जीवन को जीने लायक बनाएँ।
ये तो थी दाग़ की पूरी ग़ज़ल। इस ग़ज़ल के कुछ अशआरों को कई फ़नकारों ने अपनी आवाज़ से सँवारा है मसलन बेगम अख्तर, फरीदा खानम, रूना लैला व मेहदी हसन। पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे इसे मेहदी हसन की आवाज़ में इस ग़ज़ल को सुनना पसंद है। जिस तरह वो ग़जल के एक एक मिसरे को अलग अंदाज़ में गाते हैं उसका कमाल बस सुनकर महसूस किया जा सकता है।
ये तो थी दाग़ की पूरी ग़ज़ल। इस ग़ज़ल के कुछ अशआरों को कई फ़नकारों ने अपनी आवाज़ से सँवारा है मसलन बेगम अख्तर, फरीदा खानम, रूना लैला व मेहदी हसन। पर व्यक्तिगत तौर पर मुझे इसे मेहदी हसन की आवाज़ में इस ग़ज़ल को सुनना पसंद है। जिस तरह वो ग़जल के एक एक मिसरे को अलग अंदाज़ में गाते हैं उसका कमाल बस सुनकर महसूस किया जा सकता है।
वैसे ग़ज़ल गायिकाओं की बात करूँ तो इस ग़ज़ल को गुनगुनाते वक़्त फरीदा खानम का ख़्याल सबसे पहले आता है।
वैसे आपको इस ग़ज़ल का सबसे उम्दा शेर कौन सा लगा ये जानने का इंतज़ार रहेगा मुझे।
10 टिप्पणियाँ:
संगीत तो भाया, अर्थ छूट गया।
"Khoob parda hai, chilman se lage baithe hain....." sh'r bhut pyara laga, aapki post! kya kahna!!! bahut pyaari, shukriya
वाह......
शेर जो आपका पसंदीदा वही हमारा....
जिनको मतलब नहीं रहता वो सताते भी नहीं....
बेहतरीन पोस्ट!!
शुक्रिया
अनु
प्रवीण आपकी बात समझ नहीं आई।
परमेश्वरी जी प्रविष्टि पसंद करने का शुक्रिया !
अनु जी व लोरी अपनी पसंद के शेर के बारे में बताने के लिये धन्यवाद !
भाई किस शेर को खराब कहें सब दिल को छूते है
सच में सभी शेर बहुत खूबसूरत है, एक से बढ़कर एक।
bhaaee.... khoob post lagaaee hai aapne ... lutf hai k lafzon mein zaahir ho paane se qaasir lag raha hai... aapko padhna, har baar ek naye tajrube se ru.b.ru hona hota hai ... so shukriya kehna to ban'ta hi hai na meri pasand ka sher. . . Zeest se tangho ae "daag" to jeete kyun ho,,,jaan pyari bhi nahi, jaan se jaate bhi nahi !!! "daanish"
Interesting Love Shayari Shared.by You. Thanks A Lot For Sharing.
प्यार की कहानियाँ
आलोक व सुनीता जी आपको ये ग़ज़ल पसंद आई जानकर अच्छा लगा।
दानिश आप जैसे शायर की सराहना मेरी लिए काफी मायने रखती है। बहुत बहुत शुक्रिया !
नमस्ते मनीषजी,
मै एक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय तथा उपशास्त्रीय संगीत का साधक हूँ | ठुमरी दादरा ग़ज़ल इन संगीत प्रकारोंमे बेगम अख्तर का बहुत बड़ा स्थान है यह तो आप जानते ही है| उन्होंने गाई हुईं ग़ज़लों का मै अध्ययन कर रहा हूँ|
इस अध्ययन में, आपका "उज्र आने में भी है " इस ग़ज़ल पे लिखा हुआ "blog" मेरे नजर पड़ा| आपकी सुन्दर और बिलकुल दिल से लिखी हुई शैली के कारण, मै इस ग़ज़ल को थोडा और अच्छे से समझ सका, और उसका आनंद ज्यादा लूट सका|
आशा है आप ऐसे ही लिखते रहेंगे और हम पढ़ते रहेंगे. क्या आपने ग़ालिब के गजलों पर भी कुछ लिखा है?
आपके इस लेखन के लिए आपको बहुत धन्यवाद!
Regards,
Kedar Naphade
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